Sunday, 25 April 2010

अमरकांत की संपूर्ण कहानियाँ - खण्ड 2

अमरकांत की संपूर्ण कहानियाँ - खण्ड 2
      अमरकांत की संपूर्ण कहानियाँ - खण्ड 2 में '1960 का दशक`, '1980 का दशक` और '1990 का दशक` के शीर्षक से तीन दशकों में लिखी कुल 43 कहानियाँ संग्रहित की गयी हैं। इस खण्ड के शुरूआत में 'आप क्यों लिखते हैं?` नाम से अमरकांत का एक लेख भी है। इस लेख के माध्यम से वे इस प्रश्न का खुद से जवाब माँगने से नजर आते हैं कि आखिर वे लिखते क्यों है? इस प्रश्न के उत्तर में तरह-तरह के विार उनके मन में आते हैं। अंत में आखिर वे इसी नतीजे पर पहुँचते है कि, ''समय परिवर्तनशील है। वह अपने अंदर अनेक विरोधाभासों, अंतर्द्वंद्वों, संघर्षो और संभावनाओं को लिए आगे बढ़ रहा है। जो रचनाकार इस समय की प्रगतिशील सच्चाइयों को पहचानता है, वही उसे शब्दों में उतार सकता है, जिससे उसकी कृतियाँ उस समय की पहचान बन जाती है। यह काम बहुत कठिन है, शायद उतना ही कठिन, जितना तलवार की धार पर चलता।``9
      अमरकांत इस तलवार की धार पर चलने का साहस रखते हैंै। यह उनकी कहानियों से स्पष्ट है। 1960 से 1990 तक के समय में उनके द्वारा लिखी गई कुछ कहानियों का हम यहाँ परिचय प्राप्त करेंगे।
 

Saturday, 24 April 2010

संतप्त मन अपने विकार से /

संतप्त मन अपने विकार से ,
आस क्यूँ रखा प्यार से ;
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संतप्त मन अपने विकार से ,
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विप्लव अभिलाषाएं लाती है ,
लालायित इच्छाएं तड़पाती हैं ;
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प्यार इक विशाल वृछ है ,
कामनाएं कांटे सदृश हैं ;
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प्यार सुख देने का नाम है ;
प्यार एक दैविक ध्यान है ;
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त्याग स्नेह इसकी परिभाषा ,
होती नहीं इसमे कोई आशा ;
.
संतप्त मन अपने विकार से ,
गम है मिलता अहंकार से /

संतप्त मन अपने विकार से /

अमरकांत क़ी कहानी -मछुआ

 अमरकांत क़ी कहानी -मछुआ :-
      'मछुआ` कहानी अतिलेश नामक  पात्र के आस-पास घूमती है। वह एक सरकारी दफ्तर में काम करता था और अपनी पत्नी को हमेशा गाँव में रखता था। उसके जीवन का दर्शन यह था कि इस संसार रूपी भवसागर में स्त्री मछली के समान है और वह मछुआ है। उसके पड़ोस में नीरजा नामक युवती रहती थी। अनिलेश उसके रूप सौंदर्य पर मोहित हो चुका था।
      नीरजा अपनी विधवा माँ के साथ रहती थी। नीरजा की माँ अनिलेश पर स्नेह रखती, उसे पुत्रवत प्यार करती। अनिलेश कुछ ही दिनों में उनके घर के सदस्य जैसा हो गया था। इस तरह उसे नीरजा के नजदीक जाने का अच्छा मौका मिल गया था। धीरे-धीरे नीरजा भी उसे चाहने लगी और उससे प्रेम की लालसा रखने लगी।
      पर अनिलेश को इस बात से बड़ी आत्मग्लानि होती है कि वह उसी परिवार पर बुरी दृष्टि रखता है जो उस पर इतना भरोसा करते हैं। अत: एक दिन वह नीरजा के पास जाकर उसे यह कहता है कि वह जो सोचती है वह गलत है। उसे अपनी माँ के दुख दूर करने हैं। उस पर गंभीर जिम्मेदारियां  हैं। अनिलेश की बातें सुनकर नीरजा स्तम्भित होकर क्रोध से अनिलेश के चले जाने के लिए कहती है।
      यहीं पर यह कहानी खत्म हो जाती है। अमरकांत अनिलेश के चरित्र के माध्यम से यहाँ अधिक आदर्शवादी दिखायी देते हैं। 'मूस` और 'हत्यारे` जैसी कहानियों में यथार्थ का जो सशक्त भाव बोध दिखायी पडता है वह यहाँ नजर नहीं आता।  
 
   

