लोकतंत्र को
नजर लग गयी।
बचालो इसे।
इंसान देखो
इंसान नहीं रहा।
आखिर क्यों?
हम व तुम
अब जिंदा नहीं हैं।
यकीन करो।
भारता माता,
अब खतरे में है।
इंकलाब हो।
यार प्यार तो
सुंदर सपना है।
मैं देख चुका।
चाहत मेरी
हकीकत है पर
इंद्रधनुष।
लहूलुहान
भारतीय संसद।
महान देश।
गर्व से कहो
मेरा देश महान।
बस काफी है।
मेरी लड़की,
जवान हो गई है।
मैं परेशान।
जवान बेटी,
जब भूख न सही,
पेट से हुई।
अबला की,
यही कहानी रही,
बस शोषण।
कोई लेखक,
रोटी कमाये कैसे?
कलम बेच!
अब संबंध,
कीमत चाहते हैं।
चुकाते रहो।
दुनियाँ आज,
बाजार बन चुकी।
हम बाजारु।
नर-नारी की,
अलग-अलग है,
कहानी क्यों?
प्यार मेरा, तो
तुमसे चाहता है,
बस प्यार।
दंगा हमारी,
राष्ट्रीय पहचान।
सच की झूठ?
धर्म-अधर्म
हिंदू मुसलमान,
क्या जाने?
भाषा अपनी,
अपनों में बेकार।
आखिर क्यों?
गलत है कि,
इंसान श्रेष्ठतम।
विश्वास करो।
पढ़ रहे हो,
नौंकरी के खातिर।
पछताओ गे।
चुप रहना,
हमारी आदत है
बुरी आदत।
माँ तुमसा,
प्यार और दुलार
मिलता नहीं।
दादुर वक्ता,
कोयल हुई मौन।
वक्त का फेर।
पानी बरसा
असमय ही आज
मेरा दुर्भाग्य।
जो गरजते
वो बरसते नहीं
आशा जगाते।
घिरते देखा
बादल काले-काले
युद्ध के जैसे।
मौसम जैसे
मेरे राग-विराग
खट्टे व मीठे।
मेरे अपने
अपने अजनबी
और आपके?
जग हँसाई
से डरते हैं हम
बताओ कैसे?
वसंत आया
पैसों पर बिक के
शहर तक।
पतझड़ में
मन उदास नहीं
आगे की सोच।
सावन आया
धरती हुई ठंडी
प्रिया व्याकुल।
सावन आया
साजन नहीं पास
मन उदास।
बादल छाये
धरती पानी-पानी
पर जवानी!
नदी में बाढ़
उफनती जवानी
हो शांत कैसे?
पागल मन
हो गया चंचल भी
बरसा पानी।
कर लो बात
आज चाहे जितनी
कल रोवोगे।
बड़े आदमी
ताड़ के पेड़ जैसे
तने रहते।
कोई भी भाषा
अच्छी या बुरी नहीं
यकीन करो।
कोई भी शब्द
सोच-समझ बोलो
पछताओगे।
अर्थ केवल
शब्दकोशीय नहीं
इसे समझो।
दो उपदेश
जी भर के महात्मा
पर बेकार।
रात सितारे
मुँह चिढ़ाते मुझे
मैं असहाय।
फूल खुशबू
घटा और चाँदनी
उसकी याद।
विरह आग
व्याकुल मन मेरा
जलता रहा।
माँगों दहेज
विवाह व्यापार है
मैनें समझा।
जवान बेटी
जला डाली जा रही
खाने के लिए।
कन्या के पिता
सर झुका के जीते
परंपरा है।
शादी-विवाह
शुभ लाभ युक्त है।
सब जानते।
कन्या हवन
परंपरा का बेदी
समझी बेटी।
बरसात में
फुले मेंढ़क जैसे
वर के पिता।
सुंदर कन्या
दहेज दिये बिना
सुंदर नहीं।
लव मैरेज
फायदेमंद नहीं
सब कहते।
दहेज देगा
अपराध नहीं है।
जीवन मूल्य।
बहती हवा
खबर दे गयी है
मुल्क बचालो।
आतंकवाद
कृत्रिम आपदा है
इससे बचो।
वादियाँ अब
गोलियों से गूँजती
देखो कश्मीर।
मानव अब
दिखायी नहीं देते।
आपने देखा?
अब बारूद
फैसला करते हैं
सारे हमारे।
जब जन्मा है
तब देखा तमाशा
हताशा कैसी?
आजाओं मृत्यु
तुम्हारी प्रतिक्षा है।
थक चुका मैं।
नारी सौभाग्य
या नारी का सौभाग्य
कहो पुरूष।
मैं मतलबी
मानता हूँ लेकिन
अपनी कहो।
ससुराल में
सब कुछ सहना
माँ समझाती।
हम काटते
जब-जब पेड़ों को
खुद कटते।
पर्यावरण
हमारा शुद्ध रहे
प्रार्थना करो।
वृक्षारोपण
मानवीय कर्म है
मानव बनो।
पेड़ लगाओ
और बचाओ धरा
नहीं तो मरो।
रहेगी यदि
हरी भरी ये धरा
पुण्य रहेगा।
आतंकवादी
सर कलम करें
संसद चुप।
फतवा आया
बुरखे में रहिये
वरना कत्ल।
आतंक हमें
जीने क्यों नहीं देता?
