आज दिनांक 16 फरवरी 2014
की सुबह गुलाबी ठंड के साथ कंबल में दुबका हुआ ही था कि गेस्ट हाऊस के भाई जोखन
सिंह जी ने चाय के कप के साथ उठा दिया । चाय की तलब लगी ही थी । जोखन जी उम्र में
मेरे पिताजी के बराबर होंगे,पर मेरा पैर छूते हैं । मेरे
बार-बार मना करने पे भी अपना तर्क रखते हुए कहते हैं कि आप बाभन हैं और फिर गुरु
भी । जीवन पे पहली बार लगा कि ब्राह्मण और गुरुजी होना बुरा नहीं है । अन्यथा
मण्डल आयोग के कमंडल से जो निकला ....................... । जाने देते हैं,विषय बदल जाएगा और ऐसा बदलेगा कि कइयों को लहरिया देगा ।
तो जोखन जी की चाय के बाद
घड़ी देखी तो लगा नास्ता भी कर लिया जाय नहीं तो डायनिंग एरिया से कोई और बुलाने आ
ही जाएगा । बिना ब्रश- दतून के नास्ता करने पहुंचे तो देखा पूड़ी,सब्जी और जलेबी के साथ चाय । बस मुड़िया के लगे रहे अंतिम चुस्की तक ।
नास्ते के बाद जब प्रेशर का आभास हो गया तो नित्य क्रिया निपटाने में देर नहीं की
। आज रविवार था,कोई और काम हो नहीं सकता था इसलिए भाई कमलेश
मौर्या के साथ किराये का मकान खोजने निकल पड़े । दो-चार जगह दौड़ने के बाद मन हुआ
बाबा विश्वनाथ जी के दर्शन कर लिया जाय । उनकी नगरी में मकान लेने से पहले उनके
दरबार में हाजिरी जरूरी समझी । तो सँकरी- सँकरी गलियों के बीच से भोले बाबा के
गर्भगृह तक जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । माँ अन्नपूर्णा और माँ पार्वती के भी
दर्शन किए। फ़िर बनारसी छोले बटूरे को भकोस के अस्सी घाट के लिए निकल पड़े । गंगा
मईया को देख मन प्रसन्न हो गया । आनंद नामक नईया के खेवईया के साथ गंगा जी में उतर
गए । पानी शीतल था । इस समय बरसात नहीं है इसलिए नदी बीच में सूखी है । वहाँ जाके पूरे बनारस को
समझने का प्रयास किया ।
भाई कमलेश ने बताया कि लाल बहादुर शास्त्री जी
का गाँव उस तरफ है और वे कई बार नदी पार कर पढ़ने के लिए सामने घाट की तरफ आते थे ।
ये कहानी सुनी तो हमने भी थी लेकिन आज गंगा नदी के बीचों- बीच खड़े होकर उनके गाँव,नदी और घाट की जो स्थिति देखी तो यकीन हो गया कि कहानी झूठी है । लगभग 1.5
किलोमीटर लंबी गंगा जी को पार करना किसी बच्चे के लिए लगभग असंभव है
। अच्छा वो इतनी जहमत क्यों उठाए ? क्योंकि उसके पास मल्लाह
को देने के लिए पैसे नहीं होते थे ..........। बनारस का कोई मल्लाह किसी स्कूल
जाने वाले बच्चे को इसलिए नाव में नहीं बैठायेगा क्योंकि उसके पास पैसे नहीं हैं, ये बात भी गले नहीं उतरती । हाँ लड़कोरी में कभी नाव पकड़ के गंगा पार किए
होंगे तो वो अलग मामला होगा । लेकिन फ़िर भी जो इतिहास के ज्ञानी तथ्यों और
प्रमाणों के आधार पे हमें गलत साबित करने का मन बना रहे हों उनसे अनुरोध है समय न
बर्बाद करें । हम तो जो देखे उसी के हिसाब से समझे और लैपटपवा पे टिपटिपा दिये ।
वहाँ से वापस घाट पे आए तो
लेमन टी पीने का मन हुआ । पहली बार देखे की हाजमोले की गोली,नीबू का रस और उबली हुई चाय से इतनी स्वादिष्ट लेमन टी बन सकती है । चाय
का मूल्य 06 रूपये मात्र । इस अजब चाय का गज़ब स्वाद मुंहा में संभाले वापस लंका आए
और फ़िर गेस्ट हाउस । कल लंका टू वी.टी. के बीच ही दौड़ना है । मेरा मतलब है लंका
गेट से विश्वनाथ टेंपल तक । जय भोले नाथ की ।
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