Sunday, 14 November 2021
Saturday, 13 November 2021
Friday, 12 November 2021
रहमतों से सजे
प्रेम की चार कवितायें डॉ. मनीष कुमार मिश्रा
प्रेम की चार कवितायें
Thursday, 11 November 2021
कुछ और पीला होकर
कुछ और पीला होकर शाख से जुदा हो जाऊंगा
फिर क्या कि हवाओं के साथ मैं हवा हो जाऊंगा ।
मेरे लिखे इन शब्दों से एक जादू तो यकीनन होगा
इन्हें जब भी कहीं पढ़ा जायेगा मैं ज़िंदा हो जाऊंगा ।
हर गलती पर यही झूठी तसल्ली खुद को देता रहा
कि बस कल से ही ख़ुदा का नेक बंदा हो जाऊंगा ।
चिलाकशी करनेवाला वो पीर भी कितना अजीब था
कहता कि खुदा से मिलकर मैं भी खुदा हो जाऊंगा ।
Dr Manish Kumar Mishra
manishmuntazir@gmail.com
Wednesday, 10 November 2021
Tuesday, 9 November 2021
कामायनी एक परिचय
फिल्म रूपांतरण
Monday, 8 November 2021
रस सिद्धांत
मुश्किल तो था लेकिन गवारा कर लिया ।
मुश्किल तो था लेकिन गवारा कर लिया
हमने तुझसे थोड़ा सा किनारा कर लिया ।
ये इल्म, अमल और तहज़ीब के मसाइल
इनसे ऊबा तो ख़ुद को आवारा कर लिया ।
जब उजालों के तिलिस्म से डरने लगा तो
मुफलिसी में अंधेरों को सहारा कर लिया ।
जो दुश्मन थे मेरे मगर वसूलों के पाबंद रहे
उन्हें अपना अजीज़ अपना प्यारा कर लिया ।
मनीष कुमार मिश्रा
manishmuntazir@gmail.com
Saturday, 6 November 2021
जो रंजो गम दे वो राहत पाए
किसी यार की वो चाहत पाए ।
रूह में इश्क की आग जला
मुनव्वर मुर्शीद की आदत पाए ।
इल्म और अमल की राह पर
मुरीद वस्ल की अमानत पाए ।
जमाल -ए- यार के रंग में रंगकर
वो उसी यार की शबाहत पाए ।
मनीष कुमार मिश्रा
manishmuntazir@gmail.com
Monday, 1 November 2021
दीपावली हर देहरी, हर द्वार ।
दीपावली - हर देहरी, हर द्वार ।
प्रकाश पर्व के रूप में
जैसे आती है दीपावली
वैसे ही आए
अनुभव से अनुभूति
ज्ञान से विवेक
संवेदनाओं से करुणा ।
प्रांजल विचारों का ज्योति कलश
सौभाग्य का अक्षत
संकल्पों का मांगल्य
आए
आकर ठहर जाए
हर देहरी, हर द्वार ।
यह दीपावली
पवित्रता का पुनर्वास करे
हृदय को अधिक उदार करे
सपने सब साकार करे
हर देहरी, हर द्वार ।
डा. मनीष कुमार मिश्रा
कल्याण - पश्चिम, महाराष्ट्र ।
manishmuntazir@gmail.com
Sunday, 31 October 2021
शायद किसी दिन
शायद किसी दिन
किसी आदेशानुसार नहीं
बल्कि
इच्छानुसार करूंगा
एक ज़रूरी काम
जिसकी कोई सूचना नहीं
उसी की आरजू में
उसके जिक्र से भरी
एक नर्म और हरी कविता लिखूंगा
उस दुर्लभ एकांत में
चुप्पियों का राग होगा
उजालों के कतरे से
अंधेरा वहां सहमा होगा
हँसने और रोने का
कितना सारा क़िस्सा होगा !
