मुझे आदत थी
तुम्हें रोकने की
टोकने की
बताने और
समझाने की ।
मुझे आदत थी
तुम्हें डाँटने की
सताने की
रुलाने और
मनाने की ।
मुझे आदत थी
तुम्हें कहने की
बिगड़ने की
तुम्हारा हूँ
यह जताने की ।
लेकिन
यह सब करते हुए
भूल गया कि
तुम
इनसब के बदले
नाराज़ भी हो सकती हो
वो भी इतना कि
छोड़ ही दो
मुझे
मेरी आदतों के साथ
हमेशा के लिए ।
अब
जब नहीं हो तुम
तो इन आदतों को
बदल देना चाहता हूँ
ताकि
शामिल हो सकूँ
तुम्हारे साथ
हर जगह
तुम्हारी आदत बनकर ।
------ मनीष कुमार मिश्रा ।
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