Monday, 24 March 2025

अश्लील और अपमानजनक भाषाओं का प्रयोग एवं प्रयोजन ।

         भाषा विशेष के संदर्भ में अश्लील, अशिष्ट, बुरी, अपमानजनक, असभ्य, भद्दी, गँवारू और फूहड़ जैसी शब्दावली का उपयोग जब होता है तो उसकी चोट उस समाजपर होती है जिसका प्रतिनिधित्व वह भाषा कर रही है अक्सर एक ही समाज के किसी अलग वर्ग या समूह की भाषा को इसतरह अपमानित किया जाता है नागरी समाज की भाषा सभ्य और कुलीन तो ग्राम्य समाज की भाषा भद्दी और गँवारू अपनी भाषा अच्छी तो बाहरी या दूसरे प्रांतों / क्षेत्रों के लोगों की भाषा को बुरी भाषा मानने की परंपरा भी विश्व भर में प्रचलित है भाषा शुद्धता के आग्रही सधुक्कड़ी या खिचड़ी भाषा को भी अनुचित ही मानते हैं बड़े वृत्त की भाषाएँ छोटे वृत्त की भाषाओं को हमेशा से कमतर आँकती रही हैं बावजूद इसके हर भाषा में आप को असभ्य /अश्लील शब्दावली मिल जाती है। कोई भी भाषा अपने आप को इनसे अलग नहीं कह सकती हमारे यहाँ तो गाली एक लोक विधा के रूप में प्रचलित रही है उत्तर भारत में शादी ब्याह जैसे मांगलिक - शुभ अवसरों पर गारी गाने की परंपरा बहुत पुरानी है

 

       संस्कृत साहित्य में देखें तो भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र में लज्जास्पद बातों का निषेध किया आचार्य भामह काव्यालंकार में ग्राम्य शब्दों को निषिद्ध मानते हैं आचार्य वामन ने लज्जा, घृणा उत्पन्न करनेवाले एवं अमंगल की सूचना देनेवाले शब्द को काव्य के संदर्भ में अश्लील माना है बावजूद इसके ऋग्वेद से लेकर बीसवीं शती तक के संस्कृत साहित्य में ऐसी बुरी भाषा या शब्दावली की कोई कमी नहीं है संस्कृत साहित्य में तो अनुष्ठान के एक अंग के रूप में गालियों का प्रयोग होता रहा है क्षेमेन्द्र ने ‘कला विलास में गणिकाओं के धनापहरण के कौशलों को , गवैयों के हथकण्डों को , गणकों की धूर्तताओं की चर्चा करते हुए उपशब्दों का भरपूर प्रयोग किया है ऐसे ही उदाहरण अरबी, फ़ारसी और तुर्की जैसी भाषाओं में भी समान रूप से मिलते हैं मादर, हराम, वकूफ, शातिर अरबी के शब्द हैं जिनसे हिन्दी में कई गालियों या अपमानजनक शब्दों का सृजन हुआ हालांकि मूल रूप में इन शब्दों का अर्थ बड़ा शिष्ट है मादर माँ के लिए, हराम अर्थात निषिद्ध या विधि विरुद्ध। वकूफ अर्थात रुकना या डटे रहना। बे-वकूफ वह जो बिना रुके कोई काम करता है, जैसे लगातार बोलना शातिर शब्द शतरंज के खिलाड़ी के लिए प्रयुक्त होता था लेकिन अब इसका प्रयोग चालाक या धूर्त  के रूप में होने लगा है इसी तरह फ़ारसी का एक शब्द है चूली अर्थात कायर या नामर्द इसी चूली से चूलिया और फ़िर चूलिया से हिन्दी में जो शब्द आया वह अपशब्द के रूप में धड़ल्ले से इस्तमाल हुआ  

 

           कहने का अभिप्राय यह है कि अपमानजनक या अश्लील शब्दावली हर भाषा का सत्य है भाषा को बिगाड़ने का जिम्मेदार सिर्फ़ अनपढ़ लोगों को बताना उचित नहीं है पढे लिखे विद्वानों, लेखकों इत्यादि का भी इसमें महत्वपूर्ण योगदान है समाज में व्यक्ति अपनी हताशा, निराशा, कुंठा के साथसाथ अपनी श्रेष्ठता के मद में भी अपमानजनक या अश्लील भाषा का उपयोग करता रहा है तीक्ष्ण, अप्रिय और अपमानित करने वाले शब्दों को अशिष्ट या गाली के रूप में देखा गया गालियाँ जाति-बोधक, संबंध बोधक, पशु पक्षियों से तुलना करती हुई , स्त्री की यौनिकता को केंद्र बनाकर अथवा मानव की विकलांगता या उसके स्वभाव, शारीरिक बनावट इत्यादि से जुड़ी हुई होती हैं सभ्य समाज में इन गालियों को शोभनीय नहीं माना गया रामचरित मानस में लक्ष्मण परशुराम को कहते हैं

             वीर व्रती तुम धीर अछोभा। गारी देत पावहु सोभा।।

 

            भाषाई परिवर्तन हमेशा विकल्पों के साथ उपस्थित होता है ऐसे में वक्ता एक सामान्य परिपाटी एवं आदतन निर्धारित मानकों / तरीकों / स्वरूपों को अपनाता है वह रूपकों या नये प्रयोगों से बचता है ऐसे लोग भाषाई नियमों से परे जाने की हिम्मत नहीं करते और जीवन भर इसकी शुद्धता की वकालत करते रहते हैं शुद्ध, व्याकरणनिष्ठ और स्पष्ट उच्चारण की उनकी सतर्कता हमेशा बनी रहती है लेकिन भाषा तो बहता नीर है हर क्षण उसमें कुछ नया जुड़ रहा है तो पुराना छूट रहा है यह उसका स्वभाव उसकी प्रकृति है इसे भाषा का गुण और नियति दोनों माना जा सकता है जिस भाषा रूप को हम बिगड़ी हुई मानते हैं, दरअसल उस समाज का लोक चित्त उसी बिगड़े हुए भाषा के रूप में अधिक खिलता है आम जनमानस तक पहुँचने के लिए इसी भाषा का हांथ पकड़ना पड़ता है परिवेश और परिस्थितियाँ भाषा का नियंत्रण व्याकरण के हाथों में नहीं रहने देती

 

           नागरिकों का बँटवारा उनके द्वारा प्रयोग में लायी जानेवाली भाषा के आधार पर हमेशा से होता रहा है किंतु इसके आधार पर उन्हीं नागरिकों में नागरिक मूल्यों की कमतरता या अधिकता को नहीं आँका जा सकता यह ठीक है कि एक मानकीकृत शिष्ट भाषा के साथ आप प्रशासनिक कार्यों एवं व्यवहार में अधिक दक्ष हो जाते हैं प्रशासनिक संगति बिठाने में ऐसी भाषाएँ महत्वपूर्ण होती हैं इस तरह ऐसी भाषा शासन और सत्ता के निकट बने रहने का एक कारगर हथियार बन जाती हैं एक सांस्कृतिक उत्पाद के रूप में परिष्कृत एवं परिमार्जित भाषा का रूप हमेशा ही फ़ायदे का सौदा रहा है अतः लोग इसकी तरफ़ आकर्षित होते हैं और अवसर एवं प्रभाव की भाषा के रूप में इसे खुले दिल से स्वीकार करते हैं इतना तो निश्चित है कि किसी भाषा की श्रेष्ठता के मूल में सामाजिक और राजनीतिक संदर्भ अधिक महत्वपूर्ण होते हैं

