Saturday, 25 February 2012
seminar in k.j.somaiya college
Friday, 24 February 2012
international seminar on international economic and cultural relations of india
on 30-31 March 2012 k.m.agrawal college ,kalyan is organising TWO DAYS INTERDISCIPLINARY INTERNATIONAL SEMINAR on INTERNATIONAL ECONOMIC AND CULTURAL RELATIONS OF INDIA .
for detail contact
manish mishra- 08080303132
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manish mishra- 08080303132
Wednesday, 22 February 2012
Monday, 20 February 2012
'पत्रकारिता का बदलता स्वरुप और न्यू मीडिया'. अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी (21 मार्च 2012)
'पत्रकारिता का बदलता स्वरुप और न्यू मीडिया'. अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी (21 मार्च 2012)
मित्रों, दिल्ली विश्वविद्यालय के पी.जी.डी.ए.वी. कॉलेज (सांध्य) द्वारा एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है. यह गोष्ठी 21 मार्च 2012 को होगी.
इस गोष्ठी का विषय है --- 'पत्रकारिता का बदलता स्वरुप और न्यू मीडिया'.
आप सभी से इस संगोष्ठी के लिए आलेख आमंत्रित हैं. 'सोशल मीडिया, वैकल्पिक मीडिया, ब्लॉग और न्यू मीडिया से सम्बंधित अन्य विषयों पर अपने आलेख 29 फरवरी 2012 तक हमें भेज सकते हैं. आलेखों का प्रकाशन पुस्तक रूप में किया जायेगा. अध्यापकों के अतिरिक्त शोधार्थी, पत्रकार और ब्लॉगर भी इस संगोष्ठी के लिए अपने आलेख प्रेषित कर सकते हैं. कुछ चयनित आलेखों के सार को संगोष्ठी के दौरान पदने का अवसर भी दिया जायेगा जिसके उपरांत विशेषज्ञ विद्वान अपने विचार रखेंगे. स्वीकृत आलेखों पर लेखकों को आलेख प्रस्तुतिकरण का प्रमाण पत्र भी दिया जायेगा.
संगोष्ठी के संभावित वक्ताओं में डॉ. अमरनाथ अमर (दूरदर्शन), डॉ. वर्तिका नंदा (मीडिया लेखिका), दिलीप मंडल (न्यू मीडिया विशेषज्ञ), अनीता कपूर (चर्चित ब्लॉगर), प्रो. अशोक मिश्र आदि हैं.
इस संगोष्ठी की सूचना के प्रकाशन के साथ ही हमें कैलिफोर्निया, न्यूजीलैंड और मोरिशस से कुछ मित्रों का आगमन सुनिश्चित हुआ है.
संगोष्ठी में भाग लेने वाले प्रतिभागियों से किसी भी प्रकार का पंजीकरण शुल्क नहीं लिया जायेगा. प्रतिभागियों को अपने रहने और रात्रि भोजन की व्यवस्था स्वयं करनी होगी तथा उन्हें किसी भी प्रकार का मार्गव्यय प्रदान नहीं किया जायेगा.
आपके आलेख drharisharora@gmail.com, davseminar@gmail.com पर भेजे जा सकते हैं. 29 फरवरी, 2012 तक प्राप्त होने वाले आलेखों को पुस्तक में स्थान मिलना संभव हो पायेगा. शेष आलेखों के लिए पुस्तक के पुनर्प्रकाशन पर विचार किया जायेगा.
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें :-
drharisharora@gmail.com
+919811687144
डॉ हरीश अरोड़ा
अध्यक्ष, हिंदी विभाग
पी.जी.डी.ए.वी. कॉलेज (सांध्य)
दिल्ली विश्वविद्यालय
नेहरु नगर, नयी दिल्ली-११००६५
मित्रों, दिल्ली विश्वविद्यालय के पी.जी.डी.ए.वी. कॉलेज (सांध्य) द्वारा एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है. यह गोष्ठी 21 मार्च 2012 को होगी.