वहां जीवन की पसरी हुई गंध
मोहक और मादक होगी
वहां उस दिन
उस कविता में
शायद तुम्हारा नाम भी हो
यदि ऐसा न हुआ तो भी
वह कविता
तुम्हारे नाम होगी ।
डा. मनीष कुमार मिश्रा
के एम अग्रवाल महाविद्यालय
कल्याण पश्चिम
महाराष्ट्र
manishmuntazir@gmail.com
Friday, 29 October 2021
Renu
FANISHWARNATH RENU Ka Sampurn Katha Sahitya (फणीश्वरनाथ रेणु का सम्पूर्ण कथा साहित्य) https://www.amazon.in/dp/9390410851/ref=cm_sw_r_apan_glt_fabc_87830S0TZ6EZV1DH0N7N
Thursday, 21 October 2021
UGC care listed research Journal
अनहद लोक ISSN no UGC care listedPeer-Reviewed रिसर्च जर्नल अंक 14के लिए 10 November 2021तक आलेख आमंत्रित हैं कला संस्कृति के किसी भी पक्ष पर लेख भेज सकते हैं ।लेख मौलिक , सारगर्भित व शोध परक हों पेपर सबमिट करने से पूर्व गाईड लाईन पढ़ें
#We are inviting Articles for Volume 14th of U G C care listed Peer-Reviewed Research Journal ANHAD LOK (ISSN). Writers can send articles on any part related to Art & Culture and it has to be original, abstract and research oriented.
Last Date of Article submission- 10th November 20201
Email ID- anhadlok.vyanjana@gmail.com
Link-http://vyanjanasociety.com/
Guidelines - http://vyanjanasociety.com/guidelines
/https://forms.gle/C7KZTqioQ72d5TnA9
Tuesday, 19 October 2021
पूरा दुख और आधा चाँद - परवीन शाकिर
पूरा दुख और आधा चाँद
हिज्र की शब और ऐसा चाँद
दिन में वहशत बहल गई
रात हुई और निकला चाँद
किस मक़्तल से गुज़रा होगा
इतना सहमा सहमा चाँद
यादों की आबाद गली में
घूम रहा है तन्हा चाँद
मेरी करवट पर जाग उठ्ठे
नींद का कितना कच्चा चाँद
मेरे मुँह को किस हैरत से
देख रहा है भोला चाँद
इतने घने बादल के पीछे
कितना तन्हा होगा चाँद
आँसू रोके नूर नहाए
दिल दरिया तन सहरा चाँद
इतने रौशन चेहरे पर भी
सूरज का है साया चाँद
जब पानी में चेहरा देखा
तू ने किस को सोचा चाँद
बरगद की इक शाख़ हटा कर
जाने किस को झाँका चाँद
बादल के रेशम झूले में
भोर समय तक सोया चाँद
रात के शाने पर सर रक्खे
देख रहा है सपना चाँद
सूखे पत्तों के झुरमुट पर
शबनम थी या नन्हा चाँद
हाथ हिला कर रुख़्सत होगा
उस की सूरत हिज्र का चाँद
सहरा सहरा भटक रहा है
अपने इश्क़ में सच्चा चाँद
रात के शायद एक बजे हैं
सोता होगा मेरा चाँद।
🔴🟢🟣🟠🔵
*परवीन शाकिर*
भारत रत्न पंडित भीमसेन जोशी : जन्म शताब्दी वर्ष के बहाने ।
डॉ. मनीष कुमार मिश्रा
भारत रत्न पंडित भीमसेन जोशी के जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में सूचना और प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार के प्रकाशन विभाग द्वारा वर्ष 2021 में एक महत्वपूर्ण पुस्तक का प्रकाशन हुआ I अंग्रेजी में प्रकाशित इस पुस्तक का शीर्षक है “ Pandit Bhimsen Joshi : Celebrating his Centenary ( A Journey of relentless riyaaz, devotion and pathbreaking music )’’ इस पुस्तक की लेखिका हैं डॉ. कस्तूरी पायगुड़े राणे I आप ललित कला केंद्र, सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय एवं FLAME युनिवर्सिटी, पुणे में संगीत की प्राध्यापिका के रूप में कार्यरत हैं I आप एक जानीमानी शास्त्रीय गायिका हैं I पद्मश्री किरण सेठ द्वारा स्थापित प्रतिष्ठित संस्था SPIC MACAY से भी आप जुडी हुई हैं I
