Saturday, 25 July 2009

अनेक यादें बिखरी हुई हैं

अनेक यादें बिखरी हुई हैं ;

कितनी ही बातें उलझी हुई हैं ;

खुबसूरत वाकयों का हिसाब क्या करें ;

सब तेरी बेतकल्लुफी में सिमटी हुई हैं /

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मोहब्बत और तनहाई से कैसे रूठें ;

अपनो की जुदाई से कैसे रूठें ;

ईश्वर की खुदाई पे कैसे रूठें ;

जीने को कुछ खुशियाँ ,

खुशियों को कुछ भावः लगते हैं ;Italic

मेरी जिंदगी मेरे प्यार ,

तेरी मोहब्बत और बेवफाई पे कैसे रूठें ?

Tuesday, 21 July 2009

तेरी स्तुति में मन लीन रहे ,

गुरु को समर्पित

तेरी स्तुति में मन लीन रहे ,

तेरी महिमा में तल्लीन रहे ;

तेरी आभा का गुडगान करे ,

हर पल तेरा ध्यान करे ;

तू सर्वज्ञ , तू सर्वदा ,

तू संवाद तू संवेदना ;

तू ही कारन तू ही कर्ता ,

तू ही है सब कर्ता धर्ता ; तू ही सांसे ,

तू ही जीवन ,तू ही है जीवन का प्रकरण ;

तू ही शिव है तू ही शक्ति ,

तू ही है मेरी भक्ती ;

गान करूँ गुडगान करूँ ,हर पल तेरा ध्यान करूँ ;

Monday, 20 July 2009

प्रकृति का नियम ;

प्रकृति का नियम ;
हर चीज का छरण ;
पत्तों का गिरना ;
फूलों का खिलना
नव अंकुरित बीज ;
सूखे पेड़ों की खीज ;
पिघलती बर्फ ;
आदमी का दर्प ;
उजड़ते खलिहान ;
लहलहाते रेगिस्तान ;
मौत पे बिलखना ;
बच्चों का किलकना ;
पत्थरों में भगवान ;
इंसानों में शैतान ;
क्या सच , क्या सपना ;
क्या भाग्य , क्या विडंबना /

Saturday, 18 July 2009

तुम मेरा प्यार हो ;मेरा आधार हो

तुम मेरा प्यार हो ;मेरा आधार हो

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बड़ी खुबसूरत हो ;घटाओं की मुरत हो ;

नदी की गरमी हो , पर्वतों की नरमी हो ;

गुलाब की काया हो , चाँद की माया हो ;

सूरज की शीतलता हो , मन की निर्मलता हो ;

बच्चों का स्वभाव हो , दिल का कयास हो ;

तन की प्यास हो ; मन का अहसास हो ;

बड़ी बेमिशाल हो ,वाकई लाजवाब हो /

Monday, 13 July 2009

उनकी नाराजगी का सबब ढूंढ़ता हूँ ;

उनकी नाराजगी का सबब ढूंढ़ता हूँ ;
अपनी मजबूरी की गरज ढूंढ़ता हूँ ;
हर तरफ़ से जकडा हूँ ,
आज़ादी की डगर ढूंढ़ता हूँ /
मेरी तकलीफें न बड़ा तेरी बेवफाई का असर ढूंढ़ता हूँ ;
जो ना किए तुने उन अहसानों का कर्ज ढूंढ़ता हूँ ;
तेरी उलझी बातों का अर्थ ढूंढ़ता हूँ ;
तू यार है मेरा ;
मेरे दुसमन और तुझमे फर्क ढूंढ़ता हूँ ;
आखों को दिए आंसू दिल को दर्द ,
यकीं है उसपे ;
तुने दी जो खुशियाँ ; उसका तर्क ढूंढ़ता हूँ /

Thursday, 9 July 2009

वर्जनाओं से थम गया ;आशाओं से थम गया ;

वर्जनाओं से थम गया ;आशाओं से थम गया ;
कठनायियाँ ना रोक सकी ;
दृढ़ता के अभावों से थम गया ;
दौड़ सका न चंद कदम ; भावनाओं से थम गया /
दोष नही सपनों का ,द्वेष नही अपनो का ;
परिश्थीतियाँ जीत गई ,अपने कर्मों से थम गया ;
दौड़ सका न चंद कदम ;अपनी धारनावोंसे थम गया /

बच्चों के मुख पे प्रश्न छिपे ;बीबी के मन में मर्म छिपे ;

माँ के ह्रदय में अविश्वास छिपे ;लोंगों के चेहरे पे हास्य छिपे ;

इस हालत में कैसे आया ;क्यूँ राहों में मन ललचाया ?