इस गोष्ठी का विषय है --- 'पत्रकारिता का बदलता स्वरुप और न्यू मीडिया'.
आप सभी से इस संगोष्ठी के लिए आलेख आमंत्रित हैं. 'सोशल मीडिया, वैकल्पिक मीडिया, ब्लॉग और न्यू मीडिया से सम्बंधित अन्य विषयों पर अपने आलेख 29 फरवरी 2012 तक हमें भेज सकते हैं. आलेखों का प्रकाशन पुस्तक रूप में किया जायेगा. अध्यापकों के अतिरिक्त शोधार्थी, पत्रकार और ब्लॉगर भी इस संगोष्ठी के लिए अपने आलेख प्रेषित कर सकते हैं. कुछ चयनित आलेखों के सार को संगोष्ठी के दौरान पदने का अवसर भी दिया जायेगा जिसके उपरांत विशेषज्ञ विद्वान अपने विचार रखेंगे. स्वीकृत आलेखों पर लेखकों को आलेख प्रस्तुतिकरण का प्रमाण पत्र भी दिया जायेगा.
संगोष्ठी के संभावित वक्ताओं में डॉ. अमरनाथ अमर (दूरदर्शन), डॉ. वर्तिका नंदा (मीडिया लेखिका), दिलीप मंडल (न्यू मीडिया विशेषज्ञ), अनीता कपूर (चर्चित ब्लॉगर), प्रो. अशोक मिश्र आदि हैं.
इस संगोष्ठी की सूचना के प्रकाशन के साथ ही हमें कैलिफोर्निया, न्यूजीलैंड और मोरिशस से कुछ मित्रों का आगमन सुनिश्चित हुआ है.
संगोष्ठी में भाग लेने वाले प्रतिभागियों से किसी भी प्रकार का पंजीकरण शुल्क नहीं लिया जायेगा. प्रतिभागियों को अपने रहने और रात्रि भोजन की व्यवस्था स्वयं करनी होगी तथा उन्हें किसी भी प्रकार का मार्गव्यय प्रदान नहीं किया जायेगा.
आपके आलेख drharisharora@gmail.com, davseminar@gmail.com पर भेजे जा सकते हैं. 29 फरवरी, 2012 तक प्राप्त होने वाले आलेखों को पुस्तक में स्थान मिलना संभव हो पायेगा. शेष आलेखों के लिए पुस्तक के पुनर्प्रकाशन पर विचार किया जायेगा.
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें :-
drharisharora@gmail.com
+919811687144
डॉ हरीश अरोड़ा
अध्यक्ष, हिंदी विभाग
पी.जी.डी.ए.वी. कॉलेज (सांध्य)
दिल्ली विश्वविद्यालय
नेहरु नगर, नयी दिल्ली-११००६५
Sunday, 19 February 2012
जगन्नाथ जी के दर्शन और कोणार्क सूर्य मंदिर

जगन्नाथ जी के दर्शन और
कोणार्क सूर्य मंदिर देखने के लिए मैं डॉ कमलनी पाणिग्रही और उनके पिता जी के साथ
सुबह करीब 9 बजे सैंट्रो कार से निकले । कार देवाशीष जी चला रहे थे ,
जो पाणिग्रही परिवार के मित्र थे । हम लोग करीब 55 – 60 किलो मीटर की यात्रा करके
कोणार्क मंदिर पहुंचे । वहाँ पहुँच के सबसे पहले हमने नारियल का पानी पिया और फिर
कोणार्क मंदिर में जाने के लिए टिकिट लिया । प्रति व्यक्ति शायद 10 रुपए का टिकिट
था । मंदिर का प्रवेशद्वार साफ-सुथरा था । रास्ते के दोनों तरफ बगीचे लगाए गए थे,
जिनमे सुंदर फूल थे । कई गाइड हमारे पास आए लेकिन हमें गाइड की जरूरत नहीं थी ।
कमलनी मैडम के 88 वर्षीय पिता मुझे सब बता रहे थे । हम मंदिर के करीब थे और पुलिश
वाले सब की जांच सुरक्षा की दृष्टि से कर रहे थे । हमारी भी जांच हुई और हमें