अमरकांत क़ी कहानी देश के लोग और जोकर

अमरकांत क़ी कहानी देश के लोग और जोकर   :-
      'देश के लोग` कहानी अखिल नामक युवक के विचारों के आस-पास घूमती है। रात को रिक्शे पर से घर की तरफ आते समय उसके बगल में जो व्यक्ति बैठा है उसे आखिल हीन भाव से देखता है। वह सहयात्री के सीधे मुँह बात तक नहीं करता। अपने ही खयालों में डूबा रहात है। उसे बार-बार मोहन से हुई वार्तालाप याद आ रही थी। उसे यह बात बहुत संतोष प्रदान कर रही थी कि उसने यह बात मोहन से मनवा ही ली थी कि इस देश के लोग कातिल और कामचोर है। इसी कारण इस देश में न कोई अच्छा कलाकार है, न कोई अच्छा वैज्ञानिक है, न अच्छी शासन व्यवस्था है और न ही अच्छे नागरिक हैं।
      वह यह सब सोच रहा था कि चौराहा आ गया। उसने पैसे दिये और कुछ आगे बढ़ा ही था कि उसका सहयात्री सड़क पर गिर पडा। लोगों की भीड़ उसके आस-पास जमा हो गई। वह खून की कै कर रहा था। इसी बीच वह बेहोश होकर एक तरह लुढ़क गया।
      अखिल यह सब देखकर पलभर पश्चाताप करने लगा। फिर सोचा कि अगर वह उस सहयात्री से अच्छे से बात कर भी लेता तो इसके उसके (सहयात्री के) स्वास्थ पर क्या फरक पड़ता? मौत सबकी होती है? इसमें खास क्या है? सबकी अपनी-अपनी किस्मत है।
      वह पुन: अपने विचारों में खोता हुआ वहाँ से चला जाता है।
11) जोकर :-
      जोकर कहानी नलिन नामक व्यक्ति की मानसिक दशाओं का चित्रण मात्र है। जिनके आधार पर नलिन के बारे में कोई निश्चित राय कायम नहीं की जा सकती। शायद इसीलिए अमरकांत ने इस कहानी का शीर्षक 'जोकर` रखा।
      नलिन भाई पहले तो शादी के विरोधी थे, पर अचानक उनके मित्रों को पता चलता है कि उन्होंने शादी कर ली। शादी के बाद उनके बात-व्यवहार में मित्रों ने बड़ा परिवर्तन महसूस किया। पहली पत्नी के बिमारी और फिर उसकी मृत्यु के बाद उनका व्यवहार पुन: बदल गया। दुबारा शादी न करने की बात वे हर किसी से मिलने पर स्वत: करते थे। लेकिन वे दूसरी शादी कर लेते हैं। अब अधिक गंभीर रहने लगे थे नलिन भाई।
      एक दिन वे लेखक के घर आते हैं और उनकी पत्नी तथा सुंदर साली को देखकर लेखक को बहुत भाग्यशाली कहते हैं। परंतु दूसरे दिन से लेखक से बात ही करना छोड देते है। लेखक उनके व्यवहार को समझ नहीं पाते है। पर नलिन भाई ऐसे ही विचित्र जीव थे। उनका व्यवहार किस बात पर बदल जायेगा यह कोई बता नहीं पाता।
     
 

अमरकांत की कहानी-हत्यारे

अमरकांत की कहानी-हत्यारे :-
      'हत्यारे` कहानी दो युवकों के मित्रवत बात-चीत से शुरू होती है। दोनों अपनी आपनी हाँक रहे थे और आनंदित हो रहे थे। दिन भर वे इसी तरह गप-शप और मस्ती करते हुए घुमते रहे। 
      जब शाम हुई तो वे शराब पीने बैठ गये और जमकर शराब पी। शराब पी कर जब वे बाहर निकले तो जान-पहचान वाली किसी वेश्या के घर पहुँच गये। उस वेश्या से शरीरिक सुख लेने के बाद जब उसे पैसे देने की बात आयी तो वे पैसे छुट्टे कराने के बहाने बाहर निकले और जूते हाँथ में लेकर भाग निकले।
      लड़की के शोर मचाने पर जब एक आदमी उनका पीछा करते हुए उनके करीब आ गया तो एक युवक ने चाकू निकालकर उस व्यक्ति के पेट में घोप दिया और अँधेरे में गायब हो गये।
   

अमरकांत की कहानी -मूस

  अमरकांत की कहानी -मूस :-
      अमरकांत द्वारा 1860 के दशक मं लिखी गई कहानियों में 'मूस` एक प्रमुख कहानी है। 'मूस` एक गड़ेरिये का नाम है। जो गाँव से बाहर अपनी पत्नी परबतिया और बच्ची जिलेबिया के साथ रहता था। जीवन अभावों से भरा हुआ था। वह आस- पास के घरों में पानी भरने का काम करके किसी तरह अपनी गुजर-बसर करता था। परबतिया घरों में बर्तन माँजने का काम करती। पर वह झगड़ालू प्रवृत्ति की थी। मूस को भी 'दो बित्ते का मर्द` कहकर अपनी उच्चता और प्रभुत्व की पुष्टि करती रहती।
      इधर मूस की लड़की का गवना हुआ और शहर में बिजली पानी की व्यवस्था हो जाने से मूस अब अेकार हो गया। घर-घर नल लग गये थे। अत: मूस इधर-उधर के दूसरे काम करने लगा।
      इधर परबतिया अपने नैहर गई तो लल्लू गोंड की लुगाई मुनरी को अपने साथ ले आयी। वह बहुत दुखी थी। उसके आदमी ने दूसरी औरत रख ली थी। परबतिया ने मूस और मुनरी की शादी करा दी। वह जानती थी कि मूस सीधा-सादा है। और अब बूढ़ापे में वह काम भी नहीं कर सकता। परबतिया का स्वभाव ऐसा नहीं था कि वह कहीं काम पर ज्यादा दिन टिकती। मुनरी जवान थी। उसका कोई और सहारा भी नहीं था। वह दस-बारह घरों का काम करने लगी जिससे मूस और परबतिया के दिन भी आराम से कटने लगे।
      लेकिन कुछ ही समय बाद मुनरी चौराहे पर फुलौड़ी बेचनेवाले बिसुन के साथ चली गयी। मूस ने उसे वापर लाने के लिए बिसुन से लड़ाई भी की, पर कोई फायदा नहीं हुआ। अब मूस और परबतिया पर मुसीबत की पहाड़ टूट पड़ा। आर्थिक तंगी में जीवन यापन करना कठिन हो गया। इसी बीच मूस बिमार पड़ा और मसीबत बढ़ गयी।
      एक दिन अचानक मूस देखता है कि उसके घर मुनरी आयी है। वह परबतिया को मूस के इलाज के लिए पैसे और कुछ अनाज देती है। साथ ही साथ यह कहकर चली जाती है कि जब भी उन्हें किसी चीज की जरूरत हो वे उसे जरूर बता दे।
      अमरकांत की यह कहानी घोर यथार्थवादी धरातल पर रची गयी हैं।   