           भाषाई कुलीनतावाद आप को अधिक सभ्य दिखने, सम्पन्न होने एवं प्रशासन के करीब होने का अवसर अधिक देता है सत्ता के केंद्र भी काफ़ी हद तक जन संस्कृति और मानकविहीन भाषा को कमतर मानते हैं बृहद आर्थिक एवं सामाजिक संवादों के लिए साक्षरता एवं भाषा की एकरूपता बहुत बड़ी जरूरत है सत्ता के केन्द्रीकरण और कानून के पालन के लिए भी यह ज़रूरी है भारत में यह काम एक जमाने में फ़ारसी ने बख़ूबी किया मुगल अपने घरों में तुर्की, प्रशासनिक कार्यों में फ़ारसी और मस्जिदों में अरबी भाषा का उपयोग करते थे अंग्रेज़ों ने फ़ारसी, हिंदुस्तानी, हिन्दी और उर्दू से काफी दिनों तक काम चलाया फिर उन्होने अँग्रेजी को सत्ता की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित किया हम जुबान सब को पसंद होते हैं, इसे आज की बाजारवादी संस्कृति अच्छे से समझती है उसके लिए वह भाषा अधिक महत्वपूर्ण है जिसका बाजार अधिक बड़ा है यही कारण है कि भारतीय भाषाओं का वैश्विक स्तर पर उपयोग बढ़ा है विशेष रूप से विज्ञापन, मीडिया और सिनेमा के क्षेत्र में यहाँ भाषा की उत्कृष्टता से कहीं अधिक महत्वपूर्ण उसकी व्याप्ति हो गई है  

 

            भाषा का बुनियादी उपयोग प्रश्न पूछने और उसका उत्तर प्राप्त करने से है भाषाई प्रश्न, भाषा के अन्य स्वरूपों के साथ संगति बैठाने का मामला अधिक है जो भाषा कक्षा में पढ़ते हुए उपयुक्त है, वह घर पर नहीं जो भाषा कार्य क्षेत्र के लिए उपयुक्त है वह दोस्तों के साथ गपशप के लिए नहीं जो भाषा राजनीति के लिए उपयुक्त है वह राजनीतिक कूटनीति के लिए नहीं यह स्पष्ट है कि भाषा के उपयोग की कला एक विवेकपूर्ण एवं जटिल निर्णय होता है भाषा के पास हमेशा वह जगह सुरक्षित रहती है जहां परंपराओं एवं नवाचारों की संलग्नता को स्वीकार किया जा सके जन संस्कृति, गैर मानकीकृत भाषा के पास भी ऐसा बहुत कुछ होता है जिसपर वह समाज गर्व कर सके भाषाई अध्ययन में शिष्टअशिष्ट से अधिक संलग्नता की संस्कृति की व्याख्या निरंतर होती रहनी चाहिए इस तरह का अकादमिक दखल अधिक समाजोपयोगी होगा

 

          बुरे प्रभाओं, प्रसंगों, अशिक्षा और सामाजिक क्षरण को हम अशिष्ट भाषा का कारक मान लें तो भी इस तरह के भाषिक इकाई के उत्थान के लिए सकारात्मक प्रयास ज़रूरी है भाषा के सामाजिक इतिहास को खंगालते हुए, समाज भाषा को मूल्यांकन का आधार बनाते हुए हम ऐसी पहल कर सकते हैं यह किसी भी उन्नत, उदार, प्रगतिशील और मानवीय मूल्यों में निष्ठा रखने वाले समाज के लिए बहुत ज़रूरी है अशिष्ट या अपमानजनक समझी जानेवाली भाषा के अंदर लैंगिकता, जातीयता, धर्म और व्यक्तिगत अक्षमताओं को आधार बनाकर ऐसे शब्द कहे जाते हैं जो अपने शब्द रूप में अधिकतर निरर्थक होते हैं लेकिन ऐसे शब्दों, वाक्यों को सुननेवाला क्रोध में जाता है वह अपने आप को अपमानित महसूस करता है वैसे भी कहते हैं कि ठंड और बेज़्जती जितना महसूस करो उतनी ही बढ़ती जाती है कहने का अभिप्राय यह कि कहे हुए अपमानजनक शब्दों से कहीं अधिक यह व्यक्ति की संवेदनशीलता पर निर्भर करता है कि वह किसी बात पर कितना अपमानित महसूस करता है ? भाषा आग की तरह है इसमें आप हांथ सेंक भी सकते हैं और जला भी सकते हैं कब, कहाँ, कैसी और कितनी भाषा का उपयोग करना है यह एक जटिल और विवेकपूर्ण निर्णय होता है

 

           सार्वजनिक स्थानों पर अश्लील या अपमानजनक भाषा के इस्तमाल पर रोक इसी उद्देश्य से लगायी जाती है कि ऐसे स्थानों पर प्रशासन या उनके प्रतीकों की कुशल कार्यप्रणाली पर इसका अनुचित प्रभाव पड़े व्यवस्था को सुचारु रूप से कार्यशील बनाये रखने के लिए यह ज़रूरी समझा गया होगा यह बात राज सत्ता और धर्म सत्ता पर समान रूप से लागू होती है सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं एवं बच्चों को ऐसी भाषा से बचाना भी ज़रूरी समझा गया होगा अधिकांश देशों में आज भी ऐसे नियम हैं कि महिलाओं, बच्चों और जाति विशेष के व्यक्ति के संदर्भ में अनुचित बात कहने पर क़ानूनन दंड दिया जा सकता है हमारा देश भी इसका प्रमाण है कार्यक्षेत्र में / सार्वजनिक स्थलों पर अपमानजनक बात या अश्लील हरकतें भी अपराध की श्रेणी में आते हैं

 

          अश्लील, अशिष्ट भाषा का उपयोग जितना अनुचित माना जाता है उतना ही बड़ा सच यह भी है कि यह एक साहसिक कार्य है भारत में कई राजनीतिक क्षेत्रीय पार्टियां हैं भूमिपुत्रों और क्षेत्रीय अस्मिता का प्रश्न ये बड़े ज़ोर-शोर से उठाती हैं ऐसा करते समय ये भाषा की सारी मर्यादाएं तार-तार कर देते हैं नफ़रत और हिंसात्मक बातों का खुले आम प्रदर्शन होता है ऐसा करने से वह नेता अपने लोगों के बीच अधिक लोकप्रिय बनता है तामिलनाडु में हिंदी विरोध, महाराष्ट्र और असम जैसे राज्यों में हिंदी भाषी लोगों का विरोध इसका उदाहरण है इसी तरह कट्टर हिंदू या मुस्लिम नेता अपनी आम सभाओं में दूसरे धर्म के लोगों के प्रति अशिष्ट एवं अपमानजनक बातें कहने में कोई कसर नहीं छोडते यह सब एक सोची समझी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा होता है कई बड़े कश्मीरी नेताओं का भारत विरोधी आम बयान भी इसी श्रेणी में आता है

          

          नफ़रत की यह राजनीति भारतीय राजनीति का एक घिनौना किंतु कामयाब फ़ार्मूला रहा इससे स्पष्ट है कि ऐसी भाषाओं के उपयोग के पीछे सिर्फ़ भावुकता या क्रोध नहीं अपितु प्रभाव, अधिकार, पहचान एवं सोची समझी रणनीति का भी योगदान होता है लोग बड़ी चालाकी से इसका उपयोग करते हुए अपने उचित-अनुचित स्वार्थ को सिद्ध करते हैं भाषा में बढ़ता हुआ खुलापन और साहस विमर्शवादी साहित्य में लोकप्रिय हुआ अपने समाज के प्रति हुए सदियों के शोषण के खिलाफ़ आवाज उठाने के लिए साहित्यकारों को यही भाषा अधिक उपयुक्त लगी दलित साहित्य में आक्रोश की कविताओं की भाषा ऐसी ही रही अन्याय के प्रतिकार के रूप में भी ऐसी भाषा को उचित ही माना जाना चाहिए यहाँ भी यह बात स्पष्ट है कि अपने प्रयोजन के लिए भाषा का कलात्मक उपयोग अधिक महत्वपूर्ण होता है

 

        धर्म और राजसत्ता की व्यवस्था, मान्यताओं के खिलाफ़ जिसने भी आचरण किया, उसे निकृष्ट मानकर उसके लिए कई ऐसे शब्दों का प्रयोग किया गया जो अशिष्ट और अपमानजनक रहीं धीरे धीरे अशिष्ट भाषा वर्ग प्रतीक के रूप में भी उभरने लगी अशिष्ट/ अश्लील और अपमानजनक भाषा के प्रयोग को बढ़ाने में युद्धों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई विजेता आक्रांता बनके लूट और हिंसा को बढ़ावा देते थे स्त्रियों का बलात्कार करके वर्ग विशेष का नैतिक मान मर्दन किया जाता था युद्धों की धकान और तनाव ने भी अश्लीलता के लिए जमीन तैयार की स्थानांतरण और शरणार्थियों की समस्याओं ने भी ऐसी भाषा और सोच के लिए उर्वरा का काम किया पूरे विश्व में इनके प्रति अधिकांश रूप से घृणा का ही भाव रहा

