Monday 18 March 2024

ताशकंद शहर

 चौड़ी सड़कों से सटे

बगीचों का खूबसूरत शहर ताशकंद 

जहां 

मैपल के पेड़ों की कतार 

किसी का भी 

मन मोह लें।


तेज़ रफ़्तार से

भागती हुई गाडियां 

सिग्नल पर

विनम्रता और अनुशासन से

खड़ी हो जाती हैं 

ताकि पार कर सकें सड़क

मुझसे पैदल यात्री भी ।


तकनीक ने 

भाषाई सीमाओं को 

काफ़ी हद तक

खत्म कर दिया है

येनडेन से कैब बुला

आप घूम सकते हैं

पूरा शहर।


ऑनलाइन ट्रांसलेशन ऐप से

वार्तालाप भी

काम भर की बातचीत तो

करा ही देती है

उज़्बेकी और हिंदी में ।


अक्सर कोई उज़्बेकी

पूछ लेता है -

हिंदुस्तान?

और मेरे हां में सर हिलाते ही

वह तपाक से कहता है -

नमस्ते !


वैसे 

सलाम और रहमत कहना

मैंने भी सीख लिया

ताकि कृतज्ञता का

थोड़ा सा ही सही पर 

ज्ञापन कर सकूं ।


इस शहर ने 

मुझे अपना बनाने की 

हर कोशिश की

इसलिए मैं भी

इस कोशिश में हूं कि

इस शहर को

अपना बना सकूं 

और इसतरह

हम दोनों की ही 

कोशिश जारी है।


डॉ मनीष कुमार मिश्रा

विजिटिंग प्रोफेसर ( ICCR हिंदी चेयर)

ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज

ताशकंद, उज़्बेकिस्तान।













Saturday 16 March 2024

ताशकंद में नमस्ते इंडिया दुकान

 ताशकंद में भारतीयों की खाद्य जरूरतों को पूरा करनेवाली दुकानों में यह "नमस्ते इंडिया" नामक दुकान बड़ी उपयोगी है। इसे श्रीमती नीता गुप्ता जी चलाती हैं जो मूल रूप से दिल्ली की रहनेवाली हैं लेकिन विगत दस सालों से ताशकंद में रह रही हैं। 

यहां आप को भारतीय मसाले, बासमती चावल, चना, बेसन, दाल, अचार, साबूदाना, पोहा, सरसों का तेल, घी , पापड़, गुड़ और तमाम किस्म की नमकीन मिल जाएगी । 

ताशकंद में घी, सरसों का तेल, साबूदाना, गुड़ और नमकीन जैसी वस्तुएं बड़े से बड़े मॉल में भी मिलना मुश्किल है लेकिन यहां ये सब सहज उपलब्ध है।



Thursday 14 March 2024

ताशकंद

 

ताशकंद ।

ताशकंद को पहली बार
फरवरी की सर्द हवाओं में
बर्फ़ से लिपटे हुए देखा 
बर्फ़ का झरना
बर्फ़ का जमना
और बर्फ़ का आंखों में बसना
जितना दिलकश था
उतना ही खतरनाक भी
लेकिन दिलकश नज़ारों के लिए
खतरे उठाने की 
पुरानी आदत रही है
और आदतन
मैं उन मौसमी जलवों का
तलबगार हो गया।

ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी से
याकुब अली रोड़ पर स्थित
मेरे बसेरे की दूरी
तीसरी डनहिल सिगरेट के
लगभग
आखिरी कश तक की थी
उसके बाद 
कैफे दोसान की गरमा गर्म काफ़ी
उन गर्म सांसों सी लगती
जो मुझसे दूर होकर भी
मेरे अंदर ही कहीं
बसी रहती हैं।

दिलशेर नवाई, बाबर
और फातिमा की काव्य पंक्तियों को पढ़ते हुए
कबीर, टैगोर, शमशेर
और अमृता प्रीतम याद आते रहे 
मैं कविता की इस आपसदारी से खुश हूं
सरहदों के पार
बेरोक टोक सी
शब्दों की ऐसी यात्राएं
कितनी मानवीय हैं !!


