Monday, 26 April 2010

तुम तो बिना मोहब्बत मिलने की बात कहते हो /

मैखाने से बिना पिए निकलने की बात कहते हो ;
मंदिर में बिन भावों के जाने की बात कहते हो ;
उफनती नदी में तिनके का सहारा छोड़ भी दूँ ;
तुम तो बिना मोहब्बत मिलने की बात कहते हो /
  

Sunday, 25 April 2010

अमरकांत क़ी कहानी कलाप्रेमी

  अमरकांत क़ी कहानी कलाप्रेमी :-
      कलाप्रेमी  कहानी सुमेर और सुबोध नाम दो व्यक्तियों के आपसी संवाद के आस-पास घूमती है। दोनों ही कलाकार हैं। सुमेर कुछ अधिक यथार्थवादी है। वह अवसर का लाभ उठाने में विश्वास रखता है। जब कि सुबोध अवसर विहीन स्थितियों में - गुस्से से भरा हुआ था। लोगों के व्यवहार का दोहरापन उसे सालता था। सुमेर जब उससे मिलने उसके घर आता है तो वह बड़े नाटकीय ढंग़ से अपने मन की सारी बात बता देता है। सुमेर को उसकी बातें अच्छी नहीं लगती। वह यह सोचता है कि जब सारी दुनियाँ अवसरवादी बनी हुई है तो आदर्शो की बातें करनेवाला एक कमजोर व्यक्ति ही माना जायेगा।
      मेरे मिसेज रंजन की मदद से प्रादेशिक कला संघ का सदस्य बन गया था। वह पहली मीटिंग में भाग लेने आया था। पूरी प्रक्रिया उबाऊ और हंगामे भरी थी। जो प्रस्ताव पास होनेवाले थे वे पास ना हो सके। मीटिंग में आकर सुमेर ने कुछ नए दोस्त बनाये। कई लोगों से उसे लुभावने आस्वाश्न दिये। इन सभी के बीच वह वापस ट्रेन पकड़कर घर की तरफ लौट पड़ा। उसे यह समझ आ गया था कि वह दुनियाँ के साथ चल रहा हैं।
 
 

अमरकांत क़ी कहानी -मौत का नगर

अमरकांत क़ी कहानी -मौत का नगर :-
      'मौत का नगर` सांप्रदायिक दंगों में जलते हुए एक शहर की कहानी है। राम इसी शहर में रहता है। कर्फ्यू की वजह से वह कई दिनों से घर में ही था। बाहर हालात भी इस तर के नहीं थे कि कोई अपने घर से निकलने की हिम्मत करे। लेकिन बिना कुछ कमाये घर नहीं चलाया जा सकता था। जान का डर तो था पर अपनों को भूखा भी तो नहीं रखा जा सकता था। इत: राम जिस दुकान पर काम करता था वहाँ जाने के लिए घर से बाहर निकलता है।
      पूरे शहर का माहौल उसे बदला-बदला नजर आ रहा था। सड़कंे सुनसान थी। कुछ लोगों को साथ लेकर वह अपनी दुकान की तरफ बढ़ता जा रहा था। हर आदमी एक दूसरे को आशंका भरी दृष्टि से देख रहा था। राम की हालत तब और खराब हो जाती है जब वह यह देखता है कि वह जिस रिक्शे में बैठा है उसमें पहले से ही एक व्यक्ति है और वह एक मुसलमान है। राम डर जाता है, पर वह यह देखकर संतुष्ट होता है कि दूसरा व्यक्ति भी डरा हुआ है।
      राम किसी तरह अपनी तँय जगह पहुँच जाता है। पर यह सोचकर उसे वापस डर लगने लगता है कि उसे शाम को वापस भी लौटना।
    

अमरकांत की संपूर्ण कहानियाँ - खण्ड 2

अमरकांत की संपूर्ण कहानियाँ - खण्ड 2
      अमरकांत की संपूर्ण कहानियाँ - खण्ड 2 में '1960 का दशक`, '1980 का दशक` और '1990 का दशक` के शीर्षक से तीन दशकों में लिखी कुल 43 कहानियाँ संग्रहित की गयी हैं। इस खण्ड के शुरूआत में 'आप क्यों लिखते हैं?` नाम से अमरकांत का एक लेख भी है। इस लेख के माध्यम से वे इस प्रश्न का खुद से जवाब माँगने से नजर आते हैं कि आखिर वे लिखते क्यों है? इस प्रश्न के उत्तर में तरह-तरह के विार उनके मन में आते हैं। अंत में आखिर वे इसी नतीजे पर पहुँचते है कि, ''समय परिवर्तनशील है। वह अपने अंदर अनेक विरोधाभासों, अंतर्द्वंद्वों, संघर्षो और संभावनाओं को लिए आगे बढ़ रहा है। जो रचनाकार इस समय की प्रगतिशील सच्चाइयों को पहचानता है, वही उसे शब्दों में उतार सकता है, जिससे उसकी कृतियाँ उस समय की पहचान बन जाती है। यह काम बहुत कठिन है, शायद उतना ही कठिन, जितना तलवार की धार पर चलता।``9
      अमरकांत इस तलवार की धार पर चलने का साहस रखते हैंै। यह उनकी कहानियों से स्पष्ट है। 1960 से 1990 तक के समय में उनके द्वारा लिखी गई कुछ कहानियों का हम यहाँ परिचय प्राप्त करेंगे।
 

