Friday, 30 August 2024

तेरे अंजाम पे रोना आया


 अवध और बनारस क्षेत्र की ठुमरी गायिकाओं के जीवन संघर्ष और संगीत साधना से जुड़ी  " तेरे अंजाम पे रोना आया" यह पुस्तक जल्द ही पाठकों के बीच उपलब्ध होगी । इसमें 09 गायिकाओं पर स्वतंत्र आलेख हैं जिन में गौहर जान, जानकी बाई, रसूलन बाई, सिद्धेश्वरी देवी और बेगम अख्तर शामिल हैं। दिनांक 18 सितंबर 2024 को ताशकंद, उज़्बेकिस्तान में इस पुस्तक का लोकार्पण संपन्न होगा ।

इस पुस्तक के सभी आलेख वागर्थ, समीचीन, सरस्वती और अनहद लोक जैसी भारत की प्रसिद्ध पत्रिकाओं में समय समय पर प्रकाशित हो चुके हैं।  लेखन के दौरान Madhu Shukla जी,  C L Sharma Kukreti जी, K.C. Maloo जी, Jyoti Sinha जी और Shashikala Rai जी का मार्गदर्शन बड़ा उपयोगी रहा । भूमिका के रूप में आदरणीय Shitlaprasad Dubey  सर का आशीर्वाद प्राप्त हुआ ।

सभी का ह्रदय से आभार। प्रकाशक के रूप में भाई राम कुमार (आर के पब्लिकेशन, मुंबई ) का भी योगदान व सुझाव महत्वपूर्ण रहा ।

सभी के प्रति हम कृतज्ञ हैं ।

Friday, 23 August 2024

राम दरश मिश्र : सौ वसंत की गाथा

 15 अगस्त को हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ राम दरश मिश्र जी अपनी जीवन यात्रा के सौ वसंत पूर्ण करेंगे। ऐसे में यह पुस्तक उनके चरणों में एक भेंट स्वरूप प्रस्तुत करने में हमें खुशी है।

आज से ठीक एक साल पहले महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी के कार्याध्यक्ष प्रोफ़ेसर शीतला प्रसाद दुबे जी के मार्गदर्शन और अकादमी के सहयोग से हमने एक राष्ट्रीय परिसंवाद रामदरश जी के साहित्य पर केंद्रित होकर आयोजित किया था। उसी परिसंवाद में प्रस्तुत किए गए शोध आलेखों के संग्रह के रूप में यह पुस्तक आप के सामने है ।



Thursday, 8 August 2024

होश पर मलाल है ग़ज़ल संग्रह

https://www.amazon.in/dp/B0DCK9PXYG?ref=myi_title_dp 













About the Author

This is the first ghazal collection of Dr. Manish Kumar Mishra. His two poetry collections and one story collection have already been published. He has also received the prestigious Sant Namdev Award of Maharashtra State Hindi Sahitya Academy for his poems. This ghazal collection ‘Hosh Par Malaal Hai’ includes a total of 105 ghazals. Through these ghazals, the concepts of life and relationships go beyond words and meaning and express thoughts and feelings in a multidimensional form. Somewhere in these ghazals there is an atmosphere of calm and dark colors and somewhere there is a thirst for love in the collage of memories. A new path keeps alive the hope of a new world of light even in dark times. In today's glittering and pompous times, the simplicity, gentleness and ease with which Manish says ghazals seems to be a reflection of his personality.

Wednesday, 7 August 2024

भारत विभाजन की त्रासदी और भारतीय भाषाओं का साहित्य








बताते हुए हर्ष हो रहा है कि भारत विभाजन की त्रासदी और भारतीय भाषाओं का साहित्य  शीर्षक से यह पुस्तक भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला से प्रकाशित हो रही है । संभवतः एक महीने में यह पुस्तक सभी पाठकों के लिए उपलब्ध हो जाएगी । विभाजन की त्रासदी और भारतीय साहित्य को लेकर  दिनांक 28-29  नवंबर 2023 को भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन मेरे संयोजन में सम्पन्न हुआ था । इस संगोष्ठी में प्रस्तुत शोध आलेखों को पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने की योजना थी । मैं संस्थान के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ ।  

 