अमरकांत की कहानी -लड़की और आदर्श

अमरकांत की कहानी -लड़की और आदर्श :-
      'लड़की और आदर्श` अमरकांत बहुत चर्चित तो नहीं परंतु अच्छी कहानी है। कहानी विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले नरेन्द्र की है। जिन्हें कमला नामक विश्वविद्यालय की छात्रा से प्यार हो जाता है। लेकिन कमला एक नेपाली छात्र को प्यार करती थी। अत: नरेन्द्र विश्वविद्यालय यूनियन के पदाधिकारी श्याम से मदद माँगने पहुँचते हैं।
      नरेन्द्र खुद शर्मीले स्वभाव के थे। श्याम ने कई बार उन्हें प्रोत्साहित किया कि वे कमला से बात करें। पर नरेन्द्र कभी इतनी हिम्मत जुटा ही नहीं पाये। बड़ी-बड़ी बातें करते पर जब कुछ करने का समय आता तो वे पीछे़ हट जाते। इसी तरह पूरा साल बीत जाता है पर नरेन्द्र कभी भी कमला से आमने-सामने बात नहीं कर पाये। अंत में इम्तहान खत्म होते हैं और छुटि्टयाँ लग जाती हैं।
      छुटि्टयों के बाद जब श्याम नरेन्द्र से मिलकर कमला की बात छेड़ते हैं तो नरेन्द्र बेरूखी से उसकी बुराई करते हैं। इस तरह प्रेम में असफल होने पर वे आदर्श की चादर ओढ़कर अपने यथार्थ से मुंह चुराते हैं। 

अमरकांत की कहानी -लड़की की शादी

अमरकांत की कहानी -लड़की की शादी :-
      'लड़की की शादी` कहानी में एक बाप की चिंता और लड़की का विवाह संपन्न कराने हेतु किये जाने-वाले सही-गलत प्रयासों का मार्मिक चित्रण हैं।
      बड़े-बड़े घरों में अपनी लड़की का रिश्ता ना करवा पाने पर अचानक चिंतित पिता का ध्यान कृष्णमोहन नामक युवक पर जाता है। वे कृष्णमोहन से मिलते हैं और उसकी नौकरी लगवाने में अहम् भूमिका निभाते हैं। इन सब के बाद वे बड़ी ही चा़लाकी से अपनी लड़की की शादी कृष्णमोहन से करवा देते है।
      इस तरह वे बेटी की शादी करवा कर चिंता मुक्त होते हैं। उन्हें यह विश्वास भी है कि कृष्णमोहन जिन्दगी भर उनकी बेटी का आज्ञाकारी पति बना रहेगा।
 

अमरकांत की कहानी -डिप्टी कलक्टरी

अमरकांत की कहानी -डिप्टी कलक्टरी :-
      'डिप्टी कलक्टरी` अमरकांत की प्रमुख कहानियों में से एक है। अमरकांत स्वयं इस कहानी के बारे में कहते हैं कि, ''ये भी हमारे परिवार की थी। भाई लॉ करके बलिया आ गये थे। बलिया जैसे छोटे शहर में रहकर उनका बिन सुविधा, अपने बूते आई.ए.एस. में बैठना। सिम्पिली सिटी के मास्टर थे वे। जटिल से जटिल चीजों को सिम्पिलीफाई कर देना ये चीज हमने उनसे सीखी। कुछ विषयों में टॉपर! लिखित में नम्बर अच्छे आते, पर इन्टरव्यू.......! इंन्टरव्यू का जब कॉल आता था तो जैसे ताजी हवा का आना, स्वप्न, आशा का वह उत्साह, पिता की आशाएँ, प्रतीक्षा.... आप 'डिप्टी कलक्टरी` में देख सकते हैं। उसकी आलोचना में कहा भी गया है - एक आशा भरी प्रतीक्षा।``8
      अमरकांत की बातों से साफ है कि यह कहानी उन्होंने अपने पारिवारिक परिवेश पर ही लिखी है। शकलदीप बाबू और जमुना देवी अपने बड़े लड़के 'नारायण` से काफी उम्मीदे लगाये रहते हैं। नारायण डिप्टी कलक्टरी के इम्तहान में बैठना चाहता है। फीस भरनी है। लेकिन शकलदीप बाबू गूस्सा करते हैं कि यह लड़का (नारायण) अगर कुछ बनने लायक होता तो अब तक बन गया होता। पर मन ही मन कहीं न कहीं उनके अंदर भी यह उम्मीद थी कि उनका लड़का कलेक्टर बन सकता है।
      अत: वे न केवल फीस के पैसे देते हैं बल्कि इस बात का पूरा खयाल भी रखते थे कि उनके बेटे को किसी तरह की कोई परेशानी न हो। नारायण परीक्षा में पास भी हुए, लेकिन इन्टरव्यू अभी बाकी था। परिवार के सभी लोगों की आशाएँ बढ़ गयी हैं। और इसी आशा भरी प्रतीक्षा के साथ कहानी समाप्त हो जाती है। 

