और गौरवान्वित हो गया ज्ञानपीठ
इलाहाबाद, जागरण ब्यूरो। हिंदी प्रदेश की गंगा-जमुनी तहजीब को अपने लेखन में जीवित करने वाले 86 वर्षीय लेखक अमरकांत को हिंदी साहित्य में उनके अमूल्य योगदान के लिए 45वां ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया। इसका गवाह बना इलाहाबाद संग्रहालय का ऑडिटोरियम। मंगलवार शाम को संग्रहालय में भव्य समारोह में अमरकांत को शाल, श्रीफल, प्रशस्ति-पत्र व पांच लाख रुपये का चेक देकर सम्मानित किया गया।
डॉ. नामवर सिंह ने अमरकांत को अपना बडा भाई बताते हुए कहा कि यह न सिर्फ हिंदी, बल्कि हर भारतीय भाषाओं के लिए एतिहासिक क्षण है। पहली बार ऐसा हुआ है कि ज्ञानपीठ किसी को सम्मानित करने के लिए स्वयं दिल्ली से चलकर इलाहाबाद आया है। अमरकांत ऐसे लेखक हैं जिनके लिए हर पुरस्कार छोटा है। विशिष्ट अतिथि न्यायमूर्ति प्रेम शंकर गुप्त ने अमरकांत के साथ इलाहाबाद विश्वविद्यालय के समय की यादें ताजा कीं। मंडलायुक्त मुकेश मेश्राम ने अमरकांत को आंचलिकता को नया कलेवर देने वाला लेखक बताया। कहा कि उन्होंने अपनी कलम से युवाओं व मध्यमवर्ग को नई राह दिखाई। अमरकांत को ज्ञानपीठ मिलना पुरस्कार व साहित्यप्रेमियों के साथ न्याय है। सम्मान से अभिभूत अमरकांत ने कहा कि यह मेरे लिए हर्ष का क्षण है। स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं लेकिन चुनौती बढ गई है। मैं चुनौती को स्वीकार्य करता हूं, आगे और अच्छा लिखने का प्रयास करूंगा। ज्ञानपीठ के ट्रस्टी आलोक जैन ने कहा कि अमरकांत को सम्मानित कर ज्ञानपीठ गौरवान्वित है। वह न सिर्फ भारत बल्कि विश्व के सक्षम कहानीकारों में हैं। भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक रवींद्र कालिया ने अतिथियों का स्वागत किया।
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