क्यूँ पग फिसले कठिनाई में ,क्यूँ मन बहका तन्हाई में ?

लड़ न सका जज्बातों से अपने ;

जीत सका न मन को अपने ;

जीती बाजी हार रहा मै ;

क्यूँ हिम्मत हार रहा मै ?

अपने विकारों से थम गया ,अपने अहंकारों से थम गया ;

अपनो के बंधन से थम गया, अपने विचारों से थम गया ;

दौड़ सका ना चंद कदम ,अधूरे धर्मों से थम गया /

दिल के दर्पों से थम गया ;

दौड़ सका ना चंद कदम ,

औरों की खुशियों पे थम गया /

Tuesday, 7 July 2009

आदमी हूँ आदमी से प्यार करना -----------------------------

एक अनुमान के मुताबिक पूरे विश्व मे इस समय ४०००००० से जादा gay और २५००००० से जादा lesbian हैं । ऐसे मे दिल्ली हाई कोर्ट का एक निर्णय आता है जो समलैंगिकता को अपराध ना मानने की वकालत करता है ।
यह खबर क्या आई पूरी की पूरी मीडिया जैसे पागल सी हो गई । आप कोई भी समाचार चैनल खोल कर देख लीजिये ,हर जगह एक ही चर्चा -क्या भारत जैसे देश मे समलैंगिकता को सामजिक मान्यता दी जा सकती है ?
सवाल यह है की इसे अभी स्वीकार ही किसने किया ? कानून का अपना एक अलग नजरिया होता है । वह अपनी जगह सही भी है । अगर दो वयस्क आपस मे समलैंगिक रिश्ता आपसी सहमती से बनाते हैं तो उसे कोई भी लोकतांत्रिक कानून आपराधिक गतिविधि नही मान सकता । इस लिए कोर्ट का निर्णय स्वागत योग्य है ।

लेकिन इस बात को पकड़कर मीडिया ने जो निष्कर्ष निकाला वो एक दम हास्यास्पद है । कोर्ट ने समलैंगिकता को आपराधिक कृत्य नही माना है ,पर इसका यह कत्तई अर्थ नही निकालना चाहिये की कोर्ट समलैंगिकता के पक्ष मे खड़ा है ।
जन्हा तक भारतीय समाज का प्रश्न है तो मुझे नही लगता की इस विश्विक सत्य को स्वीकार करने मे भारतीय जनमानस को कोई कष्ट होगा। भारत देश पूरे विश्व मे एक ऐसी बीच की जमीन के रूप मे जाना जाता है जन्हा सभी के लिए स्थान है । विविधता मे एकता यंहा की विशेषता है ।
अब अगर व्यवहारिक रूप मे समलैंगिकता को स्वीकार या अस्वीकार करने की बात करे तो मेरा मानना यह है की इस तेरह के सम्बन्ध भावनात्मक और कुछ हद तक कामुक स्थितियों को ले केर बन तो जरूर सकते हैं,लेकिन ये पारिवारिक इकाई का विकल्प नही बन सकते । और एक स्वस्थ समृद्ध नई पीढी परिवार नामक परम्परागत ढांचे मे ही विकसित हो सकती है ।

अमरकांत : जन्म शताब्दी वर्ष

          अमरकांत : जन्म शताब्दी वर्ष डॉ. मनीष कुमार मिश्रा प्रभारी – हिन्दी विभाग के एम अग्रवाल कॉलेज , कल्याण पश्चिम महार...