Friday, 26 April 2013
एक नया अनुभव
Wednesday, 24 April 2013
Tuesday, 23 April 2013
आधी जीत : एक निष्पक्ष एवं प्रामाणिक साहित्यिक दस्तावेज़
ओम प्रकाश पांडे ‘नमन’ द्वारा लिखित
उपन्यास आधी जीत समाजसेवी अन्ना हज़ारे के जन लोकपाल बिल से संबंधित
दिल्ली के रामलीला मैदान में हुए आंदोलन के परिप्रेक्ष में लिखा गया एक नए कलेवर
का उपन्यास है । अगस्त 2011 में हुआ यह आंदोलन कई मायनों में अलग था, इस समग्र आंदोलन को सामाजिक, राजनीतिक,आर्थिक एवं ऐतिहासिक परिप्रेक्ष में समझने – समझाने का साहित्यिक स्वरूप
ही इस उपन्यास की गति है । आंदोलन की दुर्गति या सफलता के प्रश्न पे लेखक का मोटे
तौर पे निष्पक्ष रहना उपन्यास को बोझिल या एकांगी बनाने से बचाता है । ठीक इसीतरह
तर्क के साथ-साथ तथ्यों का विस्तृत विश्लेषण भी उपन्यास के संवादों को अधिक
विश्वसनीय रूप प्रदान करता है ।
भाषा सहज,सरल और सपाट बयानी वाली है । आत्मकथात्मक और संवाद शैली का
भरपूर उपयोग किया गया है। शेरो - शायरी और काव्य पंक्तियाँ भी उपयोग में लायी गयी
हैं। दिल्ली और आस-पास का परिवेश उपन्यास के केंद्र में है । पात्रों की भाषा को
उनके परिवेश के अनुकूल दिखाई गयी है। पात्रों के नाम बड़े प्रतिकात्मक हैं । आज़ादी
के बाद का मोहभंग, शोषण, भ्रष्टाचार, अपराध और राजनीति की साँठ-गाँठ और जन आंदोलनों की स्थितियाँ उपन्यास के
केंद्र में हैं । इस पूरे उपन्यास में उपन्यासकार सीधे तौर पे अपना कोई निर्णय नहीं थोपता है लेकिन अपने तर्क से अपनी
स्थिति को स्पष्ट जरूर करता चलता है।
उपन्यास का मुख्य पात्र स्वतंत्र कुमार उस भारतीय मध्यम वर्ग
का प्रतिनिधि है जो सोचने-समझने और बहस
करने के बीच कुलबुला जरूर रहा है लेकिन उसकी जरूरतें और जिम्मेदारियाँ उससे बगावत
के सारे हथियार / इरादे छीन लेती हैं । लेकिन अन्ना हज़ारे की जो वर्चुअल छवि /
मीडिया द्वारा निर्मित एक जो फोबिया / रूपक बनाया गया उसने इस मध्यम वर्ग की
कुलबुलाहट को बढ़ा ज़रूर दिया था । ज़्यादा से ज़्यादा लोगों के शामिल होने वाली
खबरों ने आंदोलन को प्रभावी बनाया ।
आम आदमी हताशा, निराशा,कुंठा और शोषण
के बीच अन्ना हज़ारे की तरफ उम्मीद,कौतूहल,आशा और हर्ष के साथ जुड़ा । आश्चर्य और आशंका के साथ भी अपरोक्ष रूप से इस
आंदोलन को समर्थन मिला । उपन्यासकार ने दिखाया है कि अन्ना के आंदोलन ने
भ्रष्टाचार के तिलिस्म को भले ही न तोड़ा हो लेकिन आम आदमी के अंदर पैठ जमा चुके
कायर को काफ़ी हद तक हराने में ऊर्जा ज़रूर प्रदान की है । उपन्यास के निम्न
मध्यवर्गीय पात्र लिप्टन की लड़ाई और उसमें सभी का सहयोग उसी मानसिकता का
उदाहरण है ।
इस उपन्यास का एक दबा हुआ पर
महत्वपूर्ण पक्ष है साइबर संस्कृति,मास कल्चर, माध्यम
साम्राज्यवाद, मीडिया निर्मित रूपक,
मीडिया का चरित्र, और सोशल मीडिया का गाशिपतंत्र । इन सब को
उपन्यासकार ने उभारने का सफल प्रयास किया है । मेरा यह मानना है कि अन्ना का
आंदोलन, आंदोलन से कंही अधिक एक सफल इवेंट था जो विचारधारा
की विनम्रता के अभाव में खत्म हो गया । लोकतांत्रिक प्रक्रिया में चीजें समय
के साथ मजबूत होती हैं । आक्रोश, आक्रामकता और अतिवाद
लोकप्रियता ज़रूर प्रदान करता लेकिन लॉन्ग टर्म बेनिफ़िट नहीं दे पाता है । जे.पी.