        हारे हुए देश, समाज या जाति के प्रति घृणा को बढ़ावा दिया जाता रहा प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिकन, रशियन, जर्मन और ब्रिटिश लोगों के संदर्भ में ऐसे अनेकों उदाहरण खोजे जा सकते हैं दुश्मन देश के प्रति अपमानजनक बातों की बाढ़ सी गई नए - नए शब्द और मुहावरे गढ़े गए सन 1971 में पाकिस्तानी सेना द्वारा ऑपरेशन सर्चलाइट बांग्लादेश में चलाया गया जिसमें करीब 30 लाख लोग मारे गए और अंदाज़न दो लाख महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया एक करोड़ से अधिक लोग शरणार्थी के रूप में भारत आये इन शरणार्थियों को भोजन और अन्य सुविधाओं को देने के लिए भारत सरकार को अपना बजट भी 1971-72 और 1972-73 में 2192 करोड़ से बढ़ाकर 2839 करोड़ करना पड़ा था।  इस बात को हम भारत- पाकिस्तान के संदर्भ में भी आसानी से समझ सकते हैं सन 1947 में भारत के बंटवारे के बाद हिन्दूमुस्लिम कत्लेआम का सबसे बड़ी क़ीमत महिलाओं को चुकानी पड़ी एक अनुमान है कि इस दौरान लगभग एक लाख महिलाओं का अपहरण, हत्या और बलात्कार हुआ

          निष्कर्ष रूप में हम यह कह सकते हैं कि भाषा के शिष्ट, अशिष्ट, अश्लील या अपमानजनक होने का प्रश्न एक सामाजिक एवं राजनीतिक संदर्भों का विषय है इसकी अधिक गहन पड़ताल समाज भाषाविज्ञान के माध्यम से होनी चाहिए कहे गए की अपेक्षा कहने के हेतु या प्रयोजन की चिंता अधिक होनी चाहिए भाषा के आधार पर किसी समाज या समूह को कमतर आँकना एक बड़ी सामाजिक भूल है अगर उद्देश्य ठीक हो तो इन शब्दों का सकारात्मक पक्ष भी है प्रतिकार के साथसाथ जीवन के राग रंग को समझने में ये सहायक हैं जो सहज और स्वाभाविक है उसका दमन भी उचित नहीं अंत में अपनी बात इस शेर से ख़त्म करेंगे -

जब लगें ज़ख़्म तो क़ातिल को दुआ दी जाए
है यही रस्म तो ये रस्म उठा दी जाए
                                          -जां निसार अख़्तर

 

   डॉ. मनीष कुमार मिश्रा

सहायक प्राध्यापक हिन्दी विभाग

के.एम.अग्रवाल महाविद्यालय

कल्याण, महाराष्ट्र

 

                                                                                 डॉ. उषा आलोक दुबे

                                          सहायक प्राध्यापक हिन्दी विभाग

                                               एम. डी.  महाविद्यालय

                                               परेल, महाराष्ट्र

 

 संदर्भ सूची :

1.  Bad Language: Are some words better than others? – Edwin L. Battistella, Oxford University Press 2005.

2.  Bad Language in Reality-A study of swear words, expletives and gender in reality television by Anna Fälthammar Schippers. Göteborgs universities e-publicering.

https://core.ac.uk/reader/20388360

3.   Do You Really Want to Hurt Me? Predicting Abusive Swearing in Social Media, Endang Wahyu Pamungkas, Valerio Basile, Viviana Patti, Dipartimento di Informatica, University of Turin. Proceedings of the 12th Conference on Language Resources and Evaluation (LREC 2020), pages 6237–6246, Marseille, 11–16 May 2020.

4.  क्षेमेन्द्र और उनका समाज : डॉ. मोती चन्द्र, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 1984 में प्रकाशित

5.  भाषा और समाजरामविलास शर्मा, राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली, 2008 में प्रकाशित

6.  संस्कृत साहित्य में गालियाँराधा वल्लभ त्रिपाठी https://www.youtube.com/watch?v=54SBYhTfBVA

 

 


राष्ट्रीय जल दिवस (National Water Day)


राष्ट्रीय जल दिवस (National Water Day) भारत में हर वर्ष 22 मार्च को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य जल संरक्षण (Water Conservation) के प्रति लोगों को जागरूक करना और जल के महत्व को समझाना है।

राष्ट्रीय जल दिवस का महत्व:

जल मानव जीवन का मूल है। पृथ्वी पर मौजूद सभी जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों और संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र के लिए जल आवश्यक है। लेकिन आज के समय में जल की बर्बादी, जल प्रदूषण और भूजल स्तर में गिरावट जैसे गंभीर मुद्दे सामने आ रहे हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए लोगों में जल के प्रति संवेदनशीलता जगाने के लिए राष्ट्रीय जल दिवस मनाया जाता है।

राष्ट्रीय जल दिवस का उद्देश्य:

जल के महत्व को समझाना।

जल संरक्षण के उपायों के प्रति जागरूकता फैलाना।

जल प्रदूषण को रोकने के लिए लोगों को प्रेरित करना।

वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting) को बढ़ावा देना।

जल संसाधनों के सतत उपयोग की दिशा में प्रयास करना।

2025 के जल दिवस की थीम:

हर वर्ष विश्व जल दिवस की तरह, राष्ट्रीय जल दिवस की भी एक थीम होती है। 2025 में इसकी थीम है:

"जल का न्यायपूर्ण वितरण और सतत उपयोग"

(Theme: "Equitable Distribution and Sustainable Use of Water").

महत्वपूर्ण संदेश:

"बूँद-बूँद से सागर बनता है।"

हर व्यक्ति यदि एक-एक बूँद जल बचाए तो जल संकट से बचा जा सकता है।

जल ही जीवन है; इसके बिना विकास, स्वास्थ्य और भविष्य की कल्पना नहीं की जा सकती।


जल संरक्षण के सरल उपाय:

नलों को टपकने न दें।

वर्षा जल संचयन को अपनाएँ।

जल प्रदूषण को रोकने के लिए रासायनिक कचरे का नदियों में बहाव न करें।

फसलों में ड्रिप इरिगेशन, स्प्रिंकलर जैसी तकनीकों का उपयोग करें।

घरेलू कार्यों में जल का सीमित और समझदारी से उपयोग करें।

Modern Indian Languages and Literature

1. **आधुनिक भारतीय भाषाएँ (Modern Indian Languages)

भारत में संविधान द्वारा 22 भाषाओं को मान्यता दी गई है जिन्हें 'आधुनिक भारतीय भाषाएँ' कहा जाता है। इनमें प्रमुख हैं — हिंदी, बांग्ला, मराठी, तमिल, तेलुगु, गुजराती, उर्दू, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, ओड़िया, असमिया आदि। ये भाषाएँ न केवल सांस्कृतिक विविधता की परिचायक हैं, बल्कि इनमें साहित्यिक रूप से भी गहन रचनाएँ हुई हैं।

2. आधुनिकता का आगमन (Coming of Modernity)

भारतीय भाषाओं में आधुनिकता का प्रवेश मुख्यतः 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ, जब अंग्रेज़ी शिक्षा, प्रिंटिंग प्रेस, पत्रकारिता और समाज सुधार आंदोलनों ने साहित्यिक सोच को नया आयाम दिया।  

जैसे—

- बंगाल पुनर्जागरण (Bengal Renaissance) के प्रभाव से बांग्ला साहित्य में रवीन्द्रनाथ ठाकुर, बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय जैसे रचनाकार सामने आए।

- हिंदी में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने ‘भारतेंदु युग’ की शुरुआत कर आधुनिक हिंदी साहित्य का बीज बोया।

3. **महत्वपूर्ण साहित्यिक आंदोलन (Major Literary Movements)


 i) प्रारंभिक नवजागरण (Early Renaissance)