Saturday, 20 July 2024

डॉ मनीष कुमार मिश्रा: संक्षिप्त परिचय

 नाम :  डॉ. मनीष कुमार मिश्रा

जन्म : वसंत पंचमी, 09 फरवरी 1981

शिक्षा : एम ए ( हिन्दी एवं अँग्रेजी), पी.एचडी, एम.बी.ए ( मानव संसाधन )

संप्रति : 

  • विजिटिंग प्रोफेसर ( भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद {ICCR} हिन्दी चेयर ), ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज़,  ताशकंद, उज्बेकिस्तान 

  • के एम अग्रवाल महाविद्यालय (मुंबई विद्यापीठ से सम्बद्ध ) कल्याण पश्चिम ,महाराष्ट्र में सहायक आचार्य - हिन्दी विभाग के रूप में दिनांक 14 सितंबर 2010 से कार्यरत 

प्रकाशन :

  • हिंदी और अंग्रेजी की लगभग 35 पुस्तकों का संपादन 

  • अमरकांत को पढ़ते हुए (समीक्षा ) –  हिंदयुग्म, नई दिल्ली से 2014 में प्रकाशित 

  • इस बार तुम्हारे शहर में – (कविता संग्रह), शब्द सृष्टि, नई दिल्ली से 2018 में प्रकाशित 

  • अक्टूबर उस साल – (कविता संग्रह), शब्द सृष्टि, नई दिल्ली से 2019 में प्रकाशित 

  • स्मृतियाँ - (कहानी संग्रह), ज्ञान ज्योति पब्लिकेशंस, दिल्ली से 2021 में प्रकाशित 




पुरस्कार  : 


  • श्याम सुंदर गुप्ता स्वर्ण पदक - वर्ष 2003, मुंबई विद्यापीठ,मुंबई,  महाराष्ट्र  

  • डॉ. लक्ष्मी नारायण लाल राष्ट्रीय सम्मान वर्ष 2020, पल्लव काव्य मंच, रामपुर, उत्तर प्रदेश 

  • अखिल भारतीय राजभाषा हिंदी सेवी सम्मान – 2021,  महात्मा गाँधी राजभाषा हिंदी प्रचार संस्थान, पुणे, महाराष्ट्र 

  • संत नामदेव पुरस्कार 2020-2021, महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी, महाराष्ट्र शासन, मुंबई, महाराष्ट्र 



सम्पर्क :

manishmuntazir@gmail.com

https://onlinehindijournal.blogspot.com

+91   8090100900 (भारत) 

+998  503022454 (ताशकंद)

Monday, 22 April 2024

एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद - उज्बेकिस्तान में हिन्दी : दशा और दिशा


 


































लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र
( भारतीय दूतावास, ताशकंद, उज्बेकिस्तान )
द्वारा आयोजित
एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद
उज्बेकिस्तान में हिन्दी : दशा और दिशा
(शुक्रवार, दिनांक : 18 सितंबर 2024)
कार्यक्रम स्थल : लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र, 5 बुज़ बोजोर सेंट 2 लेन, ताशकंद, उज्बेकिस्तान
लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र :
लाल बहादुर शास्त्रीय भारतीय संस्कृति केंद्र (LBSCIC), ताशकंद में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद(ICCR) का एक केंद्र है । यह केंद्र हिंदी, कथक, तबला और योग में निशुल्क नियमित कक्षाएं आयोजित करता है । केंद्र की स्थापना सन 1995 में हुई थी और सन 2005 में इसका नाम बदलकर लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र कर दिया गया । केंद्र की प्रमुख गतिविधियां इस प्रकार हैं –
हिंदी कत्थक तबला एवं योग कक्षाओं का नियमित संचालन
• सांस्कृतिक कार्यक्रमों एवं कार्यशालाओं का आयोजन
• व्याख्यान सेमिनार और प्रदर्शनियों का आयोजन
• आधिकारिक सांस्कृतिक सहयोग कार्यक्रम का कार्यान्वयन
• भारत, इसकी जीवन शैली और संस्कृति के बारे में जानकारी का प्रसार करना
• भारत सरकार छात्रवृत्ति कार्यक्रमों का प्रशासन करना
लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र और उज्बेकिस्तान के अन्य क्षेत्रों में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करता है और अन्य संस्थाओं के साथ भी सहयोग करता है । यह भारतीय फिल्मों और वृत्त चित्रों को प्रदर्शित करता है । केंद्र हर महीने के आखिरी शुक्रवार को ‘हिंदी मंच’ का आयोजन करता है जो उज़्बेकी नागरिकों को हिंदी में बातचीत करने और विभिन्न गतिविधियों में भाग लेने के लिए एक मंच प्रदान करता है । लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र, उज़्बेकिस्तान में भारतीय सांस्कृतिक मंडलों के दौरे की व्यवस्था करता है । जिसमें ‘शार्क तरोनालारी’ जैसे स्थानीय त्योहारों में भागीदारी भी शामिल है । सांस्कृतिक केंद्र भारतीय शैक्षिक संस्थानों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए आईसीसीआर और भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित विभिन्न छात्रवृत्ति कार्यक्रमों का भी संचालन करता है । केंद्र में एक वाचनालय के अलावा हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू,उज़्बेकी और रूसी भाषा में पुस्तकोंवाला एक पुस्तकालय भी है ।
प्रस्तावना :
एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उज्बेकिस्तान की पहचान नई है । यह एक समृद्ध इस्लामी विरासत वाला मुस्लिम बहुल देश है। ताशकंद, समरकंद, बुखारा और खीवा जैसे उज्बेकिस्तान के प्राचीन शहर अपनी सांस्कृतिक विरासत और व्यापार से जुड़ी गतिविधियों के लिए हमेशा से ही मशहूर रहे । यहां अनेकों जातियों- जनजातियों के बीच सह अस्तित्व की परंपरा ने इस देश में साझी संस्कृति को बढ़ा दिया । सह अस्तित्व और साझी विरासत भारत की भी पहचान है । ईरानी, तुर्की, मुस्लिम, यहूदी और ईसाई समाज ने मिलकर उज़्बेकिस्तान को एक राष्ट्र के रूप में नया गौरव प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ।
हिन्दी प्रचार-प्रसार की दृष्टि से उज़्बेकिस्तान मध्य एशिया में उम्मीदों के प्रकाश का ऐसा अन्तः केंद्र बनकर उभरा है जो हिन्दी जगत की आखों में नाच उठे । भारत और उज़्बेकिस्तान दोनों ही उस सपने से परिचित हैं जो आपसदारी एवं विश्वास के कंधों पर खड़ा हुआ है । अपनी भाषा और संस्कृति के वैश्विक विस्तार में ये दोनों राष्ट्र एक साथ हैं । अपनी भाषा और संस्कृति के माध्यम से मानवीय करुणा,विश्वास और संवेदना का सौंदर्य पूरे विश्व में बिखेरने के लिए ऐसी साझेदारी दोनों राष्ट्रों के हित में है । भाषायी मेलजोल दरअसल ख़ुशबू से भरे वे रंग हैं जो फ़ासलों के गुबार को दरकिनार कर छनकर आती हुई उम्मीद को अपनी कोह में बसा सजाते और सँवारते हैं । इस तरह की भाषायी साझेदारी भविष्य के भारत और उज़्बेकिस्तान के लिए निश्चित ही प्रगति के नए आयाम गढ़ेगी ।