मंदिर परिसर में छोड़ दिया गया । मंदिर का वह दर्शन बड़ा ही मनमोहक था । वो प्राचीन
इमारत अपने आप में बोलता हुआ इतिहास लगी । इमारत में की गयी नक्कासी और हर नक्कासी
दार मूर्ति का सौंदर्य अप्रतिम था । सूर्य मंदिर के मुख्य गर्भ को तो रेत डालकर और
पत्थरों की साहायता से बंद कर दिया गया है । ऐसा सुरक्षा की दृष्टि से किया गया है
। मंदिर के एकदम ऊपरी हिस्से पर बड़े ताकतवर चुंबक थे जिसे कहते हैं कि अंग्रेज़
निकालकर अपने साथ ले गये । मंदिर के बाहरी भाग में भी मरम्मत का काम हो रहा है ।
मंदिर को लेकर जो नई बात मुझे ज्ञात हुई वो थी इसकी दीवारों पर खजुराहो जैसी
मूर्ति कलाएं । इन मूर्तियों की भाव –भंगिमाएँ काम रत जोड़ियों द्वारा काम की
विभिन्न मुद्राओं पर अधिक केन्द्रित हैं । पूरा मंदिर एक रथ का रूप है जिसमें कई
पहिये भी बने हुवे हैं । रथ के आगे कई घोड़े हैं जो इस रथ को खीचने की मुद्रा में
हैं ।
मैं ने इस मंदिर की मूर्तियों की कई तस्वीरें ली
और साथ ही पत्थर का छोटा सा कोणार्क पहिया भी जो इस मंदिर का प्रतीक है । उड़ीसा के
कई घरों और होटलों के प्रवेश द्वार पे आप को यह पहिया दिख जाएगा ,
मानो यह पहिया उनके इतिहास के साथ-साथ उनके भविष्य को भी गति प्रदान करता है ।
उनका विश्वाश तो कम से कम यही बताता था ।
कोणार्क की यादों को मन में सजोएं हमने भी अपनी गाड़ी के पहिये के साथ पुरी की तरफ
रवाना हुवे । रास्ते में पिपली करके एक जगह भी पड़ा जो अपने विशेष प्रकार की
कलाकृतियों और कपड़ों पर नक्काशी और कढ़ाई के काम के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है ।
उड़ीसा की कलात्मक पहचान में पिपली का महत्वपूर्ण योगदान है । वहाँ सड़क के दोनों
किनारों पर सजी दुकानों को देखकर आप बिना रुके नहीं रह सकते । हम भी रुके और थोड़ी
ख़रीदारी के बाद आगे बढ़ गए ।
आगे का नजारा था और भी मोहक
, मरीन ड्राइव का नजारा । जी हाँ , अभी मुंबई का ही मरीन
ड्राइव देखा था लेकिन कोणार्क से पुरी आते हुवे लंबा मरीन ड्राइव का इलाका देख मन
प्रसन्न हो गया । समुद्र इस पूरे किनारे पर बहुत गहरा है इसलिए कोई यहा नहाता नहीं
लेकिन यहाँ शाम को चहल कदमी करने कई लोग आते है । यह इलाका और पास के जंगल यहाँ के
मुख्य पिकनिक स्पाट हैं । प्रेमी जोड़ों का भी यह प्रिय स्थल था । कई जोड़े दुनिया
से बेखबर एक-दूसरे की आँखों में यहाँ डूबे हुवे मिले । क्मलनी मैडम ने मज़ाक करते
हुवे कहा- ये पहले एक-दूसरे की आँखों में डूबते है और जब प्यार में कुछ गड़बड़ हो जाता
है तो समुद्र में डूबकर मरने भी यही आते हैं । वहाँ थोड़ी देर रुकने के बाद हम पुरी
के लिए चल दिये ।
हम पुरी पहुंचे और नन्दा
बाबू ( कमलनी जी के जीजाजी ) के आदेशानुसार भाई रमेश हमारे इंतजार में खड़े थे ।
रमेश जो पुलिश विभाग में हैं और मंदिर मे ही तैनात थे ,
