चेहरे में उलझन न ढुढ़ो ;
आखों की शरारत न ढुढ़ो ;
मैं बन गया किसी का बरसों पहले ;
अब बातों में मोहब्बत न ढुढ़ो /
न आप रहे , न हम रहे ;
अब तो सिर्फ़ हमदम रहे ;
इतना अरसा गुजर गया हमारे प्यार में ;
कैसे चाहे अब तू ही बता ;की तू मुझसे कम रहे /
✦ शोध आलेख “ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन लेखक : डॉ. मनीष कुमार मिश्र समीक्षक : डॉ शमा ...