Tuesday, 6 March 2018

यूँ तो संकीर्णताओं को वहन कर रहे हैं

यूँ तो संकीर्णताओं को वहन कर रहे हैं
और शोर है परिवर्तन गहन कर रहे हैं ।
हम आसमान की ओर बढ़ तो रहे हैं
पर अपनी जड़ों का हवन कर रहे हैं ।
रावण के पक्ष में खुद को खड़ा कर के
ये हर साल किसका दहन कर रहे हैं ?
जब कुछ करने का वक़्त है आज तो
हम हाँथ पर हाँथ धरे मनन कर रहे हैं ।
देश के घायल सैनिकों पर आरोप है कि
वे मानवाधिकारों का हनन कर रहे हैं ।
ग़ुलामी की जंज़ीरें जब तोड़ दी गई हैं तो
ये किस मानसिकता का जतन कर रहे हैं ?
उन मजदूरों के हिस्से में क्यों कुछ भी नहीं
जो मेहनत से एक धरा और गगन कर रहे हैं ।
भगौड़े भाग रहे हैं विदेश,देश को लूटकर
हमारे रहनुमा हैं कि भाषण भजन कर रहे हैं ।
------------- मनीष कुमार ।

No comments:

Post a Comment

Share Your Views on this..

International conference on Raj Kapoor at Tashkent

  लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र ( भारतीय दूतावास, ताशकंद, उज्बेकिस्तान ) एवं ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज़ ( ताशकं...