इसलिए उनका साथ रहना हमारे लिए बड़ा फायदेमंद रहा । जगन्नाथ पुरी देश का एक मात्र
मंदिर है जिसके अंदर के प्रशासन में भारत सरकार का दखल नहीं चलता । अंदर की सारी
व्यवस्था मंदिर ट्रस्ट और मंदिर के पुजारियों और पंडों द्वारा की जाती है । लेकिन
रमेश जी स्थानिक थे और पुलिश में थे इसलिए उन्हे सभी पहचानते थे । हम लोग मोबाईल,
कैमरा, लेदर का पर्स , बेल्ट और जूते गाड़ी में ही छोडकर मंदिर की तरफ चल
पड़े । ये व्स्तुए मंदिर परिसर में वर्जित हैं , वैसे हम नियम से कार भी
मंदिर के उतने करीब नहीं ले जा सकते थे लेकिन रमेश जी के कारण किसी ने हमारी गाड़ी
रोकी नहीं ।
मंदिर में प्रवेश मन को आल्हादित करने वाला था ।
भव्य और दिव्य मंदिर । मंदिर के अंदर आते ही सीढ़ियों पर बैठा एक पुजारी बास की एक
छड़ी से धीरे से सर पर मारते हैं , जिसके बारे में माना जाता है की इस छड़ी की मार से
ही आप के सारे दुख और कष्ट दूर हो जाते हैं । मेरे भी सर पे पुजारी ने मारा ,
बदले में वो अपेक्षा कर रहे थे कि मैं उन्हे कुछ दक्षिणा भी दूँ लेकिन रमेश जी ने
कुछ भी देने से इशारे में ही मना किया । दरअसल उस मंदिर में इतने पंडे –पुजारी हैं
कि जेब से कुछ निकालना मतलब मुसीबत में फसना ही था । मुख्य मंदिर में जाने से पहले
हमने कई मंदिरों के दर्शन किए । वहाँ दीप जलाकर प्रार्थना भी की । फिर हम जगन्नाथ
जी के मुख्य मंदिर में गए, भीड़ बहुत थी लेकिन रमेश जी ऐसी जगह ले गए जहां से
जगन्नाथ जी की मूर्ति साफ दिखाई पड़ रही थी । बलराम, सुभद्रा और जगन्नाथ जी की
मूर्ति एक विशेष आकर्षण से भरी थी । मुझे बताया गया की ये लकड़ी की मूर्तियाँ हर 14
साल में नई बनाई जाती है । नीम के जिस पेड़ में शंख , गदा और चक्र एक साथ दिखाई
पड़ते हैं उस पेड़ को मूर्ति के लिए चुना जाता है । ऐसे पेड़ की खोज लगातार की जाती
रहती है । पिछली बार ऐसा पेड़ उड़ीसा के ही खुर्दा नामक जगह में मिला था । 
जगन्नाथ जी के दर्शन के
बाद हम मंदिर परिसर के ही कुछ और मंदिरों के दर्शन मे लग गए,
जिनमे प्रमुख थे महालक्ष्मी माँ का मंदिर, कानपटा हनुमान जी के दर्शन और शनि देव के दर्शन ।
दर्शन के बाद हम मंदिर परिसर के ही आनंद बाजार नामक स्थल पे प्रसाद लेने आए,
पर रमेश जी बोले की शुद्ध प्रसाद कंही और मंदिर परिसर में ही मिलता है जो मुख्य
रूप से देशी घी का खाझा जैसा होता है । हमने प्रसाद वही से लिया और मंदिर परिसर से
बाहर आ गए । बाहर सड़क के दोनों तरफ बाजार है, जहाँ से मैंने अपने लिए सम्भ्ल्पुरिया कुर्ते और
कुछ मूर्तियाँ ली । फिर हम सभी ने शाकाहारी भोजन किया और पूरी समुद्र बीच पे आ गए
। यह बीच भी बड़ा मोहक था । यहाँ लोग स्नान भी कर रहे थे ,
कई विदेशी पर्यटक भी यहाँ दिखे । यहाँ हम लोग थोड़ी देर बैठे रहे फिर सड़क के उस
