संस्कृति संगम :सामाजिक सरोकारों से सम्बद्ध संस्था
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कल्याण शहर क़ी प्रमुख संस्थाओं में से एक संस्था है -संस्कृति संगम .इस संस्था क़ी स्थापना २२ अगस्त सन २००० में हुई. यह संस्था जिन प्रमुख कार्यों को करती है उनमे से कुछ इस प्रकार हैं
१- विभिन्न विभागों में कार्य रत लोगों के सेवा निवृत्त हो जाने पर उनके सम्मान में ''सेवा सम्पूर्ति '' कार्यक्रम का आयोजन करना. जिसके माध्यम से उनके योगदान क़ी चर्चा करते हुवे ,समाज के बीच उनको सम्मानित करना.विशेष रूप से शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोगों का सम्मान यह संस्था करती है .
२-राष्ट्रीय कवि सम्मेलन और मुशायरे का आयोजन करना भी इस संस्था के प्रमुख कार्यों में से एक है. देश -विदेश के कई ख्याति प्राप्त कवियों को आमंत्रित कर उनके काव्य पाठ क़ी सुविधा यह संस्था उपलब्ध कराती है. श्री बालकवि बैरागी,सत्यनारायण सत्तन और ऐसे ही अनेकों कवियों को यह संस्था आमंत्रित करती रही है.
३-लोक संगीत के कार्यक्रमों को आयोजित करना भी इस संस्था के प्रमुख कार्यों में से एक है. उत्तर भारत से सम्बद्ध बिरहा जैसी लोक विधावों से सम्बंधित संगीत के कार्यक्रमों को यह संस्था करती रहती है.
४-समाज और संस्था से जुड़े वरिष्ट और स्नेही जनों का जन्मदिन याद रखते हुवे उनके जन्मोत्सव के कार्यक्रमों को भी यह संस्था बढ़-चढ़ के मनाती है. कई बार इस तरह के समारोह बड़े सभागृह में मनाये जाते हैं तो कई बार सम्बंधित व्यक्ति के घर पर .जैसा भी सहज संभव हो सके.
५-इसी तरह समाज के किसी व्यक्ति के देहांत पर,सभी को सूचित करना और श्रधान्जली सभा का आयोजन करना भी इस संस्था क़ी गतिविधियों में शामिल है.
५-प्रतिभावान विद्यार्थियों को सम्मानित करना और उन्हें क्षात्र वृत्ति देने का काम भी यह संस्था करती है.
६-समय-समय पर रक्त दान शिविर के आयोजन का काम भी यह संस्था करती है.
इस संस्था से सम्बद्ध प्रमुख लोगों में श्री विजय नारायण पंडित ,एडवो.राधेमोहन तिवारी ,मुन्ना पाण्डेय,बाबा तिवारी,विजय तिवारी और डॉ.मनीष कुमार मिश्रा प्रमुख हैं.
Sunday, 28 March 2010
Saturday, 27 March 2010
ऐ मोहब्बत
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तेरी मोहब्बत के निशा बाकि है ;
आखों में आंसूं ,तन्हाई का कारवां बाकि है ;
भूलूं भी कैसे तेरी मेहरबानियाँ ,
ऐ दर्दे मोहब्बत तेरा बयां बाकि है /
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तेरी मासूमियत
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तेरी मासूमियत के किस्से लोगों से है सुना ;
जानू भी कैसे तुने मुझे बाँहों में ना भरा /
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बोध कथा :१२ भरोसा
बोध कथा :१२ भरोसा
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एक गाँव में लगातार २० सालों से सूखा पड़ रहा था. पूरे गाँव में हाहाकार मचा हुआ था. कई तरह क़ी महामारी फ़ैल रही थी.लोग बीमार पड़ रहे थे.कई लोग तो गाँव को छोड़ कर जा चुके थे.
ऐसे में एक पुजारी ने गाँव वालों को बताया क़ि यदि वे भगवान् इंद्र को खुश करने के लिए एक बड़ी पूजा आयोजित करें,तो हो सकता है क़ि इंद्र देवता प्रश्नं हो कर बरसात कर दें. गाँव वालों को भी यह बात सही लगी.फिर क्या था, पूजा क़ी तैयारी होने लगी. जिस दिन पूजा का अंतिम दिन था ,तब तक तो बरसात हुई नहीं.फिर भी कोई कुछ कह नहीं रहा था.लेकिन एक आशंका सब के मन में थी. जब पूजा क़ी आहूति देने का समय आया तो गाँव का एक बच्चा हाँथ में छाता और रेनकोट पहने उस जगह पहुंचा .सब लोग उसे देख कर हंस पड़े.
एक बूढ़े व्यक्ति ने उस बच्चे से पूछा,''क्यों रे ,बारिश कंहा हो रही है ?तू छाता लेकर क्यों आया है ?''
उस बूढ़े क़ी बात को सुनकर उस छोटे से बच्चे ने बड़ी ही मासूमियत से जवाब दिया,''दादा,आज पूजा पूरी हो रही है. अभी थोड़ी देर में बारिश शुरू हो जायेगी.उस बारिश से बचने के लिए ही मैं छाता लेकर आया हूँ.''
उस बच्चे क़ी बात पर किसी को विश्वाश नहीं हुआ.लेकिन थोड़ी ही देर में बारिश शुरू हो गई.उस बच्चे का भरोसा काबिले तारीफ़ था. हमे भी अपने द्वारा किये जा रहे श्रम पर भरोशा रखना चाहिए.किसी ने लिखा भी है क़ि --
'' जिनका होता है भरोसा बुलंद,
मंजिल उन्ही क़ी चूमती है कदम ''
(इन तस्वीरों पे मेरा कोई कॉपी राइट नहीं है )
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एक गाँव में लगातार २० सालों से सूखा पड़ रहा था. पूरे गाँव में हाहाकार मचा हुआ था. कई तरह क़ी महामारी फ़ैल रही थी.लोग बीमार पड़ रहे थे.कई लोग तो गाँव को छोड़ कर जा चुके थे.

एक बूढ़े व्यक्ति ने उस बच्चे से पूछा,''क्यों रे ,बारिश कंहा हो रही है ?तू छाता लेकर क्यों आया है ?''
उस बूढ़े क़ी बात को सुनकर उस छोटे से बच्चे ने बड़ी ही मासूमियत से जवाब दिया,''दादा,आज पूजा पूरी हो रही है. अभी थोड़ी देर में बारिश शुरू हो जायेगी.उस बारिश से बचने के लिए ही मैं छाता लेकर आया हूँ.''
