Friday, 19 March 2010

तुझे याद नहीं मै करता ,

तुझे याद नहीं मै करता ,

तू रोज मुझे सपनों में दिखता ;

तुझे याद नहीं मै करता ;

दिन भर उलझा रहता हूँ कामों में ,

थम जाता हूँ राहों में ,

पत्नी बच्चों की आकान्छाओं को ,

पूरा करना है अपनो की आशाओं को ;

सो जाता हूँ इसी उधेड़बुन में ,

और तू आ जाता है ख्वाबों में ;

तुझे याद नहीं मै करता ,

तू रोज मुझे सपनों में मिलता;

वक़्त मिले तो परिवार की उलझन ,

कभी बीमारी कभी पैसों का क्रंदन ;

बहुधा तेरी विधी से चलता हूँ ,

पर याद नहीं तुझे करता हूँ ;

अनजान पलों में नाम तेरा मुंह पे आता है ,

एक पल को हाथ तेरी छाया छू जाता है ;

पर याद नहीं तुझको करता हूँ ;

दिल पे मै पत्थर रखता हूँ ;

तुझे याद नहीं मै करता ,

तू सपनों में मुझपे हँसता ;

तुझे याद नहीं मै करता ,

तू मेरे हर सपनों में रहता ,

तुझे याद नहीं मै करता /

Thursday, 18 March 2010

गर्दिशों का दौर कुछ इस कदर आता है ,

तक़दीर जब बिगड़ जाती है ,
तकलीफें हर रोज नया रास्ता तलाश आती हैं ;
दुविधाएं हर ओर बिखर जाती है ,
इल्जामों की बहार छा जाती है ;
जो कायल थे तेरी मासूमियत के ,
उन्हें भी बातों में सियासत नजर आती है ;
तक़दीर जब बिगड़ जाती है ,
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गर्दिशों का दौर कुछ इस कदर आता है ,
अपनो को भी तेरे रिश्तों में चोर नजर आता है ;
लोगों के अंदेशों की सीमा नहीं बचती है ,
कितनो को तेरी अच्छाई भी बुराई सी दिखती है /
तक़दीर जब बिगड़ जाती है /
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बिगड़ा नसीब भी बड़ा गुल खिलाता है ,
दर्द हर मोड़ पे मिल जाता है ;
जब भी कोई जिंदगी में गिरता नजर आता है ;
शक का कीड़ा कईयों को काट जाता है ,
भाग्य जब रूठे तो आछेपो की बन आती है ;
अपनो को भी तेरी नीयत में खोट नजर आती है ;
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तक़दीर जब बिगड़ जाती है ,
तकलीफें हर रोज नया रास्ता तलाश आती हैं ;

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वक़्त काट ये वक़्त भी गुजर जायेगा ,
तेरी सच्चाई का चांटा कितनो के चेहरे पे नजर आएगा ;
जिनके दिल में कालिख उनके बातों की परवा क्यूँ हो ,

अपने का नकाब पहने दुश्मन की खुदाई क्यूँ हो ;
तुझपे उछाले कीचड़ का दाग उनपे नजर आएगा ;

वक़्त काट ये वक़्त भी गुजर जायेगा /

तेरी कमियों की खोज सबब हो जिसका ,
तुझे गिराना ही सारा चरित्र हो जिनका ;
उनका व्यवहार भी सबको समझ आएगा ,
वक़्त काट ये वक़्त भी गुजर जायेगा ,;

मनुष्य का भाग्य जब बदल जाता है ,
मुंशिफ बन जाये राजा ज्ञानी धूल खाता है;
वर्षों की मेहनत पल में खाक बन जाती है ;
राह चलते को मिटटी में दौलत नजर आ जाती है ;
वक़्त काट ये वक़्त भी गुजर जायेगा ,
तेरी सच्चाई का चांटा कितनो के चेहरे पे नजर आएगा /
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बोध कथा-६: भौतिकता