अमरकांत की कहानी -जिन्दगी और जोक :

अमरकांत की कहानी -जिन्दगी और जोक :
      'जिंदगी और जोक` रजुआ नाम एक भिखमंगे व्यक्ति की कहानी है। जिसे लेखक ने मुहल्ले में आते-जाते एवम् लोगों के घर चक्कर लगाते देखा था। एक दिन अचानक शिवनाथ बाबू के घर के लोग रहुआ को बुरी तरह से पीट रहे थे। लेखक ने जब इसका कारण जानना चाहा तो उन्हें पता चला कि रजुआ पर साड़ी चुराने का आरोप है। पर बाद में पता चलता है कि साड़ी घर पर ही है। लेकिन रजुआ को उस गलती की सजा मिल चुकी थी, जो उसने कभी की ही नहीं थी।
      परिणाम स्वरूप अब मुहल्ले वाले उसके प्रति सहानुभूति रखने लगे और बचा हुआ या जूठा खाना उसे खाने को दे देते। वह सबके दरवाजे पर जाता था, लेकिन शिवनाथ बाबू के यहाँ जाने की उसकी हिम्मत ना होती। पर एक दिन शिवनाथ बाबू ने ही उसे बुलाकर घर पर रहने की हिदायत दे दी। अब वह शिवनाथ बाबू के यहाँ स्थायी रूप से रहने लगा। यहीं पर उसका नाम 'गोपाल` की जगह 'रजुआ` रखा गया। क्योंकि गोपाल सिंह शिवनाथ बाबू के दादा का नाम था।
      लेकिन मुहल्ले के सभी लोग रजुआ पर अपना बराबर का हक समझते। वह पूरे मुहल्ले का नौकर बन गया था। अब रजुआ भी थोड़ा ढीठ हो गया था। मुहल्ले की औरतों से हँसी-मजाक भी रकने लगा था। इसी कारण मुहल्ले के लोग उसे 'रजुआ साला` कहने लगे थे। शहर की वही एक पगली औरत के चक्कर में पड़ने के बाद उसे काफी मार पड़ी। 'बरन की बहू` ने उसके दस रूपये नहीं लौटाये तो वह भगत बन गया।
      इधर उसे हैजा फिर खुजली की बिमारी भी हो गई। अब वह किसी के काम का नहीं रह गया था। अब कोई उसे अपने दरवाजे पर खड़ा नहीं रहने देता था। इसी बीच एक लड़का लेखक को सूचना देता है कि रजुआ मर गया। अत: वह एक पोस्टकार्ड पर रजुआ के घर यह सूचना लिख दे। पर दो-चार दिन बाद रजुआ लेखक के समक्ष एक और पोस्टकार्ड लेकर आता है। और लेखक से अपने गाँव यह संदेश लिखने को कहता है कि, ''गोपाल जिंदा है।``
      लेखक ऐसा ही करते हैं। पर यह समझ नहीं पाते हैं कि जिंदगी से जोंक की तरह वह लिपटा है या फिर खुद जिंदगी। वह जिंदगी का खून चूस रहा था या जिंदगी उसका? अपनी जिजीविषा के कारण की रजुआ जैसे अपेक्षित पात्र नई कहानी में 'मुख्य पात्र` के रूप में सामने आये।
      अमरकांत की इस कहानी के संदर्भ में राजेंद्र यादव ने कहा है कि, ''अमरकांत का शायद ही कोई पात्र अपनी नियति या स्थिति को बदलने की बात सोचता या करता हो। जहाँ-जहाँ ऐसा है वहाँ उठे उबाल की तरह फौरन ही ठण्डा ही गया है। मैं आज तक तय नहीं कर पाया कि 'जिंदगी और जोंक` जीवन के प्रति आस्था की कहानी है या जुगुप्सा, आस्थाहीनता और डिसगस्ट की।``7
      अमरकांत की यह कहानी भी बहुत प्रसिद्ध हुई। आर्थिक अभाव के कारण कोई व्यक्ति कितना टूटता है इसे 'जिंदगी और जोंक` के 'रजुआ` के माध्यम से समझा जा सकता हैं। 
 

अमरकांत की कहानी दोपहर का भोजन :