उस बच्चे क़ी बात पर किसी को विश्वाश नहीं हुआ.लेकिन थोड़ी ही देर में बारिश शुरू हो गई.उस बच्चे का भरोसा काबिले तारीफ़ था. हमे भी अपने द्वारा किये जा रहे श्रम पर भरोशा रखना चाहिए.किसी ने लिखा भी है क़ि --
'' जिनका होता है भरोसा बुलंद,
मंजिल उन्ही क़ी चूमती है कदम ''
(इन तस्वीरों पे मेरा कोई कॉपी राइट नहीं है )
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अब नेट का फॉर्म आन लाइन भरने की सुविधा
अब नेट का फॉर्म आन लाइन भरने की सुविधा
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यु.जी.सी क़ि परिक्षावों क़ि तारीख आ गयी है. इस बार नेट क़ि परीक्षा २७ जून को है. एक और नई बात इस बार यह है क़ि अब आप अपना फॉर्म ऑन लाइन भी भर सकते हैं. इसके पहले यह सुविधा उपलब्ध नहीं थी.इस बारे में अधिक जानकारी के लिए आप यु.जी.सी. क़ि साईट www.ugc.ac.इन पर लागिन कर सकते हैं.
साईट पर जाने के बाद आप इस लिंक पर क्लिक करें http://www.ugc.ac.in/inside/net.हटमल .यंहा जाने के बाद आप फिर से
UGC-NET to be held on 27th June, 2010 इस लिंक को क्लिक करे.जब आप यंहा किलिक करेंगे तो आप के सामने जो पेज ओपन होगा वो ऐसा होगा-
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यु.जी.सी क़ि परिक्षावों क़ि तारीख आ गयी है. इस बार नेट क़ि परीक्षा २७ जून को है. एक और नई बात इस बार यह है क़ि अब आप अपना फॉर्म ऑन लाइन भी भर सकते हैं. इसके पहले यह सुविधा उपलब्ध नहीं थी.इस बारे में अधिक जानकारी के लिए आप यु.जी.सी. क़ि साईट www.ugc.ac.इन पर लागिन कर सकते हैं.
साईट पर जाने के बाद आप इस लिंक पर क्लिक करें http://www.ugc.ac.in/inside/net.हटमल .यंहा जाने के बाद आप फिर से
UGC-NET to be held on 27th June, 2010 इस लिंक को क्लिक करे.जब आप यंहा किलिक करेंगे तो आप के सामने जो पेज ओपन होगा वो ऐसा होगा-
![]() | ||||||||||||||||||||||||||||||||||
National Eligibility Test June-2010 for Junior Research Fellowship and Eligibility for Lectureship To avoid Rush! Submit your Online Application NOW! Days Left :30 | ||||||||||||||||||||||||||||||||||
Important instructions to fill online application form for NET | ||||||||||||||||||||||||||||||||||
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![]() | ||||||||||||||||||||||||||||||||||
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फिर क्या है ? आप फॉर्म भरना शुरु कर दीजिये. लेकिन पहले बैंक के चलान का प्रिंट आउट ले कर पैसे यस.बी.आई. क़ि किसी ब्रांच में भर दीजियेगा. बताइए कैसी लगी यह नई जानकारी ? | ||||||||||||||||||||||||||||||||||
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जो न पाया मैंने वही दे रहा हूँ /
जो न पाया मैंने वही दे रहा हूँ ;
मै तुझको मोहब्बत दे रहा हूँ /
जो मुझको न मिल सका वही दे रहा हूँ ,
अपनी जिंदगी का फलसफा दे रहा हूँ /
जो न तू दे सका वही दे रहा हूँ ;
मै तुझको दुआएं दे रहा हूँ /
मै तुझको मोहब्बत दे रहा हूँ /
जो मुझको न मिल सका वही दे रहा हूँ ,
अपनी जिंदगी का फलसफा दे रहा हूँ /
जो न तू दे सका वही दे रहा हूँ ;
मै तुझको दुआएं दे रहा हूँ /
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Friday, 26 March 2010
उन नशीली आखों का दीदार दीजिये
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उन नशीली आखों का दीदार दीजिये ;
भले न गले लगो दौड़ कर ,इकरार तो कीजिये /
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बंद कमरे में बैठा सोच रहा हूँ ;
बंद कमरे में बैठा सोच रहा हूँ ,
बाहर बच्चों की आवाजें ,बीबी के उलाहनो ,
घरवालों के तानो से बचता हुआ सोच रहा हूँ ;
यादें अब आखों को तकलीफ नहीं देती ,
सोचें फिर भी खामोश नहीं होती ;
राहें उलझी है भावों की तरह ,
कैसे खुद को बचायुं गुनाहों की तरह ;
बंद कमरे में बैठा सोच रहा हूँ ;
अपनो की आशाओं को जीत न पाया ,
अच्छाई की राहों में मीत ना पाया ;
उधेड़बुन में भटका किस तरह बढूँ ;
परिश्थितियों ने उलझाया किस तरह गिरुं ;
बंद कमरे में बैठा सोच रहा हूँ ;
दिल पत्थर का न बन पाया ,
लोंगों के दिल में क्या है ,ये भी ना समझ पाया ;
लड़ने का जज्बा बाकि है ,इमानदार हूँ मै ;
सच्च्चाई कहने का गुनाहगार हूँ मै ;
जिंदगी का मुकाम क्या है ,मेरा पयाम क्या है ;
बंद कमरे में बैठा सोचता रहता हूँ /
बाहर बच्चों की आवाजें ,बीबी के उलाहनो ,
घरवालों के तानो से बचता हुआ सोच रहा हूँ ;
यादें अब आखों को तकलीफ नहीं देती ,
सोचें फिर भी खामोश नहीं होती ;
राहें उलझी है भावों की तरह ,
कैसे खुद को बचायुं गुनाहों की तरह ;
बंद कमरे में बैठा सोच रहा हूँ ;
अपनो की आशाओं को जीत न पाया ,
अच्छाई की राहों में मीत ना पाया ;
उधेड़बुन में भटका किस तरह बढूँ ;
परिश्थितियों ने उलझाया किस तरह गिरुं ;
बंद कमरे में बैठा सोच रहा हूँ ;
दिल पत्थर का न बन पाया ,
लोंगों के दिल में क्या है ,ये भी ना समझ पाया ;
लड़ने का जज्बा बाकि है ,इमानदार हूँ मै ;
सच्च्चाई कहने का गुनाहगार हूँ मै ;
जिंदगी का मुकाम क्या है ,मेरा पयाम क्या है ;
बंद कमरे में बैठा सोचता रहता हूँ /
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Thursday, 25 March 2010
ये रिश्तों के पैमाने हैं /
नयी प्रवृत्ति नया चलन है ,
बड़ती छाती घटता मन है ;
पैसे की बड़ती महिमा है ,
डर की बड़ती गरिमा है ;
`हम` को तो सब कब का भूले ,
`मै` की सीमा और डुबो ले ,
मात पिता और दादा दादी ,
भाई बहन चाचा और चाची,
एक परिवार के सब थे धाती ,
पति पत्नी और बच्चा ,
अब इतना ही लोंगों को लगता अच्छा ;
बाकि सब बेगाने है
स्वार्थ जरूरत तो सब अपने ,
नहीं तो रिश्तें बेमाने हैं ;
कौन कहाँ कब काम आएगा ,
ये रिश्तों के पैमाने हैं /
बड़ती छाती घटता मन है ;
पैसे की बड़ती महिमा है ,
डर की बड़ती गरिमा है ;
`हम` को तो सब कब का भूले ,
`मै` की सीमा और डुबो ले ,
मात पिता और दादा दादी ,
भाई बहन चाचा और चाची,
एक परिवार के सब थे धाती ,
पति पत्नी और बच्चा ,
अब इतना ही लोंगों को लगता अच्छा ;
बाकि सब बेगाने है
स्वार्थ जरूरत तो सब अपने ,
नहीं तो रिश्तें बेमाने हैं ;
कौन कहाँ कब काम आएगा ,
ये रिश्तों के पैमाने हैं /
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तेरी आँखों में ---------------------
तेरी आँखों में ---------------------
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तेरी आँखों में इतने सवाल क्यों है ?
