Sunday 22 February 2015

यह जो बनारस है

ये जो बनारस है
धर्म कर्म और मर्म की धरा है
जिंदा ही नहीं
मुर्दों का भी जिंदादिल शहर है
धारा के विपरीत 
यही यहाँ की रीत है ।
यह जो बनारस है
कबीर को मानता है
तुलसी संग झूमता है
अड्बंगी बाबा का धाम
यह सब को अपनाता है ।
यह जो बनारस है
खण्ड खण्ड पाखंड यहाँ
गंजेड़ी भंगेड़ी मदमस्त यहाँ
अनिश्चितताओं को सौंप ज़िन्दगी
बाबा जी निश्चिंत यहाँ ।
यह जो बनारस है
रामलीला की नगरी
घाटों और गंगा की नगरी
मालवीय जी के प्रताप से
सर्व विद्या की राजधानी भी है ।
यह जो बनारस है
अपनी साड़ियों के लिए मशहूर है
हाँ इनदिनों बुनकर बेहाल है
मगर सपनों में उम्मीद बाकी है
यह शहर उम्मीद के सपनों का शहर है ।
यह जो बनारस है
बडबोला इसका मिजाज है
पान यहाँ का रिवाज है
ठंडी के दिनों की मलईया का
गजब का स्वाद है ।
यह जो बनारस है
माँ अन्नपूर्णा यहाँ
संकट मोचन यहाँ
कोई क्या बिगाड़ेगा इसका
यहाँ स्वयं महादेव का वास है ।
डॉ मनीषकुमार सी. मिश्रा

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