सब पूछते।
मानवता को
नंगा कर नोचते
आतंकवादी।
सिसकती हैं
कश्मीरी लड़कियाँ
बुरखे डाल।
सरे आम वे
बलात्कार करते
बंदूक दिखा।
धर्म के नाम
उन्माद फैला कर
वे धार्मिक हैं।
खबरें पढ़
हम दुखी होते हैं।
मन ही मन।
लड़ने वाले
बहुत डरते हैं
प्यार वालों से।
डरो मुझसे
मैं आतंकवादी हूँ
भेड़िये बोले।
आतंकवादी
जंगली जानवरों
से लगते हैं।
कोई भी पशु
डर जाता है देख
मानव हिंसा।
अब कश्मीर
से ‘धरती का स्वर्ग’
लुप्त हो गया।
जिस्म दिखाना
आज का फैशन है
करो फैशन।
आज बाजार
जिस्म के इर्द-गिर्द
घूर रहा है।
हम कहते
हम सब एक हैं
सच है यह?
सबसे प्यारा
हिंदोस्ता हमारा है
कैसी श्रद्धा है?
हिंदू-मुस्लिम
भाई-भाई जैसे हैं
फिर गोधरा?
धर्म पाखंड
आध्यात्म अपनाओ
धर्म अफीम।
कर्मकांडी से
धर्म भ्रष्ट हो चुके
इसे समझो।
भेड़िये खुश
शावक घायल है
जल्दी मिलेगा।
धीमा कछुआ,
हताश नहीं हुआ
सो जीत गया।
घमंडी शेर
चूहे की बात माना
लाभ में रहा।
एकता में क्या?
अगर है तो फिर
देश में कहाँ?
कब तक मैं
दबे शब्दों में लिखूँ?
बंधन तोडूँ।
हाइकु मेरे
कब तक सहेंगे
कोई बंधन?
भारत देश
यह निराला का है
बंध टूटेंगे।
आपका नाम
मक्कार है मानो
देश के नेता।
चमकता है
ध्रुव तारा अकेला।
वैसा ही बनो।
मेरे सितारे
सितारों जैसे दूर
पर भाते हैं।
कैसे हो मीत?
जानना चाहता हूँ
कहाँ हो तुम?
दुनियाँ मेरी
अलग दुनियाँ से
भाव जगत।
मैं पागल हूँ
जो यह कहते हैं
खुद शातिर।
मुबारक हो!
आपको नया साल
पुराना मुझे।
शिव-शंकर
विकाश व विनाश
प्रतिकात्मक।
जटिलताएँ
मानव जीवन की
बुलबुलों सी।
पैर पकड़ो
उसे फिर खींचना
राष्ट्रीय खेल।
आप की बात
बड़ी-बड़ी बहुत
काम छोटे हैं।
मेरी मदद
सरकार करेगी
गरीब सोचे।
जो गरीब है
वह कीड़ा-मकौड़ा
मेरे देश में।
मानवता की
आत्मा तड़पती है
इस सदी में।
प्यार करोगे
अगर मानवों से
क्या बिगड़ेगा?
हे भगवान!
हो कहाँ तुक प्रभू?
हो भी की नहीं?
प्रकृति प्रेम
पत्थरों का शहर।
कहाँ से लाये?
चलती है जो
उसका नाम गाड़ी
बाकी कबाड़।
हर बार मैं
तुमसे हार जाता
जीत, क्या पाता?
हमारा साया
हमारा नहीं होता
साथ होता तो....
अभिषाप है
सचमुच गरीबी
मेरे देश में।
गरीब कौन?
मेहनतकश या
बीमार सेठ।
हार-जीत का
फैसला होगा यदि
क्रांति हो जाये।
समेटो तुम
सिर्फ रूपया नहीं
इच्छाएँ भी।
पैसा कमा के
क्या साथ ले जाओगे?
थोड़ा जी भी लो।
धनी हो पर
क्या दो पल की नींद
है पास तेरे?
शांति चाहिए
मेरे इस मन को
शांति ने कहा।
कब से तुम
राह देख रही हो?
नारी बताओ।
इंसान को भी
इंसान बनने में
वक्त लगता।
जिस्म की भूख
पेट की भूख पर
हावी हमेशा।
मुझे लगता
पशु हमसे ज़ादा
संस्कारी होते।
आँखों में नमी
अधरों पे अंगार।
इसे क्या कहूँ?
कीचड में ही
कमल खिलता है
देह में मन।
भटकता है
शांति की तलाश में
जानवर भी।
देश की आग
जंगल की आग सी
अपने आप!!
गुलाब खिला
भँवरा मड़राया
गया चूस के।
लगता है कि
धरा नष्ट हो जाये
कितना सहे?
सबने जाना
तुम्हीं रहे अंजान
जान-बूझ के।
अन्न चाहिए
भूखे नंगे लोगों को
भाषण नहीं।
अच्छी फसल
भाषणों की होती है
फल विहीन।
सिर्फ बातों से
काम नहीं चलेगा
काम चाहिए।
मीठी जुबान
जनता हैरान है
नेता की सुन।
श्ेर-हिरन
एकदम ऐसे ही
नेता-जनता।
चाँद सितारे
नन्हें नन्हें बच्चे हैं
इन्हें प्यार दो।
बचपन में
मजदूरी करते
गरीब बच्चे।
बच्चे भविष्य
आने वाले कल के
इसे समझो।
मासूम बच्चे
व्यवस्था के शिकार
मदद करो।
भोला सा बच्चा
जूते चमकाता है
भविष्य मैला।
आदम खोर
जानवर आदमी
बन गया है।
देश महान
नेता जी बेईमान
हम नादान।
कौन आया है?