अमरकांत की कहानी दोपहर का भोजन :
      'दोपहर का भोजन` अमरकांत द्वारा लिखित एक छोटी परंतु महत्वपूर्ण कहानी है। यह कहानी विडम्बना और करूणा की कहानी है। सिद्धेश्वरी नामक स्त्री अपने पति मुंशी चंन्द्रिका प्रसाद और तीन लड़कों (रामचन्द्र, मोहन और प्रमोद) के साथ आर्थिक तंगी में जीवन व्यतीत कर रही होती है। तंगी इतनी की हर कोई भरपेट खाना भी ना खा सके। पर इस विडंबना को घर का हर सदस्य एक दूसरे से छुपाता रहात है। दोपहर के भोजन को खाते समय जब माँ सिद्धेश्वरी बच्चों से अधिक रोटी खाने को कहती है तो वे बिगड़ जाते हैं। क्योंकि उन्हें भी पता है कि उनके अधिक खाने पर घर का कोई न कोई सदस्य भूखा ही रह जायेगा। शायद अंत के खानेवाली सिद्धेश्वरी ही। इसलिए कोई भी भर पेट नहीं खाता, पर भरपेट न खाने का कारण सभी भी स्पष्ट नहीं करना चाहता। इन सब के चलते अंत में सिद्धेश्वरी के हिस्से में एक रोटी बचती है। जिसमें से भी आधी को छोटे बेटे प्रमोद के लिए रखकर आधी ही खाती है।
      इस तरह अपने जीवन के अभाव की विडम्बना को यह परिवार अपने में ही समेटे जिये जा रहा था। अमरकांत की इस कहानी के संदर्भ में यदुनाथ सिंह ने लिखा है कि, ''दोपहर का भोजन` के सीधे-सपाट घटनाक्रम में एक गृहस्वामिनी, सिद्धेश्वरी के भय और दुख की जो अन्तर्धारा प्रवाहित होती है वह आज के निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की जीवनचर्या के मूल में प्रवाहित भय और दु:ख की वह अन्तर्धारा है जिसमें बहते हुए अनगिनत, परिवारों के असंख्य प्राणी, एक दूसरे से अपरिचित, अशांकित, वर्तमान के अभावों से पूरी तरह टूटे, भविष्य को लेकर दहशत से भरे न केवल पारिवारिक स्तर पर बिखरते बल्कि सामाजिक स्तर पर भावात्मक दृष्टि से टूटते सम्बन्ध सूत्रों को संदर्भित करते हैं। परंपरा प्राप्त भावात्मक संबंध सूत्रों और उनके माध्यम से बिखरने को आ रहे ढाँचे को कायम रखने की एक निष्फल दयनीय चेष्टा पूरे संदर्भ को बेहद कारूणिक बना जाती है।``5
      अमरकांत की यह कहानी बहुत प्रसिद्ध हुई। स्वयं अमरकांत भी यह माने हैं कि यह कहानी उन्होंने पूरे मनोयोग से लिखी है। कहानी छोटी है। इस पर भी अमरकांत जी का कहना है कि, इस कहानी में जितनी मौन की जरूरत थी उतनी भाषा की नहीं।``6 हिंदी के अन्य समीक्षकों ने भी अमरकांत की इस कहानी की बडी प्रशंसा की है। 
 

