IIAS SHIMLA ASSOCIATES - September 2012
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Dr. Bijay Kumar Barnwal | China-Myanmar Relations: The Road Ahead |
Dr. Leena Chauhan | Tarkon Se Pare Kuch Ansuljhe Rahasye. |
Dr. Harinder Kaur | Woes and Worries of the Tribal Women in Punjab. |
Dr. Kaustav Chakraborty | Dirty Issues: Reconsidering the ‘Impure’ in two Bengali Texts. |
Dr. Chandrabhan Singh Yadav | Hindi Cinema Mein Stri Sasktikaran. |
Dr. Madan Lal Mankotia | Inventorization of Medicinal Plants in different Agro-Ecological Zone of Himachal Pradesh. |
Dr. Pushpesh Kumar Pande | Van Raji: A Tribe in Transition. |
Shri Pankaj Roy | “Translating Violence”: A Study Performance in Indian Drama and of Selected Plays of Vijay Tendulkar. |
Dr. Devender Kumar | Classification and Functions: Contextualizing Hariani Peasant Women’s Folksongs within Folkloristics. |
Dr. Manish Kumar C. Mishra | Bharat mein Kisore Ladkio ki Taskari. |
Dr. Hamda Zarin | Effective Communication Skills in Counselling. |
Dr. Prabhat Mittal | Gold Price Movements: Common Wisdom and Myths. |
Dr. Amal Kumar Harh | Towards a Buddhist Social Philosophy: New Situations and Response. |
Dr. Chaman Lal Sharma | Garhwali Lokoktiyon evam Muhavaron ka Samajik Sanskritik Anushilan. |
Dr. Nazish Bano | Psycho-Social Enviornmental Influence: A Function of Perceptual Differences. |
Dr. Ravendra Kumar Sahu | Vaisvikaran ke Paripaikshay mein Loksanskriti ka Punarpath. |
Dr. Ramanath Pandey | Cognitive Science and Indian Philosophy: Concept of Brain and Mind. |
Dr. Gitika De | Themes in the Political Sociology of Early Post-colonial India: An Appraisal of the Works of F.G. Bailey. |
Dr. Uttara Yadav | Bhagwan Buddh Ka Arya Aastagik Marg Evam Vipassana. |
Dr. Suryakant Nath | Is Small Beautiful? States Reorganisation: Prospects and Challenges. |
Dr. Rakesh Kumar | Challenges to Sustainable Development with Special Reference to India. |
Dr. D. Balaganapathi | History of Indian Philosophy: Analysis of Contemporary Understanding of Classical Through Colonial. |
Dr. Nitin Vadgama | Hindi Aur Gujarati Gazal: Tulnatamak Drishtibindoo. |
Friday, 12 April 2013
September 2012 IIAS SHIMLA ASSOCIATES
Thursday, 11 April 2013
राहत इन्दौरी की एक रचना
:
किसका नारा, कैसा कौल, अल्लाह बोल
अभी बदलता है माहौल, अल्लाह बोल
कैसे साथी, कैसे यार, सब मक्कार
सबकी नीयत डाँवाडोल, अल्लाह बोल
जैसा गाहक, वैसा माल, देकर ताल
कागज़ में अंगारे तोल, अल्लाह बोल
हर पत्थर के सामने रख दे आइना
नोच ले हर चेहरे का खोल, अल्लाह बोल
दलालों से नाता तोड़, सबको छोड़
भेज कमीनों पर लाहौल, अल्लाह बोल
इन्सानों से इन्सानों तक एक सदा
क्या तातारी, क्या मंगोल, अल्लाह
बोल
शाख-ए-सहर पे महके फूल अज़ानों के
फेंक रजाई, आँखें खोल, अल्लाह
बोल
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राहत इन्दौरी की एक रचना
मेरी बन्दगी वो है बन्दगी जो/ शकील बँदायूनी
मेरी ज़िन्दगी पे न मुस्करा मुझे ज़िन्दगी का अलम नहीं