बोध कथा-६: भौतिकता 
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                                         कविता अभी ४ साल क़ी ही है. लोगों को यह लगता है क़ि वह बड़ी खुशनसीब है. उसके पिताजी किसी बड़ी विदेशी कंपनी में मैनेजर हैं. माँ भी कॉलेज में अध्यापिका हैं. घर में पैसे क़ी कोई कमी नहीं है. फिर कविता अपने माँ-बाप क़ी इकलौती संतान है.वह जो चाहती है,वह वस्तु उसे तुरंत दिला दी जाती. उसकी देख -रेख  करने के लिए घर में आया भी थी. माँ-पिताजी दोनों घर से बाहर रहते.ऐसे में अकेले ही कविता बोर हो जाती. उसे घर से बाहर भी जाने क़ी इजाजत नहीं थी.सिर्फ रविवार को माँ-पिताजी दोनों ही घर पे रहते.लेकिन उनका घर पर रहना भी ना रहने क़ी ही तरह था.वे दोनों अपने ऑफिस और महाविद्यालय क़ी ही बातों में उलझे रहते.कविता क़ी तरफ ध्यान देने का उन्हें मौका ही नहीं मिलता.
                                     ऐसे ही एक रविवार को जब दोनों लोग घर पे थे,कविता पहले दौड़ कर माँ के पास गई और बोली,''माँ ,आज तो छुट्टी है ना ? फिर मेरे साथ खेलो ना ." कविता क़ी बात सुनकर माँ बोली,'' अरे बेटा,बहुत काम है.मुझे बच्चों के पेपर चेक करने हैं.एक काम करो, तुम पापा के साथ जा कर खेलो .'' इसतरह माँ ने कविता को टाल दिया और वापस अपना काम करने लगी.
              माँ के पास से कविता पिताजी के पास आ गई. उसके पिताजी भी अपने   
 लैपटॉप  पर कुछ  जरूरी काम  कर रहे थे. कविता ने उनसे भी वही बात कही. इस पर उसके पिताजी मुस्कुराते हुए बोले,'' अगर मैं आप के साथ खेलूंगा  तो पैसे कौन  देगा ? आप जाओ ,मुझे जरूरी काम है. परेशान मत करो.''कविता चुप-चाप उलटे पाँव अपने कमरे में चली आयी. थोड़ी देर रोती रही .फिर अचानक उसका ध्यान अपने पैसों के गुल्लक पर गया. वह उस गुल्लक को लेकर अपने पिताजी के पास गई और बोली,''पापा, मेरे पास जितने पैसे हैं आप सब ले लो.पर मेरे साथ खेलो ना ,प्लीज़ .''
              मासूम कविता क़ी बातें सुनकर उसके पिता अवाक रह गए .उन्होंने कविता को अपनी गोंद में उठा लिया.और बोले,''बेटा ,मुझे माफ़ कर दो.इस पैसे और भौतिकता क़ी दौड़ में  अपने पिता होने क़ी जिम्मेदारी को भूल गया था.आज तुम ने मेरी आँखें खोल दी .''
                                                        इस तरह कविता के पिता को अपनी गलती समझ में आयी.कविता जैसे बच्चों के लिए ही शायद किसी ने कहा है कि--------- 
                                         '' सब के साथ है,मगर अनाथ है.
                              आज का बचपन बहुत बेहाल है .''        

( i do not hvae any copy right on the said above photos.)   

Wednesday, 17 March 2010

रहता है मेरे दिल में

रहता है मेरे दिल में,
मगर उसे मिलूं कैसे ;
खिले कमल की पंखुड़ियों को छुयूं कैसे ,
तेरे सपनों को आगोस में भर लूँ ,
तेरा झिझगता विश्वास है,
मै उसको छुयूं कैसे ;
तेरी उलझन सुलझा मै दूँ
तेरी दुविधाओं को मान भी लूँ ,
तेरा इकरार जिऊ कैसे ?