अमरकांत की संपूर्ण कहानियाँ - खण्ड 1

क) अमरकांत की संपूर्ण कहानियाँ - खण्ड 1 
      इस खण्ड में संग्रहित कहानियों को '1950 का दशक` और '1960 का दशक` नामक दो भागों में मुख्य रूप से विभक्त किया गया है। '1950 का दशक` के अंतर्गत कुल 19 कहानियाँ हैं तो '1960 का दशक` में कुल 20 कहानियाँ संग्रहित हैं। 333 पृष्ठों की इस पुस्तक में अमरकांत द्वारा दो दशकों में लिखी गयी कुल 39 कहानियाँ हैं। इन कहानियों में से कुछ का हम संक्षेप में परिचय प्राप्त करेंगे।
1) इंटरव्यू :
      'इंटरव्यू` अमरकांत द्वारा लिखी वह पहली कहानी थी जिससे उन्हें 'कहानीकार` कहलाने का सौभाग्य मिला। आगरा के प्रगतिशील लेखक संघ की बैठक में अमरकांत ने डॉ. रामविलास शर्मा और अन्य मित्रों के सम्मुख यह कहानी सुनायी। अमरकांत खुद एक इंटरव्यू में सम्मिलित हुए थे, उसी घटना का विस्तार से वर्णन करके उन्होंने यह कहानी लिखी थी। इस कहानी के छपने के पहले अमरकांत श्रीराम वर्मा के नाम से ही जाने जाते थे। स्वयं अमरकांत कहते हैं कि, ''मैं तब श्रीराम वर्मा था। अमरकांत मेरा पेननेम है। 1953 में बदला। मेरी पहली साहित्यिक कहानी 'इंटरव्यू` 1953 में 'कल्पना` में छपी थी। तभी पेननेम अमरकांत कर लिया।.........।``2
      इस कहानी में राशनिंग विभाग में 60 रूपये की क्लर्की के एक रिक्त पद के लिए आये उम्मीदवारों की बेचैनी, दिखावा, अपने को अधिक योग्य सिद्ध करने का प्रयास आदि का बड़ा ही रोचक एवम् व्यंग्यात्मक वर्णन अमरकांत ने किया है। कहानी में किसी भी पात्र को कोई भी नाम नहीं दिया गया है। जो कि कथावस्तु के अनुरूप ही है।
      इस कहानी के संदर्भ में अजित कुमार लिखते हैं कि, ''इंटरव्यू` एक छोटी-सी कहानी है जो अपने देश में इंटरव्यू के नाम से चलते जा रहे एक बहुत बड़े ढोंग या मखौल का हल्का-फुल्का बल्कि सीधा-सपाट बयान करती है। खुलासा या पर्दाफाश नही, महज एक दिलचस्प और पाठनीय ब्यौरा। अपनी इस प्रकृति में 'इंटरव्यू` कहीं-कहीं प्रेमचंद की याद भी दिलाती है, जिनके यहाँ कहानी रोजमर्रा की जिंदगी में मौजूद रहती है, वह विचित्र या असामान्य स्थितियों को तलाशना जरूरी नहीं समझती। ....... निश्चय ही अमरकांत की यह आरंभिक कहानी न तो समस्या का कोई सरलीकरण करती है न एक विशेष अर्थ में वह कोई सपाट कहानी है। मेरे लिए उस कहानी का महत्व जिन कारणों से है, उनमें यह भी उल्लेखनीय है कि वृत्ति से पत्रकार पर मनोवृत्ति से लेखक अमरकांत की यात्रा का यह प्रस्थान बिंदु है, जहाँ से उनकी प्रतिबद्धता क्रमश: मुखर और सुदृढ़ होती चली गई।3
2) गले की जंजीर :
      इस कहानी के संदर्भ में श्रीपतराय जी लिखते हैं कि, ''गले की जंजीर` का मुखर व्यंग्य इतना प्रिय है कि चित्त में एक स्फूर्ति का संचार होता है। इसमें वर्णित घटना हम सबके साथ कभी न कभी अवश्य घटी होगी पर इसको इतने सहज, आयासहीन, विनोदी ढंग से वर्णन करने की क्षमता कितने लोगों में होगी?``4
      'गले की जंजीर` अमरकांत द्वारा लिखी ऐसी कहानी है जिसमें वे एक ही समस्या पर अलग-अलग लोगों की विचार दृष्टि को बड़े ही व्यंग्यात्मक एवम् हास्य के पुट के साथ प्रस्तुत करते हैं। लेखक अपने मित्र जगदीश के गले की सोने की जंजीर देखकर मोहित हो जाते है। उसे वे बेशर्मी से पहनने के लिए माँग भी लेते हैं। लेकिन सुबह जब लेखक सो कर उठे तो, जंजीर गले में नहीं थी।
      इसके बाद यह खबर पूरे प्रेस में फैल गयी। मिश्र दादा, प्रेस-मैनेजर गुलजारी लालजी, रामविलास, प्रधान संपादक, जोसफ, परेश बनर्जी और ठाकुर साहब सभी ने जंजीर खोने के विषय में बनावटी चिंता व्यक्त करते हुए अपने-अपने तरीके से उसे बचाने का उपाय बताने लगे। कोई कहता कि उसे ट्रंक में रखना चाहिए था, कोई दराज में रखने की सलाह देता। कोई कहता कि किताबों के बीच रख्ना अधिक युक्ति संगत है।
      अलग-अलग लोगों की सलाह सुनते हुए, लेखक अपनी मूल समस्या को तो जैसे भूल ही गये और अंत तक यह तँय नहीं कर पाये कि वे किसकी सलाह माने।
 

कहानियों एवम् उपन्यासों के अतिरिक्त अमरकांत का साहित्य

कहानियों एवम् उपन्यासों के अतिरिक्त अमरकांत का साहित्य 
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 एक पुस्तक संस्मरण के रूप में लिखा। इस पुस्तक में अमरकांत ने अपने बचपन से लेकर अपने लेखक बनने की पूरी कथा को विस्तार से लिखा है। अमरकांत को समझने में यह पुस्तक बहुत ही सहायक है। इस पुस्तक का शीर्षक व प्रकाशन वर्ष निम्न प्रकार है।
      (1) कुछ यादें कुछ बातें
                  प्रथम संस्करण  - सन् 2005
                  प्रकाशन  - राजकमल प्रकाशन
      अमरकांत ने बाल साहित्य भी भरपूर लिखा है। उनके द्वारा लिखित बाल साहित्य की कुल पुस्तकें निम्नलिखित हैं।
      (1) नेउर भाई
      (2) बानर सेना
      (3) खूँटा में दाल है
      (4) सुग्गी चाची का गाँव
      (5) झगरूलाल का फैसला
      (6) एक स्त्री का सफर 
      इन सभी पुस्तकों का प्रकाशन 'कृतिकार` प्रकाशन के माध्यम से इलाहाबाद से हुआ है। अमरकांत का कथा साहित्य बड़ा व्यापक है। अमरकांत के उपन्यासों की चर्चा उतनी नहीं हुई जितनी की उनकी कहानियों की हुई है। इस पर स्वयं अमरकांत का कहना है कि, ''...... चर्चा तो हुई है। लेकिन उपन्यास 'सूखा पत्ता` छोड़ दे तो बाकी मैंनें बहुत जल्दी-जल्दी लिए। उनमें 'पूरी एनर्जी` नहीं लगी। इनमें से बहुत पैसों की जरूरत पर लिखे। जीवन से संघर्ष और फिर संघर्ष के निचोड़ के तौर पर ये कृतियाँ नहीं लिखी। पहले तो लोग स्वीकार नहीं करते थे लेकिन अब लोग मानते हैं कि ये उपन्यासकार भी हैं। वैसे चर्चा न होने का एक कारण यह भी रहा कि इनमें से कुछ हमनें प्रकाशित किया जिससे 'डिस्ट्रिब्युशन` बराबर हो नहीं पाया। एक कारण यह भी है कि आलोचकों ने अपना एक ढर्रा बना लिया है। बहुत से उपन्यास वे समझ नहीं पाते हैं। उपन्यास आलोचना की समीक्षा दृष्टि उतनी विकसित नहीं हुई। उपन्यासों की आलोचना व्यापक तरीके से जीवन को देखते हुए होनी चाहिए। वैसे इधर उपन्यासों की भी चर्चा हो रही है।.......।``1
      बात सच भी है। अमरकांत के उपन्यासों की इधर काफी चर्चा हुई है। अमरकांत के कथा साहित्य का एक समग्रावलोकन जरूरी है। हाँ कहानियों, उपन्यासों के साथ-साथ उनके द्वारा लिखित बाल-साहित्य का भी। इससे कथाकार के रूप में अमरकांत के संपूर्ण व्यक्तित्व को समझना आसान हो जायेगा। 
 