जिसे तेरे ग़म से हो वास्ता वो ख़िज़ाँ बहार से कम नहीं
मेरा कुफ़्र हासिल-ए-ज़ूद है मेरा ज़ूद हासिल-ए-कुफ़्र है
मेरी बन्दगी वो है बन्दगी जो रहीन-ए-दैर-ओ-हरम नहीं
मुझे रास आये ख़ुदा करे यही इश्तिबाह की साअतें
उन्हें ऐतबार-ए-वफ़ा तो है मुझे ऐतबार-ए-सितम नहीं
वही कारवाँ वही रास्ते वही ज़िन्दगी वही मरहले
मगर अपने-अपने मुक़ाम पर कभी तुम नहीं कभी हम नहीं
न वो शान-ए-जब्र-ए-शबाब है न वो रंग-ए-क़हर-ए-इताब है
दिल-ए-बेक़रार पे इन दिनों है सितम यही कि सितम नहीं
न फ़ना मेरी न बक़ा मेरी मुझे ऐ 'शकील' न ढूँढीये
मैं किसी का हुस्न-ए-ख़्याल हूँ मेरा कुछ वुजूद-ओ-अदम नहीं
उन्हें अपने दिल की ख़बरें मेरे दिल से मिल रही हैं/ शकील बँदायूनी
ग़म-ए-आशिक़ी
से कह दो राह-ए-आम तक न पहुँचे
मुझे ख़ौफ़
है ये तोहमत मेरे नाम तक न पहुँचे
मैं नज़र
से पी रहा था तो ये दिल ने बद-दुआ दी
तेरा हाथ
ज़िन्दगी भर कभी जाम तक न पहुँचे
नई सुबह पर
नज़र है मगर आह ये भी डर है
ये सहर भी
रफ़्ता रफ़्ता कहीं शाम तक न पहुँचे
वो
नवा-ए-मुज़महिल क्या न हो जिस में दिल की धड़कन
वो
सदा-ए-अहले-दिल क्या जो अवाम तक न पहुँचे
उन्हें
अपने दिल की ख़बरें मेरे दिल से मिल रही हैं
मैं जो
उनसे रूठ जाऊँ तो पयाम तक न पहुँचे
ये
अदा-ए-बेनिआज़ी तुझे बेवफ़ा मुबारक
मगर ऐसी
बेरुख़ी क्याa के
सलाम तक न पहुँचे
जो
नक़ाब-ए-रुख़ उठा दी तो ये क़ैद भी लगा दी
उठे हर
निगाह लेकिन कोई बाम तक न पहुँचे
वही इक
ख़मोश नग़्मा है "शकील" जान-ए-हस्ती
जो ज़ुबाँ
तक न आये जो क़लाम तक न पहुँचे
Tuesday, 9 April 2013
अछूत कौन
एक बार वैशाली के बाहर जाते धम्म प्रचार के लिए जाते हुए गौतम बुद्ध ने देखा कि कुछ सैनिक तेजी से भागती हुयी एक लड़की का पीछा कर रहे हैं | वह डरी हुई लड़की एक कुएं के पास जाकर खड़ी हो गई| वह हांफ रही थी और प्यासी भी थी| बुद्ध ने उस बालिका को अपने पास बुलाया और कहा कि वह उनके लिए कुएं से पानी निकाले, स्वयं भी पिए और उन्हें भी पिलाये| इतनी देर में सैनिक भी वहां पहुँच गये| बुद्ध ने उन सैनिकों को हाथ के संकेत से रुकने को कहा| उनकी बात पर वह कन्या कुछ झेंपती हुई बोली ‘महाराज! मै एक अछूत कन्या हूँ| मेरे कुएं से पानी निकालने पर जल दूषित हो जायेगा|’ बुद्ध ने उस से फिर कहा ‘पुत्री, बहुत जोर की प्यास लगी है, पहले तुम पानी पिलाओ|’
इतने में वैशाली नरेश भी वहां आ पहुंचे| उन्हें बुद्ध को नमन किया और सोने के बर्तन में केवड़े और गुलाब का सुगन्धित पानी पानी पेश किया| बुद्ध ने उसे लेने से इंकार कर दिया| बुद्ध ने एक बार फिर बालिका से अपनी बात कही| इस बार बालिका ने साहस बटोरकर कुएं से पानी निकल कर स्वयं भी पिया और गौतम बुद्ध को भी पिलाया| पानी पीने के बाद बुद्ध ने बालिका से भय का कारण पूछा| कन्या ने बताया मुझे संयोग से राजा के दरबार में गाने का अवसर मिला था| राजा ने मेरा गीत सुन मुझे अपने गले की माला पुरस्कार में दी| लेकिन उन्हें किसी ने बताया कि मै अछूत कन्या हूँ| यह जानते ही उन्होंने अपने सिपाहियों को मुझे कैद खाने में डाल देने का आदेश दिया | मै किसी तरह उनसे बचकर यहाँ तक पहुंची थी | इस पर बुद्ध ने कहा, सुनो राजन! यह कन्या अछूत नहीं है, आप अछूत हैं| जिस बालिका के मधुर कंठ से निकले गीत का आपने आनंद उठाया, उसे पुरस्कार दिया, वह अछूत हो ही नहीं सकती| गौतम बुद्ध के सामने वह राजा लज्जित ही होसकते थे|
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