भंग छान सब मस्त रहें
काशी में शिव संग ।
होली के हुडदंग का
यहाँ अनोखा रंग ।
शाहन का भी शाह फकीरा
फ़िरे घाट होइ झंट ।
बम बम बोल भक्त यहाँ
ठेउने पर पाखंड ।
बोल कबीरा के बोले
और झूमें तुलसी संग ।
हरफन मौला,छोड़ झमेला
यही बनारसी ढंग ।
रोम रोम पुलकित हो जाये
जब भी देखूं पावन गंग ।
बड़े बड़े बकैत यहाँ
अड़ीबाज हो करते जंग ।
पान चबाकर कुर्ता झारकर
बातों से करते दंग ।
लंकेटिंग की बात निराली
जादा तर अड्बंग ।
बना रहे ये रंग बनारस
हो ना टस से मस ।
सांड सुशोभित गलियों में
बच्चे फिरते नंग धडंग ।
मुर्दों का मेला ठेला
दाह हो रहे अंग ।
इच्छाओं को दाह कर
मुस्काते हैं मलंग ।
काशी की है बात निराली
अर्धचंद्र इसका अलंग ।
अड़ी खड़ी भोले त्रिशूल पर
उनको भी अति प्रिय ।
----------
डॉ मनीषकुमार सी. मिश्रा
काशी में शिव संग ।
होली के हुडदंग का
यहाँ अनोखा रंग ।
शाहन का भी शाह फकीरा
फ़िरे घाट होइ झंट ।
बम बम बोल भक्त यहाँ
ठेउने पर पाखंड ।
बोल कबीरा के बोले
और झूमें तुलसी संग ।
हरफन मौला,छोड़ झमेला
यही बनारसी ढंग ।
रोम रोम पुलकित हो जाये
जब भी देखूं पावन गंग ।
बड़े बड़े बकैत यहाँ
अड़ीबाज हो करते जंग ।
पान चबाकर कुर्ता झारकर
बातों से करते दंग ।
लंकेटिंग की बात निराली
जादा तर अड्बंग ।
बना रहे ये रंग बनारस
हो ना टस से मस ।
सांड सुशोभित गलियों में
बच्चे फिरते नंग धडंग ।
मुर्दों का मेला ठेला
दाह हो रहे अंग ।
इच्छाओं को दाह कर
मुस्काते हैं मलंग ।
काशी की है बात निराली
अर्धचंद्र इसका अलंग ।
अड़ी खड़ी भोले त्रिशूल पर
उनको भी अति प्रिय ।
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डॉ मनीषकुमार सी. मिश्रा
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