डॉ मनीष कुमार मिश्रा
विजिटिंग प्रोफेसर (ICCR हिंदी चेयर)
ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज
ताशकंद, उज़्बेकिस्तान।






Sunday 10 March 2024

रात चांद को देखा तो

 रात चांद को देखा तो कोई याद आ गया 

मेरी यादों में फिर से मेरा वो चांद आ गया।


कहना था लेकिन जो भूल गया तेरे सामने

वो सब तो तेरे जाने के बाद याद आ गया।


इश्क है तुझसे तो फिर कोई तगाफुल कैसा 

यही सोच लेकर तेरे आगे फरियाद आ गया।


तेरे बाद मैं होता भी कुछ और तो कैसे होता

तेरी मोहब्बत में देखो होकर बर्बाद आ गया।


बेड़ियां तो बहुत सी थी जमाने भर की लेकिन

तेरे खातिर ही होकर सब से आज़ाद आ गया।

Dr ManishKumar Mishra

Tashkent, Uzbekistan 





Friday 8 March 2024

आठ मार्च , विश्व महिला दिवस मनाते हुए

 वैसे तो नाज़ुक है लेकिन फौलाद ढालना जानती है

वोअपने आंचल से ही ये दुनियां संवारना जानती है।


दुनियां बसाती है जो दिल में मोहब्बत को बसाकर

वो अपनी नज़रों से ही बद नजर उतारना जानती है।


सजाने संवारने में उलझी तो बहुत रहती है लेकिन

गोया जुल्फों की तरह सबकुछ सुलझाना जानती है।


ऐसा नहीं है कि उसके आस्तीन में सांप नहीं पलते

पर ऐसे सांपों का फन वो अच्छे से कुचलना जानती है।


हर एक बात पर रोज़ ही अदावत अच्छी नहीं होती

इसलिए रोज़ कितना कुछ वो हंसकर टालना जानती है।


आठ मार्च विश्व महिला दिवस मनाते हुए याद रहे कि 

प्रकृति समानता सहअस्तित्व को ही निखारना जानती है।


डॉ मनीष कुमार मिश्रा

विजिटिंग प्रोफेसर (ICCR हिंदी चेयर )

ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज

ताशकंद, उज़्बेकिस्तान 





Wednesday 28 February 2024

ताशकंद का राज कपूर रेस्टोरेंट

 ताशकंद में भारतीय व्यंजन परोसने वाले रेस्टोरेंट्स में से "राज कपूर" एक है । शहर के बीचों बीच स्थित यह रेस्टोरेंट एक बड़े होटल द ग्रैंड प्लाजा का एक हिस्सा है जो पहली मंजिल पर स्थित है। यहां शाकाहारी एवम मांसाहारी दोनों भारतीय व्यंजन मिलते हैं। खास बात यह है कि इस रेस्टोरेंट के मालिक भारतीय नहीं बल्कि जकार्ता से हैं । यहां के अधिकांश कर्मचारी उज़्बेकी हैं जो अंग्रेजी और  उज़्बेकी भाषा बोलते हैं। लेकिन किचन में व्यंजन बनानेवाले शेफ भारत से हैं अतः स्वाद में वो भारतीयता की महक महसूस होती है। रोटी दाल, दाल चावल जैसे नियमित भारतीय भोज्य पदार्थ आप को उज़्बेकिस्तान के सामान्य होटलों में नहीं मिल पाएगा । इसके लिए आप को राज कपूर, द होस्ट, शालीमार और कारवां जैसे रेस्टोरेंट्स में ही आना होगा ।

हिंदी फिल्मों के महानायक राज कपूर के नाम पर बने इस रेस्टोरेंट में आप राजकपूर समेत कई अन्य भारतीय सिने अभिनेता एवम अभिनेत्रियों के फिल्मी पोस्टर और चित्र देख सकते हैं जिन्हें बड़े करीने से यहां की दीवारों पर सजाया गया है। जो कि उनकी वैश्विक लोकप्रियता का प्रतीक है।







Tuesday 20 February 2024

वो मेरी मातृभाषा है।

 वो मेरी मातृभाषा है ।


जिसके आंचल ने दुलराया 

भावों से भर दिए हैं प्राण

जिसकी रज को चंदन जाना

और जाना जिसके तन को अपना प्राण

वो मेरी मातृभाषा है।


जीवन के ताने बाने को

बुननेवाली वो भाषा

मुझमें अक्सर शामिल

वो बिलकुल मुझ सी 

वो मेरी मातृभाषा है।


जिसकी कोह में

मेरे सारे राग विराग

जो सुलझाती सारी उलझन को

करती रहती सदा दुलार

वो मेरी मातृभाषा है।


श्वास श्वास जिसकी अभिलाषा

जो जीवन शैशव सी है प्यारी

जो पावन उतनी

जितने की चारों धाम

वो मेरी मातृभाषा है।


डॉ मनीष कुमार मिश्रा

विजिटिंग प्रोफेसर (ICCR Hindi Chair)

ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज

ताशकंद, उज़्बेकिस्तान।

Monday 5 February 2024

18. मजबूरियां बेड़ियां बन पांव से लिपट जाती हैं

 मजबूरियां बेड़ियां बन पांव से लिपट जाती हैं

परदेश में मेरी दुनियां कितनी सिमट जाती है।


वहां दिन रात कितना कुछ कहते सुनते थे हम 

यहां पराई बोली के आगे ज़ुबान अटक जाती है।


यहां अकेले अब वो इस कदर याद आती हैं कि

उन्हें सोचते हुए पूरी रात यूं ही निपट जाती है।


अब इन सर्द हवाओं में अकेले यहां दुबकते हुए 

उसके हांथ की चाय मेरे हाथों से छटक जाती है।


गुल गुलशन शहद चांदनी वैसे तो सब है लेकिन

वो ख़्वाब में आकर मुझे प्यार से डपट जाती है।


डॉ मनीष कुमार मिश्रा

विजिटिंग प्रोफेसर

ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज

उज़्बेकिस्तान 

Friday 19 January 2024

राजस्थानी सिनेमा का इतिहास"

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मित्रों,

आप को सूचित करते हुए प्रसन्नता हो रही है कि मेरे और डॉ हर्षा त्रिवेदी द्वारा संपादित पुस्तक "राजस्थानी सिनेमा का इतिहास" अनंग प्रकाशन द्वारा प्रकाशित होकर आ गई है। पुस्तक एमेजॉन से ऑनलाईन खरीदी जा सकती है।


राजस्थानी सिनेमा पर हिंदी में प्रकाशित संभवतः यह पहली पुस्तक है । राजस्थानी सिनेमा से जुड़े कई लोगों तक हम नहीं पहुंच सके लेकिन भविष्य में इसके संशोधित, परिवर्धित संस्करण की जब भी योजना बनेगी, इसमें नए विचारों और आलेखों को निश्चित ही स्थान दिया जाएगा। पुस्तक में जो प्रूफ इत्यादि की त्रुटियां रह गई हैं, आगामी संस्करण में उसे भी सुधार लिया जाएगा। 

इस पुस्तक में कुल 25 आलेख हैं जिनमें से 03 आलेख अंग

राजस्थानी सिनेमा पर जो लोग शोध कार्य से जुड़े हैं उनके लिए रिफ्रेंस बुक के रूप में यह किताब निश्चित ही बड़ी सहायक होगी । एकदम अछूते विषयों और क्षेत्रों में काम करने की अपनी अलग चुनौती होती है, सामग्री का अभाव बड़ी समस्या है। ऐसे में हमने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए यथाशक्ति कोशिश की कि हम संबंधित विषय पर अधिकतम जानकारी एक दस्तावेज के रूप में अकादमिक जगत में उपलब्ध करा सकें । हम कितने सफल हुए यह तो पाठक ही बताएंगे लेकिन काम को पूरा करने का सुकून हमें ज़रूर मिला । आशा और विश्वास है कि पाठकों का आशीष भी उनकी प्रतिक्रिया के रूप में हमें प्राप्त होगा । 

इस पुस्तक के प्रकाशन की जिम्मेदारी अनंग प्रकाशन, नई दिल्ली ने विधिवत निभाई । उनके सहयोग के लिए हम उनके आभारी हैं। अंत में पुनः सभी के प्रति आभार ज्ञापित करते हुए हम विश्वास रखते हैं कि आगे भी सभी का सहयोग इसी तरह मिलता रहेगा।

धन्यवाद!

डॉ मनीष कुमार मिश्रा

डॉ हर्षा त्रिवेदी 


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Sunday 14 January 2024

जो प्रेम करते हैं


जो प्रेम करते हैं।

जो प्रेम करते हैं
उनकी आखों में
होते हैं कई कई रंग
वो गाते हैं
अमरता का गान
जीते हैं हर क्षण को
किसी उत्सव की तरह।

जो प्रेम करते हैं
बेफिक्री
उनकी आदत होती है
उन्हें बोलने के लिए
किसी भाषा की जरूरत
न के बराबर होती है
प्रेम के दिन अक्सर
होते हैं वसंत की तरह।

जो प्रेम करते हैं
वो अक्सर होते हैं
औरों से बेखबर
वो दुनियां की
सबसे अनोखी चीज़ में
सुगंध बटोरते रहते हैं
सारी दुनियादारी उनके लिए
होती है
व्यर्थ नाटक की तरह।

जो प्रेम करते हैं
वे इतिहास के जंगल में
पुराने पन्नों की गंध की तरह
या कि
पोखर के तल की मिट्टी की तरह
होते हैं
होने न होने के
तमाम षड्यंत्रों के बावजूद भी ।

प्रेम में पगी
तरसती आखों का जल
किसी प्रेमी की तरह
किसी के इशारे पर
किसी की यादों में
कैद रहता है
किसी निरपराध कैदी की तरह।

                डॉ मनीष कुमार मिश्रा  
                कल्याण , महाराष्ट्र 

ताशकंद शहर

 चौड़ी सड़कों से सटे बगीचों का खूबसूरत शहर ताशकंद  जहां  मैपल के पेड़ों की कतार  किसी का भी  मन मोह लें। तेज़ रफ़्तार से भागती हुई गाडियां  ...