इस काल में साहित्य सामाजिक सुधार, राष्ट्रवाद, औपनिवेशिक शोषण के खिलाफ जागरूकता और आधुनिक विचारधाराओं के इर्द-गिर्द घूमता रहा। उर्दू में सर सय्यद अहमद खां ने आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा दिया।


 ii) **छायावाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद (Hindi Literary Movements)

- छायावाद: हिंदी में जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा ने व्यक्ति और प्रकृति के सौंदर्य का गान किया।

- प्रगतिवाद: प्रेमचंद, सियारामशरण गुप्त, नागार्जुन जैसे लेखकों ने समाजवाद, गरीबी, शोषण के मुद्दों को उठाया।

- नवजागरण के समानांतर दक्षिण भारतीय भाषाओं में भी आधुनिकता के स्वर प्रमुख हुए।


 iii) दलित और स्त्री लेखन

20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में दलित साहित्य और स्त्री विमर्श ने भाषा और साहित्य के परंपरागत ढांचे को चुनौती दी। मराठी में बाबासाहेब आंबेडकर के प्रभाव से दलित लेखकों का साहित्य उभरा; हिंदी में उषा प्रियंवदा, कृष्णा सोबती जैसी लेखिकाओं ने स्त्री अनुभवों को स्वर दिया।


4. भाषाओं के बीच संवाद (Inter-linguistic Exchange)

अनुवाद के माध्यम से भारतीय भाषाओं का परस्पर साहित्यिक आदान-प्रदान भी एक विशेष पहलू है। हिंदी, बांग्ला, तमिल, मलयालम आदि में कई कृतियाँ अन्य भाषाओं में अनूदित हुईं, जिससे एक अखिल भारतीय साहित्यिक चेतना का निर्माण हुआ।


 5. आधुनिक भारतीय साहित्य की विशेषताएँ

- सामाजिक यथार्थ का चित्रण

- उपनिवेशवाद, राष्ट्रवाद और स्वतंत्रता संग्राम की झलक

- आधुनिकता और परंपरा के बीच द्वंद्व

- व्यक्ति की मानसिक अवस्था, अस्मिता, शोषण के प्रश्न

- शहरीकरण और ग्रामीण जीवन का द्वंद्व

निष्कर्ष (Conclusion)

आधुनिक भारतीय भाषाएँ और उनका साहित्य न केवल भारत के ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों का दर्पण हैं, बल्कि विविधताओं के बावजूद एक साझा मानवीय दृष्टि प्रस्तुत करते हैं। यह साहित्य एक पुल है, जो भारत के अलग-अलग क्षेत्रों, जातियों, वर्गों, भाषाओं और विचारों को जोड़ता है।


Language and Literature of Rajasthan


Language and Literature of Rajasthan

Language of Rajasthan

Rajasthan, the vibrant desert state of India, has a rich linguistic heritage. The primary language spoken is Rajasthani, which is not just one language but a group of Indo-Aryan dialects. Some key dialects include:

1. Marwari (spoken in Jodhpur, Pali, Nagaur, Barmer, Jaisalmer)

2. Dhundhari (Jaipur region)

3. Mewari (Udaipur and Chittorgarh regions)

4. Mewati (Alwar and Bharatpur areas)

5. Shekhawati (Sikar, Jhunjhunu, Churu)

6. Bagri (northern Rajasthan - Sri Ganganagar, Hanumangarh)

7. Harauti (Kota, Bundi)


Rajasthani language is closely related to Hindi but has its distinct phonetics, vocabulary, and grammar. Though it has a rich oral and literary tradition, it is not yet recognized as an official language of India, though efforts are ongoing for its inclusion in the 8th Schedule of the Indian Constitution.


Literature of Rajasthan

Rajasthan's literature is as colorful and varied as its culture. It is primarily written in Rajasthani, Dingal, and Pingal forms, though Hindi and Sanskrit also played crucial roles.

Early Literature:

- Charan and Bhatt poets were the pioneers. They composed heroic ballads (Veer Ras) about warriors, battles, and honor.

- Dingal poetry: A classical Rajasthani literary style used by Charans, known for its bold, rugged tone and praise of valor.

- Pingal poetry: More lyrical, soft, and used for devotional and romantic themes.


Major Literary Contributions:


1. Folk Literature:

   - Rajasthan has a rich oral tradition of folktales, riddles, proverbs, and songs.

   - Famous folk tales include stories of Dhola-Maru, Pabuji, Tejaji, Devnarayan, and Bhomiyaji.


2. Heroic Poetry:

   - Bharat Singh, Narayandas, and Isardas wrote about bravery and Rajputana chivalry.

   - Prithviraj Raso by Chand Bardai is one of the oldest heroic epics, glorifying the exploits of Prithviraj Chauhan.


3. Bhakti Literature:

   - Saints like Meera Bai (devotee of Krishna) contributed immensely through their devotional songs and poems.

   - Other Bhakti poets include Dadu Dayal, Ravidas, and Charandas.

4. Modern Literature:

   - Post-independence, writers started addressing social issues, women’s rights, rural struggles, and urbanization.

   - Vijaydan Detha (popularly known as Bijji) is one of the greatest modern Rajasthani short story writers, known for blending folk narratives with contemporary concerns.

   - Kanhaiyalal Sethia and Surajmal Misrana are renowned poets who enriched Rajasthani literature.

Themes in Rajasthani Literature

- Valor and sacrifice (Veer Ras)

- Love and devotion

- Folk tales and oral traditions

- Social realism

- Philosophy and spirituality

Script:

Traditionally, Mahajani, Modi, and Devanagari scripts have been used to write Rajasthani literature.

Current Scenario:

- Rajasthani literature is thriving through magazines, books, and digital platforms.

- Efforts continue for the recognition of Rajasthani language and for preserving its rich oral traditions.

- It is taught in schools and universities across Rajasthan to keep the heritage alive.

Conclusion:

The language and literature of Rajasthan are a mirror to its soul—reflecting tales of valor, deep spirituality, and vibrant folklore. It connects the past with the present, and its poetic rhythms continue to inspire not only Rajasthanis but lovers of literature worldwide.

Ancient Hindu literature

 Ancient Hindu literature is one of the richest and oldest literary traditions in the world. It spans a wide range of genres, philosophies, religious texts, poetry, drama, and scientific treatises. Here’s an overview:

1. Vedic Literature (1500 BCE - 500 BCE)

a) The Vedas

- Rigveda, Samaveda, Yajurveda, Atharvaveda: These are the oldest sacred texts of Hinduism. Primarily composed in Sanskrit, they consist of hymns, chants, rituals, and philosophical discussions.

- Significance: They lay the foundation of Hindu philosophy, cosmology, and rituals.


b) Brahmanas, Aranyakas, Upanishads

- Brahmanas: Prose texts explaining the rituals and ceremonies.

- Aranyakas: Transitional texts with mystical meanings of rituals.

- Upanishads: Philosophical discourses on concepts like Brahman (universal soul), Atman (self), karma, dharma, moksha, etc. Key Upanishads include Chandogya, Brihadaranyaka, Katha, and Isha.

2. Epics (Mahakavya)

a) Ramayana

- Composed by Valmiki, this epic narrates the life of Lord Rama, symbolizing dharma, ideal kingship, and devotion.

  b) Mahabharata

- Composed by Vyasa, it is the longest epic poem in the world. It covers the Kurukshetra war, dharma, human dilemmas, and includes the Bhagavad Gita, a profound spiritual-philosophical dialogue between Krishna and Arjuna.

3. Puranas (300 CE onwards)

- There are 18 major Puranas, including Vishnu Purana, Shiva Purana, Bhagavata Purana, etc.

- They contain stories of gods, cosmology, genealogies, traditions, and moral teachings.

  

4. Classical Sanskrit Literature

a) Kalidasa’s Works

-Plays:Abhijnanasakuntalam, Malavikagnimitram, Vikramorvasiyam.

-Poetry:Meghaduta,Raghuvamsa, Kumarasambhava.

- Kalidasa beautifully blended nature, human emotions, and devotion.

b) Other Notable Authors

- Bhasa: Early playwright.

- Bhavabhuti: Known for plays like *Uttara-Ramacharita.

- Banabhatta: Wrote *Harshacharita*, India’s first biographical prose.

  5. Dharmashastras & Smritis

- Manusmriti: A key text on law, ethics, social duties.

