छुई-मुई सी सिमट गई,
तुम जब मेरी बांहों में
तपन से तेरी सांसों की,
बना दिसम्बर मई प्रिये .
हल्का-हल्का जाने कैसा,
दर्द उठा था मीठा सा .
एक दूजे से मिलकर ही,
हम तो हुए थे पूर्ण प्रिये .
-----------अभिलाषा
Thursday, 4 February 2010
घोर अँधेरी सर्द रात में .\abhilasha
किसी पहाड़ी के मंदिर पे,
घोर अँधेरी सर्द रात में .
दर्द प्रेम का लेकर मन में,
यादों का करता जाप प्रिये .
मेरे इस एकांत वास पे,
नभ के सारे तारे हसते.
लेकिन सारा सन्नाटा,
देता मेरा साथ प्रिये .
घोर अँधेरी सर्द रात में .
दर्द प्रेम का लेकर मन में,
यादों का करता जाप प्रिये .
मेरे इस एकांत वास पे,
नभ के सारे तारे हसते.
लेकिन सारा सन्नाटा,
देता मेरा साथ प्रिये .
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घोर अँधेरी सर्द रात में .
हिंदी के राष्ट्रिय सेमिनार :
हिंदी के राष्ट्रिय सेमिनार :
यु.जी.सी. द्वारा प्रायोजित इनदिनों महाराष्ट्र में दो राष्ट्रिय सेमिनारों की जानकारी मेरे पास आयी है .जिनमे आप सहभागी हो सकते हैं.
१-पहला सेमिनार साठे महाविद्यालय ,विले पार्ले,मुंबई में दिनांक ५ फरवरी और ६ फरवरी २०१० को आयोजित किया गया है.सेमिनार का मुख्य विषय है ''सूफी साहित्य का मूल्यांकन ''
इस सेमिनार के लिए डॉ.प्रदीप सिंह जी से सम्पर्क किया जा सकता है . या इसी ब्लॉग पे भी आप सम्पर्क कर सकते हैं .
२-दूसरा सेमिनार आबा साहेब मराठे आर्ट्स ,साइंस कालेज ,राजापुर ,जिला-रतनागिरी,महाराष्ट्र में १८ फरवरी को आयोजित किया गया है.इस सेमिनार का मुख्य विषय है-आधुनिक हिंदी उपन्यासों में नारी चित्रण
इस सेमिनार में सहभागी होने के लिए श्री.एम्.डी.नायकू से ९८६०१७६०५९ पर सम्पर्क किया जा सकता है . या इसी ब्लॉग पे .
यु.जी.सी. द्वारा प्रायोजित इनदिनों महाराष्ट्र में दो राष्ट्रिय सेमिनारों की जानकारी मेरे पास आयी है .जिनमे आप सहभागी हो सकते हैं.
१-पहला सेमिनार साठे महाविद्यालय ,विले पार्ले,मुंबई में दिनांक ५ फरवरी और ६ फरवरी २०१० को आयोजित किया गया है.सेमिनार का मुख्य विषय है ''सूफी साहित्य का मूल्यांकन ''
इस सेमिनार के लिए डॉ.प्रदीप सिंह जी से सम्पर्क किया जा सकता है . या इसी ब्लॉग पे भी आप सम्पर्क कर सकते हैं .
२-दूसरा सेमिनार आबा साहेब मराठे आर्ट्स ,साइंस कालेज ,राजापुर ,जिला-रतनागिरी,महाराष्ट्र में १८ फरवरी को आयोजित किया गया है.इस सेमिनार का मुख्य विषय है-आधुनिक हिंदी उपन्यासों में नारी चित्रण
इस सेमिनार में सहभागी होने के लिए श्री.एम्.डी.नायकू से ९८६०१७६०५९ पर सम्पर्क किया जा सकता है . या इसी ब्लॉग पे .
