Monday 22 April 2024

एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद - उज्बेकिस्तान में हिन्दी : दशा और दिशा


 


































लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र
( भारतीय दूतावास, ताशकंद, उज्बेकिस्तान )
द्वारा आयोजित
एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद
उज्बेकिस्तान में हिन्दी : दशा और दिशा
(शुक्रवार, दिनांक : 18 सितंबर 2024)
कार्यक्रम स्थल : लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र, 5 बुज़ बोजोर सेंट 2 लेन, ताशकंद, उज्बेकिस्तान
लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र :
लाल बहादुर शास्त्रीय भारतीय संस्कृति केंद्र (LBSCIC), ताशकंद में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद(ICCR) का एक केंद्र है । यह केंद्र हिंदी, कथक, तबला और योग में निशुल्क नियमित कक्षाएं आयोजित करता है । केंद्र की स्थापना सन 1995 में हुई थी और सन 2005 में इसका नाम बदलकर लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र कर दिया गया । केंद्र की प्रमुख गतिविधियां इस प्रकार हैं –
हिंदी कत्थक तबला एवं योग कक्षाओं का नियमित संचालन
• सांस्कृतिक कार्यक्रमों एवं कार्यशालाओं का आयोजन
• व्याख्यान सेमिनार और प्रदर्शनियों का आयोजन
• आधिकारिक सांस्कृतिक सहयोग कार्यक्रम का कार्यान्वयन
• भारत, इसकी जीवन शैली और संस्कृति के बारे में जानकारी का प्रसार करना
• भारत सरकार छात्रवृत्ति कार्यक्रमों का प्रशासन करना
लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र और उज्बेकिस्तान के अन्य क्षेत्रों में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करता है और अन्य संस्थाओं के साथ भी सहयोग करता है । यह भारतीय फिल्मों और वृत्त चित्रों को प्रदर्शित करता है । केंद्र हर महीने के आखिरी शुक्रवार को ‘हिंदी मंच’ का आयोजन करता है जो उज़्बेकी नागरिकों को हिंदी में बातचीत करने और विभिन्न गतिविधियों में भाग लेने के लिए एक मंच प्रदान करता है । लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र, उज़्बेकिस्तान में भारतीय सांस्कृतिक मंडलों के दौरे की व्यवस्था करता है । जिसमें ‘शार्क तरोनालारी’ जैसे स्थानीय त्योहारों में भागीदारी भी शामिल है । सांस्कृतिक केंद्र भारतीय शैक्षिक संस्थानों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए आईसीसीआर और भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित विभिन्न छात्रवृत्ति कार्यक्रमों का भी संचालन करता है । केंद्र में एक वाचनालय के अलावा हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू,उज़्बेकी और रूसी भाषा में पुस्तकोंवाला एक पुस्तकालय भी है ।
प्रस्तावना :
एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उज्बेकिस्तान की पहचान नई है । यह एक समृद्ध इस्लामी विरासत वाला मुस्लिम बहुल देश है। ताशकंद, समरकंद, बुखारा और खीवा जैसे उज्बेकिस्तान के प्राचीन शहर अपनी सांस्कृतिक विरासत और व्यापार से जुड़ी गतिविधियों के लिए हमेशा से ही मशहूर रहे । यहां अनेकों जातियों- जनजातियों के बीच सह अस्तित्व की परंपरा ने इस देश में साझी संस्कृति को बढ़ा दिया । सह अस्तित्व और साझी विरासत भारत की भी पहचान है । ईरानी, तुर्की, मुस्लिम, यहूदी और ईसाई समाज ने मिलकर उज़्बेकिस्तान को एक राष्ट्र के रूप में नया गौरव प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ।
हिन्दी प्रचार-प्रसार की दृष्टि से उज़्बेकिस्तान मध्य एशिया में उम्मीदों के प्रकाश का ऐसा अन्तः केंद्र बनकर उभरा है जो हिन्दी जगत की आखों में नाच उठे । भारत और उज़्बेकिस्तान दोनों ही उस सपने से परिचित हैं जो आपसदारी एवं विश्वास के कंधों पर खड़ा हुआ है । अपनी भाषा और संस्कृति के वैश्विक विस्तार में ये दोनों राष्ट्र एक साथ हैं । अपनी भाषा और संस्कृति के माध्यम से मानवीय करुणा,विश्वास और संवेदना का सौंदर्य पूरे विश्व में बिखेरने के लिए ऐसी साझेदारी दोनों राष्ट्रों के हित में है । भाषायी मेलजोल दरअसल ख़ुशबू से भरे वे रंग हैं जो फ़ासलों के गुबार को दरकिनार कर छनकर आती हुई उम्मीद को अपनी कोह में बसा सजाते और सँवारते हैं । इस तरह की भाषायी साझेदारी भविष्य के भारत और उज़्बेकिस्तान के लिए निश्चित ही प्रगति के नए आयाम गढ़ेगी ।
