Tuesday 10 April 2018

अनजान अपराधों की पीड़ा ।

लीचड़ और लद्धड़
प्यार के बारे में
पीछे की कोई बात
पीड़ा,भरम और मोह
और उदासियों से गुँथे हुए
निपट - निचाट
अंदेशाओं / आशंकाओं से
धूसर
उस पृष्ठभूमि को
उघाड़कर
अगर सामने रख भी दूँ
तो क्या
किसी पुरानी पहचान
के संबंधों की
घुन लगी
तृण और तिनकों की
यह जुगाली
रोशनी का कोई फ़व्वारा
दिखा सकेगी
उसे जो
नाउम्मीदी की झुर्रियों से लदा
किसी भरम के कोटर में
अनजान अपराधों की पीड़ा को
पूरे अनुशासन में
जी रहा है
एक दुर्लभ हँसी के साथ ।

जिसकी कैद में
घिस-घिसकर
प्यार भरी गर्मी
तरसती है
किसी खुली हवा के लिए ।

उसकी
अदम्य लालसा
तितलियों और बुलबुलों से
गलबहियाँ भूल चुकी हैं
और तफ़सील में
पता चला है कि
सार्थक/ रचनात्मक
खेत की उस मिट्टी ने
उमस और गर्मी के बावजूद
किसी बादल की
प्रतीक्षा से
इंकार कर दिया है ।

अतः
अब इस ज़मीन में
बीज बोने का प्रस्ताव
तर्क से परे है ।

        --------- मनीष कुमार मिश्रा ।

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