आंदोलन से लेकर अभी तक जो भी बड़े लोकप्रिय जन आंदोलन इस देश में हुए, उन आंदोलनों के मलबे पे ही भ्रष्टाचार की नई पौध इसी देश में लहलहाई है ।
इन्हीं बातों को उपन्यासकार इस उपन्यास के
माध्यम से बिना अपनी कोई राय थोपे पाठकों के सामने तथ्यों और तर्कों के साथ
प्रस्तुत कर देते हैं । अन्ना हज़ारे के आंदोलन एवं उसकी गति को निष्पक्षता और
प्रामाणिकता के साथ समझने में महत्वपूर्ण साहित्यिक दस्तावेज़ है ।
डॉ. मनीष कुमार मिश्रा
असोसिएट– भारतीय उच्च अध्ययन केंद्र,शिमला
एवं प्रभारी – हिंदी विभाग
अग्रवाल
महाविद्यालय, कल्याण
Monday, 22 April 2013
मेरी नई किताब
Saturday, 20 April 2013
Wednesday, 17 April 2013
कुछ इस तरह मैंने
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कुछ इस तरह मैंने
Tuesday, 16 April 2013
अपने ही क़िस्से में, अपना ही लतीफ़ा हूँ ।
मैं आजकल, कुछ ऐसी प्रक्रिया का हिस्सा हूँ
कि अपने ही क़िस्से में, अपना ही लतीफ़ा हूँ ।
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अपना ही लतीफ़ा हूँ ।,
अपने ही क़िस्से में
शोर बहुत है लेकिन
शोर बहुत है लेकिन , मेरा चिल्लाना भी ज़रूरी है
शामिल सब में हूँ , यह दिखाना भी ज़रूरी है ।
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शोर बहुत है लेकिन
Sunday, 14 April 2013
मेरे हिस्से में सिर्फ़, इल्ज़ाम रखते हो
मेरे हिस्से में सिर्फ़, इल्ज़ाम रखते हो
किस्सा-ए-मोहबत्त यूं तमाम करते हो
मनीष "मुंतज़िर ''
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इल्ज़ाम रखते हो,
मेरे हिस्से में सिर्फ़
Ph.D. awarded before UGC NEW NORMS IN JULY 2009 IS EXEMPTED FROM NET OR NOT ?
