Tuesday, 10 April 2018

दो आँखों में अटकी

निश्छल आदतों
और मामूलीपन के साथ
एक सरल पंक्ति
कि तरह
कितना कठिन हूँ ?

विपदाओं में बंद
प्रियजनों में किटकिटाता
ज़रूरी वेदना के
ताब के साथ
आश्वस्त हूँ
अपने शेष अभिनय पर ।

स्मृतियों की
नदी के तल में
फ़िर भी दबा रखें हैं
कुछ रहस्य
जिनमें दबे हैं -
बचकाने प्रेम के चुंबन
किसी कोमल देह की गंध
दो आँखों में अटकी
अथाह रात
और
धीमी आंच पर
पकती हुई
प्रेम की अमरता ।

यकीन मानों
मरे पास
और कुछ भी नहीं
मेरे कुछ होने की
अब तक कि
पूरी प्रक्रिया में ।

        -------- मनीष कुमार मिश्रा ।

No comments:

Post a Comment

Share Your Views on this..

तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः मा गृधः कस्यस्विद्धनम्॥

ChatGPT said: "तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः मा गृधः कस्यस्विद्धनम्॥" —  ईशावास्योपनिषद् , मन्त्र 1 का अंतिम खण्ड मूल श्लोक: Copy code ईश...