सरहद पार से
अमानुषता।
कोई अपना
दुश्मन हो गया है।
उसे तलाशो।
हमारी यूँ ही
नाम बदनाम है
‘भला आदमी’।
इस देश में
भेड़ियों का राज है
सीधी सी बात।
बादल आये
डर बनके छाये
बेघरों पर।
सुनना चाहो
तो सब सुन लोगे
बहस छोड़ो।
बहरे नहीं
इस देश के नेता
कर्म भ्रष्ट हैं।
अंधा कानून
इंसाफ करता है
अंधा इंसाफ।
बादल राग
मैने सुनी नहीं है
जाना अच्छे से।
लोग कहते
गलत हो रहा है
दायित्व पूरा।
बड़ा होने पे
प्यार कम हो गया
छोटे पन से।
आ जाओ तुम
हर दीवार तोड़
यदि प्यार है।
खुश नहीं हूँ
नामचीन बन के
बाजार हो के।
प्रेम तो जैसे
खुशबू सुमनों की
दिखती नहीं।
तनहाई में
सुलगता है मन
चाँदनी में भी।
यह सागर
दर्द सा विशल है।
देख लो इसे।
बेदाग तन
पर मन में शंका है
ले लो परिक्षा।
कई मुखौटे
नारी लगा जीता है।
नारी से पूछो।
हलाल करो
धीरे-धीरे कसाई
मजा आयेगा।
मन में दर्द
घर हुआ ओझल
रोटी के लिए।
चोट खायी है
मैनें इस दिल पे
कैसे दिखाऊँ?
सत्ता लालच
कुछ भी करवा दे
जैसे की दंगा।
घूमते लोग
खंजर लिये हाँथ में
हर जगह।
एक ही बात
बोले और न बोले
इसे क्या कहें?
अर्थहीन हो
चलती रहती है
ये राजनीति।
नहीं नींद में
आँखे कई दिनों से।
डर गयी है।
थकान आओ
ताकी नींद आ जाये
कभी तो मुझे।
साथ मेरे हैं
अनगिनत तारे
तनहा कहाँ?
रिश्ता दर्द से
तुमने करा दिया
करके प्यार।
हम तो बोले
पर सभी बहरे
चुप हो गए।
धन कमान
एक बड़ी समस्या
बचा ईमान।
अपना गाँव
शहर भूला नहीं
कैसे भूलता?
दूध की मख्खी
शमा परवाने सी
प्रतिकात्मक?
व्यवहारिक
होना जाल बुनना।
मकड़ी जैसा।
स्वप्न नयन
काश की होती यह
सारी दुनिया।
वादा करना
सिर्फ एक बहाना
छलावा देना।
आयोजनों में
कई योजनाएँ हैं।
सब तमाशा।
दर्द मेरा भी
तेरे दर्द जैसा है।
मैं भी इंसान।
मजबूर हूँ
सबकुछ सुनाओ
जी भर तुम।
उदास होता हूँ
अकसर अकेले।
मेरी आदत।
पन्नों के बीच
सूखे हुए गुलाब
यूँ ही तो नहीं।
बासी घटना,
नई घटना तक
याद रहती।
वही जली है
हर साँस के साथ।
मरने तक।
तुम अगर
करते रहे प्यार
फिर ये आँसू!
सबके साथ
महशूस करता
अकेलापन।
झोपड़ी मेरी
महलों से डरती
सर झुकाती।
भँवरा मन
मुझे नचाये खूब
जीवन भर।
नंगा बदन
बाजार को चाहिए
लगाओ भाव।
मेरा ‘मैं’ खुद
न जाने कितनों का?
‘मैं’ मेरी शैली।
मेरी परिक्षा
रंगीन तितलियाँ
लेती रही हैं।
पूरी धरती
हो जाये एक बार
वसंत सी।
गर्व से कहो
हम सभी मनुष्य
बस मनुष्य।
बिना जल के
कहीं नहीं बढ़ता
कोई भी पेड़।
खोने के बाद
तुम ये सोच लेना
क्या था तुम्हारा?
भीगना चाहा
पर बादल नहीं
क्या करता मैं?
आशा के बाद
निराशा आयी पास
मन उदास।
अगर आना
तो मुझसे मिलना
नींद मुझसे।
हो गया विष
पूरा बदन मेरा
मैं नील-कंठ।
अब तो दुख
हमेशा करीब है।
तुम हो दूर।
अपसराएँ
आसमानों पर की
धरती पर।
हारा नहीं हूँ
थक गया सच है।
पर जीतूगाँ।
मृग नयनी
प्रेम सुधा लेकर
कब आओगी?
लड्डू फूटे हैं
मेरे-तेरे मन में।
दोनों लालची।
कहाँ जाऊँ मैं?
यह पूरी धरा तो
बिक चुकी हैं।
यदि कहानी
सुनना ही चाहो तो
चुप्पी से पूछो।
बात आँखो से
ओठों की होती रही
जादू आँखों का।
कई राज हैं
मेरे सीने में बंद
वही सुलगते।
हमसाये भी
साथ छोड़ देते हैं
आड़े वक्त में।
तुम महान
यह मैं जानता हूँ
मैंने सूना है।
हे मन मेरे
सोचता इतना क्यों?
यही दुनिया।
दहाड़ते वे
जब जब दहाड़
फैशन बना।
दुखी संसार
सुख की कामना में
जलता रहा।
सुख न मिले
तो दुखी ही हो लिये
सुकून मिला।
तेरे ख्वाब सी
यदि दुनिया होती
जन्नत होती।
उदासी मेरी
मेरा भोला पन है।
दिल बच्चा है।
धडकन में
अक्सर कोई मेरे
पास होता है।
आग दिल की
कब से जल रही
बुझती नहीं।
अब कलियाँ
खिलने से डरती
कैसे हालात?
पश्चिमी हवा
यह क्या ला रही है?
गोला-बारूद।
नादान माटी
एकदम माता सी
दुलराती है।
मेरा आकाश
मेरे अरमान हैं
पंख सपने।
फूल तो वही
पर स्थान अलग
खुशबू वही।
सीमाओं पर
माँ के लाल शहीद
रोती माताएँ।
पूजा-अर्चना
घंटा-घड़ियालों से
जरूरी हैं क्या?
