फेक जहां तक भाला जाए ।
फेक जहां तक भाला जाए
विजय का डेरा डाला जाए ।
सब वक्त पुराना चाला जाए
तेरे गले जीत की माला जाए ।
अब ना अवसर टाला जाए
शौख नया अब पाला जाए ।
बन मतवाला खेला खेला जाए
सब से आगे अपना गोला जाए ।
कुछ रंग नया अब घोला जाए
सोना चांदी केवल तौला जाए ।
फौलादों में खुद को ढाला जाए
हो हिंद कि जय यह बोला जाए ।
फेक जहां तक..........
डॉ. मनीष कुमार मिश्रा
के. एम. अग्रवाल महाविद्यालय
कल्याण, महाराष्ट्र ।
manishmuntazir@gmail.com
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