Saturday, 24 April 2010

संतप्त मन अपने विकार से /

संतप्त मन अपने विकार से ,
आस क्यूँ रखा प्यार से ;
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संतप्त मन अपने विकार से ,
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विप्लव अभिलाषाएं लाती है ,
लालायित इच्छाएं तड़पाती हैं ;
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प्यार इक विशाल वृछ है ,
कामनाएं कांटे सदृश हैं ;
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प्यार सुख देने का नाम है ;
प्यार एक दैविक ध्यान है ;
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त्याग स्नेह इसकी परिभाषा ,
होती नहीं इसमे कोई आशा ;
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संतप्त मन अपने विकार से ,
गम है मिलता अहंकार से /

संतप्त मन अपने विकार से /

अमरकांत क़ी कहानी -मछुआ

 अमरकांत क़ी कहानी -मछुआ :-
      'मछुआ` कहानी अतिलेश नामक  पात्र के आस-पास घूमती है। वह एक सरकारी दफ्तर में काम करता था और अपनी पत्नी को हमेशा गाँव में रखता था। उसके जीवन का दर्शन यह था कि इस संसार रूपी भवसागर में स्त्री मछली के समान है और वह मछुआ है। उसके पड़ोस में नीरजा नामक युवती रहती थी। अनिलेश उसके रूप सौंदर्य पर मोहित हो चुका था।
      नीरजा अपनी विधवा माँ के साथ रहती थी। नीरजा की माँ अनिलेश पर स्नेह रखती, उसे पुत्रवत प्यार करती। अनिलेश कुछ ही दिनों में उनके घर के सदस्य जैसा हो गया था। इस तरह उसे नीरजा के नजदीक जाने का अच्छा मौका मिल गया था। धीरे-धीरे नीरजा भी उसे चाहने लगी और उससे प्रेम की लालसा रखने लगी।
      पर अनिलेश को इस बात से बड़ी आत्मग्लानि होती है कि वह उसी परिवार पर बुरी दृष्टि रखता है जो उस पर इतना भरोसा करते हैं। अत: एक दिन वह नीरजा के पास जाकर उसे यह कहता है कि वह जो सोचती है वह गलत है। उसे अपनी माँ के दुख दूर करने हैं। उस पर गंभीर जिम्मेदारियां  हैं। अनिलेश की बातें सुनकर नीरजा स्तम्भित होकर क्रोध से अनिलेश के चले जाने के लिए कहती है।
      यहीं पर यह कहानी खत्म हो जाती है। अमरकांत अनिलेश के चरित्र के माध्यम से यहाँ अधिक आदर्शवादी दिखायी देते हैं। 'मूस` और 'हत्यारे` जैसी कहानियों में यथार्थ का जो सशक्त भाव बोध दिखायी पडता है वह यहाँ नजर नहीं आता।  
 
   

अमरकांत क़ी कहानी देश के लोग और जोकर

अमरकांत क़ी कहानी देश के लोग और जोकर   :-
      'देश के लोग` कहानी अखिल नामक युवक के विचारों के आस-पास घूमती है। रात को रिक्शे पर से घर की तरफ आते समय उसके बगल में जो व्यक्ति बैठा है उसे आखिल हीन भाव से देखता है। वह सहयात्री के सीधे मुँह बात तक नहीं करता। अपने ही खयालों में डूबा रहात है। उसे बार-बार मोहन से हुई वार्तालाप याद आ रही थी। उसे यह बात बहुत संतोष प्रदान कर रही थी कि उसने यह बात मोहन से मनवा ही ली थी कि इस देश के लोग कातिल और कामचोर है। इसी कारण इस देश में न कोई अच्छा कलाकार है, न कोई अच्छा वैज्ञानिक है, न अच्छी शासन व्यवस्था है और न ही अच्छे नागरिक हैं।
      वह यह सब सोच रहा था कि चौराहा आ गया। उसने पैसे दिये और कुछ आगे बढ़ा ही था कि उसका सहयात्री सड़क पर गिर पडा। लोगों की भीड़ उसके आस-पास जमा हो गई। वह खून की कै कर रहा था। इसी बीच वह बेहोश होकर एक तरह लुढ़क गया।
      अखिल यह सब देखकर पलभर पश्चाताप करने लगा। फिर सोचा कि अगर वह उस सहयात्री से अच्छे से बात कर भी लेता तो इसके उसके (सहयात्री के) स्वास्थ पर क्या फरक पड़ता? मौत सबकी होती है? इसमें खास क्या है? सबकी अपनी-अपनी किस्मत है।
      वह पुन: अपने विचारों में खोता हुआ वहाँ से चला जाता है।
11) जोकर :-
      जोकर कहानी नलिन नामक व्यक्ति की मानसिक दशाओं का चित्रण मात्र है। जिनके आधार पर नलिन के बारे में कोई निश्चित राय कायम नहीं की जा सकती। शायद इसीलिए अमरकांत ने इस कहानी का शीर्षक 'जोकर` रखा।
      नलिन भाई पहले तो शादी के विरोधी थे, पर अचानक उनके मित्रों को पता चलता है कि उन्होंने शादी कर ली। शादी के बाद उनके बात-व्यवहार में मित्रों ने बड़ा परिवर्तन महसूस किया। पहली पत्नी के बिमारी और फिर उसकी मृत्यु के बाद उनका व्यवहार पुन: बदल गया। दुबारा शादी न करने की बात वे हर किसी से मिलने पर स्वत: करते थे। लेकिन वे दूसरी शादी कर लेते हैं। अब अधिक गंभीर रहने लगे थे नलिन भाई।
      एक दिन वे लेखक के घर आते हैं और उनकी पत्नी तथा सुंदर साली को देखकर लेखक को बहुत भाग्यशाली कहते हैं। परंतु दूसरे दिन से लेखक से बात ही करना छोड देते है। लेखक उनके व्यवहार को समझ नहीं पाते है। पर नलिन भाई ऐसे ही विचित्र जीव थे। उनका व्यवहार किस बात पर बदल जायेगा यह कोई बता नहीं पाता।
     
 

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