Thursday, 19 July 2012

ना जाने उन्हें मोहब्बत का ही ख्याल क्यूँ आया!!


बर्बाद करने के और भी रास्ते थे 'फराज', 
ना जाने उन्हें मोहब्बत का ही ख्याल क्यूँ आया!!

बीत गये युग फिर भी जैसे कल ही तुमको देखा हो,
दिल में औ' आंखों में तुम्हारी खुशनज़री क्यों बाकी है !!

बस तेरी याद ही काफी है मुझे,
और कुछ दिल को गवारा भी नहीं !!

यह सोच के उसकी हर बात को सच माना है "फराज़",
कि इतने खूबसूरत लब भला झूठ कैसे बोलेंगे!!

हिज्र की शब का सहारा भी नहीं
अब फलक पर कोई तारा भी नहीं

बस तेरी याद ही काफी है मुझे
और कुछ दिल को गवारा भी नहीं

जिसको देखूँ तो मैं देखा ही करूँ
ऐसा अब कोई नजारा भी नहीं

डूबने वाला अजब था कि मुझे
डूबते वक्त पुकारा भी नहीं

कश्ती ए इश्क वहाँ है मेरी
दूर तक कोई किनारा भी नहीं

दो घड़ी उसने मेरे पास आकर
बारे गम सर से उतारा भी नहीं

कुछ तो है बात कि उसने साबिर
आज जुल्फों को सँवारा भी नहीं।- साबिर इंदोरी

No comments:

Post a Comment

Share Your Views on this..