ऊँची इमारत
झोपड़ी तोड़कर
ऊँचा बना है।
चिलचिलाती
धूप में नंगे पाँव
चलते रहो।
दुश्मन मेरे
दोस्त मेरे ही हुए
विश्वासघात।
पेड़ की छाया
बिलकुल माँ जैसी
दुलारती है।
इतिहास में
वर्णन अतीत का
आधा-अधुरा।
टूटा है दिल
आइने की तरह
बिना आवाज।
जीवन मेरा
लेन-देन का रहा
जैसे व्यापार।
वक्त हमेशा
बदल ही रहा है
धीरज धरो।
दूसरे को मैं
दोषाी कैसे कहता
खुद ही बना।
वही वक्त है
घटना वैसी ही है
सदी दूसरी।
आँखों के आँसू
मोतियों से लगते
सो सँजोता हूँ।
करो अच्छाई
बुराई के बदले
सुख मिलेगा।
निर्दोष आँखे
हिरन के बच्चे की
मेरी प्रिया सी।
टूटते तारे
मेरी तमन्ना है कि
दिल जोड़ दे।
नाम-बेनाम
कुछ तो हो जायेंगे
सब जायेंगे।
मोती ही नहीं
रेत भी मिलती है
गहराई में।
इश्क न होता
तो नाम भी न होता
मेरे मौला का।
बेमतलब
मेरे वास्ते खुदा का
करम कोई।
मुझे जान लो
मैं अनजाना नहीं
तुम्हारी रूह।
असंभव है
वेसे यह लेकिन
कोशिश करो।
कहो ईश्वर
तुमसे भी दुनियाँ
क्या रूठ गई?
मोम है दिल
शोला छुपाता कैसे?
पिघल गया।
रूक-रूक के
पीछे देखता हूँ मैं
हर आहट।
कौन जाना है?
कौन जान पायेगा?
हुस्न वालों को।
हम कहते
तुमसे अफसाने
जो ठहरते।
कहते हैं कि
इश्व इबादत है
चलो अच्छा है।
उड़ता पंक्षी
कोसों कितनी दूर
पंख पाकर।
चमकते हैं
जितने भी चेहरे
मिलावटी हैं।
बंधन टूटे
मिलते गाँठ पर
देखो टूटे ने।
भौंकते रहे
आदमी भूखे पेट
किसे चिंता है?
मन गंगा है
आनंद बहना है
रूकना माया।
हो ठहरा तो
बताओ तुम मुझे
वक्त भी कभी।
प्यार! वो देखो
खून कितना बहा
तुम्हारे लिये।
मासूम आँखे
जुर्म कितने करे
आँखो से पूछो।
बोलती आँखे
जुर्म कितने करे
आँखो से पूछो।
बोलती आँखे
आँखों में उतरी हैं
चुभन देती।
आँखों के डोरे
दिल को खींचते हैं
हम जानते।
तेरी आँखों में
मेरा जो संसार था
महफूज था।
डबडबाते
आसुओं में नयन
मेरे सालों से।
हर जगह
कातिल छुपे हुए
जाएँ कहाँ से?
‘अनिवार्य है’
ऐसी सुचनाएँ तो
भयानक हैं।
हिसाब देंगे
हम सभी कर्मो के
इसी धरा पे।
जलता मन
यादों में उसकी है
नादान है ये।
कैसा ईश्वर
जो सिर्फ नचाता है
हम सभी को।
सुनते रहो
दाँस्तान जिंदगी की
जितनी चाहो।
मेहमान हैं
हम सभी जहाँ में
पल दो पल।
जागती आँखें
छत पर लगी थीं
सुबह तक।
रात रानी
महकी तो थी पर
रानी नहीं थी।
मेरे सपने
जिसके गुलाम हैं
वह इश्क है।
कह न सका
सिर्फ वही बात जो
कहने गया।
नादान था मैं
और वह मासूम
कहें और क्या?
मकान मेरा
मेरा घर न बना
कुछ कमी थी।
प्यार किया तो
डर भी भूल गया
यह जादू था।
की तुमने तो
बेवफाई ही सही
हम करें क्या?
चाहता हूँ कि
सारे ख्वाब मिटा दूँ
उसके सिवा।
उसका नाम
गैरों में शमिल है
खुशी उसकी।
सारी कसमें
सारी वफा की बातें
वे भूल चुके।
अब जीने का
बहाना ढूँढता हूँ
मिलता नहीं।
हार कर भी
दिल मेरा जीता है
जीत के हारा।
तेरा तुझी को
लौटाने के सिवा मैं
क्या दूँ तुमको?
तेरी खुशबू
साँसों को मालूम है
हो यहीं कहीं।
कंकर में भी
शंकर बसते हैं
इस देश में।
राम-रहीम
सब एक हैं यारों
एक हैं हम।
दंगे-फसाद
रूलाते हैं उसे भी
जो खुद खुदा।
आपसी बैर
धर्म के नाम पर?
बचपना है।
इंसान हो के
इंसान की जान लो
किस धर्म में?
धर्म अगर
लड़वाता है हमें
तो बेकार है।
राजनीति के
घिनौने खेलो में से
दंगा एक है।
मानवता को
हर धर्म से बड़ा
मान लो तुम।
इस ईद में
इंसानियत तुम
आना जरूर।
दीपावली में
मानवता का तुम
प्रकाश करो।
खून एक है
हम सभी का-लाल
हम एक हैं।
हमारा देश
उन सभी का है जो
भारतीय है।
भारत देश
हम भारतीय का
हम सब का।
हर कदम
गर्म अंगारों पर हैं
मानवता के।
अपना धर्म
इंसानियत का है
बाकी बेकार।
हम आँगन
बच्चों की किलकारी
डरी सहमी।
मत लड़ाओं
धर्म के नाम पर
कुर्सी के लिए।
कबीर तुम
आ सको तो फिर से
आ जाओ यहाँ।
डरता हूँ मैं
उनसे जो संसद
चला रहे हैं।
सफेद पोश
इस देश के सभी
प्रायः भेड़िये।
अपनी जेब
काटी उन सभी ने
जो कि नेता हैं।
आँख में मेरी
खटकते रहे हैं
सफेद पोश।
हमारे नेता
आँखों की किरकिरी
बन चुके हैं।
वे लोग जो
फिरकापरश्त हैं
इंसान नहीं।
जमीं अपनी
अपना आसमान
अपना देश।
चलते हुए
अगर थक जाओ
तो पुकारना।
हर साँस पे
पहरे बैठा कर
हम जी रहे।
उनका क्या है
जानवर हैं वे संघ
लेकिन हम?