भारतीय साहित्य पर पहली पाठ्य पुस्तक उज़्बेकिस्तान में सन 1991 में प्रोफेसर तमारा खोजाएवा द्वारा तैयार की गई जिसमें रविंद्रनाथ ठाकुर, प्रेमचंद, वृंदावनलाल वर्मा, कृष्ण चंद्र, यशपाल, जैनेंद्र कुमार, अमृता प्रीतम, रामचंद्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी और नामवर सिंह जैसे साहित्यकारों एवं आलोचकों को शामिल किया गया । कवियों में मैथिलीशरण गुप्त, सुभद्रा कुमारी चौहान, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, सुमित्रा नंदन पंत, हरिवंश राय बच्चन, केदारनाथ सिंह इत्यादि को शामिल किया गया ।उज़्बेकी-हिन्दी शब्दकोश का निर्माण भी यहां की शिक्षकों द्वारा हाल ही में किया गया है । भारत के संदर्भ में साहित्य रचनेवाले उज़्बेकी साहित्यकारों में गफूर गुलाम, हमीद गुलाम, अस्काद मुहतार, हमीद अलीमजान, मिरतेमीर, सईदा जुनुनोवा, एरकीन वहीदोवा और तमारा खोदजाएवा का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है । 7 जुलाई 2015 को देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस पहले उज़्बेकी-हिन्दी शब्दकोश का लोकार्पण किया गया । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी यात्रा के दौरान भारतीय फिल्म और संगीत की उज्बेकिस्तान में लोकप्रियता के साथ-साथ यह भी याद दिलाया कि सन 2012 में उज़्बेक रेडियो ने हिंदी ब्रॉडकास्टिंग के 50 वर्ष पूर्ण किए ।
उज़्बेकिस्तान में हिन्दी की वर्तमान स्थिति एवं भविष्य में इसके व्यापक प्रचार-प्रसार एवं अध्ययन-अध्यापन की स्थितियों कों समझना एवं उसका दस्तावेजीकरण ही इस एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद का उद्देश्य है ।
शोध आलेख प्रस्तुत करने हेतु उप विषय :
• उज़्बेकिस्तान और भारत के सांस्कृतिक संबंध
• उज़्बेकिस्तान और भारत के बीच शैक्षणिक अनुबंध
• उज़्बेकिस्तान में हिन्दी अध्ययन – अध्यापन
• उज़्बेकिस्तान में हिन्दी अध्ययन – अध्यापन से जुड़े प्रमुख शैक्षणिक केंद्र
• उज़्बेकिस्तान में हिन्दी अध्ययन – अध्यापन से जुड़े प्रमुख लोग
• उज़्बेकिस्तान में हिन्दी से जुड़े शोध कार्य
• उज़्बेकिस्तान में हिन्दी पुस्तकों के प्रकाशन का इतिहास
• उज़्बेकिस्तान में अनुवाद के माध्यम से हिन्दी साहित्य का प्रचार प्रसार
• अनुवाद के माध्यम से हिन्दी – उज़्बेकी साहित्य का आदान-प्रदान
• उज़्बेकिस्तान और हिन्दी फिल्में
• उज़्बेकिस्तान में भारतीय कला और संस्कृति से जुड़े महत्वपूर्ण कार्य
• उज़्बेकिस्तान के विद्यार्थियों के लिए भारत में छात्रवृत्ति की योजनाएँ
• उज़्बेकिस्तान और भारत : भविष्य की संभावनाएं
• उज़्बेकिस्तान से निकलनेवाली हिन्दी की पत्रिकाओं का इतिहास
• उज्बेकिस्तान के हिन्दी साहित्यकार
• उज़्बेकिस्तान रेडियो और हिन्दी प्रसारण
• उज़्बेकिस्तान टेलीविज़न और हिन्दी प्रसारण
( उपर्युक्त विषयों के अतिरिक्त भी आप उज़्बेकिस्तान और भारत की कला, संस्कृति और हिन्दी को लेकर किसी विषय पर संयोजक की पूर्व अनुमति से शोध आलेख प्रस्तुत कर सकते हैं । )
शोध आलेख कैसे भेजें :
• शोध आलेख सिर्फ़ हिन्दी भाषा में ही स्वीकार किए जाएंगे
• शोध आलेख कम से कम 1500 शब्दों और अधिकतम 4000 शब्दों में लिखा हो
• शोध आलेख पूर्व में कहीं प्रकाशित या प्रस्तुत न हो
• शोध आलेख मौलिक और सुव्यवस्थित हो
• शोध आलेख यूनिकोड मंगल में 12 फॉन्ट साइज़ में A4 साइज़ पृष्ठ के एक तरफ टंकित हो
• शोध आलेख ईमेल में attached word file के रूप में ही भेजें
• शोध आलेख के अंत में संदर्भ सूची अवश्य दें
• शोध आलेख के प्रारंभ में शोध आलेख का शीर्षक और अंत में अपना नाम, पद, संस्था का नाम, ईमेल और मोबाइल नंबर अवश्य लिखें
• शोध आलेख भेजने की अंतिम तिथि 30 मई 2024 है
• शोध आलेख manishmuntazir@gmail.com पर प्रेषित करें
परिसंवाद में सहभागिता :
• इस परिसंवाद में सहभागी होने के लिए आप को किसी तरह का पंजीकरण शुल्क नहीं देना होगा
• चुने हुए आलेखों को लाल बहादुर शास्त्रीय भारतीय संस्कृति केंद्र (LBSCIC), ताशकंद द्वारा ISBN के साथ पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जाएगा