-Yajnavalkya Smriti: Legal and ethical codes.

6. Scientific & Philosophical Texts

- Panini’s Ashtadhyayi: Foundational Sanskrit grammar.

- Aryabhata’s Aryabhatiya: Mathematics & astronomy.

- Charaka Samhita and Sushruta Samhita: Ancient texts on medicine and surgery.

- Nyaya Sutras, Vaisheshika Sutras, Samkhya Karika: Philosophical schools’ treatises.

Characteristics of Ancient Hindu Literature:

1. Oral Tradition: Much of it was transmitted orally before being written down.

2. Metaphysical Themes: Deep focus on the universe, life, soul, karma, and liberation.

3. Symbolism & Allegory: Rich in metaphors, symbols, and layered meanings.

4. Interdisciplinary: Combined religion, science, philosophy, ethics, and art.

Impact

Ancient Hindu literature influenced not only Indian society but also other Asian cultures. It laid the groundwork for future Indian literature in multiple languages and contributed to global philosophical and spiritual thoughts.

Sunday, 23 March 2025

अध्यात्मवाद और वैज्ञानिक अध्यात्मवाद में अंतर


अध्यात्मवाद और वैज्ञानिक अध्यात्मवाद में अंतर को समझने के लिए हमें पहले दोनों के अर्थों को स्पष्ट करना होगा। दोनों ही शब्द "अध्यात्म" (Spirit) से जुड़े हैं, पर इनके दृष्टिकोण और पद्धति में स्पष्ट भेद है।


1. अध्यात्मवाद (Spiritualism):

अर्थ: अध्यात्मवाद वह विचारधारा है जिसमें यह माना जाता है कि इस संसार के परे एक अदृश्य, सूक्ष्म, आत्मिक सत्ता है। आत्मा, परमात्मा, पुनर्जन्म, मोक्ष आदि इसकी प्रमुख अवधारणाएँ हैं। यह विश्वास आस्था, अनुभव और धार्मिक ग्रंथों के आधार पर होता है।


मुख्य विशेषताएँ:

आत्मा की अमरता में विश्वास

ईश्वर या परम सत्ता का अस्तित्व

जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति (मोक्ष) की अवधारणा

ध्यान, योग, साधना आदि माध्यमों से आत्म-साक्षात्कार का प्रयास

तर्क से अधिक आस्था और अनुभव पर आधारित

उदाहरण: वेद, उपनिषद, भगवद्गीता, बौद्ध और जैन दर्शन आदि।


2. वैज्ञानिक अध्यात्मवाद (Scientific Spiritualism):

अर्थ: वैज्ञानिक अध्यात्मवाद एक ऐसा दृष्टिकोण है जो आध्यात्मिक अनुभवों, सिद्धांतों और रहस्यों को वैज्ञानिक पद्धति से जाँचना और समझने का प्रयास करता है। इसमें किसी भी आध्यात्मिक विश्वास को बिना प्रमाण के स्वीकार नहीं किया जाता।


मुख्य विशेषताएँ:

तर्क, परीक्षण और अनुभवजन्य प्रमाणों पर आधारित

मन, मस्तिष्क, चेतना, ऊर्जा आदि को वैज्ञानिक तरीके से समझने की कोशिश

ध्यान, प्राणायाम, योग जैसी प्रक्रियाओं के मानसिक-शारीरिक प्रभावों का वैज्ञानिक विश्लेषण

किसी भी आध्यात्मिक सिद्धांत को अंधश्रद्धा के रूप में नहीं, बल्कि परीक्षण योग्य माना जाता है

क्वांटम भौतिकी, न्यूरोसाइंस और मनोविज्ञान जैसी आधुनिक शाखाओं से जुड़ाव

List of Scholars/writers on Sardar Vallabhbhai Patel


List of Scholars/Writers on Sardar Vallabhbhai Patel 

1. Rajmohan Gandhi: A historian and biographer, he authored "Patel: A Life," providing an in-depth look into Sardar Patel's contributions.​

2. Balraj Krishna: Known for his work "India's Bismarck, Sardar Vallabhbhai Patel," he offers insights into Patel's role in unifying India.​

3. Hindol Sengupta: Author of "The Man Who Saved India," he presents a contemporary perspective on Patel's legacy.​

4. M. C. Bhatt: His book "Life and Work of Sardar Vallabhbhai Patel" delves into Patel's personal and political journey.​

5. Neerja Singh: In "Patel, Prasad and Rajaji: Myth of the Indian Right," she explores the political dynamics involving Patel.

6. Professor Nirmal Kumar, Head in History Department of Vyankteshwara College, New Delhi. He has delivered scholarly lectures on sardar Vallabhbhai Patel.

7. Dr. Rizwan Kadri: A young historian known for his research on Sardar Vallabhbhai Patel, Dr. Kadri has authored books in Gujarati and Hindi, such as "Sardar Patel: Ek Samarpit Jivan." He has also delivered speeches on Patel's legacy.

8. Dr. Manish Kumar Mishra working in Tashkent state university of Oriental studies Tashkent, Uzbekistan as a visiting professor on ICCR HINDI CHAIR has edited a book on sardar Vallabhbhai Patel. Title of the book is राष्ट्र नायक सरदार वल्लभभाई पटेल: व्यक्तित्व और कर्तृत्व।


Apple Company History & Its Impact on Technology


Brief History of Apple

1. Founding (1976)

   Apple was founded by **Steve Jobs**, **Steve Wozniak**, and **Ronald Wayne** in **Cupertino, California**. Their first product was the **Apple I**, a personal computer hand-built by Wozniak.

2. **Apple II (1977):**  

   Apple II became one of the first highly successful mass-produced microcomputers, helping to launch the personal computing revolution.

3. **Macintosh (1984):**  

   Apple introduced the **Macintosh**, the first commercially successful computer with a **graphical user interface (GUI)** and mouse, making computers more user-friendly.

4. **Challenges & Steve Jobs' Departure (1985):**  

   Internal struggles led to Jobs leaving Apple. The company struggled in the following years with low product sales and leadership issues.

5. **Jobs Returns (1997):**  

   Apple acquired **NeXT**, bringing Jobs back. He revitalized the company, launching iconic products and streamlining its product line.

6. **iMac & iPod Era (Late 1990s - Early 2000s):**  

   The colorful **iMac G3** helped Apple regain popularity. In 2001, the **iPod** transformed the music industry.

7. **iPhone Revolution (2007):**  

   Apple launched the **iPhone**, a game-changing product that merged phone, music player, and internet communicator, setting the standard for smartphones.

8. **iPad, Apple Watch & Services (2010s):**  

   Apple introduced the **iPad**, later followed by the **Apple Watch** and services like **Apple Music**, **Apple Pay**, and **iCloud**, creating a vast ecosystem.

9. **Current Era:**  

   Apple continues to lead in innovation with products like the **M1 & M2 silicon chips**, **Vision Pro (spatial computing)**, and a strong focus on privacy, sustainability, and health technologies.

### **Apple’s Impact on Technology:**


1. **User-Friendly Design:**  

   Apple's focus on **design and simplicity** set a new standard for tech products, making them accessible to the masses.

2. **Graphical User Interface (GUI):**  

   Popularized the use of GUI over command-line interfaces, influencing modern operating systems like Windows.

3. **Music Industry Disruption:**  

   **iTunes & iPod** reshaped how music was bought and consumed, paving the way for digital distribution.

4. **Smartphone Revolution:**  

   The **iPhone** not only transformed the phone industry but also birthed the **App Economy**, impacting billions of users and developers worldwide.

5. **Ecosystem Integration:**  

   Apple pioneered seamless integration across devices and services (Mac, iPhone, iPad, Watch, iCloud), setting the benchmark for product ecosystems.

6. **Custom Silicon Chips:**  

   Introduction of **Apple Silicon (M1, M2)** chips revolutionized personal computing performance and energy efficiency.

7. **Privacy & Security:**  

   Apple positioned itself as a leader in user privacy, introducing features like **App Tracking Transparency** and on-device processing.

8. **Sustainability:**  

   Apple has made strides toward **carbon neutrality** and reducing environmental impact, influencing other tech companies to follow.

### **In Summary:**

Apple didn't just create products; it **transformed industries**, redefined user experiences, and continues to shape the future of technology with an emphasis on design, privacy, and innovation.