मुंबई क़ी महालक्ष्मी देवी

 नवरात्री के इस पावन अवसर पे मुंबई क़ी महालक्ष्मी देवी क़ी यह तस्वीर आप लोंगो के दर्शनार्थ यंहा ब्लॉग पर ड़ाल रहा हूँ.                                    
********* जय माता दी *********

 

बोध कथा-५ : विश्वाश

बोध कथा-५ : विश्वाश
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      आज शाम जब मीमांसा अपनी माँ के साथ घूमने निकली,तो रास्ते में चलते हुए छोटी मीमांसा बार-बार पीछे छूट जा रही थी. ५ साल क़ी मीमांसा के लिए यह मुमकिन नहीं  हो रहा था क़ि वह अपनी माँ के साथ कदम ताल कर सके. आज माँ भी कुछ अधिक ही जल्दी-जल्दी चल रही थी. दरअसल वे जिस अस्पताल में काम करती थी,वंहा उन्हें जल्दी पहुंचना था.अस्पताल से फ़ोन आया था. अस्पताल में किसी मरीज क़ी तबियत अचानक खराब हो गई थी .
          माँ बार-बार मीमांसा से जल्दी -जल्दी चलने के लिए कह रही थी. मीमांसा क़ी हर कोशिश ना काफी साबित हो रही थी. अंत में हार कर उसने माँ से कहा,''माँ,आप मेरा हाथ पकड़ लो, आगे नदी भी है.मुझे डर लगता है.'' माँ ने मीमांसा क़ी तरफ देखा और हस्ते हुए बोली,''बेटा,डर तुम्हे लगता है.तो फिर तुम ही मेरा हाँथ क्यों नहीं पकड़ लेती ?'' माँ क़ी बात सुनकर मीमांसा ने उनका हाँथ तो पकड़ लिया ,मगर वह मन में कुछ सोच रही थी.अचानक ही वह फिर बोली,''माँ ,जब मैं तुम्हारा हाँथ पकडती हूँ तो अपने डर के कारण पकडती हूँ.इसलिएआपका हाँथ पकड़ने के बावजूद , मेरे मन का डर बना रहता  है.लेकिन जब आप मेरा हाँथ पकड़ लेती हो तो मुझे विश्वाश हो जाता है क़ि अब मुझे कुछ नहीं होगा.मैं डर के साथ नहीं विश्वाश के साथ आगे तेजी से चल पाउंगी,इसलिए आप मेरा हाँथ पकड़ लीजिये .''
                                  अपनी छोटी सी बेटी के मुह से इतनी समझदारी भरी बातें सुनकर माँ का दिल भर आया.माँ ने मीमांसा को गोंद में उठा कर उसे कई बार चूमा.और उसे गोंद में लेकर आगे बढती रही . कितनी सच्चाई थी उस छोटी सी बच्ची क़ि बातों में.अनायास ही किसी क़ि ये पंक्तियाँ याद आ जाती हैं क़ि ----
                           '' विश्वाश जंहा पे कायम है, 
                              जीत वँही पे रहती है.
                              विश्वाश जंहा पे टूटा है, 
                              इंसान वही पे हारा है .''  

(i do not have any copy right on this photo.i have got the same as a mail.) 