डॉ मनीष कुमार मिश्रा के व्याख्यान








 

Thursday, 11 April 2024

भारतीय ज्ञान परंपरा से जुड़ी पुस्तकें

  1. ब्रजेंद्र नाथ सील की The Positive Sciences of Ancient Hindus (1915) 

2. पाहन फोरि गंग एक निकरी - रामचंद्र ओझा 

3. प्राचीन भारत की ऐतिहासिक अनुश्रुति - एफ ई पोर्जीटर 

    Traditional Indian historical tradition का अनुवाद ।

4. An area of darkness - V.S.Naipaul

5. A wounded civilization - V.S.Naipaul

6. भारतीय दर्शन  - हरेंद्र प्रसाद सिन्हा 

7. दर्शन दिग्दर्शन - राहुल सांकृत्यायन 

8. भारतीय दर्शन - डॉ राधा कृष्णन 

9. विवेकचूड़ामणि - शंकराचार्य 

10. भारतीय चिंतन परंपरा - के दामोदरन 

11. भारतीय दर्शन की रूपरेखा -- देवी प्रसाद चट्टोपाध्याय।

12. संस्कृति के चार अध्याय - रामधारी सिंह दिनकर 

13. भारतीय ज्ञान परंपरा और विचारक - रजनीश कुमार शुक्ल 

14. भारतीय ज्ञान प्रणाली-  डॉ वसंत शिंदे 

15. हिंदू सभ्यता -  राधा कुमुद मुखर्जी 


डॉ मनीष कुमार मिश्रा 

ताशकंद 

Tuesday, 9 April 2024

CALL FOR PAPERS DEPARTMENT OF LINGUISTIC SUPPORT OF INTERCULTURAL COMMUNICATION FACULTY OF INTERNATIONAL JOURNALISM UZBEKISTAN STATE WORLD LANGUAGES UNIVERSITY

 

CALL FOR PAPERS

DEPARTMENT OF LINGUISTIC SUPPORT OF INTERCULTURAL COMMUNICATION

FACULTY OF INTERNATIONAL JOURNALISM

UZBEKISTAN STATE WORLD LANGUAGES UNIVERSITY

 

On April 24, 2024, the International Scientific and Practical Conference on “Media Communication: Politics of Language, and Culture” will be held at the Faculty of International Journalism of the Uzbekistan State World Languages University, organized by the Department of Linguistic Support of Intercultural Communication. The conference welcomes specialists in the field, leading researchers, professors, doctoral students, independent scholars, master’s students, and talented students to participate. The conference proceedings will be published in electronic format.

The purpose of the conference is to discuss theoretical and practical issues in journalism, media communication, medialinguistics, and language teaching, as well as to explore the current trends in professional translation, the challenges of communication in the digital age, the utilization of innovative pedagogical technologies in teaching foreign languages, and the improvement of foreign language teaching methodologies. Participants will have the opportunity to share their thoughts and experiences on these topics.

Topics for discussion at the conference include:

• Media Communication: The role of print and electronic media in creating media content.

• Sociolinguistics and linguistic research in the field of medialinguistics: Issues of language development.

• Contemporary directions in linguistic research: Relevant issues and future prospects.

• Innovative technologies in foreign language teaching.

Scientific articles will be accepted until April 22, 2024.

The following requirements are set for the scientific articles submitted for inclusion in the conference proceedings:

-   Scientific articles should be submitted in a relevant field of the conference, based on scientific analysis and developed ideas, and should include appropriate suggestions and recommendations. The articles should be written in a clear and concise manner, without linguistic or stylistic errors. The conference proceedings can be presented in Uzbek, Russian, or English languages.