एक संगीत साधिका के रूप में लेखिका कस्तूरी पायगुड़े राणे पंडित भीमसेन जोशी से अपने छात्र जीवन से ही प्रभावित थीं I एक कलाकार, स्वर साधक, आयोजक, रिकार्डिंग आर्टिस्ट एवं गुरु के रूप में पंडित जोशी लेखिका को प्रभावित करते रहे I सवाई गंधर्व महोत्सव,पुणे में आप पंडित जी को संगीत प्रस्तुति देते हुए सुन चुकी थीं, लेकिन उनसे मिलने का पहला मौका वर्ष 2000 में मिला I अवसर था पुणे के प्रतिष्ठित फ़र्गुसन कालेज में SPIC MACAY के राष्ट्रिय सम्मलेन का I पंडित जी इस सम्मलेन में उपस्थित थे I SPIC MACAY के आयोजनों से पंडित जी वर्ष 1980 से ही जुड़े थे I पद्मश्री किरण सेठ के माध्यम से ही लेखिका को यह अवसर मिला कि सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा भारत रत्न पंडित भीमसेन जोशी के जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में प्रस्तावित पुस्तक से लेखिका के रूप में जुड़कर अपना महती योगदान दे सकें I कोरोना के भयावह समय में अक्टूबर 2020 के आस-पास लेखिका ने इस पुस्तक का लेखन कार्य शुरू करते हुए जनवरी 2021 तक इसे पूर्ण करने की चुनौती को भी बख़ूबी अंजाम दिया I दरअसल पंडित जी का शताब्दी समारोह 04 फ़रवरी 2021 से शुरू हो रहा था अतः मंत्रालय हर हाल में यह पुस्तक जनवरी 2021 तक प्रकाशित करना चाहता था I अध्ययन, शोध और साक्षात्कार की लंबी श्रृंखला के बाद अंततः यह पुस्तक निर्धारित समयावधि में पाठकों के बीच आ चुकी है I पुस्तक की लेखिका डॉ. कस्तूरी पायगुड़े राणे अपने अथक श्रम, समर्पण, धैर्य और अकादमिक निष्ठा के लिए बधाई की पात्र हैं I
158 पृष्ठों की यह क़िताब मुख्य रूप से 17 लघु अध्यायों में विभक्त है I इन अध्यायों के माध्यम से पंडित भीमसेन जोशी की पारिवारिक पृष्ठभूमि, उनका बचपन, संघर्ष, गुरु की तलाश, सतत यात्रायें , तालीम, अवसर, आयोजन, पुरस्कार एवं सम्मान, विदेश यात्रायें, समकालीन संगीत के साथी, संगीत घरानों की परंपरा, कर्नाटक संगीत , शिष्य परंपरा, रेडियो एवं ग्रामोफोन रिकार्डिंग समेत अनेकों पहलुओं को बहुत ही सहज एवं सरल तरीके से लेखिका ने प्रस्तुत किया है I पंडित जी से जुड़े कई रोचक संस्मरणों को भी बड़ी बारीकी के साथ अध्यायों में बुना गया है I समकालीन संगीत और भारतीय शास्त्रीय संगीत को लेकर पंडित भीमसेन जोशी के विचारों को भी बड़ी प्रमुखता के साथ उद्धृत किया गया है I क़िताब का कलेवर एवं चित्र छवियाँ बहुत सुंदर हैं I किराना घराने की वंश वृक्षावली एवं संदर्भ ग्रंथों की सूची पुस्तक के अंत में व्यवस्थित तरीके से प्रदान की गई है I पंडित जी पर शोध कार्य करने वाले अध्येताओं के लिए ये सूची निश्चित ही महत्वपूर्ण साबित होगी I
