Sunday, 9 August 2009

अभिलाषा-८


जीवन की सारी तन्हाई ,

खो कर तुझमे ही बिसराई ।

तुझसे पहले तेरे बाद ,

हर हाल मे तेरा ध्यान प्रिये ।

अभिलाषा -७


मन-मन्दिर का ठाकुर तू है ,

जीवन भर का साथी तू है ।

तेरी आँखों का सम्मोहन ,

मेरे चारो धाम प्रिये ।

अभिलाषा-६


तू प्रेम नयन मे जैसे अंजन ,

तू चाहत का प्रेमी खंजन ।

लक्ष्य अलक्षित इस जीवन का ,

तू ही मेरे बना प्रिये ।


अभिलाषा

अभिलाषा -५


मेरी जीवन वीणा मे ,

सारे स्वर तुझसे ही हैं ।

छेड़ूँ जिस भी तार को मैं ,

सब मे तेरा संगीत प्रिये ।

अभिलाषा-१


मेरा अर्पण और समर्पण

सब कुछ तेरे नाम प्रिये ।

श्वास-श्वास तेरी अभिलाषा,

तू जीवन की प्राण प्रिये ।

अभिलाषा-2


तू जीवन सरिता का सरगम

संस्कृति का सोपान है तू ।

सारी सृष्टि समाहित तुझमे ,

धरा का तू आधार प्रिये ।


-अभिलाषा

Saturday, 8 August 2009

आज तुझे फिर जीने का दिल चाहा है /

आज तुझे फिर जीने का जी चाहा है ;

आज फिर यादों ने दिल ललचाया है ;

बारिश की फुहारों में तन भीगा है ;

तेरी यादों में मन भीगा है ;

भाव मचले हैं कितनी तमन्नाओं के साथ ;

याद आ रहे हैं गुजरे वाकयात /

क्या खूब घटा छाई थी ;

भीगी जुल्फों ने मासुकी फैलाई थी ;

बारिश की बौछारों ने , बहती बहारों ने ,

हमारे तन की आतुरता बडाई थी ;

मन पे मदहोशी छाई थी ;

मखमली बदन के बड़ते अहसास ;

मेरे शरारती हाथों के बड़ते प्रयास ;

लरजते होठों का तपते होठों से गहराता विस्वास ;

बेकाबू जजबातों का ,दो बदनों के बिच मचाया वो उत्पात ;

बारिश का मौसम और वो तूफानी रात ;

आज तुझे फिर जीने का जी चाहा है ;

आज फिर यादों ने दिल मचलाया है /

ताशकंद के इन फूलों में

  ताशकंद के इन फूलों में केवल मौसम का परिवर्तन नहीं, बल्कि मानव जीवन का दर्शन छिपा है। फूल यहाँ प्रेम, आशा, स्मृति, परिवर्तन और क्षणभंगुरता ...