किनारे बने बिरला गेस्ट हाऊस में गए जिसका निर्माण कमलनी मैडम के पिताजी ने स्वयं
करवाया था बिड़ला ग्रुप के कर्मचारी के रूप में । हमने वहाँ चाय पी। पाणिग्रही बाबू
जी ने अपनी कई पुरानी यादें ताजा की और तन-मन की ताजगी के साथ हम भुवनेश्वर की तरफ
लौट पड़े । रास्ते में रमेश जी उतर गए , हमने उनका आभार माना और फिर चल पड़े । काफी आगे आने
पर रास्ते में बाटदेवी के मंदिर के पास रुके और उनके दर्शन कर वापस चल दिये । करीब
7.30 बजे हम घर वापस आ गए । मन में जगन्नाथ जी की छवि और कभी न भूलने वाली
स्मृतिया लेकर ।
रात के खाने में बड़ी दीदी
ने बाँस की चटनी खिलाई जो मैंने पहले कभी नहीं खाई थी । दीदी थी तो क्राइम ब्रांच
फोरेंसिक विभाग में लेकिन धर्म और क्लाकृतियों में उनकी बहुत रुचि थी । उन्होने
मुझे जगन्नाथ जी की मूर्ति भी उपहार में दी । दूसरे दिन जब सुबह मुझे स्टेशन छोडने
आयी तो भाऊक हो उठी , मैं पाणिग्रही परिवार से पहली बार मिला था ,
लेकिन अब यह परिवार अपना ही लग रहा है । उड़ीसा की यह पहली यात्रा हमेशा याद रहेगी
।
Tuesday, 14 February 2012
मेरी उड़ीसा यात्रा का पहला दिन

आज सुबह जैसे ही ट्रेन के डिब्बे से बाहर निकला डॉ . कमलनी पाणिग्रही मैडम अपने उसी चिर- परिचित अंदाज और मुस्कुराते चेहरे के साथ भुवनेश्वर स्टेशन पर मिली । मैं उनके साथ उनके घर आया जो स्टेशन से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित था । घर पर उनके पिताजी , माताजी , बड़ी बहनों और भतीजी से मिला । सभी बड़े अपनेपन के साथ मिले । कमलनी मैडम इन दिनों स्काउट गाइड ट्रेनिंग कैम्प कर रही हैं , इसलिए वे 8.30 तक कैम्प चली गयी । मैं नहा-धो कर तैयार हुआ और माताजी ने नास्ते में उड़िया डोसा खिलाया और चाय पिलायी। फिर मैं कमलनी जी की दो बड़ी बहनों के साथ भुवनेश्वर घूमने निकल पड़ा ।
सबसे पहले हम लिंगराज मंदिर गए । मंदिर में कैमरा ले जाना मना था, इसलिए वहाँ की कोई तस्वीर नहीं निकाल सका । वहाँ दर्शन करना एक सुखद अनुभव रहा । मंदिर में भगवान को दीप जलाकर उनकी स्तुति की गयी । वहाँ से हम लोग शांति पगोडा ( स्तूप ) देखने निकल पड़े। रास्ते में द्या नदी पड़ी जिसके किनारे अशोक ने कलिंग का युद्ध लड़ा था और पूरी नदी के पानी को रक्त से लाल कर दिया था । पगोडा बड़ा भव्य था । वंहा पर लेटे हुवे भगवान बुद्ध की मूर्ति भी देखी । वंही एक शिवमंदिर भी हैं जहाँ मैंने बौर लगे आम के पेड़, ओरिसा के काजू और काले गणेश जी की मूर्ति के साथ बौद्ध प्रार्थना कक्ष देखा । वहाँ की शांति और पवित्रता ने मन मोह लिया । वहाँ से हम लोग मुक्तेश्वर मंदिर आए । यहाँ सूर्य घड़ी , प्राचीन मूर्तियों के साथ कुछ कुंड भी देखे । यह मंदिर बड़ा ही सुंदर और मोहक लगा । यहाँ से हम फिर एक और ऐतिहासिक जगह आए , जो मुख्य रूप से गुफाओं से भरी हुई प्राचीन ओपन थीएटर जैसा कुछ था, नाम है उदयगिरि और खंडगीरी । यहाँ इन दिनों मेला भी लगा हुआ है । ख्ंड्गिरि के ऊपर एक दिगंबर जैन मंदिर है जहाँ कई भव्य मूर्तिया देखने को मिली । आज वेलेंटाइन डे था तो प्रेम रत कई सुंदर जोड़ियों के भी दर्शन सुखद रहे , किसी की याद ताजा हो गयी ।

