Monday, 11 November 2013

तुम्हारी बातों के निवाले

तुम्हारी बातों के निवाले 

पेट नहीं, मन भरते हैं । 

इन्हें मन भर के खाता हूँ 

उदासियों की भूख में । 

और सो जाता हूँ 

तुम्हारी यादों की चादर तान । 

सुबह के कलेवे में भी 

 स्मृति शेष ,

 तुम्हारे ही सपने होते हैं । 

फ़िर तुम्हारी बातों में 

 शामिल भी तो रहता है -

गाढ़ी सी शिकायत 

थोड़ा तीखा मनुहार 

मुस्कान के हलके फुलके

दानेदार मस्ती में पकी शरारतें 

और प्यार का नमक, 

स्वादानुसार  । 

और अंत में 

कुछ मीठे के लिए ,

छोड़ जाती हो 

अपने एहसास का एक कतरा,

मेरी आँखों की कोर में । 

                                 ------------------------ मनीष कुमार मिश्रा 



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