भारतीय साहित्य पर पहली पाठ्य पुस्तक उज़्बेकिस्तान में सन 1991 में प्रोफेसर तमारा खोजाएवा द्वारा तैयार की गई जिसमें रविंद्रनाथ ठाकुर, प्रेमचंद, वृंदावनलाल वर्मा, कृष्ण चंद्र, यशपाल, जैनेंद्र कुमार, अमृता प्रीतम, रामचंद्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी और नामवर सिंह जैसे साहित्यकारों एवं आलोचकों को शामिल किया गया । कवियों में मैथिलीशरण गुप्त, सुभद्रा कुमारी चौहान, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, सुमित्रा नंदन पंत, हरिवंश राय बच्चन, केदारनाथ सिंह इत्यादि को शामिल किया गया ।उज़्बेकी-हिन्दी शब्दकोश का निर्माण भी यहां की शिक्षकों द्वारा हाल ही में किया गया है । भारत के संदर्भ में साहित्य रचनेवाले उज़्बेकी साहित्यकारों में गफूर गुलाम, हमीद गुलाम, अस्काद मुहतार, हमीद अलीमजान, मिरतेमीर, सईदा जुनुनोवा, एरकीन वहीदोवा और तमारा खोदजाएवा का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है । 7 जुलाई 2015 को देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस पहले उज़्बेकी-हिन्दी शब्दकोश का लोकार्पण किया गया । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी यात्रा के दौरान भारतीय फिल्म और संगीत की उज्बेकिस्तान में लोकप्रियता के साथ-साथ यह भी याद दिलाया कि सन 2012 में उज़्बेक रेडियो ने हिंदी ब्रॉडकास्टिंग के 50 वर्ष पूर्ण किए ।
उज़्बेकिस्तान में हिन्दी की वर्तमान स्थिति एवं भविष्य में इसके व्यापक प्रचार-प्रसार एवं अध्ययन-अध्यापन की स्थितियों कों समझना एवं उसका दस्तावेजीकरण ही इस एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद का उद्देश्य है ।
शोध आलेख प्रस्तुत करने हेतु उप विषय :
• उज़्बेकिस्तान और भारत के सांस्कृतिक संबंध
• उज़्बेकिस्तान और भारत के बीच शैक्षणिक अनुबंध
• उज़्बेकिस्तान में हिन्दी अध्ययन – अध्यापन
• उज़्बेकिस्तान में हिन्दी अध्ययन – अध्यापन से जुड़े प्रमुख शैक्षणिक केंद्र
• उज़्बेकिस्तान में हिन्दी अध्ययन – अध्यापन से जुड़े प्रमुख लोग
• उज़्बेकिस्तान में हिन्दी से जुड़े शोध कार्य
• उज़्बेकिस्तान में हिन्दी पुस्तकों के प्रकाशन का इतिहास
• उज़्बेकिस्तान में अनुवाद के माध्यम से हिन्दी साहित्य का प्रचार प्रसार
• अनुवाद के माध्यम से हिन्दी – उज़्बेकी साहित्य का आदान-प्रदान
• उज़्बेकिस्तान और हिन्दी फिल्में
• उज़्बेकिस्तान में भारतीय कला और संस्कृति से जुड़े महत्वपूर्ण कार्य
• उज़्बेकिस्तान के विद्यार्थियों के लिए भारत में छात्रवृत्ति की योजनाएँ
• उज़्बेकिस्तान और भारत : भविष्य की संभावनाएं
• उज़्बेकिस्तान से निकलनेवाली हिन्दी की पत्रिकाओं का इतिहास
• उज्बेकिस्तान के हिन्दी साहित्यकार
• उज़्बेकिस्तान रेडियो और हिन्दी प्रसारण
• उज़्बेकिस्तान टेलीविज़न और हिन्दी प्रसारण
( उपर्युक्त विषयों के अतिरिक्त भी आप उज़्बेकिस्तान और भारत की कला, संस्कृति और हिन्दी को लेकर किसी विषय पर संयोजक की पूर्व अनुमति से शोध आलेख प्रस्तुत कर सकते हैं । )
शोध आलेख कैसे भेजें :
• शोध आलेख सिर्फ़ हिन्दी भाषा में ही स्वीकार किए जाएंगे
• शोध आलेख कम से कम 1500 शब्दों और अधिकतम 4000 शब्दों में लिखा हो
• शोध आलेख पूर्व में कहीं प्रकाशित या प्रस्तुत न हो
• शोध आलेख मौलिक और सुव्यवस्थित हो
• शोध आलेख यूनिकोड मंगल में 12 फॉन्ट साइज़ में A4 साइज़ पृष्ठ के एक तरफ टंकित हो
• शोध आलेख ईमेल में attached word file के रूप में ही भेजें
• शोध आलेख के अंत में संदर्भ सूची अवश्य दें
• शोध आलेख के प्रारंभ में शोध आलेख का शीर्षक और अंत में अपना नाम, पद, संस्था का नाम, ईमेल और मोबाइल नंबर अवश्य लिखें
• शोध आलेख भेजने की अंतिम तिथि 30 मई 2024 है
• शोध आलेख manishmuntazir@gmail.com पर प्रेषित करें
परिसंवाद में सहभागिता :
• इस परिसंवाद में सहभागी होने के लिए आप को किसी तरह का पंजीकरण शुल्क नहीं देना होगा
• चुने हुए आलेखों को लाल बहादुर शास्त्रीय भारतीय संस्कृति केंद्र (LBSCIC), ताशकंद द्वारा ISBN के साथ पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जाएगा

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