पहले अध्याय में पंडित भीमसेन जोशी के बचपन की चर्चा करते हुए लेखिका बताती हैं कि सन् 1922 में गुरुराज जोशी कर्नाटक के धारवाड़ जिले के गडग नामक स्थान से बिहार के गया आ जाते हैं , अपनी उच्च शिक्षा के लिए । आप एक शिक्षक, शिक्षाविद और संस्कृत के विद्वान थे । आपकी धर्म पत्नी धारवाड में ही थी । 04 फरवरी 1922 को आप की पत्नी गोदावरीबाई एक पुत्र को जन्म देती हैं । यह दिन ‘रथ सप्तमी’ और ‘सूर्य जयंती’ का था जो हिंदूओं में बड़ा शुभ माना जाता है। माँ-बाप ने इस बालक का नाम ‘भीमसेन’ रखा जो आगे चलकर हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का नामचीन गायक बना । 16 भाई-बहनों में आप सबसे बड़े थे । आप का परिवार कन्नड़ देशस्थ माधव ब्राह्मण परिवार था । आप के दादा भीमाचार्य एक प्रसिद्ध कीर्तनकार और समर्पित संगीततज्ञ थे । आप की माँ गोदावरीबाई एक धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी । बालक भीमसेन को सुलाने के लिए वे अपने मधुर कंठ से भगवान के भजन गाती, संभवतः इन्हीं सूरीले भजनों और लोरियों से बालक भीमसेन की संगीत शिक्षा शुरू हुई हो ।
दूसरा अध्याय संगीत घरानों की परंपरा से संबंधित है । पंडित जी सात वर्ष की आयु से ही तानपुरा और हारमोनियम बजाने का प्रयास करने लगे थे । बच्चे की संगीत के प्रति रुचि एवम् झुकाव को समझने में पिता को देर न लगी और उन्होंने इसी क्षेत्र में उसे शिक्षित करने का महत्त्वपूर्ण निर्णय लिया । ख्याल और अभंग की अपनी प्रस्तुतियाँ के लिए पंडित जी आज भी पूरे विश्व के संगीत प्रेमियों में प्रमुखता से याद किये जाते हैं । पंडित जी किराना घराने से शिक्षित हुए थे । भारतीय शास्त्रीय संगीत में घरानों की पुरानी परंपरा है । हर घराने का अपना अनुशासन होता है । स्वर, लय, ताल, बंदिश और रागों की प्रस्तुति का अपना विशिष्ट अंदाज । खयाल गायकी के लिए जो घराने जाने जाते है उनमें ग्वालियर घराना, आगरा घराना, किराना घराना, जयपुर घराना, भेंडी बाजार और पटियाला घराना प्रमुख हैं ।
तीसरा अध्याय कर्नाटक संगीत की परंपरा और विरासत को लेकर संक्षेप् में ही सही लेकिन संगीत में इस राज्य के योगदान को समर्पित है । बालकृष्ण बुआ इचलकरंजिकर सन 1880 में महाराष्ट्र के मिरज में आये । आप ग्वालियर खयाल घराने से तालीम हासिल कर चुके थे । उनके मिरज आने के बाद कई गायक दक्षिण की तरफ आये, जो कि उन दिनों बाम्बे प्रेसिडेन्सी के नाम से जाना जाता था । मिराज, सांगली, कोल्हापुर, इचलकरंजी, औंध, कुरुंदवाद और भोर जैसी रियासतों का शासन था । ये रियासते मैसूर रियासत से भी सटे हुए थे । कई खयाल गायकों को इन रियासतों से पद-प्रतिष्ठा एवम् मान-सम्मान प्राप्त हुआ । इन गायकों में अब्दुल करीम खान (किराना घराने के संस्थापक), नथ्थन खान (आगरा घराना, अलादिया खान (जयपुर, अतरौली खयाल घराना), भास्कर बुआ बखारले आदि उस्तादों ने उत्तर भारत से कई अन्य युवाओं को इसतरफ खींचा और स्थानीय संगीत प्रेमियों को भी संगीत कला में पारंगत करने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया । ‘बाम्बे कर्नाटक’ इलाके में मैसूर रियासत के माध्यम से शास्त्रीय संगीत लोकप्रिय हुआ । पंचाक्षरी बुआ और नीलकंठ बुआ वे पहले कन्नड भाषी थे जिन्होंने हिंदुस्तानी संगीत में नाम कमाया । ये दोनो ही धारवाड जिले से थे । पंचाक्षरी बुआ से बसवराज राजगुरू ने शिक्षा ली थी । बसवराज ने सवाई गंधर्व से भी संगीत के गुर सीखे । सवाई गंधर्व की शिष्य परंपरा में हुबली से गंगूबाई हंगल और गडग से भीमसेन जोशी जैसे प्रमुख नाम हैं । मंजी खान और मुरजी खान से सीखने से पहले मल्लिकार्जुन मंसूर ने नीलकंठ बुआ से संगीत की पहली शिक्षा ली । सितार वादक रहिमत खान और वीणा वादक मोहम्मद खान ने भी अपनी कर्मभूमि इसी धारवाड को बनायी ।
