Sunday, 7 February 2010

वेलेंटाइन डे का विरोध क्यों ?

वेलेंटाइन डे का विरोध क्यों ?

हमारे देश में कुछ मौसमी विरोध प्रदर्शन एक फैशन सा हो गया है. आप देखेंगे की अभी २-४ दिनों के अंदर ही कुछ स्वयम भू समाज के ठेकेदार वेलेंटाइन डे के विरोध का फरमान जरी कर देंगे. जैसे यह देश ,यंहा की संस्कृति अकेले उनके ही बाप की जागीर हो . धर्म और संस्कृति के नाम पे प्रेम का विरोध करनेवाले ये परम्परागत महानुभाव खुद कितने चरित्र भ्रष्ट और नालायक हैं ये पूरा देश जनता है.
 चंद भाड़े के गुंडे -मवालियों के माध्यम से ये अपनी राजनीति की रोटियाँ सेकने लगते हैं ,अख़बारों में छा जाते हैं. लेकिन मै इनसे जादा इस देश की सरकार को इस बात के लिए दोषी मानता हूँ की वह ऐसे लोंगो पर लगाम कसने की बजाय उन्हें और प्रशय देती है. सरकार की यह  हालत पिछले कई सालों से देख रहा हूँ. इस देश में आज-कल सच बोलना ही सबसे बड़ा अपराध है. मगर मै यह अपराध कर रहा हूँ. कल मेरे साथ कुछ भी हो सकता है. मुझपे हमला हो सकता है.मेरे साथ मार-पीट की जा सकती है.मुझे गधे पे बिठा,मेरा मुह काला कर मेरा जुलूस निकला जा सकता है.मगर मै चुप नहीं बैठ सकता.मरने से पहले हर पल एक मौत के  डर के साथ मैं नहीं जी  सकता.इस लिए आज यह पोस्ट लिखने बैठ गया .
 प्रेम के नाम पे अशलीलता को मैं भी पसंद नहीं करता,लेकिन ये सब एक दिन का रोना नहीं है. साल भर इंटरनेट,फिल्मो,अखबार इत्यादि जगह ये सब चलता ही रहता है ,तो फिर इस दिन ही कुछ लोंगो को अपने आस -पास अशलीलता क्यों नजर आती है ? शायद इस लिए की उनका मकसद कुछ अलग ही रहता है. ऐसे तथा कथित धर्म के अधर्मी ठेकेदारों से मेरा विनम्र अनुरोध है की अपने स्वार्थ और अपनी गन्दी राजनीति में इस वेलेंटाइन डे को बदनाम ना  करें .

आखिर यह प्रेम क्या है ?

जब नहीं हुआ था तब भी,
और जब हो गया तब भी
मैं नहीं समझ पाया की,
आखिर यह प्रेम क्या है ?

एक चाहत भर थी जो ,
आगे जूनून बन गयी.
 एक आदत जो कभी भी,
छूट नहीं सकती .

 एक ऐसा एहसास जो,
सारे सुख-दुःख से परे है.
 एक बीमारी जो कभी ,
 अच्छी होना ही ना चाहे .

 एक पैगाम जो ,
सीधे दिल को मिला ,
किसी और के दिल से ,
 कब,कँहा,कैसे कुछ याद नहीं .

एक ऐसा रिश्ता जो,
है तो अजनबी ही पर,
जाने हुए सारे रिश्तों से,
बहुत जादा अजीज .

इस वलेंटाइन डे

इस वेलेंटाइन डे पर --------------------------

 इस वेलेंटाइन डे पर
  फिर याद तुम्हारी आयी है.
भीगी बरसातों की ,
 सारी बातें फिर आयीं हैं .
 सोते-जागते सपनों की,
 सौगात ये फिर से लायी है .
वो  बात-बात पे तेरा लड़ना,
हर बात पे मेरा तुझे मानना ,
लगता जैसे फिर से आया ,
 गया हुआ वो साल पुराना .
 फोन पे घंटों बाते करना,
 फिर बात-बात में- MISS YOU कहना .
 वो सारा मौसम फिर आया है .
इस वलेंटाइन डे
 जो याद तुम्हारी आयी है .

 

Saturday, 6 February 2010

वेलेंटाइन डे

वेलेंटाइन डे 
 
अंधेरों  के नाम  रौशनी का पैगाम है वेलेंटाइन डे
सपनो के लिए उम्मीदों की सौगात है वेलेंटाइन डे 

सफ़र में किसी अकेले थके हुए  राही के लिए,
हमसफ़र की तरह बहुत खास है वेलेंटाइन डे .

किसी जलजले के बाद की ख़ामोशी के लिए,
फिर से जीवन का हंसी पैगाम है वेलेंटाइन डे .

मासूम बच्चों की किलकारी के लिए ,
किसी भी माँ का दुलार है वेलेंटाइन डे .