कुछ नहीं किया तो मलाल क्यों है ?
मैं तो तुम्हारा कुछ भी नहीं तो फिर ,
दिल में अबतक मेरा ख़याल क्यों है ?
एक ही हैं राम और रहीम यारों,
इनके नाम पर फिर बवाल क्यों है ?
यह देश इस देश क़ी जनता का है
संसद में बैठे फिर ये दलाल क्यों है ?
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तेरी आँखों में इतने सवाल क्यों है ?
कुछ नहीं किया तो मलाल क्यों है ?
मैं तो तुम्हारा कुछ भी नहीं तो फिर ,
दिल में अबतक मेरा ख़याल क्यों है ?
एक ही हैं राम और रहीम यारों,
इनके नाम पर फिर बवाल क्यों है ?
यह देश इस देश क़ी जनता का है
संसद में बैठे फिर ये दलाल क्यों है ?
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बोध कथा ११ :निशानेबाज
बोध कथा ११ :निशानेबाज
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बहुत पुरानी बात है. रामनगर नामक एक छोटे से गाँव में एक युवक रहता था.उसका नाम था,विवेक. विवेक को तीरंदाजी का बड़ा शौख था. वह दिन-रात बस एक सफल तीरंदाज बनने के सपने देखा करता था. उसकी मेहनत भी धीरे-धीरे रंग ला रही थी. उसकी कला को गाँव वाले सम्मान भी देने लगे थे. अचूक निशाना लगाने में वह लगभग पारंगत हो गया था. लेकिन उसे पूरी दक्षता अभी हासिल नहीं हुई थी.इस लिए वह अपना अभ्यास लगातार कर रहा था .
एक दिन किसी ने उसे बताया क़ि उस राज्य का राजकुमार सबसे बड़ा तीरंदाज है. उसके जैसा निशाना पूरे राज्य में कोई नहीं लगा सकता. यह बात सुनकर विवेक के मन में राजकुमार से मिलने और तीरंदाजी के गुर सीखने क़ि इच्छा हुई. और उसने निश्चित किया क़ि वह राजकुमार से मिलेगा.
एक दिन उसे खबर मिली क़ि राजकुमार शिकार खेलने के लिए जंगल में आये हुए हैं. फिर क्या था ,विवेक भी जंगल क़ि तरफ निकल पड़ा.और सौभाग्य से उसकी राजकुमार से मुलाकात भी हो जाती है. राजकुमार से मिल कर विवेक उन्हें अपने तीरंदाजी क़ि बात से अवगत कराता है :साथ ही साथ उनसे अनुरोध भी करता है क़ि वे उसे तीरंदाजी के कुछ गुर सिखाएं .
विवेक क़ि बातों से राजकुमार प्रभावित होते हैं.राजकुमार उसे तीरंदाजी के कुछ नमूने दिखाने को कहते हैं. विवेक की कला का प्रदर्शन देख कर राजकुमार आश्चर्य चकित हो जाते हैं. वे विवेक से कहते हैं क़ि,'' तुम तो बहुत अच्छे तीरंदाज हो.मुझ से भी अच्छे .मैं तो तुम्हारे आगे कुछ भी नहीं. सीखना तो मुझे तुमसे चाहिए .'' राजकुमार क़ि बातों पर विवेक को विश्वाश नहीं हुआ.आखिर राजकुमार ने विवेक से कहा ,''मित्र,तुम पहले अपना लक्ष्य निर्धारित करते हो,फिर वंहा निशाना लगाते हो.मैं ऐसा नहीं करता ,मैं पहले तीर चला देता हूँ.फिर वह तीर जंहा लग जाता है,उसे ही लक्ष्य घोषित कर देता हूँ.आखिर राजकुमार जो हूँ. कुछ समझे ?'' इतना कहकर राजकुमार हसने लगे. विवेक भी हसने लगा .
बड़े परिवारों या बड़े घरानों में पैदा हो जाने से भी,यह समाज आप को प्रतिभावान मानने लगता है.ऐसे लोगों के लिए ही किसी ने लिखा है क़ि-------
''जिनके घर अमीरी का सजर लगता है
उनका हर ऐब ,जमाने को हुनर लगता है ''
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बहुत पुरानी बात है. रामनगर नामक एक छोटे से गाँव में एक युवक रहता था.उसका नाम था,विवेक. विवेक को तीरंदाजी का बड़ा शौख था. वह दिन-रात बस एक सफल तीरंदाज बनने के सपने देखा करता था. उसकी मेहनत भी धीरे-धीरे रंग ला रही थी. उसकी कला को गाँव वाले सम्मान भी देने लगे थे. अचूक निशाना लगाने में वह लगभग पारंगत हो गया था. लेकिन उसे पूरी दक्षता अभी हासिल नहीं हुई थी.इस लिए वह अपना अभ्यास लगातार कर रहा था .