चौथा अध्याय किराना घराना और भीमसेन जोशी नाम से है । इस अध्याय के अंतर्गत किराना घराने की विशेषताओं का वर्णन किया गया है । किराना गायकी, स्वर, पुकार, सरगम, तान, बंदिश, अलाप, अतिविलंबित लय इत्यादि की चर्चा करते हुए इसकी विशेषताओं को इस अध्याय में स्पष्ट किया गया है । इस घराने के लोकप्रिय राग जैसे ललित, पुरिया, तोडी, मुल्तानी, शुद्ध खयाल, कोमल रिशभ असवारी, दरबारी कन्नड़, पटदीप इत्यादी । अध्याय पाँच में अब्दुल करीम खान के जीवन संघर्ष और संगीत यात्रा की चर्चा की गई है । अब्दुल करीम खान का जन्म सन 1872 में हुआ । आप के पिता उस्ताद काले खां के पारिवारिक संगीत की जड़े गोपाल नायक से जुड़ी हुई हैं । जो कि 15 वीं सदी में देवगिरी के राजा रामदेवराय के दरबार में गायक थे । आप ने अपने पिता और चाचा नन्हे खां से संगीत की शिक्षा ली । उत्तर प्रदेश के शामली जिले के छोटे से शहर कैराना को छोड़ आप बड़ोदा आये जहाँ एक कवि और संगीतकार के रूप में आप ने नाम कमाया । यहीं रहते हुए उन्होंने ताराबाई माने से दूसरी शादी की । बाद में आप महाराष्ट्र के मिरज में बसे और यहीं आस-पास के रियासतों से कई लोगों को संगीत की शिक्षा दी ।
छठवां अध्याय गुरू की तलाश /चयन से संबंधित है । इस अध्याय में सवाई गंधर्व की विस्तार से चर्चा की गई है । फिरोज दस्तुर एवम गंगूबाई हंगल इन्ही के शिष्य परंपरा से रहे । आप का जन्म सन 1886 में हुआ । शुरू में आप रामचंद्र कुंडगोलकर सौंशी के नाम से जाने गए । आप का जन्मस्थान कुडगोल, जिला धारवाड कर्नाटक रहा । आप के पिता गणेश सौंशी अब्दुल करीम खां के यहॉं एक क्लर्क थे । आपने बलवंतराव कोल्हटकर से 75 ध्रुपद कंपोजीशन, कुछ तराने और ताल सीखे । कोल्हटकर की मृत्यु 1998 में हुई । आगे चलकर अब्दुल करीम खां ने सन 1901 से सवाई गंधर्व को तालीम दी । आगे चलकर सवाई गंधर्व ने संगीत के क्षेत्र में बड़ा नाम कमाया । गंधर्व की मृत्यु पुणे में सन 1952 में 66 वर्ष की उम्र में हुई । सातवां अध्याय ‘Delving into the Legend’s Early years’ नाम से है । इस अध्याय में पंडित जी की बचपन से ही संगीत के प्रति रूचि और संगीत की धुन में कहीं भी चले जाने की आदतों का रोचक वर्णन है । उनकी इन्हीं आदतों के कारण पिता ने पंडित जी की शर्ट पर ही लिख दिया था ‘‘शिक्षक जोशी का लड़का’’ ताकि लोग उसे उन तक पहुँचा सकें । पंडित जी अक्सर स्कूल से घर आते हुए एक ग्रामोफोन रिकार्ड की दुकान पर रुककर वहॉं बजनेवाले संगीत को सुनते । यहीं पर बालक जोशी ने नारायणराव व्यास और पंडितराव नागरकर को सुना । कुछ कन्नड़ भाषा के प्रसिद्ध भजन भी उन्होंने यहीं सुनकर सीखा । पिता ने चन्नप्पा कुर्ताकोटी से जोशी की 7 वर्ष की आयु में विधिवत संगीत शिक्षा शुरू करायी । बाद में पंडित श्यामाचार्य से भीमसेन जोशी ने संगीत शिक्षा ली । जब अपनी पसंदीदा दुकान पर भीमसेन जोशी ने अब्दुल करीम खान को सुना तो अधिर हो गए और 11 साल की उम्र में वे घर से गुरू की तलाश में भाग गये ।
