Monday, 15 May 2023

कोहरे में छनकर धूप उतर आई/ग़ज़ल/डॉ मनीष कुमार मिश्रा


 

चांद दूर है तो क्या। ग़ज़ल/डॉ मनीष कुमार मिश्रा


 

विवेकपूर्ण चुप्पियों के बीच


 

श्री रामचरित मानस पढ़ते हुए कुछ जिज्ञासाएं

 श्री रामचरित मानस के अंतर्गत लंका कांड में निम्नलिखित दो चौपाई आती है। इन्हें पढ़ते हुए कुछ जिज्ञासा हुई।


चौपाई

सुत बित नारि भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारहिं बारा॥

अस बिचारि जियँ जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता॥4॥


भावार्थ

पुत्र, धन, स्त्री, घर और परिवार- ये जगत में बार-बार होते और जाते हैं, परन्तु जगत में सहोदर भाई बार-बार नहीं मिलता। हृदय में ऐसा विचार कर हे तात! जागो॥4॥


यहां मन में एक जिज्ञासा हुई कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने सहोदर शब्द का उपयोग क्यों किया ? राम एवं लक्ष्मण सहोदर भाई तो नहीं थे । सुमित्रा पुत्र लक्ष्मण एवं कौशल्या पुत्र श्री राम जी थे । विद्वत जन सहायता करें।


इसी लंका कांड में आगे एक और चौपाई आती है कि


चौपाई

अब अपलोकु सोकु सुत तोरा। सहिहि निठुर कठोर उर मोरा॥

निज जननी के एक कुमारा। तात तासु तुम्ह प्रान अधारा॥7॥


भावार्थ

अब तो हे पुत्र! मेरे निष्ठुर और कठोर हृदय यह अपयश और तुम्हारा शोक दोनों ही सहन करेगा। हे तात! तुम अपनी माता के एक ही पुत्र और उसके प्राणाधार हो॥7॥


यहां भी लक्ष्मण को "निज जननी के एक कुमारा" वाली बात भी समझ में नहीं आ रही। जब कि सुमित्रा के दो पुत्र थे लक्ष्मण और शत्रुघ्न । 


विद्वान साथी सहायता करें।


डॉ मनीष कुमार मिश्रा

के एम अग्रवाल महाविद्यालय

कल्याण पश्चिम

महाराष्ट्र ।

Sunday, 14 May 2023

हवा जिसकी जुल्फों से


 

तेरे बड़े सपनों के लिए छोटा हूं मैं

 तेरे बड़े सपनों के लिए छोटा हूं मैं

तेरे हांथ आया सिक्का खोटा हूं मैं ।


कहते फिरते सभी से कि सच्चे हैं

कोई है सामने जो कहे झूठा हूं मैं  ।


रिश्ते नातों को निभाते संभालते

क्या बताऊं कि कितना टूटा हूं मैं ।


उसकी हां तो हां ना को ना समझा 

जैसे कि बिन पेंदी का लोटा हूं मैं ।


गलतियां जहां भी की उसे कबूला है

सुबह का भूला शाम को लौटा हूं मैं ।


डॉ मनीष कुमार मिश्रा
कल्याण पश्चिम
महाराष्ट्र 

खेल तो सारा मुकद्दर का होगा

खेल तो सारा मुकद्दर का होगा 

डूबता जहाज बवंडर का होगा ।


ईमान से लड़ेंगे पोरस कई पर

इतिहास में बड़ा सिकंदर होगा ।


वही तो रहेगा हर हाल में खुश 

जो खयाल से मस्त कलंदर होगा ।


अपने दिल में थोड़ी जगह दे दो

अब वहीं पर इश्क का लंगर होगा ।


तरसता रहा मीठे पानी के लिए

जिसके आगे खारा समंदर होगा ।


गैरत थी तो अकेले ही रह गया

तेरे इशारों पर नाचता बंदर होगा ।


योग्यताएं इंतज़ार में ही रहेंगी

सिफारिश वाला कोई अंदर होगा । 


डॉ मनीष कुमार मिश्रा

कल्याण पश्चिम

महाराष्ट्र ।