Wednesday, 24 June 2009
ऐ दोस्त आज तेरे आंसू का हिसाब हो जाए
ऐ दोस्त आज तेरे आंसू का हिसाब हो जाए /
तेरा जाना जरूरी है आज तुजे समझाना है ;
मेरे बड़ते कदमो को अभी बहुत मंजिले पाना है /
कर नाज ख़ुद पे मेरी सफलता की तू सीढ़ी है ;
खिलखिला के हंस ऐ दोस्त तेरे सिने पे मेरे जूते की मोढी है /
अपने आंसू से तू मुझको उदास ना कर ;
जो बीत गया अब उसकी आस ना कर /
जानता हूँ तुझको मेरी तरक्की tujhe प्यारी हैं ;
मानता हूँ तेरे जज्बे को तुने जान मुजपे वारी है /
बहुधा बाँहों में जकडा है सिने से लगाया है ;
प्यार हूँ मै तेरा मैंने ही तेरे सिने में ख़जर घुसाया है /
मेरे प्यार तेरा इम्तहान है अब तो ;
मेरी तरक्की तेरे आंसू का जवाब है अब तो /
तू कहते थी तू जीवन में बहुत आगे जाएगा ;
इस दुनिया में अपना लोहा मनवाएगा /
तेरे सपनों को सही कराने का वक्त आया है अब तो ;
इसिलए ये छुरा तेरे सिने में समाया है/
तू कहती थी मेरी इक बात पे जान दे देगी ;
मेरी आवाज पे ईमान रख देगी /
मुझे भी प्यार है तुझसे , तेरा ईमान नही माँगा है ;
दे दुवा मुझको तेरे प्यार को मैंने पहचाना है /
झेल जाएगा हर दर्द को हंस के जानता हूँ मैं ;
आखिरी साँस पे भी दुवा होगी मानता हूँ मै /
क्या करूँ अतीत है तू वर्त्तमान कोई और है ;
जीवो आज पे ये संदेश साधू संतो से भरे इस देश का है /
भुत को वर्तमान या भविष्य से मिलायुं कैसे ;
मेरी तरक्की और सुख के बिच तुजको लायुं कैसे ?
गजब की मोहब्बत है तेरी ;
तेरी दुवा असर रखती है ;
जानता हूँ तू समजेगा मेरी मजबूरी को ;
देखेगा बड़े प्यार से काटते तेरे सिने को मेरे हाथ की छुरी को /

अब तुझसे क्यूँ है मिलना ?
क्यूँ भावो का फिर से खिलना ?
राहों में तुमने राह बदल दी ,
भावों में अभिप्राय बदल दी ;
रिश्तों की कठिनाई से भागी ,
कब अपनी सच्चाई पे जागी ;
उन लम्हों से फिर क्यूँ है जुड़ना ;
क्यूँ आधे जजबातों से मिलना ;
तुझको दिल की झंकार न भायी ;
तेरे प्यार की खुसबू मुरझाई ,
खोयी थी तू अपने ही सुख में ;
खोयी थी पैसों के बंधन में ;
तुजे चाहिए था इक रुतबा ,
प्यार नही अंहकार का जज्बा ;
गले लगाता था जिसको मैं ;
उनसे हाथ milaane क्यूँ है मिलना ;
फिर मिलके क्यूँ है टूटना /
उन होठों पे पुकार न होगी ;
वछों को सिने की दरकार न होगी ;
न मिलन की aah मन में ,
na bahon ki chah tan me ;
nayan न ढूंढेंगे नयनो को ;
भावों में पुकार न होगी ;
पत्थर से क्या बयां करूँगा ;
कोयले को कैसे गले का हार करूँगा ?
क्यूँ मिलाने kअ व्यवहार करूँ मै ;
क्यूँ ख़ुद पे अत्याचार करूँ मै ?