-   The text of scientific articles should be formatted on A4-size pages with top and bottom margins of 2.5 cm, left margin of 3 cm, and right margin of 1.5 cm. The title of the article should be written in capital letters, followed by the author's first name and last name with an interval of 1 line. Then the author's affiliation and position are indicated. After that, a single line spacing is used, and the content of the text should be written with a line spacing of 1.5 using the Times New Roman font, size 14. The article should be between 3 and 5 pages in length.

-   The scientific article should be submitted in electronic form to the organizing committee (via email address or Telegram contact provided below).

-   Participants who present their articles at the conference will be awarded certificates, while participants who submit abstracts will be able to participate free of charge.

-   The conference participants will be recognized with certificates and will have the opportunity to receive acknowledgments and awards.

-   Participating in the conference with abstracts is FREE of charge.

The organizing committee has the right to review and select scientific articles.    

Conference Venue: 8 Lutfiy Street, Tashkent City.

Responsible Organizers: +99899 877 60 60 (Dilfuza Saidqodirova), +99899 8543554 (Eldorbek Shermatov), Email: eeldorshermatov@gmail.com

Wednesday, 27 March 2024

उज़्बेकी कोक समसा / समोसा










 यह है कोक समसा/ समोसा। इसमें हरी सब्जी भरी होती है और इसे तंदूर में सेकते हैं। मसाला और मिर्च बिलकुल नहीं होता, इसलिए मैंने शेंगदाने और मिर्च की अलग से चटनी बना ली ।

Tuesday, 26 March 2024

निशालदा : पारंपरिक उज़्बेकी मिष्ठान

 

 

निशालदा : पारंपरिक उज़्बेकी मिष्ठान

 

उज़्बेकिस्तान में रहते हुए मैंने यह लगातार महसूस किया है कि यहाँ जितना लोकप्रिय मांसाहार है, उतना ही मीठे पदार्थ भी । नवरोज़ का समय था अतः सुमालक की धूम थी । यहाँ अन्य पारंपरिक मिष्ठानों में हलवा, परबरदा, पश्मक, खष्टक, ब्रशवुड, शर्बत, उरमा, नवत चीनी, तुलुम्बा, बकलवा  और निशालदा प्रमुख है । इन मिष्ठानों की सबसे खास बात यह है कि इन्हें बनाने या सजा के परोसने के लिए शुद्ध प्राकृतिक पदार्थों का ही उपयोग किया जाता है । अतः ये स्वाद और सेहत दोनों के लिए अच्छा है ।  इसके अतिरिक्त  पेस्ट्री, तंदूर से गर्म केक, बहुत ही मुलायम, कुरकुरा और मुंह में जाते ही तुरंत पिघलने वाला संसा का स्वाद लाजवाब होता है । कोलोबक्स (लोचिरा, कटलामा, बगीरसोक, पाटिर, उरमा ) भी यहाँ विशेष लोकप्रिय है ।

उज़्बेकी भाषा में नाश्ता के लिए “नोनुश्ता” शब्द है। दस्तरखान पर सूखे मेवे, रसीले फलों, शहद या चीनी के साथ चाय, ब्रेड और पारंपरिक मिष्ठानों को सजाकर परोसने की संस्कृति इन्हें इतालवी, फ्रेंच या तुर्की पाक कला के समकक्ष लाकर खड़ा करती है । निशालदा मुख्य रूप से दूध,क्रीम और चीनी से बना मिष्ठान है । दिखने में यह सफ़ेद श्रीखंड की तरह होता है लेकिन श्रीखंड या बनारसी मलईया की तुलना में कहीं अधिक मीठा । इसे बनाने के लिए अंडे की सफेदी, मुलेठी की जड़ के टुकड़े, चीनी, पानी और साइट्रिक एसिड का मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है ।








