Saturday, 26 April 2014

बनारस मे नए मित्रों के फोन कुछ इस तरह आते है,

बनारस मे नए मित्रों के फोन कुछ इस तरह आते है,
का बे कहां हो ?
यहीं कमरे पे । 
चलो अस्सी चलें । 
कुछ काम है ।
अबे काम काहे का गुरु , चलो घंटा दू घंटा लंठई / बकचोदी करेंगे, फिर लौट आएंगे । 
जब तक मैं कल्याण में था , न तो बकचोद था न लंठ । लेकिन बनारस -------------------------------------------------------- । 
भो------ के एतना सोचबो तो लड़........ रह जाबों । बु........... कभों न ब्न्बो । 
तो का चल रहे हो ?
हाँ , आता हूँ । 

ये संवाद उन प्राध्यापक मित्रों के साथ जो बीएचयू के प्रोफेसर हैं ।

Saturday, 19 April 2014

हर गलत बात के दरवाज़े पे दस्तक रही है

हर गलत बात के दरवाज़े पे दस्तक रही है 
मुझे हर रंग से खेलने की आदत सी रही है । 

मेरी आवारगी,मेरी खानाबदोशी के पीछे 
यकीनन मेरे अंदर की बगावत रही है । 

मैं बहुत खुश हूँ तुझसे ऐ ज़िंदगी क्योंकि,
मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं रही है । 

हम अपने अमल का हिसाब ख़ुद देंगे 
मंदिर ओ मस्जिद से यारी नहीं रही है ।

तेरा आना, आकर चला जाना यूँ
जैसे मुझमे बाकी तेरी हिस्सेदारी रही है ।

- मनीष

Wednesday, 16 April 2014

अब चाहकर भी ....





अब चाहकर भी तुम्हें आवाज नहीं देता



पुराने किस्से को नया आगाज नहीं देता 


   
                                         - मनीष

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