एक दिन किसी ने उसे बताया क़ि उस राज्य का राजकुमार सबसे बड़ा तीरंदाज है. उसके जैसा निशाना पूरे राज्य में कोई नहीं लगा सकता. यह बात सुनकर विवेक के मन में राजकुमार से मिलने और तीरंदाजी के गुर सीखने क़ि इच्छा हुई. और उसने निश्चित किया क़ि वह राजकुमार से मिलेगा.
एक दिन उसे खबर मिली क़ि राजकुमार शिकार खेलने के लिए जंगल में आये हुए हैं. फिर क्या था ,विवेक भी जंगल क़ि तरफ निकल पड़ा.और सौभाग्य से उसकी राजकुमार से मुलाकात भी हो जाती है. राजकुमार से मिल कर विवेक उन्हें अपने तीरंदाजी क़ि बात से अवगत कराता है :साथ ही साथ उनसे अनुरोध भी करता है क़ि वे उसे तीरंदाजी के कुछ गुर सिखाएं .
विवेक क़ि बातों से राजकुमार प्रभावित होते हैं.राजकुमार उसे तीरंदाजी के कुछ नमूने दिखाने को कहते हैं. विवेक की कला का प्रदर्शन देख कर राजकुमार आश्चर्य चकित हो जाते हैं. वे विवेक से कहते हैं क़ि,'' तुम तो बहुत अच्छे तीरंदाज हो.मुझ से भी अच्छे .मैं तो तुम्हारे आगे कुछ भी नहीं. सीखना तो मुझे तुमसे चाहिए .'' राजकुमार क़ि बातों पर विवेक को विश्वाश नहीं हुआ.आखिर राजकुमार ने विवेक से कहा ,''मित्र,तुम पहले अपना लक्ष्य निर्धारित करते हो,फिर वंहा निशाना लगाते हो.मैं ऐसा नहीं करता ,मैं पहले तीर चला देता हूँ.फिर वह तीर जंहा लग जाता है,उसे ही लक्ष्य घोषित कर देता हूँ.आखिर राजकुमार जो हूँ. कुछ समझे ?'' इतना कहकर राजकुमार हसने लगे. विवेक भी हसने लगा .
बड़े परिवारों या बड़े घरानों में पैदा हो जाने से भी,यह समाज आप को प्रतिभावान मानने लगता है.ऐसे लोगों के लिए ही किसी ने लिखा है क़ि-------
''जिनके घर अमीरी का सजर लगता है
उनका हर ऐब ,जमाने को हुनर लगता है ''
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बोध कथा ११ :निशानेबाज
Wednesday, 24 March 2010
ढरकता पल्लू आखों में नाज था /
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ढरकता पल्लू आखों में नाज था , बड़ी मासूमियत से उसने पूछा हाल था ;
उछल पड़ी धड़कन ,सांसे बहक गयी ;मरने नहीं दिया अब जीना मुहाल था /
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ढरकता पल्लू आखों में नाज था , बड़ी मासूमियत से उसने पूछा हाल था ;
उछल पड़ी धड़कन ,सांसे बहक गयी ;मरने नहीं दिया अब जीना मुहाल था /
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नहीं रहे मार्कंडेय
नहीं रहे मार्कंडेय
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हिंदी नई कहानी आन्दोलन के प्रमुख कथाकारों में से एक मार्कण्डेय जी अब हम लोगों के बीच नहीं रहे.इलाहाबाद में रहते हुवे वे आर्थिक तंगी और बिमारी से कई सालों से जूझ रहे थे.आदर्श कुक्कुट गृह जैसी मशहूर कहानियाँ लिखने वाले मार्कंडेय हिंदी साहित्य से लगातार जुड़े रहे.
८० से अधिक उम्र के इस लेखक ने अपनी अंतिम सांस दिल्ली के राजू गाँधी केंसर अस्पताल में ली. मार्कंडेय को कई पुरस्कारों से समय-समय पर सम्मानित भी किया गया.जैसे क़ि- राहुल सांस्कृत्यायन अवार्ड १९९३
प्रयाग गौरव सम्मान
हिंदी गौरव सम्मान २००३
साहित्य भूषण अवार्ड 2009. प्रमुख है. आप क़ि जो रचनाएं अधिक प्रसिद्ध हुई उनमे से प्रमुख
पान कां फूल , महुवा का पेड़ , भूदान , कहानी की बात और अग्निबीज विशेष उल्लेखनी हैं. हंसा जाए अकेला और गुलरा के बाबा के अलावां उन्होंने कथा नामक पत्रिका का सम्पादन भी उन्होंने किया.
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हिंदी नई कहानी आन्दोलन के प्रमुख कथाकारों में से एक मार्कण्डेय जी अब हम लोगों के बीच नहीं रहे.इलाहाबाद में रहते हुवे वे आर्थिक तंगी और बिमारी से कई सालों से जूझ रहे थे.आदर्श कुक्कुट गृह जैसी मशहूर कहानियाँ लिखने वाले मार्कंडेय हिंदी साहित्य से लगातार जुड़े रहे.
८० से अधिक उम्र के इस लेखक ने अपनी अंतिम सांस दिल्ली के राजू गाँधी केंसर अस्पताल में ली. मार्कंडेय को कई पुरस्कारों से समय-समय पर सम्मानित भी किया गया.जैसे क़ि- राहुल सांस्कृत्यायन अवार्ड १९९३
प्रयाग गौरव सम्मान
हिंदी गौरव सम्मान २००३
साहित्य भूषण अवार्ड 2009. प्रमुख है. आप क़ि जो रचनाएं अधिक प्रसिद्ध हुई उनमे से प्रमुख
पान कां फूल , महुवा का पेड़ , भूदान , कहानी की बात और अग्निबीज विशेष उल्लेखनी हैं. हंसा जाए अकेला और गुलरा के बाबा के अलावां उन्होंने कथा नामक पत्रिका का सम्पादन भी उन्होंने किया.
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बोध कथा १० : आदमी
बोध कथा १० : आदमी
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एक बहुत ही दानी और अमीर व्यापारी के बारे में सुन कर गरीब ब्राह्मण रामानंद ने सोचा क़ि वह भी क्यों ना व्यापारी के पास जा कर कुछ स्वर्ण मुद्राएँ मांग लाये.अपने मन की बात जब रामानंद ने अपनी धर्म पत्नी से कही तो उन्होंने भी इसके लिए हाँ कर दिया .
