रस्मी तौर पर ही सही
ख़यालों की किसी अंधी गुफ़ा में
ख़ुद को नजरबंद करके
मैं तथाकथित इंसानों
औऱ उनकी बस्तियों से दूर
अपनी जिंदगी का
इकलौता आशिक रहा ।
ख़यालों की किसी अंधी गुफ़ा में
ख़ुद को नजरबंद करके
मैं तथाकथित इंसानों
औऱ उनकी बस्तियों से दूर
अपनी जिंदगी का
इकलौता आशिक रहा ।
इस आशिक़ी में
कोई तेज़ नशा था
बेमतलब प्रार्थनाओं से दूर
सीधे
मौत से दो-दो हाँथ
मंजिलों से दूर
लंबे सफ़र का तलबगार
जितना ही लूटते जाऊं
उतना ही सुकून ।
कोई तेज़ नशा था
बेमतलब प्रार्थनाओं से दूर
सीधे
मौत से दो-दो हाँथ
मंजिलों से दूर
लंबे सफ़र का तलबगार
जितना ही लूटते जाऊं
उतना ही सुकून ।
सभ्य समाज में
यकीनन
हम जैसे लोग
शक के क़ाबिल थे
इसलिए
हमारी पैबंद लगी झोली भी
व्यवस्था के आँख की
किरकिरी रही ।
यकीनन
हम जैसे लोग
शक के क़ाबिल थे
इसलिए
हमारी पैबंद लगी झोली भी
व्यवस्था के आँख की
किरकिरी रही ।
क्या सच ?
क्या झूठ ?
बात तो शब्दों को
छानने-घोटने भर की है
हाँ मुझे इसमें
थोड़ी महारत है
इसलिए
इतना बता सकता हूँ कि
झूठ के रंग
अधिक चटकदार होते हैं
औऱ जिंदगी
सुर्ख़ रंगों की
बहुत बड़ी दीवानी ।
क्या झूठ ?
बात तो शब्दों को
छानने-घोटने भर की है
हाँ मुझे इसमें
थोड़ी महारत है
इसलिए
इतना बता सकता हूँ कि
झूठ के रंग
अधिक चटकदार होते हैं
औऱ जिंदगी
सुर्ख़ रंगों की
बहुत बड़ी दीवानी ।
--------- डॉ. मनीष कुमार मिश्रा ।
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