फ़ैली है आग हार तरफ धधक रहा शहर
गलती है ये किसकी चल रही बहस
नेता पत्रकार टी.वी वालों का हुजूम है
जानो कि परवा किसे दोषारोपण का दौर है
चीख रहे हैं लोग अरफा तरफी है हर तरफ
कहीं तड़प रहा बुडापा कहीं कहरता हुआ बचपन
चित्कारती आवाजें झुलसते हुए बदन
किसपे लादे दोष ये चल रहा मंथन
बह रही हवा अपने पूरे शान से
अग्नि देवता हैं अपनी आन पे
लोंगों कि तू तू मै मै है या मधुमख्खिओं का शोर है
हो रहा न फैसला ये किसका दोष है
कलेजे से चिपकाये अपने लाल को
चीख रही है माँ उसकी जान को
जलते हुए मकाँ में कितने ही लोग हैं
कोशिशे अथाह पर दावानल तेज है
धूँये से भरा पूरा आकाश है
पूरा प्रशासन व्यस्त कि इसमे किसका हाथ है
आया किसी को होश कि लोग जल रहे
तब जुटे सभी ये आग तो बुझे
आग तो बुझी हर तरफ लाशों का ढेर है
पर अभी तक हो सका है ना फैसला इसमे किसका दोष है
हाय इन्सान कि फितरत या हमारा कसूर है
हर कुर्सी पे है वो जों कामचोर हैं
बिठाया वहां हमने जिन्हें बड़े धूम धाम से
वो लूट रहे हैं जान बड़े आन बान से
Tuesday, 13 July 2010
फ़ैली है आग हार तरफ धधक रहा शहर
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Monday, 12 July 2010
इनायत खुदा की कि प्यार का जज्बा दिया
न खुशियों की तलाश
न बदन की कोई प्यास
मोहब्बत की पूरे दिल से
ये जज्बा खुदा का खास
मेरी आखों के पानी को न देखो
मेरी बरबादिओं की रवानी को न देखो
देखो इश्क का जूनून जों दौड़े है रग रग में
मेरे हंसी यार की बेवफाई को न देखो
गम का नहीं है गम मुझे
ये मोहब्बत की तासीर हो
तेरा सच तो कह देता
भले ये मेरी आखिरी तारीख हो
इनायत खुदा की कि प्यार का जज्बा दिया
मेहरबानी तेरी तुने प्यार को रुसवा किया
सच ये है कि तू है मेरी जिंदगी
क़त्ल कर या कर हलाल ये दिल तुझे सजदा किया
न बदन की कोई प्यास
मोहब्बत की पूरे दिल से
ये जज्बा खुदा का खास
मेरी आखों के पानी को न देखो
मेरी बरबादिओं की रवानी को न देखो
देखो इश्क का जूनून जों दौड़े है रग रग में
मेरे हंसी यार की बेवफाई को न देखो
गम का नहीं है गम मुझे
ये मोहब्बत की तासीर हो
तेरा सच तो कह देता
भले ये मेरी आखिरी तारीख हो
इनायत खुदा की कि प्यार का जज्बा दिया
मेहरबानी तेरी तुने प्यार को रुसवा किया
सच ये है कि तू है मेरी जिंदगी
क़त्ल कर या कर हलाल ये दिल तुझे सजदा किया
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मंदिरों की घंटियाँ चीत्कार सी लगी /
सुबह में बोझिलता थी
मौसम में आकुलता
दिल में तड़प थी
दिखती न मंजिल न सड़क थी
सोया था मै हार के
जागा था मन मार के
उगता सूरज मौसम साफ़
दिल था पर उदास
कोकिला की कूक भी काक सी लगी
मंदिरों की घंटियाँ चीत्कार सी लगी
मृत जवानों का ढेर था
नक्सालियों का ये खेल था
खूं से जमीं लाल थी
दरिंदगी खूंखार थी
गृहमंत्री को खेद था
उनका खूं सफ़ेद था
भोपाल का फैसला न्याय की हार थी
दोष थे खूब बंट रहे इन्साफ की न राह थी
कश्मीर सुलग रहा
अलगाववाद फिर पनप रहा
लोग यहाँ मर रहे
नेता बहस कर रहे
चैनल सेक रहे T.R.P. नेता अपना स्वार्थ
लोग मरे या मरे शहर पैसा यहाँ यथार्थ
वोट की नीति ही सबसे बड़ी है नीति
वोट ही प्रीती है वोट की ही है रीती
वोट है धंधा कुर्सी पैसे की खान
देश से क्या लेना देना सबको चाहिए बड़ा मकान