अंडे की सफेदी को जर्दी से बहुत सावधानी से अलग करने की जरूरत होती है ताकि उन्हें ठीक से फेटा जा सके । इसके लिए आप बड़े धातु के पैन या बाल्टी का उपयोग कर सकते हैं। दूसरे बर्तन में मुलेठी की जड़ को पीसकर उसमें थोड़ी मात्रा में पानी डालकर लगभग 20 मिनट तक धीमी आंच पर पकाया जाता है । इसके बाद उसे ठंडा करके छान लिया जाता है । फ़िरअंडे की सफेदी जो की लगातार फेटने से गाढ़े क्रीम के रूप में बदल जाता है, उसके ऊपर मुलैठी की जड़ वाला ठंडा तरल अर्क धीरे धीरे डालते हुए फेटा जाता है । फ़िर किसी दूसरे बर्तन में ठंडे पानी में चीनी और साइट्रिक एसिड मिलाकर धीमी आंच पर रख दिया जाता है । इसे लगभग 20 मिनट तक लगातार हिलाते हुए पकाया जाता है । जब चाशनी तैयार हो जाए तो आंच बंद कर उसे ठंडा किया जाता है । फ़िर अंडे के गाढ़े हो चुके क्रीम को लगातार फेटते हुए उसमें यह चासनी मिला दी जाती है । इस तरह तैयार निशालदा मिठाई को एक कटोरे में भरकर फ्रिज में ठंडा होने के लिए रख दिया जाता है । 15-20 मिनट के लिए ठंडा करने के बाद निशालदा खाने के लिए तैयार हो जाता है । इसे उज़्बेक ब्रेड के स्लाइस और हरी चाय के साथ परोसा जाता है ।

उज़्बेकी पारंपरिक मिष्ठानों में निशालदा अपनी खास अहमियत रखता है । यह उज़्बेकी पाक कला, संस्कृति और प्रेम भावपूर्ण मेहमान नवाज़ी का सैकड़ों वर्षों पुराना जायका है ।

 

डॉ मनीष कुमार मिश्रा

विजिटिंग प्रोफ़ेसर ( ICCR हिन्दी चेयर )

ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज़

ताशकंद, उज्बेकिस्तान

Sunday, 24 March 2024

डॉ. मनीष कुमार मिश्रा संक्षिप्त परिचय वर्ष 2024

 




नाम :  डॉ. मनीष कुमार मिश्रा

जन्म : वसंत पंचमी, 09 फरवरी 1981

शिक्षा : एम ए ( हिन्दी एवं अँग्रेजी), पी.एचडी, एम.बी.ए ( मानव संसाधन )

संप्रति :

         विजिटिंग प्रोफेसर ( ICCR HINDI CHAIR ), ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज़,  ताशकंद, उज्बेकिस्तान ।

         के एम अग्रवाल महाविद्यालय (मुंबई विद्यापीठ से सम्बद्ध ) कल्याण पश्चिम ,महाराष्ट्र में सहायक आचार्य हिन्दी विभाग में 14 सितंबर 2010 से कार्यरत ।

प्रकाशन :

         हिंदी और अंग्रेजी की लगभग 35 पुस्तकों का संपादन

         अमरकांत को पढ़ते हुए (समीक्षा )   हिंदयुग्म, नई दिल्ली से वर्ष 2014 में प्रकाशित

         इस बार तुम्हारे शहर में – (कविता संग्रह), शब्दशृष्टि, नई दिल्ली से 2018 में प्रकाशित

         अक्टूबर उस साल – (कविता संग्रह), शब्दशृष्टि, नई दिल्ली से 2019 में प्रकाशित

·         स्मृतियाँ - (कहानी संग्रह), ज्ञान ज्योति पब्लिकेशंस, दिल्ली से 2021 में प्रकाशित

 

 

 

पुरस्कार  :

 

         श्याम सुंदर गुप्ता स्वर्ण पदक - वर्ष 2003, मुंबई विद्यापीठ,मुंबई,  महाराष्ट्र  

         डॉ. लक्ष्मी नारायण लाल राष्ट्रीय सम्मान वर्ष 2020, पल्लव काव्य मंच, रामपुर, उत्तर प्रदेश

         अखिल भारतीय राजभाषा हिंदी सेवी सम्मान – 2021,  महात्मा गाँधी राजभाषा हिंदी प्रचार संस्थान, पुणे, महाराष्ट्र

         संत नामदेव पुरस्कार 2020-2021, महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी, महाराष्ट्र शासन, मुंबई, महाराष्ट्र

 

 

सम्पर्क :

manishmuntazir@gmail.com

https://onlinehindijournal.blogspot.com

+91   8090100900 (भारत)

+998  503022454 (ताशकंद)

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