आठवां अध्याय Off to Gwalior – Pursuit Begins दरअसल पंडित भीमसेन के ग्वालियर पहुँचने की रोमांचक कहानी है । घर से भागकर वे गडग से १५० किमी दूर बीजापुर आये । यहाँ कुछ दिन भटकने के बाद उन्होंने ग्वालियर जाने का निर्णय किया । अतः बीजापुर से वे पहले पुणे आये । पुणे से बाम्बे और बाम्बे से दिल्ली । लेकिन बिना टिकट की यात्रा के लिए उन्हे भुसावल में ही उतार दिया गया और स्टेशन मास्टर की हिरासत में दो दिन भूखा प्यासा रखा गया । बाद में दुबारा विना टिकट यात्रा न करने की हिदायत के साथ छोड़ा गया । लेकिन वे दुबारा ट्रेन से खंडवा आ गये जहाँ उन्हें फिर दो दिन हिरासत में रखा गया । इसी तरह यात्रा करते हुए तीन महीने बाद वे ग्वालियर पहुँचे । यहाँ उन्होंने हाफिज अली खान से मुलाकात की और माधव संगीत विद्यालय में प्रवेश हेतु उनका लिखा पत्र भी प्राप्त किया । हाफिज अली खां को सुनने और उनसे बहुत कुछ सीखने का मौका उन्हें यहीं मिला । पूछवाले ने भीमसेन को खैरागपुर बंगाल के केशव मुकुंद लुखे से संगीत सीखने की सलाह दी । चार महीने उनसे संगीत सीखने के बाद भीमसेन, भीष्मदेव चटर्जी से संगीत सीखने आये जो अब्दुल खां के शिष्य थे । कुछ दिन कलकत्ता रहने के बाद वे वापस दिल्ली और फिर जालंधर आ गये । जालंधर रहते हुए उन्होंने आर्य संगीत विद्यालय में प्रवेश लिया जहाँ ‘ध्रुपद धमार’ सीखा । यहीं ‘सम्मेलन’ में उन्हे विनायकराव पटवर्धन से मिलने का मौका मिला। उनसे खयाल गायकी की बारीकियाँ सीखने की जब भीमसेन ने बात की तो उन्होंने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि - फिर तुम यहाँ क्या कर रहे हो ? तुम्हारे अपने पैतृक जिले में सवाई गंधर्व हैं जो कुंडगोल गाँव में रहते हैं । यह गाँव गड़ग के बगल का गाँव था । इसतरह पंडित भीमसेन वापस अपने घर आये । फिर सन 1936 में सवाई गंधर्व के मार्गदर्शन में आप की संगीत शिक्षा प्रारंभ हुई।
अध्याय नौ पंडित भीमसेन जोशी की तालीम से संबंधित है । सन 1936 में सवाई गंधर्व के मार्गदर्शन में जो तालीम शुरू हुई उसने भीमसेन की आवाज को निखार दिया । सन 1942 में पैरालाइसिस के कारण सवाई गंधर्व आगे नहीं सिखा सके । वहाँ से वापस घर आकर पंडित जी ने छोटे - मोटे आयोजनों में प्रस्तुति देनी शुरू कर दी थी । धीरे-धीरे उन्हें आमंत्रण देशभर से मिलने लगे । बम्बई, पुणे और नागपुर जैसे शहरों में उनका अक्सर जाना होने लगा । धीरे धीरे उन्हे इससे अच्छी धनराशि मिलने लगी । ऑल इंडिया रेडिओ के लखनऊ स्टेशन पर ‘स्टॉफ आर्टिस्ट’ के रूप में भी आपकी नियुक्ति हुई। लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने और बर्मा की तरफ से भारत पर जापान के हमले की आशंका के बीच पिता के कहने पर सन 1942 के अंत तक घर वापस लौट आये । पुस्तक का दसवां अध्याय 1946 Year of Fortune पंडित जी के जीवन में बड़े अवसरों की कहानी है । जनवरी 1946 में सवाई गंधर्व के षष्ठिपूर्ति के अवसर पर पुणे के समारोह में उन्हें प्रस्तुति का अवसर मिला । सवाई गंधर्व पैरालाइसेस से धीरे-धीरे ठीक हो रहे थे । अब वे खुद से चल सकते थे और वे इस समारोह में उपस्थित थे । अपने गुरू के सामने यह उनकी पहली प्रस्तुति थी । यह प्रस्तुति कामयाब रही । इसी प्रस्तुति के बाद ही उन्हें बाम्बे, सोलापुर और अहमदनगर समेत कई शहरों के बड़े-बड़े आयोजकों द्वारा उन्हे कार्यक्रम प्रस्तुति का आमंत्रण मिला । अपने जीवनकाल में पंडित जी ने दस हजार से अधिक प्रस्तुतियाँ दीं ।
