Sunday, 14 June 2020

युवा कवि मनीष : लाखों हृदयों में अंकित होने की यात्रा में अग्रसर ।

 युवा कवि मनीष : लाखों हृदयों में अंकित होने की यात्रा में अग्रसर ।


‘‘क्या ऐसा होगा कि
आदमी और शब्दों की
 किसी जोरदार बहस में
शामिल हों कुछ
 मेरी भी कविताओं के शब्द ।’’
जी हाँ  ! इस आशा के साथ, इन शब्दों के साथ अनगिनत शब्दों को मोतियों की तरह पिरोकर दो सुंदर मालाओं जो कि काव्य संकलन हैं प्रगतिशील हिन्दी साहित्य में माहिर लेखक और कवि डॉ. मनीष कुमार मिश्रा जी  अपना परिचय दे रहे हैं ।  ‘इस बार तेरे शहर में’ और ‘अक्टूबर उस साल' शीर्षक से प्रकाशित अपने दो काव्य संग्रह के साथ । कुल मिलाकर एक सौ सोलह कविताओं के ये दो संग्रह हर आम आदमी के हृदय को छू लेते हैं।

कवि को प्रेम करने वालों को एक कविता बहुत भावुक कर देती है । वह कविता है मां की अंतिम यात्रा को लेकर । जिसके बिना अम्मा को समर्पित काव्य संग्रह का परिचय अधूरा जान पड़ता है । जब एक कवि हृदय अपनी पालक के अंतहीन यात्रा में चले जाने का दर्द कैद करता है , माँ की अपरिमित छवि विश्वास और सम्मान की मूर्ति को इन पंक्तियों में :
‘‘लेकिन माँ को
तपस्या की क्या जरुरत पड़ी ?
वह तो खुद ही
एक तपस्या थी ।"

एक तरफ मां के निश्च्छल प्रेम और स्मृतियों का वर्णन है तो दूसरी तरफ मतलबपरस्त दुनिया पर कटाक्ष करते हुए कवि लिखते हैं कि
"मुझे पहचानती हो ना?
मैं वही हूँ
जिसे तुमने
अपनी सुविधा समझा
बिना किसी
दुविधा के।"


इंसान का सबसे बड़ा डर है मृत्यु । इस डर को महसूस करती है एक छोटी चिड़िया भी । लेकिन अपने डर को वह अपने संकल्पों पर हावी नहीं होने देती । जब कि उसकी गिनती प्रकृति के अदना जीवों में है । मनीष जी उस चिड़िया के माध्यम से मनुष्यता को बचाने की गुहार लगाते हैं ।  संवेदनशील कवि को पढ़िए। ना ही संवेदनशील बल्कि जनमानस को प्रेरित कर आंखें खोल देने वाला काव्य ही साहित्य कि पूंजी हैं। मनीष जी की मानवीयता से परिपूर्ण कविता ‘वह गीली चिड़िया’ परिचय कराती है एकत्व रूपी शिव का -वह शिव जो पूर्णयता सत्य पर चोट करते हुए पाठकों को महसूस करा रहा है कि जीवन सबको प्यारा है।
"अपने बसेरे
अपने घोंसले के
बहुत करीब होकर भी
उस मुसलाधार बेमौसम बरसात में
वह गीली चिड़िया
शीशम के पास पुराने बरगद की ओट में
सोच में डूबी हुई
दुबकी है
दबोचे जाने
जाल में फंस जाने......।"

प्रेमी और प्रेमिका का प्रेम, जिस पर लिखकर लाखों पन्ने भर गए कवि और लेखकों के । लेकिन प्रेम अनबूझ पहेली ही बना हुआ है। कहते हैं कवि वही जो प्रेम को महसूस करे और उस एहसास को उतार दे कागज के पन्नों में। डॉ. मनीष मिश्रा के प्रेम की अभिव्यक्ति कई संदर्भों में अप्रतिम है । ऐसी ही एक अभिव्यक्ति का उदाहरण देखिए  ‘जब होता है प्रेम’ शीर्षक कविता में ।

"पलाश कहे दहकने को
और बेला कहे महकने को
कोयल कहे चहकने को पर
चकवी कहे ठहरने को
उलझन में जब मन घबराए
तभी प्रेम का बौर भी आये ।"

वहीं ‘दूसरी तरफ 'उसका मन’ कविता में मन की उपमा दी गई है नदी को । हमारे पुरुष सत्तात्मक समाज में महिला की दैहिक सुंदरता उसकी आंतरिक सुंदरता पर हमेशा ही भारी पड़ती रही है। पुरुष सत्तात्मक समाज गोरी लड़कियों और सांवली लड़कियों की श्रेणी विभाजन अपना धर्म समझता है। एक सांवली लड़की की पीड़ा बहुत ही खुबसूरती से प्रस्तुत हुई हैं ‘उसके संकल्पों का संगीत’ नामक कविता में।

"उदास साँवली लड़की को
मितली आती है
अवरोधों के
ओछेपन से ।"