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हर लफ़्ज़ तिरे जिस्म की खुशबू में ढला है / जाँ निसार अख़्तर
हर लफ़्ज़ तिरे जिस्म की खुशबू में ढला
है
ये तर्ज़, ये
अन्दाज-ए-सुख़न हमसे चला है
अरमान हमें एक रहा हो तो कहें भी
क्या जाने, ये दिल
कितनी चिताओं में जला है
अब जैसा भी चाहें जिसे हालात बना दें
है यूँ कि कोई शख़्स बुरा है, न भला है।
तो फिर तुमने उसे देखा नहीं है/ तलअत इरफ़ानी
बदन उसका अगर चेहरा नहीं है,
तो फिर तुमने उसे देखा नहीं है
दरख्तों पर वही पत्ते हैं बाकी,
के जिनका धूप से रिश्ता नहीं है
वहां पहुँचा हूँ तुमसे बात करने,
जहाँ आवाज़ को रस्ता नहीं है
सभी चेहरे मकम्मल हो चुके हैं
कोई अहसास अब तन्हा नहीं है
वही रफ़्तार है तलअत हवा की
मगर बादल का वह टुकडा नहीं है
Saturday, 13 April 2013
रात के बाद / खलीलुर्रहमान आज़मी
नश्शा-ए-मय के सिवा कितने नशे
और भी हैं
कुछ बहाने मेरे जीने के लिए और
भी हैं
ठंडी-ठंडी सी मगर गम से है
भरपूर हवा
कई बादल मेरी आँखों से परे और
भी हैं
ज़िंदगी आज तलक जैसे गुज़ारी है
न पूछ
ज़िंदगी है तो अभी कितने मजे और
भी हैं
हिज्र तो हिज्र था अब देखिए
क्या बीतेगी
उसकी कुर्बत में कई दर्द नए और
भी हैं
रात तो खैर किसी तरह से कट
जाएगी
रात के बाद कई कोस कड़े और भी
हैं
वादी-ए-गम में मुझे देर तक
आवाज़ न दे
वादी-ए-गम के सिवा मेरे पते और
भी हैं
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रात के बाद / खलीलुर्रहमान आज़मी
Friday, 12 April 2013
प्रेम विस्तार है
प्रेम विस्तार है , स्वार्थ संकुचन है . इसलिए प्रेम जीवन का सिद्धांत है . वह जो प्रेम करता है जीता है , वह जो स्वार्थी है मर रहा है . इसलिए प्रेम के लिए प्रेम करो , क्योंकि जीने का यही एक मात्र सिद्धांत है , वैसे ही जैसे कि तुम जीने के लिए सांस लेते हो .
स्वामी विवेकानंद
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प्रेम विस्तार है
September 2012 IIAS SHIMLA ASSOCIATES
IIAS SHIMLA ASSOCIATES - September 2012
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Dr. Bijay Kumar Barnwal | China-Myanmar Relations: The Road Ahead |
Dr. Leena Chauhan | Tarkon Se Pare Kuch Ansuljhe Rahasye. |
Dr. Harinder Kaur | Woes and Worries of the Tribal Women in Punjab. |
Dr. Kaustav Chakraborty | Dirty Issues: Reconsidering the ‘Impure’ in two Bengali Texts. |
Dr. Chandrabhan Singh Yadav | Hindi Cinema Mein Stri Sasktikaran. |
Dr. Madan Lal Mankotia | Inventorization of Medicinal Plants in different Agro-Ecological Zone of Himachal Pradesh. |
Dr. Pushpesh Kumar Pande | Van Raji: A Tribe in Transition. |
Shri Pankaj Roy | “Translating Violence”: A Study Performance in Indian Drama and of Selected Plays of Vijay Tendulkar. |
Dr. Devender Kumar | Classification and Functions: Contextualizing Hariani Peasant Women’s Folksongs within Folkloristics. |
Dr. Manish Kumar C. Mishra | Bharat mein Kisore Ladkio ki Taskari. |
Dr. Hamda Zarin | Effective Communication Skills in Counselling. |
Dr. Prabhat Mittal | Gold Price Movements: Common Wisdom and Myths. |
Dr. Amal Kumar Harh | Towards a Buddhist Social Philosophy: New Situations and Response. |
Dr. Chaman Lal Sharma | Garhwali Lokoktiyon evam Muhavaron ka Samajik Sanskritik Anushilan. |
Dr. Nazish Bano | Psycho-Social Enviornmental Influence: A Function of Perceptual Differences. |
Dr. Ravendra Kumar Sahu | Vaisvikaran ke Paripaikshay mein Loksanskriti ka Punarpath. |
Dr. Ramanath Pandey | Cognitive Science and Indian Philosophy: Concept of Brain and Mind. |
Dr. Gitika De | Themes in the Political Sociology of Early Post-colonial India: An Appraisal of the Works of F.G. Bailey. |
