Saturday, 3 May 2014

हर शाम छत पे अकेले

हर शाम छत पे अकेले
गुमसुम से टहलते हैं । 

खुली जुल्फों के बादल
बरसने से डरते हैं । 

कितना कुछ कहने के बाद भी
कुछ कहने को तरसते हैं । 

कभी कहा तो नहीं पर
दिल दोनों के मचलते हैं ।

बनारस की हर सुबह में
तेरी यादों की सलवटें हैं ।

यक़ीन पूरी तरह से नहीं है लेकिन

यक़ीन पूरी तरह से नहीं है लेकिन
जितना तुम्हें जाना है 
उसमें इतनी गुंजाइस तो है कि
तुम्हें प्यार कर सकूँ 
विश्वास कर सकूँ 
समर्पित कर सकूँ ख़ुद को
पवित्रता और प्रेम के साथ
हमारी तृषिता के नाम । 
तुम जो ख़ुद प्रकृति हो
बरसती भी हो
तरसती भी हो
सँवरती भी हो
संवारती भी हो
मुझे सर्वस्व देकर
मेरी आस्था का केन्द्र बनती हो ।
तुम पर कविता लिखना
तुम्हारे आग्रह पर लिखना
ये कोई वादा नहीं
जो कि पूरा किया
बल्कि वो पूजा है
जिसमें आराध्य तुम
साधन और साध्य तुम
मैं तो बस
हांथ पर बंधे रक्षा सूत्र सा
विश्वास का प्रतीक मात्र रहूँगा
तब तक
जबतक कि तुम्हें विश्वास है ।

Saturday, 26 April 2014

बनारस मे नए मित्रों के फोन कुछ इस तरह आते है,

बनारस मे नए मित्रों के फोन कुछ इस तरह आते है,
का बे कहां हो ?
यहीं कमरे पे । 
चलो अस्सी चलें । 
कुछ काम है ।
अबे काम काहे का गुरु , चलो घंटा दू घंटा लंठई / बकचोदी करेंगे, फिर लौट आएंगे । 
जब तक मैं कल्याण में था , न तो बकचोद था न लंठ । लेकिन बनारस -------------------------------------------------------- । 
भो------ के एतना सोचबो तो लड़........ रह जाबों । बु........... कभों न ब्न्बो । 
तो का चल रहे हो ?
हाँ , आता हूँ । 

ये संवाद उन प्राध्यापक मित्रों के साथ जो बीएचयू के प्रोफेसर हैं ।

Saturday, 19 April 2014

हर गलत बात के दरवाज़े पे दस्तक रही है

हर गलत बात के दरवाज़े पे दस्तक रही है 
मुझे हर रंग से खेलने की आदत सी रही है । 

मेरी आवारगी,मेरी खानाबदोशी के पीछे 
यकीनन मेरे अंदर की बगावत रही है । 

मैं बहुत खुश हूँ तुझसे ऐ ज़िंदगी क्योंकि,
मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं रही है । 

हम अपने अमल का हिसाब ख़ुद देंगे 
मंदिर ओ मस्जिद से यारी नहीं रही है ।

तेरा आना, आकर चला जाना यूँ
जैसे मुझमे बाकी तेरी हिस्सेदारी रही है ।

- मनीष

Wednesday, 16 April 2014

अब चाहकर भी ....





अब चाहकर भी तुम्हें आवाज नहीं देता



पुराने किस्से को नया आगाज नहीं देता 


   
                                         - मनीष

Wednesday, 5 March 2014

अब जब की नहीं हो तुम

अब जब कि नहीं हो तुम 
"तुम्हारा होना'' बहुत याद आता है । 
इस अकेलेपन के साथ 
"तुम्हारा साथ" बहुत याद आता है । 
खुद बिखरते  हुए 
तुम्हारी स्मृतियों को समेटना 
अजीब है । 
जितना बिखरता हूँ 
उतना ही समेटता हूँ । 
जितना समेटता हूँ 
उतना ही बाकी है 
ओह !!
जाने कितना बाकी है ?

Tuesday, 4 March 2014

बिटवीन लंका टू वी.टी.