भारत में संस्कृति और परंपराओं का महत्व

भारत में संस्कृति और परंपराओं का अत्यधिक महत्व है क्योंकि यह देश की पहचान, एकता और विविधता का मूल आधार हैं। इनके महत्व को निम्न बिंदुओं में समझा जा सकता है:


### 1. **आत्म-परिचय और पहचान:**

भारतीय संस्कृति सदियों पुरानी है, जो वेदों, उपनिषदों, महाकाव्यों, लोककथाओं, त्योहारों और रीति-रिवाजों के रूप में संरक्षित है। ये परंपराएँ भारतीयों को अपनी जड़ों से जोड़ती हैं और उन्हें गर्व की भावना देती हैं।


### 2. **एकता में विविधता:**

भारत में विभिन्न धर्म, जाति, भाषाएँ और क्षेत्र होने के बावजूद संस्कृति और परंपराएँ सभी को जोड़ती हैं। हर राज्य की अपनी विशेष परंपरा होते हुए भी सभी भारतीय त्योहार, अतिथि सत्कार, योग, नमस्कार आदि के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं।


### 3. **मूल्यों और नैतिकता का संवाहक:**

भारतीय संस्कृति में करुणा, अहिंसा, संयम, सत्य, कर्तव्य और सेवा जैसे नैतिक मूल्यों को बहुत महत्व दिया जाता है। यह जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन और सद्भाव बनाए रखने में मदद करती है।


### 4. **परिवार और सामाजिक ताने-बाने की मजबूती:**

संयुक्त परिवार प्रणाली, विवाह संस्कार, पूजा-पाठ, पर्व-त्योहार जैसी परंपराएँ परिवार को एकजुट रखती हैं और सामाजिक सद्भावना को बनाए रखती हैं।


### 5. **आध्यात्मिक और मानसिक संतुलन:**

योग, ध्यान, आयुर्वेद जैसी भारतीय परंपराएँ न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं। ये मानसिक शांति और स्वास्थ्य को बढ़ावा देती हैं।


### 6. **लोककला, संगीत और शिल्प की विविधता:**

भारतीय संस्कृति में लोकनृत्य, संगीत, हस्तशिल्प, चित्रकला आदि के माध्यम से हर क्षेत्र की अनूठी पहचान है, जो सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध बनाते हैं।


### निष्कर्ष:

भारतीय संस्कृति और परंपराएँ केवल रस्में या रीति-रिवाज नहीं हैं, बल्कि ये जीवन जीने की एक पद्धति हैं, जो समाज में संतुलन, प्रेम और सामंजस्य बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। 


क्या आप इसे किसी विशेष उदाहरण के साथ विस्तार से जानना चाहेंगे? 

SPIC MACAY

SPIC MACAY का पूरा नाम Society for the Promotion of Indian Classical Music and Culture Amongst Youth है। यह एक गैर-लाभकारी, गैर-राजनीतिक, स्वैच्छिक आंदोलन है, जिसकी स्थापना 1977 में डॉ. किरण सेठ ने की थी। इसका उद्देश्य भारतीय शास्त्रीय संगीत, नृत्य, लोक कला, योग, ध्यान, शिल्प और भारतीय विरासत को युवाओं के बीच प्रचारित करना है।

SPIC MACAY के मुख्य उद्देश्य:

भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को युवाओं तक पहुँचाना।

शास्त्रीय संगीत, नृत्य और कला के प्रति सम्मान और रुचि विकसित करना।

भारतीय विचारधारा, योग, ध्यान और जीवनशैली को छात्रों में जागरूक बनाना।

गुरु-शिष्य परंपरा का पुनरुत्थान करना।

प्रमुख गतिविधियाँ:

शास्त्रीय संगीत और नृत्य के कार्यक्रम

योग सत्र

विरासत वॉक

अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय कलाकारों द्वारा वर्कशॉप

राष्ट्रीय स्कूल इंटेंसिव, युव-मानस, हेरिटेज स्कूल्स, होलिस्टिक विंटर स्कूल जैसे वार्षिक शिविर

गुरुकुल यात्रा (जहाँ छात्र गुरुओं के साथ रहकर उनके जीवन को समझते हैं)

महत्व:

आज के डिजिटल युग में जहाँ पॉप कल्चर और वेस्टर्न प्रभाव युवाओं को तेजी से आकर्षित कर रहा है, SPIC MACAY भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को बचाने और नई पीढ़ी तक पहुँचाने का एक सेतु है। यह न सिर्फ कला और संगीत को सिखाता है, बल्कि आंतरिक अनुशासन, ध्यान और सौंदर्यबोध भी विकसित करता है।

Tagline:

"Experience the Mystic Essence of Indian Heritage" 

मराठी भाषा का इतिहास

मराठी भाषा का इतिहास

मराठी भाषा भारत की प्रमुख भाषाओं में से एक है, जो मुख्यतः महाराष्ट्र राज्य और उसके आसपास के क्षेत्रों में बोली जाती है। इसका इतिहास बहुत प्राचीन और समृद्ध है, जो संस्कृत और प्राकृत भाषाओं से निकला है। आइए मराठी भाषा के इतिहास को विस्तार से समझते हैं:

 1. मूल और उत्पत्ति

मराठी भाषा इंडो-आर्यन भाषाओं के परिवार की सदस्य है। इसकी जड़ें प्राचीन महाराष्ट्र प्राकृत में मानी जाती हैं, जो लगभग 3वीं शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास बोली जाती थी। यह महाराष्ट्र प्राकृत, संस्कृत से प्रभावित होकर विकसित हुई। आगे चलकर, 6वीं से 8वीं शताब्दी के बीच अपभ्रंश से होते हुए मराठी का प्राकट्य हुआ।


 2. प्राचीन मराठी साहित्य (8वीं-13वीं शताब्दी)

मराठी भाषा में लिखे गए सबसे पुराने अभिलेख 11वीं शताब्दी के मिलते हैं। **रट्टा वंश**, **यादव वंश** और अन्य राजाओं ने मराठी का प्रयोग प्रशासन और शिलालेखों में किया। 13वीं शताब्दी में मराठी को साहित्यिक भाषा के रूप में पहचान दिलाने का कार्य **ज्ञानेश्वर (संत ज्ञानेश्वर)** ने किया। उनकी काव्यकृति **"ज्ञानेश्वरी"**, जो भगवद्गीता का मराठी में भाष्य है, मराठी साहित्य का एक स्तंभ है।

### 3. **भक्तिकाल (13वीं-17वीं शताब्दी)**

इस काल में संत कवियों जैसे:


- **संत नामदेव**

- **संत एकनाथ**

- **संत तुकाराम**


ने मराठी को जन-जन की भाषा बना दिया। उनके अभंग, ओवी और भावपूर्ण भजन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि भाषा की सरलता और मधुरता के कारण आज भी लोकप्रचलित हैं।


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### 4. **मुगल और मराठा काल (17वीं-18वीं शताब्दी)**

**छत्रपति शिवाजी महाराज** के शासनकाल में मराठी भाषा को राज्य की प्रशासनिक भाषा के रूप में महत्व मिला। उनकी राजकीय भाषा में मराठी और फारसी दोनों का सम्मिलन था। इस काल में **राज्यव्यवहार कोष** जैसे ग्रंथ रचे गए, जो मराठी प्रशासनिक लेखन का उदाहरण हैं।


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### 5. **ब्रिटिश काल और आधुनिक मराठी (19वीं-20वीं शताब्दी)**

ब्रिटिश काल में मुद्रणालयों के आगमन के साथ मराठी पत्रकारिता और साहित्य ने एक नया रूप लिया। 19वीं शताब्दी में:


- **बालशास्त्री जांभेकर** ने पहली मराठी पत्रिका "दर्पण" निकाली।

- **लोकहितवादी**, **ज्योतिबा फुले**, और **बाल गंगाधर तिलक** ने सामाजिक सुधार और स्वाधीनता के लिए मराठी में लेखन किया।


इस काल में उपन्यास, नाटक और काव्य का भी विकास हुआ। **वि.स. खांडेकर**, **पु. ल. देशपांडे**, **वी.वि. शिरवाडकर (कुसुमाग्रज)** जैसे लेखकों ने मराठी साहित्य को समृद्ध किया।