फिर क्या था ? सुबह -सबेरे ब्राह्मण देवता चना-चबैना-गंगजल लेकर नगर क़ी तरफ निकल पड़े.लम्बी पद यात्रा कर के जब वे व्यापारी के पास पहुंचे तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना ना था. उन्होंने व्यापारी को अपनी सब ग्रह दशा बता दी. व्यापारी ने बड़े ही अनमने भाव से उनकी बात सुनी.अंत में बोला'' ठीक है ब्राह्मण ,कल आ जाना.आज कोई आदमी नहीं है.'' इतना कह कर वह व्यापारी घर के अंदर चला गया. ब्राह्मण सोचने लगा क़ि कुछ बड़ा सा दान मिलने वाला है.एक दिन इन्तजार सही.नगर में इधर-उधर घूम कर भूखे पेट जैसे-तैसे उन्होंने रात बिताई.सुबह जब फिर व्यापारी के पास गए तो व्यापारी ने वही टका सा जवाब दिया. ''कल आना,आज आदमी नहीं है.''
इस तरह लगभग एक महीना बीत गया. ब्राह्मण रोज व्यापारी के पास जाता और व्यापारी वही रटा-रटाया जवाब देता क़ि,''कल आना,आदमी नहीं है .'' इस बार भी जब ब्राह्मण को वही जवाब मिला तो ,उससे रहा नहीं गया.ब्राह्मण ने हाँथ जोडकर विनम्रता पूर्वक कहा,''हे सेठ श्री,गलती आप की नहीं है. आप के पास आदमी नहीं है ,और मैं तो आप को ही आदमी समझ कर आ गया था.बड़ी भूल हुई,अब नहीं आऊंगा .''इतना कह कर ब्राह्मण तो चला गया पर व्यापारी को काटो तो खून नहीं.वह अपने व्यवहार पर अंदर ही अंदर जीवन भर शर्मिंदा होता रहा.
हमे जीवन में किसी से कोई अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए.रहीम ने लिखा भी है क़ि------
'' रहिमन वे नर मर चुके,जो कुछ मांगन जांहि
उनसे पहले वो मुवें,जिन मुख निकसत नाहिं ''
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एक बहुत ही दानी और अमीर व्यापारी के बारे में सुन कर गरीब ब्राह्मण रामानंद ने सोचा क़ि वह भी क्यों ना व्यापारी के पास जा कर कुछ स्वर्ण मुद्राएँ मांग लाये.अपने मन की बात जब रामानंद ने अपनी धर्म पत्नी से कही तो उन्होंने भी इसके लिए हाँ कर दिया .
फिर क्या था ? सुबह -सबेरे ब्राह्मण देवता चना-चबैना-गंगजल लेकर नगर क़ी तरफ निकल पड़े.लम्बी पद यात्रा कर के जब वे व्यापारी के पास पहुंचे तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना ना था. उन्होंने व्यापारी को अपनी सब ग्रह दशा बता दी. व्यापारी ने बड़े ही अनमने भाव से उनकी बात सुनी.अंत में बोला'' ठीक है ब्राह्मण ,कल आ जाना.आज कोई आदमी नहीं है.'' इतना कह कर वह व्यापारी घर के अंदर चला गया. ब्राह्मण सोचने लगा क़ि कुछ बड़ा सा दान मिलने वाला है.एक दिन इन्तजार सही.नगर में इधर-उधर घूम कर भूखे पेट जैसे-तैसे उन्होंने रात बिताई.सुबह जब फिर व्यापारी के पास गए तो व्यापारी ने वही टका सा जवाब दिया. ''कल आना,आज आदमी नहीं है.''
इस तरह लगभग एक महीना बीत गया. ब्राह्मण रोज व्यापारी के पास जाता और व्यापारी वही रटा-रटाया जवाब देता क़ि,''कल आना,आदमी नहीं है .'' इस बार भी जब ब्राह्मण को वही जवाब मिला तो ,उससे रहा नहीं गया.ब्राह्मण ने हाँथ जोडकर विनम्रता पूर्वक कहा,''हे सेठ श्री,गलती आप की नहीं है. आप के पास आदमी नहीं है ,और मैं तो आप को ही आदमी समझ कर आ गया था.बड़ी भूल हुई,अब नहीं आऊंगा .''इतना कह कर ब्राह्मण तो चला गया पर व्यापारी को काटो तो खून नहीं.वह अपने व्यवहार पर अंदर ही अंदर जीवन भर शर्मिंदा होता रहा.
हमे जीवन में किसी से कोई अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए.रहीम ने लिखा भी है क़ि------
'' रहिमन वे नर मर चुके,जो कुछ मांगन जांहि
उनसे पहले वो मुवें,जिन मुख निकसत नाहिं ''
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बोध कथा १० : आदमी
Tuesday, 23 March 2010
मोहब्बत भरी मेरी निगाहें ना देखो तुम ,
मोहब्बत भरी मेरी निगाहें ना देखो तुम ,
प्यार से भरी मेरी आहें ना देखो तुम ;
इश्क की राहें आसां नहीं होती ,
चाहते मंजिल बदनाम है होती ;
कीचड़ में खिले कमल ,काटों में गुलाब है ;
हुस्न हो बेपरदा ,मेरा नहीं ये ख्वाब है '
काटों की ये पगडण्डी ,
दिल तडपे है रातों में ;
आंसूं आखों से पिघले है ,
तू बढ जा अपनी राहों में ;
सरल सही से भावों को लेकर;
तू खुश रह अपनी पनाहों में;
कठिनाई को चुनना कैसा ,
बदनामी का संग करना कैसा ;
अच्छाई का दामन हो तुम ;
सच्चाई का आंगन हो तुम ;
कीचड़ की पगडण्डी पे चलना कैसा ,
काटों की राहों में बसना कैसा ;
मोहब्बत भरी मेरी निगाहें ना देखो तुम ,
प्यार से भरी मेरी आहें ना देखो तुम ;