अमरकांत का उपन्यास साहित्य

   अमरकांत का उपन्यास साहित्य  
(1) ग्राम सेविका
                  प्रथम संस्करण  - अप्रैल 1962
                  प्रकाशन  - लोक भारती प्रकाशन, इलाहाबाद
      (2) कँटीली राह के फूल
                  प्रथम संस्करण  - सन् 1963
                  प्रकाशन  - राजकमल प्रकाशन
      (3) बीच की दीवार / दीवार और आंगन
                  प्रथम संस्करण  - सन् 1969
                  प्रकाशन  - अभिव्यक्ति प्रकाशन, इलाहाबाद
      (4) सुखजीवी
                  प्रथम संस्करण  - सन् 1982
                  प्रकाशन  - संभावना प्रकाशन, हापुड़
      (5) सूखा पत्ता  
                  प्रथम संस्करण  - सन् 1984
                  प्रकाशन  - राजकमल प्रकाशन
      (6) आकाश पक्षी
                  प्रथम संस्करण  - सन् 2003
                  प्रकाशन  - राजकमल प्रकाशन
      (7) काले उजले दिन
                  प्रथम संस्करण  - सन् 2003
                  प्रकाशन  - राजकमल प्रकाशन
      (8) इन्ही हथियारों से
                  प्रथम संस्करण  - सन् 2003
                  प्रकाशन  - राजकमल प्रकाशन
      (9) सुन्नर पांडे की पतोह
                  प्रथम संस्करण  - सन् 2005
                  प्रकाशन  - राजकमल प्रकाशन
      (10) लहरें  (कादम्बिनी पत्रिका के उपहार अंक के रूप में प्रकाशित)
                  प्रथम संस्करण  - अक्टूबर 2005
                  प्रकाशन  - कादम्बिनी पत्रिका
 (११) बिदा क़ी रात -बया पत्रिका का प्रथम अंक 

अमरकांत और कहानी

अमरकांत और कहानी 
      अमरकांत 'नई कहानी` आंदोलन के प्रमुख कहानीकारों में से एक है। 'नई कहानी के नाम को लेकर अवश्य विवाद रहा पर इस दौर की कहानियों ने कहानी विधा को एक नया मोड़ दिया। अब कहानी में 'शिल्प` नहीं 'कथ्य` महत्वपूर्ण हो गया। कहानियों का लेखन कार्य यथार्थ की भावभूमि से जुड़ा। 'नई कहानी` अपने आप को 'वैचारिक दृष्टि` से बदल रही थी। कहानी के लिए शाश्वत मूल्य बन चुके आग्रहों से 'नई कहानी` लड़ रही थी। 'नई कहानी` 'कहानी` होने से पहले 'जीवनानुभव` का आग्रह करने लगी थी।
      देश की स्वतंत्रता के साथ ही साथ देश का विभाजन हो गया। देश के बँटवारे के साथ भीषण साम्प्रदायिक दंगो ने हमारी राष्ट्रीयता की जड़े हिला दी। भुखमरी और अकाल की परिस्थितियों ने मानव मूल्यों को झकझोर दिया। इन समस्याओं के साथ कुछ नई समस्याएँ भी देश के सामने आयी। ये समस्याएँ शरणार्थियों की व्यवस्था, आर्थिक विकास और सुचारू प्रशासन की थी। इन परिस्थितियों ने सामान्य जन को यथार्थ के प्रति अधिक जागरूक बनाया। नई कहानी में जटिल जीवनऱ्यथार्थ की व्यापक स्वीकृति अभिव्यक्त हुई। इसके माध्यम से 'व्यक्ति-चेतना` को महत्व मिला। कोरी भावुकता धीरे-धीरे कहानियों से हटने लगी। नई कहानी के माध्यम से सांकेतिकता वस्तु और शिल्प दोनों में आयी। मध्यमवर्गीय समाज की पीड़ा, दुख, दर्द, क्षोभ, विवशता और हीनता का सबसे अधिक चित्रण नई कहानी में हुआ।
      निश्चित तारीखों के आधार पर 'नयी कहानी` का काल खण्ड निर्धारित करना मुश्किल है। फिर भी अध्ययन की सुविधानुसार सन् 1954 से सन् 1963 तक के पूरे काल खण्ड को नयी कहानी का समय कहा जा सकता है। नयी कहानी की प्रतिष्ठा के साथ-साथ अमरकांत की कहानियों को साहित्यिक प्रतिष्ठा प्राप्त हुई। अमरकांत अपने कथा साहित्य के माध्यम से आम आदमी की संवेदनाओं को बड़ी ही कुशलता से अभिव्यक्त करते रहे हैं। अमरकांत के पात्रों की चारित्रिक जटिलता काल्पनिक नहीं है। बहुस्तरीय शोषण, मूल्य हीनता और मोहभंग जैसी जटिल स्थितियों का मनोवैज्ञानिक स्तर पर प्रहारधर्मी व्यंगों के माध्यम से अमरकांत ने व्यक्त किया है। संवेदना के साथ-साथ अमरकांत के साहित्य के शिल्प की भी अपनी विशेषता है। उनकी भाषा सहज और सरल है। अमरकांत ने मुहावरों व लोकोक्तियों का भी सार्थक प्रयोग किया। अमरकांत ने अपने तीखे व्यंग के माध्यम से उन सफेद-पोश लोगों को भी नंगा किया जो दोहरा जीवन जीने के आदी थे। कथाकार अमरकांत - प्रेमचंद की कहानी परंपरा को आगे बढ़ाने वाले कहानीकारों में से एक हैं।
      अमरकांत के कई कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। ये सभी प्रकाशित संग्रह इधर 'अमरकांत की संपूर्ण कहानियाँ दो पुस्तकों में संग्रहित हो गयी। अध्ययन-अध्यापन की दृष्टि से यह संग्रह बहुत उपयोगी है। इन दो पुस्तकों के अतिरिक्त - उधर अमरकांत ने जो कहानियाँ लिखी वे भी 'जाँच और बच्चे` नामक शीर्षक से प्रकाशित हो चुकी है। इस तरह अमरकांत की अब तक की लिखी सारी कहानियाँ इन तीनों पुस्तकों के माध्यम से प्रकाशित हो चुकी हैं। ये तीनों कहानी संग्रह इस प्रकार से हैं -
      (1) अमरकांत की संपूर्ण कहानियाँ  - खण्ड एक
                  प्रथम संस्करण  - सन् 2002
                  प्रकाशन  - अमर कृतित्व
                                          करेली, इलाहाबाद (उ.प्र.)
      (2) अमरकांत की संपूर्ण कहानियाँ  - खण्ड दो
                  प्रथम संस्करण  - सन् 2002
                  प्रकाशन  - अमर कृतित्व
                                          करेली, इलाहाबाद (उ.प्र.)
      (3) जाँच और बच्चे    - खण्ड एक
                  प्रथम संस्करण  - सन 2005
                  प्रकाशन  - अमर कृतित्व
                                          गोविंद पुर, इलाहाबाद (उ.प्र.)
      कहानियों के अतिरिक्त अमरकांत ने कई उपन्यास भी लिखे हैं।
 
