ChatGPT said:
"तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः मा गृधः कस्यस्विद्धनम्॥"
— ईशावास्योपनिषद्, मन्त्र 1 का अंतिम खण्ड
मूल श्लोक:
ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्। तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः मा गृधः कस्यस्विद्धनम्॥
अनुवाद:
यह सम्पूर्ण जगत्, जो कुछ भी इस चलायमान संसार में है, ईश्वर से आवेष्ठित है।
इसलिए, त्यागभावना से उसका उपभोग करो; किसी के धन की लालसा मत करो, वह किसका है?
पद-by-पद व्याख्या:
तेन — उस (ईश्वर) के द्वारा
त्यक्तेन — त्याग करके, त्याग की भावना से
भुञ्जीथाः — उपभोग करो, उपयोग में लो
मा — मत
गृधः — लोभ करो
कस्यस्वित् — किसका (है?)
धनम् — धन
भावार्थ:
यह मंत्र अत्यंत गहन और अद्वितीय आध्यात्मिक तथा सामाजिक संदेश देता है। इसमें कहा गया है कि यह पूरा संसार ईश्वर की सम्पत्ति है। हमें इस संसार में जो कुछ भी मिला है — भोजन, वस्त्र, धन, प्रकृति — वह सब ईश्वर से प्राप्त है और सभी के लिए है। इसलिए:
हमें त्याग और संतोष के साथ जीना चाहिए, भोग करते हुए भी ममत्व और स्वार्थ का त्याग करना चाहिए।
किसी दूसरे के धन, साधन या संपत्ति के प्रति लोभ नहीं करना चाहिए।
यह सब साझी विरासत है; हम केवल एक नियामक या सेवक हैं, स्वामी नहीं।
आधुनिक सन्दर्भ में प्रतीकात्मक अर्थ:
यह मंत्र आज की भौतिकवादी दुनिया में एक सांस्कृतिक और पर्यावरणीय घोषणापत्र की तरह है। जब प्राकृतिक संसाधनों का दोहन, उपभोगवाद और आर्थिक असमानता चरम पर है, तब यह मंत्र हमें सिखाता है:
संपत्ति और प्रकृति के प्रति उत्तरदायित्वपूर्ण व्यवहार करें।
त्याग और सन्तुलन की भावना को जीवन में अपनाएँ।
दूसरों की कीमत पर अपनी लालसाओं को न पालें।
No comments:
Post a Comment
Share Your Views on this..