प्यार से भरी मेरी आहें ना देखो तुम ;
इश्क की राहें आसां नहीं होती ,
चाहते मंजिल बदनाम है होती ;
कीचड़ में खिले कमल ,काटों में गुलाब है ;
हुस्न हो बेपरदा ,मेरा नहीं ये ख्वाब है '
काटों की ये पगडण्डी ,
दिल तडपे है रातों में ;
आंसूं आखों से पिघले है ,
तू बढ जा अपनी राहों में ;
सरल सही से भावों को लेकर;
तू खुश रह अपनी पनाहों में;
कठिनाई को चुनना कैसा ,
बदनामी का संग करना कैसा ;
अच्छाई का दामन हो तुम ;
सच्चाई का आंगन हो तुम ;
कीचड़ की पगडण्डी पे चलना कैसा ,
काटों की राहों में बसना कैसा ;
मोहब्बत भरी मेरी निगाहें ना देखो तुम ,
प्यार से भरी मेरी आहें ना देखो तुम ;
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Monday, 22 March 2010
बोध कथा ९ : दोस्ती
बोध कथा ९ : दोस्ती
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एक दिन जब तबेले में सुबह-सुबह ताज़ा दूध निकाला जा रहा था,तभी दूध क़ी नजर सामने पड़े पानी से लबा-लब भरी बाल्टी पर गयी.पानी को देखते ही दूध ने इतरा कर कहा ,''कहो दोस्त ,क्या हाल है ?''. पानी का ध्यान दूध क़ी तरफ गया.उसने भी विनम्रता पूर्वक कहा,''ठीक हूँ दोस्त.बस तुम्हारा ही इन्तजार कर रहा था. अभी थोड़ी देर में ये लोग हम दोनों को मिलाकर एक कर देंगे.मै भी तुम्हारे ही रंग में रंग कर,तुम्हारा ही अंश बन जाऊँगा .'' दूध क़ी बात सुनकर पानी बोला,''हाँ भाई,तुम्हारी तो मजा ही मजा है. हो तो मामूली पानी लेकिन मेरे साथ मिलकर मेरे ही भाव में बिकते हो.तुम्हे अपने इस दोस्त का एहसान मानना चाहिए .'' यह बात सुनकर पानी थोडा संकोच में पड़ गया,लेकिन उसने तुरंत जवाब दिया कि,''मैं तुम्हारी बात मानता हूँ.तुम मुझे अपने में शामिल कर मेरा मूल्य बढ़ा देते हो.मै भी वचन देता हूँ क़ि जब भी तुम पर कोई खतरा आएगा ,पहले उस खतरे का सामना मै करूँगा.मेरे जीते जी कोई तुम्हारा बाल भी बाका नहीं कर सकेगा.''
इतने में तबेलेवाला वंहा आया और उसने दूध और पानी को मिलाकर एक ही कर दिया.थोड़ी देर में एक गाडी आयी और उसमे दूध को रख दिया गया. दूध को बेचने के लिए बाजार भेजा जा रहा था. बाजार में पूरा दूध थोडा-थोडा कर बेच भी दिया गया.लेकिन जंहा भी दूध गया ,वंहा उसे गर्म करने के लिए खरीदार ने गैस पे रख दिया. जब आग क़ि आंच दूध ने महसूस क़ी तो वह चिल्ला पड़ा,''अरे यह क्या ? इस तरह तो ये लोग हमे जला कर मार डालेंगे .अब हम क्या करें ?'' दूध क़ी बात को सुनकर उसमे मिले पानी ने कहा,''चिंता मत करो मित्र.जब तक मै तुम्हारे साथ हूँ ,तुम्हे कुछ नहीं होने दूंगा.अगर जलना ही है तो पहले मैं जलूँगा.''
यह कहकर पानी जलने लगता है. वह वाष्प बनने लगता है. अपने दोस्त क़ी यह हालत देखकर दूध का मन विचलित हो जाता है.वह पानी को अपने से दूर जाने से रोकने के लिए ,अपने मलाई क़ी एक मोटी परत पूरे बर्तन के ऊपर फैला देता है. परिणामस्वरूप पानी वाष्प के रूप में बाहर नहीं जा पाता और दूध में उबाल आ जाता है.उबाल को देख कर खारीदार भी गैस बंद कर देता है. इसतरह दूध और पानी सच्ची दोस्ती क़ी एक मिसाल सामने रखते हैं.वे अपने प्राणों क़ी भी परवाह नहीं करते.ऐसी दोस्ती के लिए ही किसी ने लिखा है क़ि-----
'' हर रिश्ते से बड़ा है,दोस्ती का रिश्ता
मत तोडना कभी,दोस्ती का रिश्ता ''
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एक दिन जब तबेले में सुबह-सुबह ताज़ा दूध निकाला जा रहा था,तभी दूध क़ी नजर सामने पड़े पानी से लबा-लब भरी बाल्टी पर गयी.पानी को देखते ही दूध ने इतरा कर कहा ,''कहो दोस्त ,क्या हाल है ?''. पानी का ध्यान दूध क़ी तरफ गया.उसने भी विनम्रता पूर्वक कहा,''ठीक हूँ दोस्त.बस तुम्हारा ही इन्तजार कर रहा था. अभी थोड़ी देर में ये लोग हम दोनों को मिलाकर एक कर देंगे.मै भी तुम्हारे ही रंग में रंग कर,तुम्हारा ही अंश बन जाऊँगा .'' दूध क़ी बात सुनकर पानी बोला,''हाँ भाई,तुम्हारी तो मजा ही मजा है. हो तो मामूली पानी लेकिन मेरे साथ मिलकर मेरे ही भाव में बिकते हो.तुम्हे अपने इस दोस्त का एहसान मानना चाहिए .'' यह बात सुनकर पानी थोडा संकोच में पड़ गया,लेकिन उसने तुरंत जवाब दिया कि,''मैं तुम्हारी बात मानता हूँ.तुम मुझे अपने में शामिल कर मेरा मूल्य बढ़ा देते हो.मै भी वचन देता हूँ क़ि जब भी तुम पर कोई खतरा आएगा ,पहले उस खतरे का सामना मै करूँगा.मेरे जीते जी कोई तुम्हारा बाल भी बाका नहीं कर सकेगा.''