प्यार के लिए  तडपे किसी दिल के लिए ,  
सावन की फुहार सा  है वेलेंटाइन डे . 

बहन की  राखी के लिए तरसती हुई ,
कलाई के लिए सबसे खास है वेलेंटाइन डे .
  
किसी की जुल्फों तले सुंकुं पाने के लिए,
दिल की कहने का बहाना है वेलेंटाइन डे .

 आप ने जाने क्या सोचा -समझा है,
मेरे लिए इंसानियत का सबब है वेलेंटाइन डे . 
                                                       ----------------
{हमारे यंहा वेलेंटाइन डे का विरोध करना  एक फैशन हो गया है, जबकि सैंट वेलेंटाइन की याद में मनाया जाने वाला यह दिन हमे प्यार का सन्देश देता है. जिन्दगी के सभी रिश्तों में प्यार का रंग जरुरी है. }
    

इस वेलेंटाइन डे पर

इस वेलेंटाइन डे पर 
 मिलना तुम मुझसे  लेकिन,
किसी उपहार के साथ नहीं .
बल्कि खुद आना मेरे जीवन का उपहार बन के .
लाल गुलाबों का  गुलदस्ता नहीं,
अपनी ही बांहों का हार लेकर .
प्यार के शब्दों वाला कोई ग्रीटिंग कार्ड नहीं,
प्यार का नयनों में भाव भरकर .
इस वेलेंटाइन डे पर ,
मेरी सबसे खूबसूरत कल्पना का,
तुम यथार्थ बन कर आना .
खामोश हैं सालों से जो भाव,
उनके लिए कुछ गहरे ,सच्चे  शब्द भी लाना .
इस वेलेंटाइन डे पर ,
कुछ मीठा भी हो इसी लिए ,
दे देना  यदि चाहो तो -
अपने अधरों का चुम्बन .
जिसके बंधन में फिर जीवन ,
बंधा रहे जन्मों -जन्मों तक . 
इस वेलेंटाइन डे पर ,
आना जब भी तुम चाहो 
कहना जो भी तुम चाहो 
 लेना जो भी तुम चाहो 

 पर कह देना वो भी जो , अब तक नहीं कहा .
इस वेलेंटाइन डे पर ,
 आना ----------------------------.

Friday, 5 February 2010

खांसता बुडापा कांपता शरीर ,

खांसता बुडापा कांपता शरीर ,
इस जर्जर तन में उर्जा अंतहीन ,
लालशाओं में बहुधा जवानी कौंधती ,
अनायास ही माया रगों में रौन्धती ,
वर्षों का अनुभव उम्र को तकती ,
पोते की आवाज सहजता आती ,
बेटा उलझा बीबी के ताने बाने में ,
अपने ही अरमानो में ,
बहु सुशील पर उसे,
सिर्फ अपने बच्चे की जिम्मेदारी कबूल है ,
पत्नी खो चुका वर्षों पहले ,
वो चन्द अच्छे शब्दों औ आत्मीयता की मजबूर है ,
जीवन की ललक खो गयी ,
पोते के अंगुली पकड़ते ही हिम्मत बाजुओं में भर आई ,

कुछ तो आप भी समझ ही गए होंगे श्रीमान खान ---------------------

इस देश के एक स्वतंत्र नागरिक के रूप में,
मै उतना ही  स्वतंत्र हूँ
  जितना खूटे से बंधी गाय. 
एक निश्चित दायरे में,
एक आम आदमी के दायरे तक स्वतंत्र .
जैसे ही कोई आम
  किसी  खास के बारे में कुछ कहता है, 
वो खटकने लगता है ,व्यवस्था के ठेकेदारों को .
नेता,अफसर ,सरकार  और हर किसी खास को. 
 उसे तुरंत दबा दिया जाता है जो ,
 लोकतंत्र  को लोकतंत्र  समझने   की   भूल  करता  है. 

 लोक  तन्त्र  की  बपौती  तो  खास  लोंगो  के लिए  है.
 आप  और हमारे  लिए  नहीं  मिस्टर    खान  .
 और आप   सच  कहना  चाहते  है,
 बस   इस मुगालते   में की  -    MY NAME IS KHAN
 कुछ  तो  आप   भी  समझ  ही गए  होंगे  श्रीमान  खान ,
 कई  कारणों  से ये  देश है महान  .
आप  ने  माफ़ी नहीं मांगी लेकिन,
इस  एहसास के नीचे दबा दिए गए की ,
 आप से गलती हुई है .
 ये तो आप की हालत है,
 हम जैसों  का क्या ?

 जिनका  नाम क्या है ,
 यह सिवाय उनके किसी को भी नहीं मालूम .
 इतना हंगामा बरपा ,
 इतनी लाचारी झेली ,
 फिर भी चुप हो अब क्योंकि ,
 वही बचने का अंतिम उपाय है,

सहना ही इस देश में  बचना है .
 वो भी चुप चाप ,एक दम चुप
समझे  ना ?



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