तड़पती है
रह रह करके
यह धरती।
नए साल में
जब गले मिलना
धोखा न देना।
आईना मेरा
बेईमान हो गया
या फिर मैं?
अखबारों में
मरने-मारने की
कहानी होती।
वक्त ऐसा भी
हमने देख लिया
जो सोचा न था।
प्यार करके
बड़े खुश थे हम
नादान जो थे।
हुस्न वालों की
हर अदा कातिल
बचों इनसे।
मोहब्बत में
मिट जाओगे तो भी
कम ही होगा।
तीर आँखों के
जब चले उनके
कौन बचता?
लबों की सुर्खी
दरअसल होता
दिले-खून है।
इस कदर
मदहोश जमाना
जैसे कि हम।
लूटते बने
तो लूट लो मुझको
इश्क ने कहा।
यार हमारा
हमारा कब हुआ?
दिल सोचता।
हुस्नवालों को
सजा होनी चाहिए
करें वे इश्क।
उलफत में
ताज बिखरें कई
और बने भी।
मजा होता है
दिल के टूटने में
और रोने में।
मधुशाला में
मधु पिलाती बाला
मजबूर है।
जान-बूझ के
मुझे कई फरेब
खाने पड़े हैं।
तेरे इश्क में
दिल जाने का
हमें भी गम रहा।
अब लौटना
मुमकिन नहीं है
वक्त चला गया।
यह दौर तो
बड़ा डरावना है
कोने-कोने में।
आज संबंध
अहम् से भरे हैं
मतलबी हैं।
शीश महल
हमेशा डरता है
देख पत्थर।
यह जमाना
जमाने से गाता है
वही फसाना।
कब तलक
आखिर वो सहेगी
जन्म का भेद।
तुम्हीं सोचोगे
मेरे बारे में तब
जब न होंगे।
कम से कम
इतना तो कहते
कैसे हैं आप?
हुआ सो हुआ
अब आगे की सोच
निर्माण कर।
चलती रही
जब तक ये साँसे
तुम याद थे।
पता उसका
मुझसे लोग माँगे
जो लापता है।
कहता कौन
यह हाल दिल का
सो कह गये।
हमारे नेता
गेहूँ में बसे धुन
चाल रहे हैं।
आज फिर से
हवाएँ सर्द हुई।
तबदीली है।
रोम-रोम से
आँखे निहारी रहीं
किसी राम को।
राम नाम में
राजनीतिक लाभ
नेता जानते।
पेड़ पौधे तो
हमसे अच्छे हैं ही
टिके रहते।
रोक सको तो
रोको यह तूफान
भयानक है।
आने के बाद
सिर्फ बर्बादियाँ हैं
तूफान रोको।
मेरे लबों पे
जो लगे गुलाबों से
वे अंगार थे।
लबे गुल पे
मैनें लबों को रखा
कल ख्वाब में।
इस सदी से
उस नयी सदी को
कुछ मत दो।
फकीरों जैसा
अब हाल हो गया
इश्क में मेरा।
बात उनकी
अब और न करो
शर्म आती है।
खास दोस्त भी
दुश्मन बन गये
इश्क में मेरे।
अब कलम
अफसाने चाहती
कुछ नए से।
बचपना मेरा
मुझे छोड़ता नहीं
वो भूले नहीं।
उसके जैसा
हो कोई और यारों
ना मुमकिन।
मेघ बरसे
जैसे यादों के नैन
कहाँ है चैन?
बिना उसके
हमें पूछता कौन?
खुदा सबका।
मैं कहाँ जाऊँ?
छोड़ के यह जहाँ
कौन से देश?
आओ मिलके
दर्द हम बाँट ले
कोई कहे तो।
बेचैन रात
नींद कोसों दूर है
बस खयाल।
हकीकत में
वो कुबेर के यहाँ
मैं कबीर के।
काश दुनियाँ
वैसी ही होती जैसी
मेरी प्रीति है।
बवंडरों को
डाँटने से अच्छा है
नाव सँभालो।
जब किनारे
खुद डुबाना चाहे
तो कहाँ जाएँ?
इश्क करना
बच्चों का खेेल नहीं
मैं जान गया।
बदन मेरा
बेदम हो गया है
दम पे दम।
चाहना याने
बरबाद हो जाना
मैं हो गया हूँ।
यादें उसकी
ठंड रातों जैसी हैं
सर्द करती।
हमने किया
जो हमसे हो सका
समझा कौन?
अंदर मेरे
आग लगी हुई है
व्यवस्था देख।
अपना कौन?
मालूम नहीं पर
मैं सबका।
बंद आँखों में
अब नींद नहीं है
बस डर है।
इंसान अब
इंसान नहीं रहा
ईश्वर देखो।
तकदीर भी
रूठ गई मुझसे
तबाहियों में।
दीवार के पार
जो जहाँ बसता है
उसे भी देखो।
यह दुनियाँ
सिर्फ मेरा घर है
ऐसा न कहो।
वे पराये भी
उतने ही अपने
जितनी हवा।
कोई सफर
बिना हम सफर
कटता नहीं।
जब रक्षक
भक्षक बनके नोचें
कौन बचाये?