यह कहकर पानी जलने लगता है. वह वाष्प बनने लगता है. अपने दोस्त क़ी यह हालत देखकर दूध का मन विचलित हो जाता है.वह पानी को अपने से दूर जाने से रोकने के लिए ,अपने मलाई क़ी एक मोटी परत पूरे बर्तन के ऊपर फैला देता है. परिणामस्वरूप पानी वाष्प के रूप में बाहर नहीं जा पाता और दूध में उबाल आ जाता है.उबाल को देख कर खारीदार भी गैस बंद कर देता है. इसतरह दूध और पानी सच्ची दोस्ती क़ी एक मिसाल सामने रखते हैं.वे अपने प्राणों क़ी भी परवाह नहीं करते.ऐसी दोस्ती के लिए ही किसी ने लिखा है क़ि-----
'' हर रिश्ते से बड़ा है,दोस्ती का रिश्ता
मत तोडना कभी,दोस्ती का रिश्ता ''
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बोध कथा ९ : दोस्ती
Sunday, 21 March 2010
झुझलाया हुआ था ,अलसाया हुआ था ;
झुझलाया हुआ था ,
अलसाया हुआ था ;
तल्खी थी बातों में ,
शरमाया हुआ था ;
बयां हो रहा था कल रात का किस्सा ,
नहीं चाहता था वो ,
मैं जानू तूफानी रात का किस्सा ;
उलझे हुए बाल तूफान साथ लाये थे ,
गरदन के वो निशा,
निशानी खास लाये थे ;
आखों की लाली बन रही थी रात का दर्पण ,
बदन की भगिमा बता रही थी प्यार का अर्पण ;
लौट आया मै ,
अपनी मोहब्बत का कर दर्शन ;
नहीं चाहता बन जाऊं उसकी प्यास की अड़चन ;
झुझलाया हुआ था ,
अलसाया हुआ था ;
तल्खी थी बातों में ,
तल्खी थी बातों में ,
शरमाया हुआ था ;
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बोध कथा ८ :कछुए और खरगोश क़ी आगे क़ी कहानी
बोध कथा ८ :कछुए और खरगोश क़ी आगे क़ी कहानी
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आप में से शायद ही कोई हो जिसे कछुए और खरगोश क़ी कहानी मालूम ना हो .लेकिन वह कहानी जंहा ख़त्म होती है ,वँही से मैं यह नई कहानी शुरू कर रहा हूँ.आशा है आप लोंगों को पसंद आएगी .
--------------तो जैसा क़ी आप जानते हैं क़ि कछुए और खरगोश क़ी दौड़ में कछुआ विजयी होता है.यह बात जब जंगल में फैलती है तब खरगोश का बड़ा मजाक उड़ाया जाता है. हर कोई खरगोश को ताने देने लगता है. बेचारा खरगोश बहुत दुखी होता है. उसे समझ में नहीं आता क़ि वह क्या करे? अंत में वह निर्णय लेता है क़ि वह शांतिपूर्वक अपनी हार का कारण समझने क़ी कोशिस करेगा.बहुत चिन्तन-मनन करने के बाद उसे यह बात समझ में आ गयी क़ि ,''शत्रु या प्रतिस्पर्धी को कभी भी कमजोर नहीं समझना चाहिए .साथ ही साथ अति आत्मविश्वाश से भी हमे नुकसान उठाना पड़ता है.''इस बात को अच्छी तरह समझ कर वह फिर से कछुए से शर्त लगाने क़ी योजना बनता है. इसी संदर्भ में बात करने के लिए वह कछुए के घर जाता है. कछुआ उसका ह्रदय से स्वागत करता है. थोड़े अल्पाहार के बाद कछुए ने खरगोश से पूछा -''कहो मित्र कैसे आना हुआ ?'



एक बार फिर दौड़ शुरू हुई. नदी तट तक तो खरगोश आगे रहा ,पर वह नदी पार नहीं कर सकता था.नदी का प्रवाह तेज था और नदी गहरी थी.परिणामस्वरूप वह वँही रुक गया.जब क़ि कछुआ आसानी से नदी पार कर,आम के पेड तक पहुँच गया.और इस तरह इस बार की दौड़ कछुआ जीत गया.इस जीत से वह खुश हुआ .उधर खरगोश अपनी हार से निराश था.वह समझ गया था क़ि कछुए ने चालाकी से काम लिया है.
बहुत दिनों बाद दोनों फिर मिले और अपनी हार-जीत पर बातें करने लगे.बहुत लम्बी चर्चा के बाद दोनों इस निष्कर्ष पर पहुंचे क़ि,
''हर व्यक्ति क़ि क्षमता अलग-अलग होती है.अगर हम परस्पर सहयोग और सहकारिता क़ी नीति पर चलते हुए कार्य करें,तभी हम आगे बढ़ सकते हैं.सच्ची शक्ति इस आपसी सहयोग में ही है.आपसी प्रतिस्पर्धा में नहीं.एकता ही हमे अलौकिक शक्ति प्रदान कर सकती है.इसलिए हमे एक होकर काम करना चाहिए.''
अपनी इसी बात को जंगल में सभी को समझाने के लिए दोनों एक बार फिर से नदी के उस पार तक दौड़ लगाते हैं. इस बार जब तक जमीन पर दौड़ना था,तब तक कछुआ ,खरगोश क़ी पीठ पर बैठा रहा.और जब नदी पार करने क़ी बात आयी तो खरगोश ,कछुए क़ी पीठ पर बैठ गया. इसतरह परस्पर सहयोग से दोनों ने दौड़ पूरी क़ी और दोनों ही संयुक्त विजेता घोषित किये गए.सारा जंगल उनकी बुद्धिमानी क़ी चर्चा कर रहा था.दोनों का ही सम्मान जंगल में बढ़ गया था.
इस तरह इस नई कहानी से हमे सीख मिलती है क़ि ताकत जोड़ने से बढती है ,और आपसी सहयोग से नामुमकिन कार्य भी मुमकिन हो जाता है. इसलिए हमे हर किसी क़ि क्षमता के अनुरूप उसका सम्मान करना चाहिए.किसी को भी कमजोर नहीं समझना चाहिए.किसी ने लिखा भी है क़ि
'' हाँथ पकडकर एक-दूजे का,
आगे ही आगे बढो .
एकता क़ी शक्ति के दम पर,
मुमकिन सब तुम काम करो ''
डॉ.मनीष कुमार मिश्रा
( i do not have any type of copy right on the photos of this post.i have got them as a mail. )
Saturday, 20 March 2010
मुफलिसी के जख्मों से लहलुहान ,
मुफलिसी के जख्मों से लहलुहान ,
जिन्दा है मानों बिना प्राण ,
मुफलिसी के जख्मों से लहलुहान ;
बड़ा जीवट है ,खूं में उसके ,
स्वाभिमान है मन में उसके ;
मुफलिसी के जख्मों से लहलुहान ;
सांसों का भावों से रिश्ता ,
तिरस्कार से धन का नाता ;
वो मुफलिसी और उसका रास्ता ;
किस्से तो दुनिया बुनती है ,
उसको सिर्फ उलाहना ही मिलती है ;
रक्तिम आखें हाथों में छाले ,
ढलती काया पैरों को ढाले ;
संघर्ष से वो कब भागा है ;
स्वार्थ नहीं उसने साधा है ;
साधारण लोग किसे दिखते हैं ;
सब पैसे और ताकत को गुनते हैं ;
मुफलिसी के जख्मों से लहलुहान ,
जिन्दा है मानों बिना प्राण /
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बोध कथा -७ : माँ
बोध कथा -७ : माँ
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बहुत पुरानी बात है. एक जंगल के करीब एक छोटा सा गाँव था. उस गाँव में व्योमकेश नामक एक बड़ा ही प्रतिभा शाली मृदंग वादक रहता था. उसकी कीर्ति चारों तरफ फ़ैल रही थी. वह मृदंग वादक सुबह -सुबह जंगल क़ी तरफ निकल जाता,और एक छोटी सी पहाड़ी पर बैठकर अपना रियाज शुरू कर देता था.