अध्याय इग्यारह A New Era of Guardianship में आजादी के बाद संगीत और कला क्षेत्र के नये सिरे से संरक्षण, विकास और लोकप्रियता की स्थितियाँ का वर्णन है । इस समय तक भीमसेन जोशी काफी लोकप्रिय हो गये थे । वे एक तरफ परंपरागत शास्त्रीय गायकी को पूरी तरह अपनाते हुए आगे बढ़ रहे तो दूसरी तरफ जनसामान्य की आकांक्षायाँ एवम् उनके बीच लोकप्रिय कलारूपों को भी समझते थे । मराठी संगीत प्रेमियों ने तान और खयाल के लिए भीमसेन जोशी पर भरपूर प्रेम लुटाया । ‘तानकरी’ मराठी भाषा भाषियों में हमेशा आदर सम्मान पाते रहे हैं । ‘संतवाणी’ की गायकी ने भी उनकी लोकप्रियता में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया । अध्याय बारह Global Tours के माध्यम से पंडित जी की वैश्विक यात्राओं का विस्तार से वर्णन किया गया है । सन 1964 के बाद उन्हें विदेशों में सांगीतिक प्रस्तुतियाँ देने का अवसर मिला । विदेशों में अपने कई कार्यक्रम के आयोजन की भी जिम्मेदारी पंडित भीमसेन जी ने स्वयं निभाई । पश्चिमी और मिडल ईस्ट के देशों में आप की काफी लोकप्रियता थी । विदेशों में अपनी पहली प्रस्तुति पंडित भीमसेन जी ने 1964 में काबूल में दी थी । इसमें बाद सन 1978 में आप अमेरिका, कनाडा और इंग्लैंड की यात्रा पर गये । आगे इटली, रोम, दुबई, अबूधाबी, बहरीन इत्यादि देशों की आप ने यात्रायें की ।
अध्याय तेरह The changing Scenario में किताब की लेखिका ने नई पीढ़ी की संगीत को लेकर बदलती रूचि को पुणे के परिप्रेक्ष्य में अनुभवों के आधार पर व्याख्यायित करने का प्रयास किया है। इस संदर्भ में वर्ष 2000 में भीमसेन जी से अपनी मुलाकात को बातों का जिक्र वे करती हैं । पंडित जी बदलावों के प्रति सूक्ष्म नजर रखते हुए विश्वास व्यक्त करते कि भारतीय शास्त्रीय संगीत समय के साथ अपनी गति और लय को बनाये रखने हमेशा सफल रहेगा। वे ‘अलापी’ को रागों की आत्मा मानते थे । वे मानते थे कि सच्चा कलाकार अपनी प्रस्तुति के पहले स्वयं आनंदित होता है फिर दर्शकों के रिस्पान्स के बारे में सोचता है । वे नये कलाकारों को रियाज लगातार करते रहने की सलाह भी देते थे । यह अपनी कला को मॉजने के लिए जरूरी है । अध्याय चौदह Reflection में उन महान संगीत की विभूतियों का जिक्र है जिनसे अपने जीवन काल में पंडित जी मिले और उन मुलाकातों में इतना ‘प्रभाव’ रहा कि अंर्तमुखी भीमसेन जी इन स्मृतियों का जिक्र यदा-कदा करते रहे। इनमें जनबा आमिर खां का जिक्र वे विशेष तौर पर करते जिनसे वे राग ‘अभेगी’ सीखने की बात करते हैं। पंडित जी इसे खांन साहब का श्रेष्ठतम उपहार मानते थे । इसी तरह केसरबाई केरकर, कुमार गंधर्व, गंगुबाई हंगल, फिरोज दस्तुर, वंसराव देशपांडे जैसे नामों का उल्लेख है । SPICMACY से उनके जुड़ाव की चर्चा भी इस अध्याय में है जो कि सन 1980 से ही थी ।