वहाँ से हम कलिंगा काटेज नामक एक होटल में आए और दोपहर का भोजन किया । वहाँ से फिर नंदन कानन के लिए निकल पड़े । नंदन कानन में सफेद टाईगर , घड़ियाल , हिरण , लकडबगहा , दरियाई घोडा , साँप और कई जानवरों को देखा । पक्षियों वाला भाग बर्ड फ्लू के कारण बंद था । नन्दन कानन तब तक घूमते रहे जब तक थक नहीं गए । वहाँ से निकले तो एक मिठाई की दुकान पर कई तरह की मिठाइयों का भोग लगाया , मजा आ गया । अब वापस घर पर हूँ और सारे फोटो फ़ेस बुक पर अपलोड कर रहा हूँ । बाकी अभी कल जगन्नाथ जी के दर्शन करने हैं और कोणार्क मंदिर भी जाना है । बहुत थका हूँ, आराम से सो जाता हूँ ताकि कल फिर घूमने जा सकूँ
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मेरी उड़ीसा यात्रा का पहला दिन
Monday, 13 February 2012
आज जब वैलेंटाईनडे है
आज जब वैलेंटाईनडे है,
यार बस तुम ही याद आयी हो ।
इतने सालों बाद भी,
राख़ के नीचे दबे अंगार सी ,
तुम ही, बस तुम ही याद आयी हो ।
टूटे सपनों और रिश्तों के बावजूद ,
हर साँस के साथ छूटी आस के बावजूद ,
किसी और का होने, हो जाने के बावजूद,
सालों बिना किसी मुलाक़ात के बावजूद ,
अब मोबाइल में तुम्हारा नमबर न होने के बावजूद,
आज जब वैलेंटाईनडे है,
यार बस तुम ही याद आयी हो ।
ऐसा इसलिए क्योंकि ,
वो जो हमारे बीच का विश्वास था
वो आज भी कायम है और
हमेशा रहेगा ।
इसलिए जब भी वैलेंटाईनडे आयेगा,
शुभे, बस तुम ही याद आओगी ।
यार बस तुम ही याद आयी हो ।
इतने सालों बाद भी,
राख़ के नीचे दबे अंगार सी ,
तुम ही, बस तुम ही याद आयी हो ।
टूटे सपनों और रिश्तों के बावजूद ,
हर साँस के साथ छूटी आस के बावजूद ,
किसी और का होने, हो जाने के बावजूद,
सालों बिना किसी मुलाक़ात के बावजूद ,
अब मोबाइल में तुम्हारा नमबर न होने के बावजूद,
आज जब वैलेंटाईनडे है,
यार बस तुम ही याद आयी हो ।
ऐसा इसलिए क्योंकि ,
वो जो हमारे बीच का विश्वास था
वो आज भी कायम है और
हमेशा रहेगा ।
इसलिए जब भी वैलेंटाईनडे आयेगा,
शुभे, बस तुम ही याद आओगी ।
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आज जब वैलेंटाईनडे है
Sunday, 12 February 2012
ब्लॉगिंग पर एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला संपन्न