Tuesday, 16 March 2010

बोध कथा-४ : मासूम सवाल

बोध कथा-४ : मासूम सवाल 
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                         रोहन आज सुबह से अपने पिताजी से जिद कर रहा था क़ि उसे आइसक्रीम खानी है. रोज-रोज क़ी जिद पिताजी को पसंद नहीं आई और गुस्से में उन्होंने एक झापड़ रोहन को लगा  दिया.पिताजी के इस व्यवहार से मासूम रोहन अंदर तक काँप गया.वह चुप-चाप रोता हुआ अपने कमरे में दाखिल हो गया.रोते-रोते उसे कब नीद आ गयी ,यह वह खुद भी ना समझ पाया.
                    इधर पिताजी को भी अपना व्यवहार कुछ अधिक ही कड़क लगा.रोहन अभी सिर्फ ५ साल का मासूम बच्चा है.मुझे उसे प्यार से समझाना चाहिए था.उस पर  हाँथ उठा कर मैंने अच्छा नहीं किया. इसी तरह के विचारों में खोये हुए रोहन के पिताजी भी अपनी आराम कुर्सी पर सो गए.अचानक जब आँख खुली तो देखा कि दिन ढल चुका था. रोहन भी सब भूल कर घर के सामने दुसरे बच्चों के साथ खेल रहा था. उसकी मासूम सूरत पर नजर पड़ी तो पिताजी को अपना वह झापड़ याद आ गया,जो आइसक्रीम क़ी जिद्द क़ी वजह से उन्होंने रोहन के गाल पर लगाया था.रोहन तो सब भूल गया था पर पिताजी का मन अंदर ही अंदर कचोट रहा था.
              वे उठकर अपने कमरे में गए और बटुवे में से २० रुपये निकाल कर ले आये.उन्होंने धीरे से रोहन को अपने पास बुलाया.उसे पैसे देते हुए बोले ,''जाओ आइसक्रीम खरीद लो .'' पिताजी क़ी बात सुनकर रोहन का चेहरा खिल गया.और पैसे ले कर वह दुकान क़ी तरफ दौड़ पड़ा.दुकान पर जा कर उसने दुकानदार को पैसे देते हुए कहा,'' अंकल,आइसक्रीम देना .'' दुकानदार ने पैसे ले कर आइसक्रीम दे दी. रोहन  आइसक्रीम लेते हुए बोला ,''कितना पैसा बचा ?'' उसकी बात पर दुकानदार बोला,''कुछ नहीं बचा .२० रुपए क़ी ही आइसक्रीम है. इससे कम वाली नहीं है .''
        दुकानदार क़ी बात सुनकर रोहन हतप्रभ सा खड़ा रहा.उसे समझ नहीं आ रहा था क़ी वह क्या करे.उसे इस तरह देख कर दुकानदार बोला,''क्या हुआ ? आइसक्रीम चाहिए क़ी नहीं ?'' इस प्रश्न से रोहन क़ी एकाग्रता भंग हुई.उसने कहा,''आइसक्रीम तो चाहिए ,लेकिन-------और--पैसे -------'' दुकानदार कुछ समझ नहीं पा रहा था. उसने झल्लाते हुए कहा,''वाह,नवाब साहब को आइसक्रीम भी चाहिए और पैसे भी.'' यह सुनकर रोहन बोला,'' अगर मैं पूरे पैसे क़ी आइसक्रीम ले लूँगा तो आप को टिप देने के लिए मेरे पास एक भी पैसे नहीं बचेंगे.मेरे पास इतने ही पैसे हैं.अगर आप थोड़ी सस्ती आइसक्रीम देते ,तो मै आप को टिप भी दे पाता .लेकिन------.''
      मासूम रोहन क़ी बातें सुनकर दुकान दार क़ी आँखें भर आयीं.और उसने आइसक्रीम रोहन क़ी तरफ बढ़ाते हुए कहा,''बेटा,तुम आइसक्रीम ले लो.मैं भूल गया था,यह १५ रूपए क़ी ही है.क्या मैं बाक़ी के ५ रुपए टिप रेख लूं ?'' रोहन क़ी खुशी का ठिकाना ना रहा. उसने हाँ में सर को हिलाया और आइसक्रीम को लेकर घर क़ी तरफ बेतहाशा दौड़ गया. दुकानदार के चेहरे पर हंसी और आँखों में आंसू थे.पास ही खड़े एक फ़कीर ने शांति के साथ यह सब देखा .अचानक ही उसके मुह से ये शब्द निकल पड़े------ 
                  ''  उसका अंदाज सबसे  जुदा होता है,
                    मासूम खयालों में खुदा होता है.'' 




(i do not have any copy right on this picture.i have got this as a e mail .)
                    
                     

राहत इंदौरी के 20 चुनिंदा शेर...

 राहत इंदौरी के 20 चुनिंदा शेर... 1.तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो 2.गुलाब, ख़्वाब, ...