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Wednesday, 3 February 2010
तुझसे दुरी क्या मजबूरी ,
गहराती सांसे नमित मन की आखें ,
तुझसे दुरी क्या मजबूरी ,
थकी हैं नजरें सपनों से दुरी ,
चित भीगा तस्वीर अधूरी ,
व्यथा भाव मोहब्बत ले आई ,
दिल का क्रंदन और जुदाई ,
रूह है प्यासी पास उदासी ,
धड़कन को तू क्या दे आई ,
किस जीवन की राह दिखाई ,
शिकवा नहीं ह्रदय है कम्पित ,
क्यूँ हूँ तुझसे मै अचंभित ,
कांटा चुना राह के तेरी ,
आहें भरे रात संग मेरी ,
टीस भरी है भाव भाव में ,
दिल का बांध टूटता राह में ,
गहराती सांसे नमित मन की आखें ,
तुझसे दुरी क्या मजबूरी ,
तुझसे दुरी क्या मजबूरी ,
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mohabbat,
हिन्दी कविता hindi poetry

Saturday, 30 January 2010
सुने से खाली रास्तों पे
मेरी यादों से जब भी मिली होगी
वो अंदर ही अंदर खिली होगी .
सब के सवालों के बीच में ,
वह बनी एक पहेली होगी .
यंहा में हूँ तनहा-तनहा ,
वंहा छत पे वो भी अकेली होगी .
सूने से खाली रास्तों पे ,
वह अकेले ही मीलों चली होगी .
यूँ बाहर से खामोश है मगर,
उसके अंदर एक चंचल तितली होगी .
जो जला डी गयी बड़ी बेरहमी से,
वो बेटी भी नाजों से पली होगी .
वो अंदर ही अंदर खिली होगी .
सब के सवालों के बीच में ,
वह बनी एक पहेली होगी .
यंहा में हूँ तनहा-तनहा ,
वंहा छत पे वो भी अकेली होगी .
सूने से खाली रास्तों पे ,
वह अकेले ही मीलों चली होगी .
यूँ बाहर से खामोश है मगर,
उसके अंदर एक चंचल तितली होगी .
जो जला डी गयी बड़ी बेरहमी से,
वो बेटी भी नाजों से पली होगी .
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सुने से खाली रास्तों पे
तुझे चाहा मगर कह नहीं पाया यारा
तुझे चाहा मगर कह नहीं पाया यारा
अपना हो कर भी रह गया पराया यारा
पास था यूँ तो तेरे बहुत लेकिन,
प्यासा मैं दरिया पे भी रह गया यारा .
जिन्दा हूँ सब ये समझते हैं लेकिन,
मुझे मरे तो जमाना हो गया यारा .
अब आवाज भी लंगाऊं तो किसको,
मेरा अपना तो कोई ना रहा यारा.
सालों से तेरी यादों से ही ,
मैंने खुद को ही जलाया यारा .
अपना हो कर भी रह गया पराया यारा
पास था यूँ तो तेरे बहुत लेकिन,
प्यासा मैं दरिया पे भी रह गया यारा .
जिन्दा हूँ सब ये समझते हैं लेकिन,
मुझे मरे तो जमाना हो गया यारा .
अब आवाज भी लंगाऊं तो किसको,
मेरा अपना तो कोई ना रहा यारा.
सालों से तेरी यादों से ही ,
मैंने खुद को ही जलाया यारा .
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सपनो से भी जादा कुछ हो .
मैं जितना सोचता हूँ,
तुम उससे जादा कुछ हो .
गीत,ग़ज़ल,कविता से भी,
जादा प्यारी तुम कुछ हो .
प्यार,मोहब्बत और सम्मोहन,
इससे बढकर के भी कुछ हो .
रूप,घटा,शहद -चांदनी,
प्यारी इनसे जादा कुछ हो .
जितना मैंने लिख डाला,
उससे जादा ही कुछ हो .
शायद मेरी चाहत से भी,
सपनो से भी जादा कुछ हो .
तुम उससे जादा कुछ हो .
गीत,ग़ज़ल,कविता से भी,
जादा प्यारी तुम कुछ हो .
प्यार,मोहब्बत और सम्मोहन,
इससे बढकर के भी कुछ हो .
रूप,घटा,शहद -चांदनी,
प्यारी इनसे जादा कुछ हो .
जितना मैंने लिख डाला,
उससे जादा ही कुछ हो .
शायद मेरी चाहत से भी,
सपनो से भी जादा कुछ हो .
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