Monday, 9 November 2009

आखें प्यासी है क्यूँ नीद नही आती /

मेरे लम्हों की बेकरारी नही जाती ,

आखें प्यासी है क्यूँ नीद नही आती ;

जब्त अरमां दिल को बेकरार नही करते ,

भूल जायुं तुझको क्यूँ ऐसी बीमारी नही आती /

है शांत शमा कैसे मै जानू ,

दिल में उलझन चंचल धड़कन ;

मन से खामोशी नही जाती ,

आखें प्यासी हैं क्यूँ नीद नही आती ?

तू गैर की बाँहों में ऐतबार है मुझको ,

तेरी जिंदगी उससे है इकरार है मुझको ;

तू है नही मेरी ये कैसे मै मानू ,

मेरे रग रग से बहते खूं से तेरी खुसबू नही जाती ;

आखें प्यासी है क्यूँ नीद नही आती /

Saturday, 7 November 2009

पर वो पल कितने प्यारे औ कितने अच्छे थे/

विस्तृत आकाश विदित है ;

मन का भावः विदित है ;

अहसास कहाँ कब सीमा जाने ,

दिल का विश्वास विदित है /

झिल-मिल तारों से ,आस करे क्या ?

सागर की लहरों से , प्यास करे क्या ?

रातों के ख्वाबों का मंतव्य समझ लेते ;

जागी आखों के सपने ,करे क्या ?

तू गैर नही है ;

तुझको मुझसे बैर नही है ;

मेरी तन्हाई से क्या रिश्ता तेरा ?

मेरी आगोस में होने का अब दौर नही है /

तेरे वादे क्या सच्चे थे ;

तेरे अहसास सभी कच्चे थे ;

बदन से मिलते बदन की यादें ;

क्या ले के बैठें अब उसको ;

पर वो पल कितने प्यारे औ कितने अच्छे थे/

नई दुनिया तुने बसाई है ;

मेरी यादों की अर्थी सजाई है ;

मेरे होने का अहसास ना हो ;

तुने अपने दिल की कब्र बनाई है /

Wednesday, 28 October 2009

तेरे पास आ उसे कैसे पराया कर लूँ ?

तुझे जरूरत ना पड़ती थी कहने की ,

तेरे अहसासों पे अमल कर देता था मै;

तेरी आखों में बुने सपनों को ,

अपने भावों से सजों देता था मै ;

तेरी राहों के काटें चुनता ,

तेरी मधुभासों में खोया रहता था मै ;

तेरी खुशियों को तुझसे ज्यादा सजोता ,

तेरे आंसुओं को अपनी आखों से रो लेता था मै ;

इन यादों से कैसे किनारा कर लूँ ,

गर तुझसे मोहब्बत एक गलती थी ;

उसे तोड़ कर गलती कैसे दोबारा कर लूँ ?

तेरी खुशियाँ अब भी मुझे प्यारी हैं ,

तुझे मिल के उन्हें कैसे गवांरा कर लूँ ;

तेरा आभास अब भी मेरे धड़कनों में शामिल है ,

तेरे पास आ उसे कैसे पराया कर लूँ ?

Monday, 26 October 2009

इक चाहत है ख़ुद से जुदा होने की ;

इक चाहत है ख़ुद से जुदा होने की ;

मोहब्बत में खुदा होने की ;

जी ना सके संग तेरे क्या हुआ ;

तमन्ना है तेरे इश्क में फ़ना होने की ;

मेरे अहसास अपने दिल में तू समेट ना सकी ;

मेरी दुरी को मोहब्बत में लपेट ना सकी ;

क्या कहूँ तेरे अरमां औ तेरी जरूरतों को ;

कैसे तू प्यार के जज्बे को सहेज ना सकी ?

तू गर्वित है अपने हालात पे ;

अपनी सफलता और बड़ती आगाज पे ;

क्या कहूँ मोहब्बत तेरी बिखरती जवानी पे ;

कैसे वो मेरी आखों में आंसुओं को रोक ना सकी ?

Saturday, 24 October 2009

छठ मैया को श्रद्धा अर्पण

अस्ताचलगामी और उदयमान सूर्य को प्रणाम करने के लिए सदियोंसे चली आ रही परम्परा को आगे बढ़ाने की तैयारियां चल रही हैं । बस चंद क़दमों की दूरी पर पुण्यसलिला गंगा के किनारे सूर्य जब अस्त हो रहे होंगे तो हम सब उन्हें अर्पण कर रहे होंगे अपनी श्रद्धा , अपना सबकुछ । दिन भर व्रत रखकर महिलाएं भगवान भास्कर को जल आराध्य करती है। राजधानिओमें इसकी तैयारियां शुरू हो चुकी है। जैसे डेल्ही , पटना , यहाँ तक की महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में भी हम यह पर्व देख सकते है।


महाकाव्यात्मक गरिमा का उपन्यास -इन्ही हथियारों से :अमरकांत


महाकाव्यात्मक गरिमा का उपन्यास -इन्ही हथियारों से :अमरकांत


अमरकांत : जन्म शताब्दी वर्ष

          अमरकांत : जन्म शताब्दी वर्ष डॉ. मनीष कुमार मिश्रा प्रभारी – हिन्दी विभाग के एम अग्रवाल कॉलेज , कल्याण पश्चिम महार...