Thursday, 23 April 2009
kya kahun
जान पाता नहीं मै. हंसू किस बात पे ; किस बात पे गुम सुम रहूँ /
बड़ी उलझन है ,सुलझाती नहीं है बात अब ;
बच्चों के अरमानो को, कैसे पहनायुं अपनी असफलता का सब्र ;
माँ की आशावों को, क्या बतलायुं मेरी बदहाली का सबब/
कैसी राहों में उलझा ,कैसे बनी जिंदगी अजब ;
क्या कहूँ किस बात पे, किस बात पे मै चुप रहूँ ;
जान पाता नहीं मै. हंसू किस बात पे ; किस बात पे गुम सुम रहूँ /
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[ बादलों की प्यास हूँ मै ,
जो पूरी न हुयी ,वो आस हूँ मै ;
फूलों की घाटी का ,
दल से बिछडा गुलाब हूँ मै ;
सुबह का पूरा न हुवा ;
वो अधुरा ख्वाब हूँ मै / ]====
{ तजुर्बा उम्र का है या उम्र तजुर्बे की ?
कैसे कहें की बात सच की है या सपने की ?
जो दिया जिंदगी ने समेट लिया ,
जो कहा अपनो ने सहेज लिया /
रास्ते कहाँ जायेंगे जानता नहीं हूँ मै;
खुदा की राह है,मंजिल तलाशता नहीं हूँ मै / }
====
( मेरी मोहब्बत से मुझको शिकायत है ,
ऐसे न कर सका की उनको भी आहट हो / )
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कथाकार अमरकांत ---------------------------------
Wednesday, 22 April 2009
हिन्दी साहित्य और संरचनावाद
- भाषा एक व्यवस्था है ।
- भाषा चिह्नों द्वारा निर्मित है ।
- ये चिन्ह मनमाने और भेदपरक हैं ।
भाषाई चिन्ह के दो प्रमुख रूप हैं १)स्वर बिम्ब २) विचार
किसी शब्द और उसके अर्थ के बीच जो मनमानापन या नियम विहीन होना है ,वही संरचनावाद की देन है । जीवन में हम जो भी अनुभव करते हैं उन्हे संचारित करने का काम शब्द करते हैं । शायद यही कारण है की शब्द अर्थ के नियामक होते हैं । हमारे अनुभवों को रूप देने का काम शब्द भाषा के माध्यम से करते हैं । संरचनावाद एक भाषा वैज्ञानिक पद्धति है । जिसका एक पूरक हिस्सा साहित्यिक संरचनावाद है ।
इस विषय पर अंग्रजी में एक बड़ा लेख आप निम्नलिखित लिंक के माध्यम से पढ़ सकते हैं ।
poetics: Structuralism, linguistics and the study of literatureJ Culler - 2002 - books.google.com... Page 6. . Page 7. Jonathan Culler Structuralist Poetics Structuralism, linguisticsand the study of literature With a new preface by the author ". ... Cited by 576 - Related articles - Web Search - All 3 versions
[CITATION] Structuralist Poetics: Structuralism, Linguistics, and the Study of Literature. 1975J Culler - Ithaca: Cornell UP, 1977Cited by 5 - Related articles - Web Search
[CITATION] Structuralist Poetics: Structuralism, Linguistics, and the Study of Literature (Ithaca, NY, 1975)J Culler - See also Robert Scholes, Structuralism in Literature: An …Cited by 2 - Related articles - Web Search
[CITATION] Structuralist poetics: Structuralism, linguistics and the study of languageJ Culler - 1975 - Ithaca, NY: Cornell University PressCited by 2 - Related articles - Web Search
[CITATION] Structuralist Poetics: Structuralism, Linguistics and the Study of PoetryJ CULLER - 1975 - London: Routledge and Kegan PaulCited by 1 - Related articles - Web Search
[CITATION] Structuralist Poetics: Structuralism, Linguistics, and the LiteratureJ Culler - 1975 - London: RoutledgeCited by 1 - Related articles - Web Search
[BOOK] Structuralist poetics structuralism, linguistics and the study of literature Cornell paperbacksJD Culler - 1979 - Cornell university pressWeb Search
Structuralist poetics: structuralism, linguistics and the study of literature (coll routledge …C Jonathan - lavoisier.fr... Notice. 35.00 € Ajouter au panier. Structuralist poetics: structuralism, linguisticsand the study of literature (coll routledge classics). ... Cached - Web Search Key authors: J Culler
Tuesday, 21 April 2009
प्रेम की परिभाषा ------------------------------
नारी तू ही जीवन का अलंकार है ।
तुझे नर्क का द्वार समझते हैं जो,
उनकी दकियानूसी सोच पर धिक्कार है ।
दुनिया की आधी आबादी हो तुम,
बेशक तुम्हे बराबरी का अधिकार है ।
कंधे से कन्धा मिलाकर आगे बढो,
तुम्हारी उड़ान ही तुम्हारी ललकार है ।
कोई बहुत याद आ रहा है ----------------------------
मुझे अपने पास बुला रहा है ।
हर पल खयालो में आकर,
GAM JUDAAI KA BADHA REHA HAI ।
USKAY HAANTH MEI HAI MERI DOR,
CHAAH REHA JAISAY VAISAY NACHA REHA HAI .
MAINAY TO MANAA KIYA LEKIN,
SHAAKI JAAM PAY JAAM PILA REHA HAI ।
MILNAY PAR AB PAHCHAANTA NAHI,
VAH IS TARAH MUJHAY JALAA REHA HAI ।
KUCHH RAB NAY THAAN RAKHI HAI SAAYAD,
BAAR-BAAR UNHI SAY MILA REHA HAI ।
Sunday, 19 April 2009
उनका कसूर था,वो लडकियां थीं --------------------------
दिल के समंदर में बंद सीपियाँ थीं ।
हम दोनों साथ चलते भी तो कैसे,
बड़ी संकरी समाज की गंलियाँ थीं ।
सोचकर अपने कल के बारे में ,
बाग़ की डरी हुई सभी कलियाँ थीं ।
उनके बिना अजीब सा सूनापन है ,
बेटियाँ तो आँगन की तितलियाँ थीं ।
जो कोख में ही मार दी जाती हैं ,
उनका कसूर था,वो लडकियां थीं ।
जिस घाटी में आज सिर्फ़ बारूद है,
VANHI PAY KABHI KAISAR KI KYAARIYAAN THEEN ।
अभी तो बाकी पूरी ग़ज़ल है -----------------------------
अभी तो बाकी पूरी ग़ज़ल है ।
मेरे इस मन को इंतजार है तेरा,
तू खिलता हुवा एक कवल है ।
अब जो भी सोचता हूँ,चाहता हूँ
हर बात में तेरा ही दखल है ।
झोपडी कब की नीलाम हो चुकी
अब बननेवाला यंहा महल है ।
तुझसे जीतना ही कब था मुझे,
तेरी जीत से ही मेरी हार सफल है ।
अमरकांत जन्मशती पर दो दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद
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