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### 6. **वर्तमान युग (21वीं शताब्दी)**

आज मराठी भाषा न केवल महाराष्ट्र में, बल्कि पूरे भारत और विदेशों में भी बोली और पढ़ी जाती है। आधुनिक मराठी साहित्य, फिल्में, नाटक, टेलीविजन और डिजिटल मीडिया के माध्यम से मराठी की पहुंच वैश्विक स्तर पर हो गई है। **मराठी विश्व साहित्य संमेलन** जैसे आयोजन इसके सांस्कृतिक महत्व को और भी बढ़ाते हैं।


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### **महत्व और विशेषताएँ:**


- **शब्दकोश में समृद्धि:** संस्कृत, फारसी, अरबी, कन्नड़ और हिंदी से शब्द ग्रहण कर मराठी ने अपने शब्दकोश को समृद्ध बनाया।

- **लिपि:** मराठी भाषा **देवनागरी लिपि** में लिखी जाती है, जिसमें 12 स्वर और 36 व्यंजन होते हैं।

- **विविधता:** कोकणी, वऱ्हाडी, पुणेरी, माळवणी आदि मराठी के विभिन्न क्षेत्रीय उपभाषाएँ हैं।


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### **निष्कर्ष:**

मराठी भाषा का इतिहास भारत की सांस्कृतिक विविधता, सामाजिक आंदोलनों और साहित्यिक परंपराओं का दर्पण है। यह भाषा न केवल महाराष्ट्र के लोगों की पहचान है, बल्कि भारतीय भाषाओं के महासागर में एक चमकता मोती भी है।


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**क्या आप चाहेंगे कि मैं मराठी भाषा के प्रमुख साहित्यकारों या प्रसिद्ध रचनाओं पर भी विस्तार से लिखूं?**

Hypothetical scenarios of World War 3 (WW3)

Hypothetical scenarios of World War 3 (WW3) have fascinated strategists, writers, and political analysts for decades. These scenarios are not predictions, but thought experiments based on current global tensions, historical patterns, and potential triggers. Here's a detailed overview of some of the **most discussed hypothetical WW3 scenarios.

 1. NATO vs Russia – Eastern Europe Flashpoint Trigger:

- Russian invasion or escalation in Ukraine, Poland, or Baltic States (Latvia, Lithuania, Estonia).

- NATO Article 5 invoked (an attack on one is an attack on all).

Escalation:

- Conventional warfare begins in Eastern Europe.

- Russia might use hybrid warfare: cyberattacks, misinformation, energy blackmail.

- NATO responds with massive military buildup.

- Possibility of tactical nuclear weapons if Russia feels cornered.

Global Involvement:

- US, Canada, UK, France, Germany, Eastern European countries fully engaged.

- Possible Chinese diplomatic support for Russia.

- Cyber warfare spreads to affect global banking, communication, infrastructure.

2. US-China Conflict – Taiwan & South China Sea**

Trigger:

- China attempts military invasion of **Taiwan** to reunify.

- US and allies (Japan, Australia, South Korea) intervene to defend Taiwan.

### **Escalation:**

- Massive naval and air battles in Pacific.

- Cyberattacks cripple communication satellites, undersea cables.

- China could blockade key trade routes (Malacca Strait).

- Nuclear posturing; arms race intensifies.


### **Global Involvement:**

- Regional players (India, Vietnam) could get pulled in.

- Economic warfare: sanctions, decoupling of trade.

- Severe disruption of global supply chains (semiconductors, rare earth metals).


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## **3. Middle East Explosion – Iran, Israel, Saudi Arabia**


### **Trigger:**

- Iran developing nuclear weapons capability.

- Preemptive strike by Israel or Saudi-led coalition.

- Retaliation via missile attacks, Hezbollah, proxies.


### **Escalation:**

- Full-scale regional war: Iran vs Israel, Gulf States.

- US involvement due to alliances.

- Oil supply disruptions cause global economic crash.

- Terror attacks in Europe/US escalate tension.


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## **4. India-Pakistan-China Triangle**


### **Trigger:**

- Border clash between **India and China** escalates.

- Simultaneous terror attack in India traced to Pakistan-based group.

- India retaliates against Pakistan.


### **Escalation:**

- Nuclear standoff between India and Pakistan (both nuclear-armed).

- China might support Pakistan; US/Russia could intervene diplomatically or militarily.

- Refugee crisis, humanitarian disaster across South Asia.


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## **5. Cyber World War**


### **Trigger:**

- A major cyberattack cripples a nation's power grid, healthcare, or financial systems.

- Attribution to a state actor (Russia, China, North Korea, Iran).


### **Escalation:**

- Retaliatory cyberattacks on critical infrastructure worldwide.

- AI-driven drone swarms, automated warfare.

- Collapse of communication systems, satellites, and global trade.


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## **6. Climate-Induced Conflict**


### **Trigger:**

- Severe droughts, floods, food shortages due to climate change.

- Mass migrations across borders.

- Countries militarize to control remaining resources (water, arable land).


### **Escalation:**

- Conflicts in Africa, South Asia, and South America spill over.

- Major powers intervene for resource control.

- Fragile states collapse, terrorist groups rise, leading to chaos.


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## **7. Rogue States & Non-State Actors**


### **Trigger:**

- North Korea launches a nuclear weapon, intentionally or by accident.

- Terrorist organizations acquire biological or chemical weapons.


### **Escalation:**

- Retaliation by US, Japan, South Korea.

- Other countries dragged in due to alliances.

- Global lockdown, fear of WMD proliferation.


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## **Possible Outcomes:**

- **Nuclear Catastrophe**: Even a limited nuclear exchange could kill millions.

- **Economic Collapse**: Global markets crash, hyperinflation, mass unemployment.

- **Environmental Fallout**: Nuclear winter, radiation zones.

- **Mass Migration**: Refugee crises, resource wars.

- **New World Order**: Collapse of current power structures, rise of authoritarian regimes.


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## **Key Takeaway:**


WW3 scenarios typically start with **regional conflicts**, but due to today's interconnected alliances (NATO, QUAD, etc.), technology (nuclear, cyber), and global trade, escalation can rapidly engulf the entire planet.


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**Would you like me to expand one of these scenarios into a detailed fictional narrative, maybe from the perspective of a soldier, civilian, or leader caught in the middle?**

Saturday, 22 March 2025

Five most spoken languages in the world

 Five most spoken languages in the world (by number of total speakers):


English – Approximately 1.5 billion speakers

(Widely spoken as a first and second language across the world.)


Mandarin Chinese – Around 1.1 billion speakers

(Primarily spoken in China, Taiwan, and Singapore.)


Hindi – Around 600 million speakers

(Mainly spoken in India and parts of Nepal, Fiji, and Mauritius.)


Spanish – Approximately 500 million speakers

(Spoken in Spain, Latin America, parts of the US, and other regions.)


French – Around 300 million speakers

(Spoken in France, parts of Africa, Canada, Belgium, and other countries.)