Dr. Uttara Yadav | Bhagwan Buddh Ka Arya Aastagik Marg Evam Vipassana. |
Dr. Suryakant Nath | Is Small Beautiful? States Reorganisation: Prospects and Challenges. |
Dr. Rakesh Kumar | Challenges to Sustainable Development with Special Reference to India. |
Dr. D. Balaganapathi | History of Indian Philosophy: Analysis of Contemporary Understanding of Classical Through Colonial. |
Dr. Nitin Vadgama | Hindi Aur Gujarati Gazal: Tulnatamak Drishtibindoo. |
Thursday, 11 April 2013
राहत इन्दौरी की एक रचना
:
किसका नारा, कैसा कौल, अल्लाह बोल
अभी बदलता है माहौल, अल्लाह बोल
कैसे साथी, कैसे यार, सब मक्कार
सबकी नीयत डाँवाडोल, अल्लाह बोल
जैसा गाहक, वैसा माल, देकर ताल
कागज़ में अंगारे तोल, अल्लाह बोल
हर पत्थर के सामने रख दे आइना
नोच ले हर चेहरे का खोल, अल्लाह बोल
दलालों से नाता तोड़, सबको छोड़
भेज कमीनों पर लाहौल, अल्लाह बोल
इन्सानों से इन्सानों तक एक सदा
क्या तातारी, क्या मंगोल, अल्लाह
बोल
शाख-ए-सहर पे महके फूल अज़ानों के
फेंक रजाई, आँखें खोल, अल्लाह
बोल
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राहत इन्दौरी की एक रचना
मेरी बन्दगी वो है बन्दगी जो/ शकील बँदायूनी
मेरी ज़िन्दगी पे न मुस्करा मुझे ज़िन्दगी का अलम नहीं
जिसे तेरे ग़म से हो वास्ता वो ख़िज़ाँ बहार से कम नहीं
मेरा कुफ़्र हासिल-ए-ज़ूद है मेरा ज़ूद हासिल-ए-कुफ़्र है
मेरी बन्दगी वो है बन्दगी जो रहीन-ए-दैर-ओ-हरम नहीं
मुझे रास आये ख़ुदा करे यही इश्तिबाह की साअतें
उन्हें ऐतबार-ए-वफ़ा तो है मुझे ऐतबार-ए-सितम नहीं
वही कारवाँ वही रास्ते वही ज़िन्दगी वही मरहले
मगर अपने-अपने मुक़ाम पर कभी तुम नहीं कभी हम नहीं
न वो शान-ए-जब्र-ए-शबाब है न वो रंग-ए-क़हर-ए-इताब है
दिल-ए-बेक़रार पे इन दिनों है सितम यही कि सितम नहीं
न फ़ना मेरी न बक़ा मेरी मुझे ऐ 'शकील' न ढूँढीये
मैं किसी का हुस्न-ए-ख़्याल हूँ मेरा कुछ वुजूद-ओ-अदम नहीं
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Cultural sensitivity and intercultural communication Syllabus design (Beginner, Intermediate, Advanced) Integrating grammar, vocabulary, a...
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***औरत का नंगा जिस्म ********************* शायद ही कोई इस दुनिया में हो , जिसे औरत का जिस्म आकर्षित न करता हो . अगर सारे आवरण हटा क...
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जी हाँ ! मैं वृक्ष हूँ। वही वृक्ष , जिसके विषय में पद््मपुराण यह कहता है कि - जो मनुष्य सड़क के किनारे तथा...
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Factbook on Global Sexual Exploitation India Trafficking As of February 1998, there were 200 Bangladeshi children and women a...
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अमरकांत की कहानी -जिन्दगी और जोक : 'जिंदगी और जोक` रजुआ नाम एक भिखमंगे व्यक्ति की कहानी है। जिसे लेखक ने मुहल्ले में आते-ज...
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अनेकता मे एकता : भारत के विशेष सन्दर्भ मे हमारा भारत देश धर्म और दर्शन के देश के रूप मे जाना जाता है । यहाँ अनेको धर...
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अर्गला मासिक पत्रिका Aha Zindagi, Hindi Masik Patrika अहा जिंदगी , मासिक संपादकीय कार्यालय ( Editorial Add.): 210, झेलम हॉस्टल , जवा...
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Statement showing the Orientation Programme, Refresher Courses and Short Term Courses allotted by the UGC for the year 2011-2012 1...
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अमरकांत की कहानी -डिप्टी कलक्टरी :- 'डिप्टी कलक्टरी` अमरकांत की प्रमुख कहानियों में से एक है। अमरकांत स्वयं इस कहानी के बार...