अब कभी भी
लौट नहीं पायेगा
जो चला गया।
समय काफी
कट गया हैं यूँ ही
अभी से जागो।
पढ़ोगे तुम
जब कभी मुझको
तो प्यार दोगे।
कहाँ की बात
कहाँ तक आ गई
सदी जा चुकी।
कहीं न कहीं
दोश हमारा ही है
गलतियों में।
हमारे मंत्री
मान बकरा हमें
हलाल करें।
दूसरों पर
कीचड़ उछालना
लोकतांत्रिक।
बिना आहट
कोई पास आ रहा
हो सावधान।
हम बकरें
हर पाँच साल में
कटते ही हैं।
इस देश में
विदेशी सामना को
पूजना प्रथा।
सरहदों से
बे रोक टोक गोली
आती-जाती है।
लकीर खींच
वे दिल बाँटते हैं
पहरे बैठा।
एक गलती
नासूर बन गयी।
देखो कश्मीर।
आज़ादी मिली
सिर्फ नेताओं को ही
नोच खाने की।
सोचो खुद ही
क्या तुम आजादी की
साँस लेते हो?
प्रदुषण को
फैलावोगे जितना
पछताओगे।
हर पेड को
ईश्वर मानकर
उसको पूजो।
हमारा नाम
तभी रहेगा जब
वृक्ष रहेंगे।
सारी दुनियाँ
जिसके सहारे है
वे वृक्षदेव।
शादी-विवाह
व्यापार प्राचीन है
इस देश का।
लड़के वाले
जितना गरजते
उतना पाते।
माँ-बाप को तो
बेचारी लड़की को
बचाता ही हैं
हम-सब को
शर्म नहीं आती है
दहेज लेते।
वर के पिता
हिटलर हो फिरे
शादी के दिन।
अब दहेज
कानूनी अपराध
खबर झूठी।
बाल विवाह
आज भी हो रहें हैं
किसे क्या पड़ी?
लड़की माने
बड़ा सा अभिशाप
कहते मूर्ख।
इस देश को
गुलामी की आदत
अब तक है।
कहने वाले
कहते मर गये
समझा कौन?
आस-पास की
हवाएँ न जाने क्यों
तप रही हैं।
उसे ईश्वर
तुम बुलालो पास
जो भोला है।
भोले लोगों को
देखकर सोचता
ये जिंदा कैसे?
पर्यावरण
शिकार उनका जो
कंपनी वाले।
हम कभी भी
कत्ल हो सकते हैं
माना सबने।
मुमकिन है
नाव डूब भी जाये
अल्ला बचाये।
मैंने देखा है
जहाजों को डूबते
साहिल पर।
एक सुराग
कहर ला देता है
देखते रहो।
देश हमारा
आज भी चलता है
राम भरोसे।
कटी पतंग
यह देश हमारा
लूट में फटी।
लोरियों अब
कैसटों में बिकती
माँ ऑफिस में।
सुख-दुख में
सुख करीब लाता
कमजर्फो को।
भेड़िये अब
संसद में बैठते
लोकतंत्र है।
तुम्हारी हँसी
बड़ी उनमुक्त थी
झरनों जैसी।
अब गरीबी
परोसी जा रही है
खाने के लिए।
शोहरतों में
कितने फरेब हैं?
अनगिनत।
पल दो पल
जो उनका साथ था
बड़ा खास था।
आज-कल में
कुछ ऐसा हो गया
कि सब चुप।
जो छल गये
हम सभी लोगों को
वो भी नेता थे।
बात उनकी
हम करेंग नहीं
सोचते रोज।
कहने को तो
बहुत कुछ बाकी
पर कहें क्यों?
बात सुन के
बौखाला जाते हैं जो
भोले तो नहीं।
पल में धूप
पल में होती छाँव
यही जिंदगी।
राम-सीता का
रामायण पुराना
पर सार्थक।
हो गई हैं वे
सूखे काटों की जैसी
अब चुभेगी।
अब फैशन
बदन नंगा करे
विडंबना है।
तमाशा देखो
तमाशबीन हो के।
पछताओगे।
हमारी आन
सालों से खो गई है
जानते हैं न!
ताकतवर
सिर्फ जीता है यहाँ
इस देश में।
इस कदर
हाल बेहाल न था
जैसा की अब।
ठहर जाओ
दो पल मुसाफिर
कहा काँटों ने।
बिखरे तारे
रात को अकेले में
दिल जलाते।
सपनों सा ही
यदि संसार हो तो
सपने क्यों हो?
जानता भी हूँ
पहचानता भी हूँ
पर चुप हूँ।
आप को हम
धोखा देने न देंगे।
नाम दोस्ती के।
जब कभी भी
फूल खिलता कोई
मन को भाता।
कमर कस
अब तैयार हो लो
युद्ध के लिए।
तम जब भी
किसी से डरते हो
कम होते हो।
बहादुरी में
पीठ दिखाता यह
कायरता है।
कोशिश करे
जमाना यह पूरा
बिखेरने की।
हमारी बात
होती है वहाँ जहाँ
साजिशें होती।
इश्क पे जोर
किसका चला यारों
सिवा इश्क के।
भाई-चारे को
भुनाना व्यापार है
यही हो रहा।
समुद्र में तो
न जाने क्या क्या छिपा
अपनी कहो।
उछलती हैं
अफवाहें कितनी
मेरे बारे में।
मतलब हो
दुनिया में जीने का
भले थोड़ा हो।
यह मौसम
जो बीता जा रहा है
नहीं लौटेगा।
अनजाने में
तुमसे ही टूटा है
दिल किसीका।
निर्झर गाता
झर-झर बहता।
संवेदनाओं
मुझे मत सताओ
मत रूलाओ।
क्यों बिना काम
बताओ जिंदा रहूँ
कोई काम दो।
अपराध भी
खूबसूरत हुए
आज-कल में।
मैं डर कर
हँसना सीख गया
तुम भी सीखो।
पत्थर जैसे
कितने ही जग में
जैसे मानव।
जिसने दिया
उसी ने ले लिया है
मैं क्या करता?