Sunday, 11 July 2010
तुझमे दुविधाओं का मंजर पाया
थमा हुआ समंदर पाया
आखों में खुशिओं का रेला
दिल में मचा बवंडर पाया
अनेक भाव विधाएं तेरी
हँसता कोई रोता कोई
दिल थामे बैठा है कोई
तू एक पर कितनी ही कथाएं तेरी
क्या क्या है अदाएं तेरी
कहीं कोमलताएं बेचीं
कही सरलताएं बेचीं
किया कहीं भावों का सौदा
कहीं तुने अदाएं बेचीं
तेरा इतिहास बदलता पाया
तेरा खास बदलता पाया
कब कौनसा रूप नजर आ जाये
हरदम खुद को डरता पाया
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hindi kavita. जिंदगी

कातिल अदा है सादगी ,
कातिल अदा है सादगी इससे बचा करो ,
क़ज़ा ये ऐसी हुस्न की कि दिल कातिल कि दुआ करे /कातिल अदा है सादगी ,
हुस्न का दिव्यास्त्र ये जों रखता है वो संभाल ,
चलता ये वहां भी जहाँ कोई अंदाज न चले ,
जीतता है ये ही कैसे भी वो चले
कातिल अदा है सादगी ,
चलता है वो सादगी जब सूझे न कोई चाल
होता है हसीं का हर वार जब बेकार ,
धीमे धीमे अपनी इस क़ज़ा को वो चले;
आशिक को फिर हौले हौले वो छले
आशिक को फिर हौले हौले वो छले
चाहता है वो जब जीतना हार हाल में
करता है तब सादगी जों करता है दिल पे वार
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सादगी /,
हिंदी कविता

Saturday, 10 July 2010
न राह है न मुकद्दर ,
न राह है न मुकद्दर ,
फिर मेरा दिल तेरा है क्यूँ कर ,
वक़्त न धूमिल कर पाया ,
राहों ने कितना ही भरमाया ,
अपने लोग भाव उलझाते ही हैं ,
रिश्तों में अड़चन लाते ही है ,
बड़ती कशिश समय भी रोक न पाई ,
बड़ती तपिश भले तुझे ना भायी ,
इश्क को चोटों से क्यूँ भागूं मैं
तेरे संबंधों से घबरायु क्यूँ मै ,
मै अविचलित अपने प्यार पे ,
भले नम हैं आखें तेरे बेवफाई के नाम पे /
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मोहब्बत /,
हिंदी कविता

Friday, 9 July 2010
न की इतनी गैरत की मुलाकात कर लेती ,
न की इतनी गैरत की मुलाकात कर लेती ,
होती अपनो की परवा तो कैसे रात कर लेती ,
बला की कशिश है तुझमे लोग कहते है ,
गैरों से न मिली फुर्सत जों मेरे रंजोगम से आखें चार कर लेती /
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मुलाकात /,
हिंदी शायरी

चाह के भी न कह सका प्यार मै ,
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.
चाह के भी न कह सका प्यार मै ,
तेरी आखों ने रोक लिया कैसे करता इजहार मै ;
बाहें मचल रही थी तुझे बाँहों में भरने को ,
तेरी हया को करता कैसे यूँ ही पार मै /
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शायरी,
हिंदी कविता

Thursday, 8 July 2010
हिंदी से अरुचि ये हिंदी भाषी ही करते हैं ,
Golden Treasury Of Shlokas (4 Cd Set with Hindi Book)
हिंदी से अरुचि ये हिंदी भाषी ही करते हैं ,
हमें अंगरेजी आती कह खुद की पीठ ठोकते है ,
हीन भाव से निकलो यारों ;
अंगरेजी आने से विद्वान नहीं कोई बनता है ,
सिर्फ भाषा के ज्ञान से कोई इन्सान नहीं बनता है ;
निज भाषा से प्रेम नहीं ,
इससे बड़ा विद्वेष नहीं ;
हिंदी से अरुचि ये हिंदी भाषी ही करते हैं ,
हमें अंगरेजी आती कह खुद की पीठ ठोकते है ,
हीन भाव से निकलो यारों ;
अंगरेजी आने से विद्वान नहीं कोई बनता है ,
सिर्फ भाषा के ज्ञान से कोई इन्सान नहीं बनता है ;
निज भाषा से प्रेम नहीं ,
इससे बड़ा विद्वेष नहीं ;
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हिंदी /,
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न महकते बागों के मंजर का शौक रखा ,
न महकते बागों के मंजर का शौक रखा ,
न तूफानी समंदर का शौक रखा ,
शौक तो बस इतना था तुझे जी भर के देखूं ,
तुने की शिकायत तो बंद आखों का शौक रखा /
न तूफानी समंदर का शौक रखा ,
शौक तो बस इतना था तुझे जी भर के देखूं ,
तुने की शिकायत तो बंद आखों का शौक रखा /
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शौक /,
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Wednesday, 7 July 2010
रूह जलती रही मेरी सर शैया पे
न गम की बरसात होती है ,न ख़ुशी भी साथ होती है ,
जिंदगी बीत रही कुछ ऐसी ,दिन भी रात होती है /
.
न मुलाकात की मैंने ,न कोई शुरुवात की तुने ,
रूह जलती रही मेरी सर शैया पे ,मेरी राख को न आग दी तुने /
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