Thursday, 11 April 2019

13. पागलपन ।

उस पागलपन के आगे 
सारी समझदारी 
कितनी खोखली 
अर्थहीन 
और निष्प्राण लगती है 
वह पागलपन
जो तुम्हारी 
मुस्कान से शुरू हो
खिलखिलाहट तक पहुँचती 
फ़िर
तुम्हारी आँखों में
इंद्रधनुष से रंग भरकर 
तुम्हारी शरारतों को 
शोख़ व चंचल बनाती ।
वह पागलपन 
जो मुझे रंग लेता 
तुम्हारे ही रंग में 
और ले जाता वहाँ 
जहाँ ज़िन्दगी 
रिश्तों की मीठी संवेदनाओं में
पगी और पली है ।
तुम्हारे बाद 
इस समझदार दुनियाँ के 
बोझ को झेलते हुए
लगातार 
उसी पागलपन की 
तलाश में हूँ ।
            ---------- मनीष कुमार मिश्रा ।

12. सपनों पर नींद के सांकल।

विरोध के 
अनेक मुद्दों के बावजूद
आवाजों के अभाव में
तालू से चिपके शब्द 
तमाम क्रूरताओं के बीच 
क़स्बे की संकरी गलियों में 
सहमे, सिहरे 
भटक रहे हैं । 

अकुलाहट का 
अनसुना संगीत 
घुप्प अँधेरी रात में 
विज्ञापनों की तरह
हवा में बिखर गया है
किसी की
आख़िरी हिचकी भी 
आकाश की उस नीली गहराई में 
न जाने कहाँ 
खो गई ।

तुम्हारे सपनों पर 
नींद के सांकल थे 
परिणाम स्वरूप 
उम्मीदें टूट चुकीं 
तितली, चिड़िया और गौरैया
सब 
अपराध में लिप्त पाये गये हैं 
नई व्यवस्था में
सारी व्याख्याएँ 
दमन की बत्तीसी के बीच
चबा-चबा कर 
शासकों के 
अनुकूल बन रही हैं ।

       ---- डॉ मनीष कुमार ।

16. अपनी अनुपस्थिति से

अपनी अनुपस्थिति से 
उपस्थित रहा 
तुम्हारे ज़श्न में 
और तुम्हें
लज्जित होने से 
बचा पाया ।

अपने मौन से 
भेज पाया
अपनी  शुभकामनाएं 
तुम्हारे लिए
प्रेम के कुछ अक्षत 
तुम्हारी ज़िद्द को 
बिना तोड़े ।

इसतरह 
मिलता रहता हूँ 
बिना मिले 
कई सालों से 
और 
निभाता हूँ 
कभी तुमसे 
किया हुआ वादा ।

.................................... Dr Manishkumar C. Mishra 

19.प्रज्ञा अनुप्राणित प्रत्यय

किसी प्रज्ञावान व्यक्ति का 
शब्दबद्ध वर्णन 
उसके सद्गुणों की 
यांत्रिक व्याख्या मात्र है 
या फ़िर
शब्दाडंबर ।

जबकि 
उसकी वैचारिक प्रखरता
उसके लंबे
अध्यवसाय की 
अंदरुनी खोह में 
एक आंतरिक तत्व रूप में
कर्म वृत्तियों को
पोषित व प्रोत्साहित करती हैं ।

उच्च अध्ययन कर्म 
एक ज्ञानात्मक उद्यम है 
जो कि
प्रज्ञा की साझेदारी में 
पोसती हैं
एक आभ्यंतर तत्व को 
जो कि 
अपने संबंध रूप में 
ईश्वर का प्रत्यय है ।

लेकिन ध्यान रहे 
घातक संलक्षणों से ग्रस्त 
छिद्रान्वेषी मनोवृत्ति
आधिपत्यवादी 
मानदंडों की मरम्मत में 
प्रश्न से प्रगाढ़ होते रिश्तों की 
जड़ ही काट देते हैं 
और इसतरह 
अपने सिद्धांतों के लिए 
पर्याय बनने /गढ़ने वाले लोग 
अपनी तथाकथित जड़ों में
जड़ होते -होते 
जड़ों से कट जाते हैं ।

                -- डॉ मनीष कुमार मिश्रा ।

20. नैतिक इतिहास ।

समुच्चय में निबद्ध 
श्रेष्ठता के
आदर्शों का बोझ 
नैमित्तिक स्तर पर
हमारे
नैतिक इतिहास को
अनुप्राणित करते हुए
बदलता है
शक्ति के 
उत्पाद रूप में ।

सत्ता प्रयोजन से
संकुचित
परिवर्तन का लहज़ा 
किसी विसम्यकारी 
तकनीक से
हमारे सत्ता व ज्ञान सिद्धांत 
हमेशा लोगों को
संरचनात्मक स्तर पर
एक लहर में
निगल जाती है
और हम 
अपनी संकल्पनाओं से दूर 
प्रस्थान करते हैं 
जड़ताओं में
जड़ होते हैं ।
                 ................ Dr Manishkumar C. Mishra 

ताशकंद के इन फूलों में

  ताशकंद के इन फूलों में केवल मौसम का परिवर्तन नहीं, बल्कि मानव जीवन का दर्शन छिपा है। फूल यहाँ प्रेम, आशा, स्मृति, परिवर्तन और क्षणभंगुरता ...