हँसी कठिन
रोना भी मुश्किल है
कैसा समय?
जिंदगी अब
बहुत थक चुकी
रिश्ते निभाते।
लहरें जब
किनारों को चूमती
वो याद आती।
वह साथ थी
यह पुरानी बात
अब ख्वाब है।
सरहदों पे
संगीतों के पहरे
दिल रोता है।
हर मोड पे
यह सोचना पड़ा
किधर जाएँ?
गलतियाँ भी
गलतियों नहीं होती
जब प्यार हो।
क्या करूँ मैं भी
भूल नहीं पाता हूँ
उसको कभी।
जान जाती है
और जान आती है
उसी एक से।
चुप ही रहो
तूफान आ जायेगा
चुप्पी जो तोड़ी।
छलनी बोले
मुझमें छेद कई
मैं नहीं माना।
घर में मेरे
आने का मतलब
दिल में आना।
कड़वाहट
मेरे अंदर जो है
निकालूँ कैसे?
मैनें देखा है
दीवारों के कान को
कई आँखों में।
यमुना तीर
रोटी राधा रानी है
वह प्यासी है।
इंद्रधनुष
सपनों जैसे आते
और बिखरते।
आम आदमी
पका हुआ आम है
नेता चूसते।
कुत्तों की आँत
पचा नहीं पाती हैं
कभी देशी घी।
कड़वे शब्द
छेद गए मन को
मेरे हमेशा।
अब तो कोई
बात याद नहीं है
सिवा उसके।
रह-रह के
हूक उठती दिल में
यह प्यार हैं।
बदल जाये
यह दुनियाँ पूरी
नामुमकिन।
हाल उसका
हमसे अच्छा नहीं
लोग कहते।
बिना मंजिल
हम भटकते हैं
तरसते हैं।
आवारगी में
कोई कूचा न टूटा
रात के लिए।
रात आती है
फिर तड़पाती है
सुबह तक।
हम कहें क्यों
हाले दिल तुमसे
सिर्फ हँसोगे।
अंदाज वही
बस तरीका नया
सहते रहो।
शहर रोज
बदनाम हो रहे
नये के लिए।
देश आज भी
गुलामी झेल रहा
आजादी नही।
बंद किताब
की तरह हो गया
लोकतंत्र है।
सितारों को भी
नींद नहीं आती है
मेरी तरह।
बदल गयी
पूरी की पूरी कौम
सोती रहती।
कोई कितना
समझायेगा तुम्हें
अब जायेगा।
दोस्ती न सही
दुश्मनी ही कर लो
याद रहेगी।
अब हादसे
डराते नहीं मुझे
आदत सी है।
करीब आना
दूरियां बढ़ाता है
दूर ही रहो।
जब कभी भी
तेरी चर्चा चलेगी
मैं भी रहूँगा।
सरहदों पे
सॉस लेना मुश्किल
तनी संगीने।
हम कभी भी
मीठा नहीं बोलते
आदत नहीं।
हम भी कभी
वहीं खड़े थे जहाँ
आज तुम हो।
कम समय
और काम कितना?
साँसों का क्या है?
तलवार को
जंग लग चुकी है
लापरवाही।
अदब सीखो
कहते बेअदब
देश के सभी।
अब कौंये भी
हंस की चाल चलें
अंतर नहीं।
पहचानना
बगुलों के हंस को
सावधानी से।
कहाँ खो गई
हमारी रवायतें
जो पुरानी थी।
अब तलक
कत्ल कर देना था
हमें खुद को।
इसी देश में
वो लोग थे जो देश
चलाते रहे।
आज मुखौटे
चेहरे बन गए
सचेत रहो।
परिंदो में भी
फिरकापरस्ती को
देखी गयी है।
बूढ़ा हो गया
बरगद का पेड़
छाँव देता है।
बातों बातों में
बतकही हो गई
खेल बिगड़ा।
समय मेरा
जाने कब आयेगा!
यही सोचता।
हर सुबह
तलाश से शुरू हो
पूरी हो जाती।
नीम का पेड़
लौकी चढ़ा तो लेगा
पर नतीजा?
क्या कहूँ तुमसे
मैं अपने बारे में
टूट गया हूँ।
शाख से गिरे
पीले रंग के पत्ते
बुजुर्ग जैसे।
हम हमारे
आज तक नही हैं
इलज़ाम है।
सियासत का,
नगर आ गया है।
बच के रहो।
दगा देना तो
दोस्तों की आदत है
हमेशा से ही।
मेरा घर भी
काटने लगा मुझे
कुछ दिनों से।
सितमगर
देख तो, एक बार
मेरी आँखों में।
कल तक तो
हम बड़े अच्छे थे
आज क्या हुआ?
हर जगह
बस यही चर्चा है
खाओगे कैसे?