अध्याय पंद्रह Honours And Awards में पंडित जो मिले पुरस्कारों एवम् सम्मानों की विस्तार से चर्चा की गई है । जिसमें मुख्यरूप से पद्मश्री 1972, संगीत नाटक अकादमी अवार्ड 1975, पद्मभूषण 1985, संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप 1998, तानसेन सम्मान 1998, पद्मविभूषण 1999, देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारतरत्न 2002, महाराष्ट्र भूषण 2005 समेत अनेकों अन्य पुरस्कारों की चर्चा है । इनके अतिरिक्त पुणे विश्वविद्यालय में भीमसेन जोशी चेअर एवं सवाई गंधर्व फेस्टिवल की भी विस्तार से चर्चा की गई है । अध्याय सोलह Role as Guru & his musical excellence में पंडित जी का एक गुरु के रूप में चित्रण है । पंडित जी अपनी सांगीतिक प्रस्तुतियों के लिए लगातार यात्रा पर रहते थे, इस कारण अधिक शिष्यों को नहीं सिखा सके । लेकिन वे अपने शिष्यों को लगातार प्रोत्साहित करते थे । जिन कार्यक्रमों में पंडित जी जाते उनमें अपने उपस्थित शिष्यों को भी प्रस्तुति देने के लिए प्रेरित करते । माधव गुड़ी, नारायण देशपांडे, श्रीकांत देशपांडे, रामकृष्ण पटवर्धन आप के प्रमुख शिष्य रहे । पंडित जी ने हमेशा नवाचारों का समर्थन किया । अध्याय सत्रह Pandit Joshi : life well lived इस किताब का अंतिम अध्याय है । इस अध्याय में पंडित जी के पारिवारिक जीवन की विस्तार से चर्चा है । पंडित जी के विवाह और पुत्रों से संबंधित जानकारी भी इसी अध्याय में है । पंडित जी का पहला विवाह सन 1944 में सुनंदा हुन्गुंड से हुई थी जिनसे आप को दो लड़के और दो लड़कियां थीं । औरंगाबाद की वत्सला धोन्डोपंत मुधोलकर से सन 1951 में पंडित जी ने दूसरा विवाह किया । आप दोनो संगीत नाटको में सहकलाकार के रूप् में कार्य कर चुके थे । ‘भाग्यश्री’ नाटक ऐसा ही एक नाटक था ।
समग्रतः कहा जा सकता है कि भारत रत्न पंडित भीमसेन जोशी के जन्म शताब्दी वर्ष के बहाने लेखिका ने अपनी श्रद्धांजलि इस अमूल्य अकादमिक धरोहर के रूप में प्रस्तुत की है । नम प्रस्तरों से फूटते और फिर अख़ुआते पंडित भीमसेन जोशी के जीवन की जद्दोजहद को आनेवाली पीढियां प्रेरणा के रूप में स्वीकार कर सकती हैं । पंडित भीमसेन जोशी का जीवन आधे मन से किया गया कोई समझौता नहीं अपितु अपने सपनों के लिए प्राणपन से लड़ने और डेट रहने की एक साहसिक यात्रा है । पंडित भीमसेन जोशी का जीवन विश्वास से भरा हुआ एक जादूई आलिंगन है । उन्होंने अपनी सारी कमियों, सारे अंधेरों को अपने अंदर घोलकर रोशनी के तिलिस्म में बदल दिया था । मानवीय संवेदनाओं का सूत पंडित जी ने संगीत की स्वर लहरियों में ख़ोज लिया था । उनका संगीत मनुष्यता का बहुबचनवाद है, जिसने एक भाव से सभी को गले लगाया । यही भारतीयता की आत्मा भी है । पंडित भीमसेन जोशी का जीवन अपने सपनों के लिए आवारा हो जाने की दास्तान है, लेकिन इस आवारगी में एक अनुशासन, एक सलीका था । इस आवारगी में लौटती उम्मीदों के साथ अनुभवों का आनंद, करुणा का उभार और हर मुसीबत को बौना साबित करने की ख़ुशी थी । इस पुस्तक की लेखिका डॉ. कस्तूरी पायगुड़े राणे को इस अनुपम कृति के लिए बधाई ।
डॉ. मनीष कुमार मिश्रा
प्राध्यापक, हिंदी विभाग
के.एम्. अग्रवाल महाविद्यालय
कल्याण-पश्चिम, महाराष्ट्र
मो- 9082556682
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