 

अमरकांत का कथा साहित्य : सक्षिप्त परिचय

(क) अमरकांत का कथा साहित्य : सक्षिप्त परिचय
1) कहानी :
      क) अमरकांत की संपूर्ण कहानियाँ भाग 1
      ख) अमरकांत की संपूर्ण कहानियाँ भाग 2
      ग) जॉच और बच्चे
2) उपन्यास
      1) सूखा पत्ता
      2) आकाश पक्षी
      3) काले उजले दिन
      4) कँटीली राह के फूल
      5) ग्राम सेविका
      6) सूख जीवी
      7) बीच की दीवार
      8) सुन्नर पांडे की पतोह
      9) इन्ही अथियारों से
      10)लहरें 
3) संस्मरण :
      1) कुछ यादें कुछ बातें
4) प्रकीर्ण साहित्य :
      1) नेडर भाई
      2) बानर सेना
      3) खूँटा में दाल है
      4) सुग्गी चाची का गाँव
      5) झगसलाल का फैसला
      6) एक स्त्री का सफर

 

Friday, 23 April 2010

hindi writer amerkant /photo


कैसे वो कह दे , 2

कैसे वो कह दे ,
कौनसा वक़्त बड़ा था ;
कैसे वो स्वीकारे ,
कौनसा रिश्ता दिल में गड़ा था ;
.
मौत की चारपाई पे लेटी ,
वो निर्णय लेने में असमर्थ है ,
कौनसा पल सबसे सुंदर ,
कौन है उसके दिल की गहराईयों में सबसे अंदर ;
.
कैसे वो कह दे /
.
कैसे वो कह दे ,
कौन है उसकी रूहों में आत्माओं में,
कौन है वो ,
जों बसा है उसकी हर धरनाओ में ;
कैसे वो कह दे ,
क्या तलाशती रही जिंदगी भर वो अपने भावों में
कैसे वो कह दे /


 

याद तेरी , 8

याद तेरी ,
.
अरमान की मचलन ,
.
याद तेरी ,
.
मिलन की तड़पन ,
.
याद तेरी ,
.
अभिषार अलौकिक ,
.
याद तेरी ,
.
संसार ये लौकिक ,
.
याद तेरी / 
 

याद तेरी ,7

याद तेरी ,
.
पहला आमंत्रण ,
.
याद तेरी ,
.
खुशियों का अर्पण ,
.
याद तेरी ,
.
ह्रदय की पीड़ा ,
.
याद तेरी ,
.
प्यार की वीणा ,
.
याद तेरी /
 
.

अमरकांत : जन्म शताब्दी वर्ष

          अमरकांत : जन्म शताब्दी वर्ष डॉ. मनीष कुमार मिश्रा प्रभारी – हिन्दी विभाग के एम अग्रवाल कॉलेज , कल्याण पश्चिम महार...