Wednesday, 18 January 2012

सपने आस और जिंदगी

सपने  आस  और  जिंदगी  एक  धागे  में  गुथे  है  या  उलझे  है ,
कभी  आस  उभरती  है 
कभी  सपने  खिलते  है  कभी  जिंदगी   यथार्थ  दिखा  देती  है 
सपने  आस  और  जिंदगी  एक  अनदेखे   धागे  से  बुने  है
  जिंदगी  अपनी  हकीकते  बताना  चाहती  है  ,
आस  अपना  होना  बचाना  और  सपने  तो  सपने  है   ,
उन्हें  खिलना है  उड़ना  है  और  मचलना  है 
सपने  आस  और  जिंदगी  एक  दूजे  से  अलग  है 
दूर  है  पर  एक  ही  आखों   तले  खिले  और  बसे  है ,
एक  धागे  में  पिरोये  हुए 
जैसे  विभिन्न   फूल  एक  हार  में  पिरो  के  इश्वर  को   चडाया जाता  है 
या  जैसे    हार  किसी  शादी में   दुल्हन  या  दुल्हे  के  हाथ  किसी  के  गले  का  हार  बनता  है 
जैसे    माला  कभी  मृतक  के  शरीर  पे  चढ़ती है 
सपने  आस  और  जिंदगी  विभिन  मोड़ों  पे  ये  तीनो  रूप  दिखाती  है  पूजा  वासना  और  मुक्ति 
सपने  आस  और  जिंदगी  एक  अनदेखे  धागे  से  जुड़े   /सपने  आस  और  जिंदगी 

1 comment:

  1. विनय जी,बहुत सुन्दर रचना है।बधाई स्वीकारें।

    ReplyDelete

Share Your Views on this..