Sunday, 21 June 2009
जिंदगी की मेहरबानियाँ याद हैं /
वो हँसी शाम फिर न आएगी ;
वो चहकते दिन तू कैसे भुलाएगी ?
सदियाँ लगी थी दिल को करीब लाने में ;
एक पल में उसे कैसे भुलाएगी ?
वो नजरों से नजरें मिलाना याद है ;
तेरा यूँ ही चिडाना याद है ;
मेरे हाथों में तेरा हाथ याद है ;
तेरा शरमा के मुस्कराना याद है ;
आवाजों की खनक ,
सांसों की महक ;
तुझे बस यूँ ही देखना ;
अदा से तेरा अधखुली पलकों का खोलना ;
तेरा दौड़ कर सिने से लगना याद है ;
सांसों का सांसों से महकना याद है ;
आज भी तेरा डोली से जाना याद है ;
कितनी तड़प ,जब्त करते आंसू ,
औ मुस्कराना याद है ;
कितना अकेलापन माहौल की सनसनाहट ,
औ एक कोने में ख़ुद से आंसू छुपाना याद है ;
कितने ही जख्म खाए जिंदगी की राहों में ,
पर कोई गम न था ;
उन जख्मों को बहुतों ने कुरेदा ,
पर दर्द न था ;
लोंगों का खिल्ली उडाना याद है ;
मेरा आखें चुराना याद है ;
आखों के बहते आंसू औ मुस्कराना याद है ;
शिकवा किस की ,
गिला किसका ;
जिंदगी की मेहरबानियों पे तड़पना याद है ;
bhuke पेट दिन है गुजरे ,
खाली पेट रातें ;
जिंदगी याद है मुझे तेरी हर सौगातें ;
अपनो से अपनी हालत पे दबना याद है ;
चंद दिनों की खुशियाँ देकर ,
तेरा बरसों तडपाना याद है ;
जिंदगी तेरी मेहरबानियाँ याद है ;
अपनो की भीड़ में सालों गुजारी तनहाईयाँ याद है /

Friday, 19 June 2009
वो तेरा अतीत हूँ /
अंत हूँ ,अनन्त हूँ ;
आकर्षण हूँ , आमंत्रण हूँ ;
जो तू वश में ना कर सकी ,
वो तेरा अत्यंतर हूँ /
अरस्तु हूँ , अगस्त्य हूँ ;
अनुगामी हूँ , अभ्यस्त हूँ ;
जो तू ना पढ़ सकी ;
वो तेरा ही अर्थ हूँ /
अमूर्त हूँ , अभिभूत हूँ ;
अविरक्त हूँ , अभिव्यक्ति हूँ ;
जिसे ना तू जीत सकी ,
वो तेरी आशक्ति हूँ /
आगाज हूँ , आवाज हूँ ;
आस हूँ , अनायास हूँ ;
जिसे ना तू मिटा सकी ;
वो तेरा अहसास हूँ /
अभिज्ञान हूँ , अभिमान हूँ ;
आकार हूँ , अविकार हूँ ;
जो तू न संभाल सकी ,
वो तेरा अधिकार हूँ /
अमान्य हूँ , अवमान्य हूँ ;
अरीती हूँ , अप्रिती हूँ ;
जो स्वीकार ना कर सकी ,
वो तेरा अतीत हूँ /

Thursday, 18 June 2009
वो तेरा अतीत हूँ /
अनिभिज्ञ हूँ , अवरुद्ध हूँ ;
अदृश्य हूँ , अदृष्ट हूँ ;
अभीष्ट नही जो तुझे ;
वो तेरा अधिष्ट हूँ /
अनुरोध हूँ , अवरोध हूँ ;
अज्ञान हूँ , अनजान हूँ ;
जो पुरा ना हो सका ,
वो तेरा अरमान हूँ /
अप्राय हूँ , अभिप्राय हूँ ;
आवेश हूँ , अवशेष हूँ ;
मन में तेरे छुपा हुआ ,
उलझनो का आक्रोष हूँ /
अमान्य हूँ , अवमान्य हूँ ;
अरीती हूँ , अप्रिती हूँ ;
जो स्वीकार ना कर सकी ,
वो तेरा अतीत हूँ /

Wednesday, 17 June 2009
तेरा मुझसे क्या रिश्ता था
मेरा तुझसे क्या रिश्ता है ;
सब रिश्ता भूल गया /
याद हैं बस आखों के आंसू ;
सारा किस्सा भूल गया /
रातें आखों में कटी ;
रातों का अँधियारा भूल गया /
राहों में उलझा हूँ दिन भर ;
घर का रास्ता भूल गया /
बातों में उनके बिरहा होता था ,
आखों में मदिरालय ;
बहकूँ कैसे यार मेरे ;
मदहोशी ही भूल गया /

यूं . जी .सी का अत्याचार
अब सुनने मे आ रहा है की फ़िर से M.PHIL की मान्यता ख़त्म होने जा रही है । अब कोई इनसे यह पूछे की आप के आदेश के बाद जिन लोगो ने M।PHIL किया या कर रहे हैं अब उनका क्या होगा ?
UGC वालो इसका क्या जवाब दोगे ?
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