Tuesday 25 December 2018

5. बदख्याल सी वह जिंदगी ।


वह ज़िन्दगी क्या थी
बस कि
शिकायतों की 
एक लंबी सी उम्र थी
जिसके नसीब में
घुप्प अँधेरे में घिरा
एक मुसलसल रास्ता था
जहाँ से
उसकी सदा को
आवाज़ दी
कई-कई बार
लेकिन
मेरी तैरती आवाज़
रंज और जुनून के
किसी जुलूस में शामिल हो
न जाने कहाँ
खो जाती ।
अपने ही
ख़ून में डूबी हुई
आख़िर वह जिंदगी
किसी नरक की तरह
गुलज़ार रही
वह भी
बड़े ही
घिनौने ढंग से
रंजिशों की हिरासत में
कुछ था जो
टूटता रहा
उस बदख़्याल सी
ज़िन्दगी को
कौन समझाये कि
उम्र भर तो
हवस भी कहाँ साथ रहती है ?
नहीं समझा पाया
और नतीज़तन
ढोता रहा
बदख़्याल सी
वह जिंदगी ।
--- डॉ. मनीष कुमार मिश्रा ।

No comments:

Post a Comment

Share Your Views on this..