                     
आज दिनांक 16 फरवरी 2014 की सुबह गुलाबी ठंड के साथ कंबल में दुबका हुआ ही था कि गेस्ट हाऊस के भाई जोखन सिंह जी ने चाय के कप के साथ उठा दिया । चाय की तलब लगी ही थी । जोखन जी उम्र में मेरे पिताजी के बराबर होंगे,पर मेरा पैर छूते हैं । मेरे बार-बार मना करने पे भी अपना तर्क रखते हुए कहते हैं कि आप बाभन हैं और फिर गुरु भी । जीवन पे पहली बार लगा कि ब्राह्मण और गुरुजी होना बुरा नहीं है । अन्यथा मण्डल आयोग के कमंडल से जो निकला ....................... । जाने देते हैं,विषय बदल जाएगा और ऐसा बदलेगा कि कइयों को लहरिया देगा ।
तो जोखन जी की चाय के बाद घड़ी देखी तो लगा नास्ता भी कर लिया जाय नहीं तो डायनिंग एरिया से कोई और बुलाने आ ही जाएगा । बिना ब्रश- दतून के नास्ता करने पहुंचे तो देखा पूड़ी,सब्जी और जलेबी के साथ चाय । बस मुड़िया के लगे रहे अंतिम चुस्की तक । नास्ते के बाद जब प्रेशर का आभास हो गया तो नित्य क्रिया निपटाने में देर नहीं की । आज रविवार था,कोई और काम हो नहीं सकता था इसलिए भाई कमलेश मौर्या के साथ किराये का मकान खोजने निकल पड़े । दो-चार जगह दौड़ने के बाद मन हुआ बाबा विश्वनाथ जी के दर्शन कर लिया जाय । उनकी नगरी में मकान लेने से पहले उनके दरबार में हाजिरी जरूरी समझी । तो सँकरी- सँकरी गलियों के बीच से भोले बाबा के गर्भगृह तक जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । माँ अन्नपूर्णा और माँ पार्वती के भी दर्शन किए। फ़िर बनारसी छोले बटूरे को भकोस के अस्सी घाट के लिए निकल पड़े । गंगा मईया को देख मन प्रसन्न हो गया । आनंद नामक नईया के खेवईया के साथ गंगा जी में उतर गए । पानी शीतल था । इस समय बरसात नहीं है इसलिए नदी  बीच में सूखी है । वहाँ जाके पूरे बनारस को समझने का प्रयास किया ।
 भाई कमलेश ने बताया कि लाल बहादुर शास्त्री जी का गाँव उस तरफ है और वे कई बार नदी पार कर पढ़ने के लिए सामने घाट की तरफ आते थे । ये कहानी सुनी तो हमने भी थी लेकिन आज गंगा नदी के बीचों- बीच खड़े होकर उनके गाँव,नदी और घाट की जो स्थिति देखी तो यकीन हो गया कि कहानी झूठी है । लगभग 1.5 किलोमीटर लंबी गंगा जी को पार करना किसी बच्चे के लिए लगभग असंभव है । अच्छा वो इतनी जहमत क्यों उठाए ? क्योंकि उसके पास मल्लाह को देने के लिए पैसे नहीं होते थे ..........। बनारस का कोई मल्लाह किसी स्कूल जाने वाले बच्चे को इसलिए नाव में नहीं बैठायेगा क्योंकि उसके पास पैसे नहीं हैं, ये बात भी गले नहीं उतरती । हाँ लड़कोरी में कभी नाव पकड़ के गंगा पार किए होंगे तो वो अलग मामला होगा । लेकिन फ़िर भी जो इतिहास के ज्ञानी तथ्यों और प्रमाणों के आधार पे हमें गलत साबित करने का मन बना रहे हों उनसे अनुरोध है समय न बर्बाद करें । हम तो जो देखे उसी के हिसाब से समझे और लैपटपवा पे टिपटिपा दिये ।
वहाँ से वापस घाट पे आए तो लेमन टी पीने का मन हुआ । पहली बार देखे की हाजमोले की गोली,नीबू का रस और उबली हुई चाय से इतनी स्वादिष्ट लेमन टी बन सकती है । चाय का मूल्य 06 रूपये मात्र । इस अजब चाय का गज़ब स्वाद मुंहा में संभाले वापस लंका आए और फ़िर गेस्ट हाउस । कल लंका टू वी.टी. के बीच ही दौड़ना है । मेरा मतलब है लंका गेट से विश्वनाथ टेंपल तक । जय भोले नाथ की ।


Setting up Google AdSense on your blog

Setting up Google AdSense on your blog involves a few steps to ensure that your blog is ready to display ads. Here’s a step-by-step guide: #...