Friday, 21 March 2025

विश्व कविता दिवस (World Poetry Day)

 विश्व कविता दिवस (World Poetry Day) हर साल 21 मार्च को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य कविता के महत्व को पहचानना, कवियों को सम्मानित करना और दुनिया भर में कविता के माध्यम से रचनात्मक अभिव्यक्ति को प्रोत्साहित करना है।

इतिहास:

  • यूनेस्को (UNESCO) ने 1999 में अपने 30वें आम सम्मेलन में 21 मार्च को विश्व कविता दिवस के रूप में घोषित किया।
  • इसका मुख्य उद्देश्य विश्वभर में कविता के पढ़ने, लिखने, प्रकाशित करने और पढ़ाए जाने को बढ़ावा देना था।
  • साथ ही, यह दिवस विभिन्न भाषाओं, संस्कृतियों और परंपराओं में कविता के योगदान को भी रेखांकित करता है।

महत्व:

  1. भाषाई विविधता का उत्सव — कविता विभिन्न भाषाओं और बोलियों में लिखी जाती है, जिससे सांस्कृतिक विविधता और पहचान को बल मिलता है।
  2. कवियों को मंच देना — इस दिन कवियों और उनकी रचनाओं को वैश्विक पहचान मिलती है।
  3. सृजनात्मकता का प्रोत्साहन — नई पीढ़ी को कविता लेखन के प्रति प्रेरित किया जाता है।

बांग्ला भाषा का इतिहास

 बांग्ला भाषा का इतिहास

बांग्ला भाषा, जिसे हम बंगाली भाषा भी कहते हैं, भारत और बांग्लादेश की एक प्रमुख भाषा है। यह भाषा इंडो-आर्यन भाषा परिवार की सदस्य है और विश्व की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है।

प्रारंभिक इतिहास:

बांग्ला भाषा का उद्भव प्राचीन भारत की प्राकृत भाषाओं से हुआ है। विशेष रूप से, इसे मगधी प्राकृत से विकसित माना जाता है, जो कि मौर्य काल में मगध क्षेत्र (वर्तमान बिहार) में बोली जाती थी। 7वीं से 10वीं शताब्दी के बीच, यह प्राकृत भाषा अपभ्रंश रूप में परिवर्तित हो गई, जिसे हम "अर्धमगधी अपभ्रंश" कहते हैं। यही अर्धमगधी अपभ्रंश आगे चलकर बांग्ला, असमिया और ओड़िया जैसी भाषाओं का आधार बना।

मध्यकालीन बांग्ला:

11वीं से 14वीं शताब्दी के दौरान बांग्ला भाषा ने एक स्वतंत्र रूप ग्रहण किया। उस समय के साहित्य में चार्यपद (10वीं-12वीं शताब्दी) को सबसे प्राचीन बांग्ला काव्य माना जाता है। यह बौद्ध सिद्धाचार्यों द्वारा रचित रहस्यमयी गीतों का संग्रह है।

मुस्लिम शासन और फारसी प्रभाव:

13वीं शताब्दी में बांग्ला क्षेत्र पर मुस्लिम शासकों का आगमन हुआ। इससे बांग्ला भाषा पर फारसी और अरबी शब्दों का प्रभाव पड़ा। उस काल में कई मुस्लिम कवियों ने बांग्ला में लेखन किया।

आधुनिक बांग्ला का विकास:

19वीं शताब्दी में बांग्ला भाषा का पुनर्जागरण हुआ, जिसे बंगाल पुनर्जागरण (Bengal Renaissance) कहते हैं। इस दौर में बांग्ला गद्य और साहित्य का आधुनिक रूप उभरा।

ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने बांग्ला भाषा में सरल गद्य लेखन की शुरुआत की। रवींद्रनाथ ठाकुर (Tagore) ने बांग्ला साहित्य को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई। उनकी काव्य कृति गीतांजलि के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार भी मिला।

वर्तमान स्थिति:

आज बांग्ला भाषा बांग्लादेश की राष्ट्रीय भाषा है और भारत के पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, असम के कुछ भागों में प्रमुख भाषा के रूप में बोली जाती है। यह साहित्य, संगीत, सिनेमा और पत्रकारिता के क्षेत्र में बेहद समृद्ध है।


संक्षेप में: बांग्ला भाषा एक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक दृष्टि से समृद्ध भाषा है, जिसने समय के साथ अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं, परन्तु आज भी यह गर्व से अपने अस्तित्व को बनाए रखे हुए है।


तमिल भाषा का इतिहास

 तमिल भाषा का इतिहास अत्यंत प्राचीन और समृद्ध है। यह विश्व की सबसे पुरानी जीवित भाषाओं में से एक मानी जाती है। आइए इसके इतिहास को संक्षेप में समझते हैं:

1. प्रारंभिक काल (ईसा पूर्व 500 - ईसा पूर्व 100)

तमिल भाषा की उत्पत्ति द्रविड़ भाषा परिवार से मानी जाती है। तमिल का सबसे पहला लिखित रूप संगम साहित्य में मिलता है, जो लगभग 2300-2000 वर्ष पुराना है। इसे संगम युग कहा जाता है। इस काल में प्रेम, युद्ध, समाज, प्रकृति आदि विषयों पर सुंदर कविताएँ लिखी गईं।

2. संगम काल (300 ईसा पूर्व - 300 ईस्वी)

यह तमिल साहित्य का स्वर्ण युग माना जाता है। इस युग के प्रमुख ग्रंथों में एतुत्तोकाई, पट्टुपाट्टु, और तोल्काप्पियम प्रमुख हैं। तोल्काप्पियम तमिल व्याकरण का सबसे प्राचीन ग्रंथ है।

3. मध्यकाल (600 ईस्वी - 1200 ईस्वी)

इस काल में भक्ति आंदोलन का प्रभाव पड़ा। नयनार (शैव भक्त) और आलवार (वैष्णव भक्त) कवियों ने तमिल में कई भक्ति गीत रचे। उदाहरण के लिए:

  • तिरुवासगम (मणिक्कवाचार द्वारा)
  • नालायिर दिव्य प्रबंधम (आलवार संतों द्वारा)

4. नवीन काल (1200 ईस्वी - 1800 ईस्वी)

इस समय तमिल भाषा पर संस्कृत का प्रभाव दिखने लगा। कई धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथ तमिल में लिखे गए। चोल, पांड्य, और विजयनगर साम्राज्य के संरक्षण में तमिल साहित्य फला-फूला।

5. आधुनिक काल (1800 ईस्वी - वर्तमान)

ब्रिटिश शासन के दौरान तमिल में अखबार, पत्रिकाएँ, और उपन्यास लिखे जाने लगे। उम्मू सुगुननार, भारतिदासन, सुब्रमण्य भारती जैसे लेखकों ने आधुनिक तमिल साहित्य को नई दिशा दी।

6. वर्तमान स्थिति

आज तमिल भारत की 22 आधिकारिक भाषाओं में से एक है और तमिलनाडु राज्य की प्रमुख भाषा है। तमिल को संयुक्त राष्ट्र द्वारा क्लासिकल लैंग्वेज (Classical Language) का दर्जा प्राप्त है। श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर और दुनिया के अन्य हिस्सों में भी तमिल भाषी बड़ी संख्या में हैं।


संक्षेप में:
तमिल भाषा की जड़ें प्राचीन इतिहास में हैं। यह साहित्य, व्याकरण और संस्कृति की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है और आज भी अपने मूल स्वरूप को सजीव रूप में बनाए हुए है।


"क्या हिन्दी राष्ट्रभाषा है?"

 "क्या हिन्दी राष्ट्रभाषा है?" इस प्रश्न का उत्तर ऐतिहासिक और संवैधानिक दृष्टि से दिया जा सकता है।

हिन्दी और भारतीय संविधान: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343(1) के अनुसार, हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया है। साथ ही, देवनागरी लिपि को हिन्दी की लिपि के रूप में मान्यता दी गई है। इसका मतलब है कि भारत सरकार का आधिकारिक कार्य हिन्दी में किया जा सकता है।

राष्ट्रभाषा बनाम राजभाषा:

  • भारत में हिन्दी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है, न कि राष्ट्रभाषा का।
  • राष्ट्रभाषा शब्द का प्रयोग संविधान में कहीं स्पष्ट रूप से नहीं किया गया है।
  • भारत एक बहुभाषी देश है, जिसमें कई भाषाएँ बोली जाती हैं और संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को मान्यता दी गई है।

वास्तविक स्थिति:

  • हिन्दी देश के अधिकांश भागों में बोली और समझी जाती है।
  • उत्तर भारत में हिन्दी का व्यापक प्रयोग है।
  • परंतु दक्षिण और पूर्वोत्तर भारत के कई राज्यों में स्थानीय भाषाओं का अधिक प्रभाव है।

निष्कर्ष: हिन्दी भारत की राजभाषा है, परन्तु इसे आधिकारिक रूप से राष्ट्रभाषा घोषित नहीं किया गया है। लेकिन हिन्दी पूरे भारत की भाव भाषा भी है, यही कारण है कि जन मानस इसे व्यापक रूप से राष्ट्रभाषा मानता है।


अमरकांत : जन्म शताब्दी वर्ष

          अमरकांत : जन्म शताब्दी वर्ष डॉ. मनीष कुमार मिश्रा प्रभारी – हिन्दी विभाग के एम अग्रवाल कॉलेज , कल्याण पश्चिम महार...