मुम्बई। पिछले दिनों मुम्बई का प्रवेश द्वार माने जाने वाले कल्याण के के. एम. अग्रवाल कॉलेज में ब्लॉग लेखन पर एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन हुआ,जिसमें ब्लॉगिंग क्या ? ब्लॉगिंग क्यों? ब्लॉगिंग किसके लिए? ब्लॉगिंग के क्या फायदे ? ब्लॉगिंग कैसे ? आदि विषयों पर हिंदी के मुख्य ब्लॉग विश्लेषक रवीन्द्र प्रभात ने खुलकर चर्चा की । वे इस कार्यशाला के मुख्य अतिथि थे,जिसकी अध्यक्षता की महाविद्यालय की प्राचार्या डा. अनिता मन्ना ने और संचालन किया महाविद्यालय के हिंदी विभाग प्रभारी डा. मनीष कुमार मिश्र ने ।
इस अवसर पर रवीन्द्र प्रभात ने कहा कि ” लोग ब्लॉग को भले ही व्यक्तिगत डायरी के रूप में लिखते हैं, किन्तु अंतरजाल पर आ जाने के बाद उसे पूरा विश्व पढ़ता है । इसलिए मैं ब्लॉग को निजी डायरी नहीं मानता । यह वह खुला पन्ना है , जो सारी दुनिया में आपके विचार को विस्तारित करता है । इसलिए जो भी आप लिखें उसे दुबारा जरूर पढ़ें । क्या लिखा है , उसके क्या परिणाम हो सकते हैं इसपर विचार अवश्य करें । ध्यान दें- आपका लिखा हुआ कई सालों बाद सन्दर्भ के लिए लिया जा सकता है ।” कार्यशाला में पूछे गए एक प्रश्न “ब्लॉगिंग से व्यक्तित्व विकास कैसे संभव है” के उत्तर में उन्होंने कहा कि “हर व्यक्ति में कोई -न-कोई गुण अवश्य होते हैं, जो उन्हें औरों से अलग करते हैं । अपने इन्हीं गुणों को ढूंढिए और ब्लॉगिंग के माध्यम से उसका विकास कीजिये । इससे आपकी सेल्फ स्टीम में इजाफा होगा और आप खुद को लेकर अच्छा महसूस करेंगे।”
दिनांक 03.02.2012 को आयोजित इस कार्यशाला में ब्लॉग शिष्टाचार पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि “यदि आपको एक कुशल ब्लॉगर के रूप में छवि विकसित करनी है तो सबसे पहले आपको भाषा के व्याकरण पर विशेष ध्यान केन्द्रित करना होगा । यह सही है कि ब्लॉग आपका पर्सनल मामला है और इसे किसी भी भाषा में और कैसे भी लिखने के लिए आप स्वतंत्र हैं । फिर भी आप चाहते हैं कि आपकी लेखनी अधिक से अधिक लोग पढ़ें तो भाषा और वर्तनी की शुद्धता पर अवश्य ध्यान देना होगा । व्याकरण एकदम शुद्ध रखने का प्रयास करना होगा । यदि उसमें कोई गलती हो तो संज्ञान में आते ही सुधारने का प्रयास करें । इसके अलावा गलती मानने की प्रवृति अपनाएं , क्योंकि कोई भी हमेशा सही नहीं हो सकता । यदि आपसे जाने-अनजाने में कोई गलती हो जाए तो वजाए तर्क-वितर्क के गलती मान लेनी चाहिए । इससे दूसरों की नज़रों में आपका सम्मान बढेगा । एक और महत्वपूर्ण बात है ब्लोगिंग के सन्दर्भ में कि ब्लॉग पढ़ने के लिए किसी को भी बाध्य न करें ,क्योंकि इससे आप अपनी प्रतिष्ठा खो देंगे । एक-दो बार लोग आपका मन रखने के लिए टिप्पणी तो कर देंगे ,किन्तु आपके पोस्ट से उनकी दिलचस्पी हट जायेगी । और हाँ कोशिश यह अवश्य करें कि कोई भी टिप्पणी आप अपने नाम से ही करें , क्योंकि लोग आपके विचारों को पहचानते हैं । अपनी पहचान को क्षति न पहुचाएं । स्वयं के प्रति ईमानदार बने रहें । एक और महत्वपूर्ण बात कि लेखन की जिम्मेदारी लेना लेखक की विश्वसनीयता मानी जाती है । कोई हरदम आपकी तारीफ़ नहीं कर सकता , कभी आपको कटाक्ष का दंश भी झेलना पड़ता है ऐसे में कटाक्ष पर शांत रहना सीखें ताकि आप उस आग में जलकर कंचन की भांति और निखर सकें ।”