वह मृदंग इतनी खूबसूरती के साथ बजाता क़ी जंगल के कई प्राणी उसके आस-पास आकर खड़े हो जाते और उसे मृदंग क़ी थाप देते हुए घंटो देखते रहते. इन्ही जंगली जानवरों में एक छोटा सा हिरन का बच्चा भी था.वह भी रोज सभी जानवरों के साथ आता.लेकिन जब वह मृदंग वादक मृदंग बजाना शुरू करता तो , वह हिरन का बच्चा ना जाने क्यों रोना शुरू कर देता .और जब मृदंग बजाना बंद हो जाता तब वह चुप-चाप वंहा से जंगल क़ी तरफ चला जाता.
जंगल के सभी जानवर उस नन्हे हिरन शावक के व्यवहार को समझ नहीं पा रहे थे.खुद मृदंग वादक भी इस बात को समझ नहीं पा रहा था.आखिर एक दिन उस मृदंग वादक ने फैसला किया क़ि वह इस बात का पता लगा कर रहेगा क़ि आखिर वह हिरन शावक मृदंग बजता देख रोता क्यों है ? अगले दिन जब सभी जानवरों के साथ वह हिरन शावक आया तो मृदंग वादक ने धीरे से उसे पकड़ लिया.वह शावक घबरा गया.सभी जानवर उसे छोड़ के जंगल क़ी तरफ भाग गए.
उस मृदंग वादक ने उस शावक को गोंद में उठा कर कहा,'' हे हिरन शावक ,क्या मैं इतना बुरा मृदंग बजाता हूँ क़ी तुम्हे रोना आता है ?'' इस पर उस शावक ने कहा,'' नहीं,ये बात नहीं है.'' इस पर उसने फिर प्रश्न किया,'' तो तुम्हारे रोने का कारण क्या है ?'' इस बात का जवाब देने से पहले ही उस शावक क़ी आँखों से फिर आंसूं बहने लगे.वह रोते हुवे ही बोला,'' आप मुझे गलत ना समझें, दरअसल बात ये है कि आप के मृदंग पे जो हिरन की खाल चढ़ी है,जिससे इतनी सुंदर ध्वनि निकलती है.वो खाल मेरी माँ क़ी है.जिस दिन मैं पैदा हुआ था उसी दिन एक शिकारी ने उसका शिकार कर लिया था.फिर वही खाल आपने खरीदी थी. आप जब इस खाल को बजाते हैं तो मुझे लगता है कि मेरी माँ-------'' इतना कहते ही उस नन्हे शावक का गला भर आया. मृदंग वादक की आँखों में भी आंसूं थे. वह उस शावक को वँही छोड़ कर अपने घर की तरफ चला गया.वह मृदंग वँही पड़ा था.नन्हा शावक उस मृदंग क़ी खाल को प्रेम से चाट रहा था. मानों कह रहा हो-
'' तेरे बिना बहुत अकेला हो गया हूँ माँ ,
तुझ सा ना जग में कोई प्यारा है माँ .''
(i do not have any copy right on the same photo)
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बहुत पुरानी बात है. एक जंगल के करीब एक छोटा सा गाँव था. उस गाँव में व्योमकेश नामक एक बड़ा ही प्रतिभा शाली मृदंग वादक रहता था. उसकी कीर्ति चारों तरफ फ़ैल रही थी. वह मृदंग वादक सुबह -सुबह जंगल क़ी तरफ निकल जाता,और एक छोटी सी पहाड़ी पर बैठकर अपना रियाज शुरू कर देता था.

जंगल के सभी जानवर उस नन्हे हिरन शावक के व्यवहार को समझ नहीं पा रहे थे.खुद मृदंग वादक भी इस बात को समझ नहीं पा रहा था.आखिर एक दिन उस मृदंग वादक ने फैसला किया क़ि वह इस बात का पता लगा कर रहेगा क़ि आखिर वह हिरन शावक मृदंग बजता देख रोता क्यों है ? अगले दिन जब सभी जानवरों के साथ वह हिरन शावक आया तो मृदंग वादक ने धीरे से उसे पकड़ लिया.वह शावक घबरा गया.सभी जानवर उसे छोड़ के जंगल क़ी तरफ भाग गए.
उस मृदंग वादक ने उस शावक को गोंद में उठा कर कहा,'' हे हिरन शावक ,क्या मैं इतना बुरा मृदंग बजाता हूँ क़ी तुम्हे रोना आता है ?'' इस पर उस शावक ने कहा,'' नहीं,ये बात नहीं है.'' इस पर उसने फिर प्रश्न किया,'' तो तुम्हारे रोने का कारण क्या है ?'' इस बात का जवाब देने से पहले ही उस शावक क़ी आँखों से फिर आंसूं बहने लगे.वह रोते हुवे ही बोला,'' आप मुझे गलत ना समझें, दरअसल बात ये है कि आप के मृदंग पे जो हिरन की खाल चढ़ी है,जिससे इतनी सुंदर ध्वनि निकलती है.वो खाल मेरी माँ क़ी है.जिस दिन मैं पैदा हुआ था उसी दिन एक शिकारी ने उसका शिकार कर लिया था.फिर वही खाल आपने खरीदी थी. आप जब इस खाल को बजाते हैं तो मुझे लगता है कि मेरी माँ-------'' इतना कहते ही उस नन्हे शावक का गला भर आया. मृदंग वादक की आँखों में भी आंसूं थे. वह उस शावक को वँही छोड़ कर अपने घर की तरफ चला गया.वह मृदंग वँही पड़ा था.नन्हा शावक उस मृदंग क़ी खाल को प्रेम से चाट रहा था. मानों कह रहा हो-
'' तेरे बिना बहुत अकेला हो गया हूँ माँ ,
तुझ सा ना जग में कोई प्यारा है माँ .''
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