Friday, 7 September 2012

अलसायी सी अंगड़ाई के साथ


अलसायी सी अंगड़ाई के साथ
आज उन्होने फोन पे बात की ।
हाल पूछ कर ,
उन्होने बेहाल किया ।
उनकी खुली-खुली ज़ुल्फों का,
वो मखमली ख़याल ,
मुझे फिर से बहला गया ।
कोई दर्द पुराना था,
जिसे फिर से,
आज वो जगा गया ।
उसकी हर बात,
कविता सी है।
उसने जब भी बात कि
मैं एक कविता लिख ले गया ।
ये सब प्यार का असर है वरना,
वो कहाँ , मैं कहाँ और कविता कहाँ ।
तनहाई यूं तो ,
सबसे बड़ा हमसफर है लेकिन
बिना उसके कुछ अधूरा रह गया ।



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Thursday, 6 September 2012

यूं ही तुम्हे सोचते हुवे





यूं ही तुम्हे सोचते हुवे 

 सोचता  हूँ क़ि चंद लकीरों से तेरा चेहरा बना दूं 
 
 फिर उस चेहरे में ,
 
खूबसूरती  के सारे रंग भर दूं . 
 
तुझे इसतरह बनाते और सवारते 
 हुवे,
 
शायद  खुद को बिखरने से रोक पाऊंगा . 
 
 पर जब भी कोशिश की,
 
 हर बार नाकाम रहा . 
 
 कोई भी रंग, 

 कोई भी तस्वीर,
 
 तेरे मुकाबले में टिक ही नहीं पाते .

तुझसा ,हू-ब-हू तुझ सा , 

 तो बस तू है या  फिर 
 
 तेरा अक्स है जो मेरी आँखों में बसा है . 
 
 वो अक्स जिसमे  

 प्यार के रंग हैं  

 रिश्तों की रंगोली है  

 कुछ जागते -बुझते सपने हैं  

दबी हुई सी कुछ बेचैनी है   

और इन सब के साथ , 

 थोड़ी हवस भी है 
 . 
इन आँखों में ही 
 तू है 
 
तेरा ख़्वाब है 
 
 तेरी उम्मीद है 
 
 तेरा जिस्म है 
 
और हैं वो ख्वाहीशें ,
 
जो  तेरे बाद 
 
 तेरी अमानत के तौर पे 
 
मेरे पास ही रह गयी हैं .

मैं जानता हूँ की मेरी ख्वाहिशें ,
 
 अब किसी और की जिन्दगी है. 
 
 इस कारण अब इन ख्वाहिशों के दायरे से 
 
 मेरा बाहर रहना ही बेहतर है . 

लेकिन ,कभी-कभी  

 मैं यूं भी सोच लेता हूँ क़ि- 

काश 
 
 -कोई मुलाक़ात 
 -कोई बात 
 -कोई जज्बात  
-कोई एक रात  
-या क़ि कोई दिन ही 
बीत जाए तेरे पहलू में फिर 
 वैसे ही जैसे कभी बीते थे 
 तेरी जुल्फों क़ी छाँव के नीचे 
 तेरे सुर्ख लबों के साथ 
तेरे जिस्म के ताजमहल के साथ .
 इंसान तो हूँ पर क्या करूं 
 दरिंदगी का भी थोडा सा ख़्वाब रखता हूँ  
कुछ हसीन गुनाह ऐसे हैं,
 जिनका अपने सर पे इल्जाम रखता हूँ .
 और यह सब इस लिए क्योंकि ,
 हर आती-जाती सांस के बीच   
मैं आज भी 
तेरी उम्मीद रखता हूँ . 
 इन सब के बावजूद ,
 मैं यह जानता हूँ क़ि
 मोहब्बत निभाने क़ी सारी रस्मे ,सारी कसमे 
 बगावत के सारे हथियार छीन लेती हैं .
 और छोड़ देती हैं हम जैसों को 
 अस्वथ्थामा क़ी तरह 
 जिन्दगी भर 
 मरते हुवे जीने के लिए .
 प्यार क़ी कीमत ,
 चुकाने के लिए .
ताश के बावन पत्तों में,
जोकर क़ी तरह मुस्कुराने के लिए .
 काश तुम मिलती तो बताता ,
 क़ि मैं किस तरह खो चुका हूँ खुद को ,
 तुम्हारे ही अंदर . 

एक वैसी ही लड़की



     एक शाम अकेले  
      जाने-पहचाने रास्तों पर 
     अनजानी सी  मंजिल  की तरफ 
     बस समय काटने के लिए बढ़ते हुवे 
     देखता हूँ 
    एक वैसी ही लड़की 
    जैसी लड़की को 
   मै कभी प्यार किया करता था .
     उसे पल भर का देखना 
    उन सब लम्हों को देखने जैसा था 
   जो मेरे     अंदर   तब  से  बसते  हैं  
   जब  से  उस  लड़की से  मुलाकात  हुई  थी  
 जिसे  मैं  प्यार  करता था 
 उस  एक पल  में   
जी  गया  अपना  सबसे  खूबसूरत  अतीत  
 और  शायद  भविष्य  भी  . 
 वर्तमान  तो  बस  तफरी  कर रहा था 
 लेकिन  उस  शाम की  याद  
 न  जाने  कितने  जख्मों  को हवा  दे  गयी  
 काश क़ि वो   लड़की ना  मिलती  . 

जो कहनी थी ,वही मैं बात,यारों भूल जाता हूँ




जो कहनी थी ,वही मैं बात,यारों भूल जाता हूँ . 
किसी क़ी झील सी आँखों में, जब भी डूब जाता हूँ .

नहीं मैं आसमाँ का हूँ,कोई तारा मगर सुन लो 
किसी के प्यार के खातिर,मैं अक्सर टूट जाता हूँ . 

 शिकायत सब से है लेकिन,किसी से कह नहीं सकता 
 बहुत गुस्सा जो आता है,तो खुद से रूठ जाता हूँ . 

 किसी क़ी राह का कांटा,कभी मैं बन नहीं सकता 
 इसी कारण से मफिल में,अकेला छूट जाता हूँ .

 मासूम से सपनों क़ी मिट्टी,का घड़ा हूँ मैं,
 नफरत क़ी बातों से,हमेशा फूट जाता हूँ .

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ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन

✦ शोध आलेख “ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन लेखक : डॉ. मनीष कुमार मिश्र समीक्षक : डॉ शमा ...