(मुम्बई से मनीष कुमार मिश्र की रपट)
Tuesday, 7 February 2012
आज तीस वसंत के बाद
आज 9 फरवरी 2012 को ,
जीवन के तीस वसंत के बाद
जब पीछे मुड़ कर देखता हूँ तो
कई मुस्कुराते चेहरों को पाता हूँ ।
लगभग हर आँख में ,
अपने लिए प्यार पाता हूँ ।
अपने लिए इंतजार पाता हूँ ।
कुछ अधूरे सपनों की कसक पाता हूँ ।
संतोष और अपार सुख पाता हूँ ।
फिर जब आगे देखता हूँ तो
कईयों की उम्मीद देखता हूँ ।
कई-कई अरमान देखता हूँ ।
वादों का भरी बोझ देखता हूँ ।
किसी को खुश, किसी को नाराज देखता हूँ ।
फिर जहां खड़ा हूँ
वहाँ से आज तीस वसंत बाद,
जब खुद को आँकता हूँ तो ,
उस परम सत्ता की कृपा के आगे
नत मस्तक होते हुए
इस जीवन के लिए धन्यवाद देता हूँ ।
और प्रणाम करता उन सभी को जिनहोने ,
मुझे अपने प्रेम और घृणा
विश्वास और अविश्वास
आशीष और श्राप
इत्यादि के साथ
अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया और
आज जीवन के इस पड़ाव पर ,
मेरे लिए अपार सुख और संतोष के नियामक बने ।
आभारी हूँ मैं सभी का ।
आभारी हूँ उसका भी जो ,
मेरे अंदर मेरी बनकर रहती है ।
मेरे अंदर शक्ति का संचार करती है ।
वो जिसकी गर्मी प्राणवायु सी लगती है ।
वो जिसके लिए,
दुनिया को सुंदर बनाने का मन करता है ।
जिसके लिए सब कुछ सहने का मन करता है ।
वो जो सुंदर है ,
वही मेरा सत्य है ।
ये वही है जो ,
सब कुछ अच्छा बना देती है ।
सब को मेरा बना देती है ।
सब को माफ कर देती है ।
सब के बीच मुझे बाँट देती है ।
आज इतने लोगों में बट गया हूँ कि
उसी से दूर हो गया हूँ जिसकी ऊष्मा से
दुनिया बदलने की ताकत रखता हूँ ।
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आज तीस वसंत के बाद
Monday, 6 February 2012
चंद तस्वीरें
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कल्याण में हिन्दी कहानियों पर परिसंवाद
आगामी 30- 31 मार्च 2012 को कल्याण पश्चिम स्थित बिरला महाविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा 1990 की कहानियों में विविध विमर्श इस विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया है ।
अधिक जानकारी के लिए निम्नलिखित पते पर संपर्क किया जा सकता है ।
डॉ श्याम सुंदर पांडे - 9820114571
बिरला कालेज
कल्याण पश्चिम
जिला- ठाणे , 421301
महाराष्ट्र ।
अधिक जानकारी के लिए निम्नलिखित पते पर संपर्क किया जा सकता है ।
डॉ श्याम सुंदर पांडे - 9820114571
बिरला कालेज
कल्याण पश्चिम
जिला- ठाणे , 421301
महाराष्ट्र ।
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