तुम्हारी बातों के निवाले
पेट नहीं, मन भरते हैं ।
इन्हें मन भर के खाता हूँ
उदासियों की भूख में ।
और सो जाता हूँ
तुम्हारी यादों की चादर तान ।
सुबह के कलेवे में भी
स्मृति शेष ,
तुम्हारे ही सपने होते हैं ।
फ़िर तुम्हारी बातों में
शामिल भी तो रहता है -
गाढ़ी सी शिकायत
थोड़ा तीखा मनुहार
मुस्कान के हलके फुलके
दानेदार मस्ती में पकी शरारतें
और प्यार का नमक,
स्वादानुसार ।
और अंत में
कुछ मीठे के लिए ,
छोड़ जाती हो
अपने एहसास का एक कतरा,
मेरी आँखों की कोर में ।
------------------------ मनीष कुमार मिश्रा
पेट नहीं, मन भरते हैं ।
इन्हें मन भर के खाता हूँ
उदासियों की भूख में ।
और सो जाता हूँ
तुम्हारी यादों की चादर तान ।
सुबह के कलेवे में भी
स्मृति शेष ,
तुम्हारे ही सपने होते हैं ।
फ़िर तुम्हारी बातों में
शामिल भी तो रहता है -
गाढ़ी सी शिकायत
थोड़ा तीखा मनुहार
मुस्कान के हलके फुलके
दानेदार मस्ती में पकी शरारतें
और प्यार का नमक,
स्वादानुसार ।
और अंत में
कुछ मीठे के लिए ,
छोड़ जाती हो
अपने एहसास का एक कतरा,
मेरी आँखों की कोर में ।
------------------------ मनीष कुमार मिश्रा
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