रक्तचाप केवल चिकित्सा विज्ञान का ही विषय नहीं, इसका गहरा नाता है प्रेम विज्ञान से। ‘रक्तचाप’ दिल खोल देने वाली कविता है। एक प्रेमी जब अपनी प्रेमिका को पत्र लिखता है तो वह उसमें प्रमिका को ही लिखता है न कि कोरे शब्द । यह समझा जा सकता है ‘जब तुम्हें लिखता हूँ’ शीर्षक कविता पढ़कर। प्रेम की प्रतीति अक्सर गुलाब के फूल, सुगंध और पत्र से की जाती है, हमारे कवि निराले हैं ।उन्होंने इसे संतरे से जोड़ा है। प्रेमिका का प्रेमी के लिए संतरा छुपा कर रखना प्रेम की आशा बन गया है ‘वो संतरा’ शीर्षक कविता में। प्यार की चरम परंतु सबसे सरल अभिव्यक्ति तो तब होती है जब प्यार करने वाले का नामकरण कविता के माध्यम से हो वो भी अनोखे अंदाज में । "चुड़ैल" शीर्षक कविता की ये पंक्तियां देखिए ।

"जब कहता हूँ तुम्हें
चुड़ैल तो
यह मानता हूँ कि
तुम हंसोगी
क्योंकि
तुम जानती हो
तुम हो मेरे लिए
दुनिया को सबसे सुंदर लड़की।"

साहित्यकार वही श्रेष्ठ माना जाता है जो आम आदमी और दिनचर्या से जुड़ी हर एक वस्तु, हर एक तकनीकी चीज में नवीनता खोज ले। ऐसे ही हैं हमारे यह कवि जिन्होंने बेहद सरलता और खूबसूरती से मोबाइल, नेलपॉलिश, चाय का कप, कैमरा जैसी प्रतिदिन उपयोग में लायी जानेवाली  वस्तूओं को कैद कर लिया है अपने लयबद्ध द्वंद्व में। हृदय को छू लेने वाली पंक्तियाँ देखिए
"चाय का कप
अपने ओठों से लगाकर
वह बोली -
तुम चाय अच्छी बनाने लगे हो
वैसी ही जैसी कि
मुझसे बातें बनाते हो।"

आज हर मनुष्य सफल तभी है जब वह बदलते वक्त की नब्ज पकड़ ले, कहने का तात्पर्य है कि तकनीकी दुनिया से जुड़ जाए काम करने के लिए । आज पेन का नहीं लैपटाप का जमाना है ।
कविता ‘पेन’ बताती है कि जीवन चलायमान केवल परम्परागत होने से नहीं, तकनीकी वस्तुओं के इस्तेमाल करने से हो रही है। कविता ‘नेलकटर’ मनुष्य की उस इच्छा को पूरी मार्मिकता से सामने लाती है जहां वह आदर्श और यथार्थ के बीच संघर्षरत रहता है ।
‘जूते’ के माध्यम से कवि कड़वे सच पर कटाक्ष करते हुए लिखते हैं कि
 "घिसे हुए जुते
और घिसा हुआ आदमी
बस एक दिन
‘रिप्लेस’ कर दिया जाता है
क्योंकि घिसते रहना
अब किस्मत नहीं चमकाती।"

डॉ. मनीषकुमार मिश्रा जी ने जीवन  के  हर क्षेत्र को इन दोनों ही कविता संकलन में सरलता और मार्मिकता से प्रस्तुत करते हुए पाठकों के हृदय में स्थान बनाया है। प्रकृति, प्रेम, प्रेमिका, राजनीति, समाज, जीवन, कल्पना, रोज की वस्तुएँ इत्यादि खूबसूरती और संवेदना के साथ लयबद्ध होकर इन कविताओं में केंद्रित हो गई हैं। साथ ही अगर प्रकाशन की बात करूं तो शब्दों की आकृति पूरी सरलता से सफेद कागजों में अंकित होकर इन दोनों ही संकलनों को प्रारंभ  से अंत तक पढ़ने पर मजबूर कर देती हैं। याद आते हैं मुझे अंग्रेजी साहित्य के नवोदित लेखक चेतन भगत और अमीष त्रिपाठी  जिन्होंने अपनी लेखनी से आम आदमी के दिलों में जगह बनाई। यही विशेषता इनकी कविताओं में हैं ।  एक हृदय से निकलकर लाखों हृदयों में अंकित हो जाने की यात्रा की ओर अग्रसर हैं युवा कवि मनीष मिश्रा । कवि को लाखों बधाइयाँ।

प्रो. अनुराधा शुक्ला
सहायक प्राध्यापक, अंग्रेजी
भारती विद्यापीठ
आभियांत्रिकी महाविद्यालय, नवी मुंबई ।


No comments:

Post a Comment

Share Your Views on this..

International conference on Raj Kapoor at Tashkent

  लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र ( भारतीय दूतावास, ताशकंद, उज्बेकिस्तान ) एवं ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज़ ( ताशकं...