जानेमाने लोग
अनजाने हो गए
आड़े वक्त में।
इसी देश में
एक कबीर हुआ
ऐसा सुना है।
सफर छोटा
पर सामान बड़ा
कष्ट बढ़ेगा।
काले अक्षर
जिंदगी में उजाला
लाते रहे हैं।
हमें भी अब
अधिकार चाहिए।
कुछ होने की।
जमीं मिली है
आसमाँ भी मिलेगा
दिल कहता।
भाग्य भरोसे
जीना यह हमेशा
दार्शनिक है।
झूठा ही सही
पर सच के लिए
कुछ तो कहो।
परिंदो जैसा
काश मैं उड़ पाता
दुनिया छोड़।
हाल चाल तो
ठीक ही है लेकिन
दृष्टि दूनी है।
पीछे पीछे की
होने वाली बात में
अर्थ होता है।
झूठ बोलना
फायदेमंद होता
तत्काल रूप।
हसरतों में
डूब कर फैसला
दिल का है।
हो सके तो
इतना कर देना
दगा न देना।
सफाई में
हाँथी की सफाई
खूब चलती।
मचलता है
फूल को देखकर
हमेशा और।
बूढा ही सही
पर बरगद में
छाया बहुत।
हर राह में
सावधानी जरूरी
फूलों से भी।
हम सफर
मेरे वो बन बैैठे
सपना देखा।
आज की बात
बड़ी खास हो गई
वो मिले जो थे।
किस किस को
कितना समझाऊँ
सब जाहिल।
हर किसी को
शिकायत नहीं है
गलतियों से।
काँटों के साये
फूलों को पसंद है
महफूज है।
आशाएँ तो
जैसे राह की धूल
और क्या कहें?
हर आदमी
धोखा देता रहा है
हँसी के पीछे।
लग चुकी है
जो आग शहर में
गाँव शामिल।
परिवर्तन
संसार का नियम
बड़ा कठोर।
मरना यह
बहुत बड़ा सुख
मैं मानता हूँ।
आज कल तो
जितना विज्ञापन
उतना नाम।
सच व झूठ
बड़े करीबी होते
नदी के छोर।
बात बात में
उसकी बात चली
हम खामोश।
डर डर के
हम जीते रहे हैं
सहते रहे।
लगे तो लगे
आपको यह बुरा
पर सच है।
साथ चाहिए
कोई साथ चाहिए
प्यार चाहिए।
हाँ हौर ना में
उसने पर्दा रखा
वो भी ताउम्र।
बेलगाम है
आज का जहाँ सारा
करे कुछ भी।
करता कोई
और भरता कोई
यूही खुदायी?
साँसों में साँसे
और हाँथों में हाँथ
हँसी सपना।
बात आधी है
सिर्फ यह कहता
वह बेवफा।
दाने दाने पे
खाने वाले का नाम
नेता मिटाते।
काश की तुम
वह समझ पाए
जो लिखा नहीं।
इमली का पेड़
पुराना हुआ तो क्या
इमली खट्टी।
रूक रूक के
राज में मुड़ने को
समझते हैं।
हे ना समझ
यह दिल नादान
मेरा क्या दोष।
हर बात में
कोई न कोई राज
जरूरी नहीं।
थोड़ा भरोसा
करना ही पड़ेगा
राह चलते।
घर के पास
चिंगारी को रखना
अच्छा नहीं है।
कुछ लोग तो
करेेले की तरह
फायदे मंद।
यश कीर्ति तो
कटहल का फल
महकेगा ही।
अजीब बात
अजीब नहीं रही
कुछ दिनों से।
नारी हमेशा
खेल मैदान जैसे
उपयोगी है।
हर कदम पे
साथ निभाना यह
सिर्फ वादा है।
खेतों की मेड़
बाँटती ही नहीं
जोड़ती भी है।
रंग महल
यह जमाना पूरा
सच्ची बात है।
उसका साथ
मुझे मिला नहीं है
हकीकत में।
खेल खेल में
खेल बिगड़ गया।
यही खेल है।
हर राह पे
फूल हमेशा मिलें
नामुमकिन।
सच है कि
हर साँस में वह
शामिल रही।
फटा कपड़ा
दिखाकर चमड़ा
और फाड़ता।
हमें हमारे
हाल पर छोड़ दे
हम अच्छे हैं।
हम सच्चे हैं
बस इसी बात का
हमें भी दुख।
जो आदत है
वो छूटती नहीं है
बोलो क्या करूँ?
अनजाने में
मै जान गया हूँ
गद्दारों को।
गाँधी विचार
आज भी सार्थक है
कौन कहता?
मार्ग में दर्शन
मार्गदर्शन जैसा
वे कहते हैं?
ओले पड़ते
सर मुड़वाते ही
अक्सर यहा।
हर-जगह
एक ही खबर है
आतंकवाद।
वाद-विवाद
हमारी संसद में
टाइम पास।
कहने पर
खुल जा सिम सिम
सपना टूटा।
लाल पलास
जानते हैं अच्छे से
गहराई को।
खोखली बात
सूखे कोहड़े जैसे
लोकतंत्र में।
हर जगह
मेंढ़कों की गूँज है
बरसात है।
बरसात में
कीचड़ से बचना
आसान नहीं।
मुझे मेरा ही
नाम याद नहीं है
दंगो के बीच।
राम नाम का
नेता करते जाप
आया चुनाव।
कर्ज में डूबा
यह हमारा देश
महान देश।
दूध का दूध
और पानी का पानी
कौर करेगा?
बंदर बाँट
अमेरिका करता
पूरे विश्व में।
सौदागर हैं
जो हथियारों के वे
पंच बने हैं।
बिगड़ा बेटा
बाप को मार बैठा
आम खबर।
काश की पैसे
लगते पेड़ों पर
जैसे महुआ।
टेस्ट अच्छा है
हम साहित्य को भी
ऐसा कहते।
अब हमें भी
खाल ओढ़नी होगी
जिने के लिए।
मानवता तो
मसल दी गयी है
नयी सदी में।
राजनीति में
राज करना ही तो
महत्वपूर्ण।
हमारे नेता
नौ सौ चूहे खाकर
हज को जाते।
बदल गया
कहते जमाना है
पागल लोग।
इस कदर तो
हल नहीं मिलेगा
समस्याओं का।
लोकतंत्र में
ढाक के तीन पात
हकीकत है।
जमाना हमें
बिन पेंदी के लोटे
जैसा दिखता।
ये सरकारें
नौ दिन में चलती
अढ़ाई कोस।
डॉ . मनीष कुमार मिश्रा
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 20 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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