Sunday, 2 September 2012

छींटे और बौछारें: हिंदी ब्लॉगिंग : स्वरूप, व्याप्ति और संभावनाएं

छींटे और बौछारें: हिंदी ब्लॉगिंग : स्वरूप, व्याप्ति और संभावनाएं: डॉ. मनीष कुमार मिश्रा के संपादन में 250 से अधिक पृष्ठों में हिंदी ब्लॉगिंग संबंधी पचासेक उम्दा आलेखों को समेटे यह किताब हिंदी ब्लॉगिंग के भ...

वेश्यावृत्ति और समाज


                       वेश्यावृत्ति और समाज
 इस बात को अस्वीकार करना असंभव है कि इतिहास के लगभग हर काल खंड में वेश्यावृत्ति को एक गंभीर सामाजिक समस्या के रूप में रेखांकित किया गया है । इस बात को भी स्वीकार करना होगा कि वेश्यावृत्ति का सामाजिक मूल्यों और नैतिक व्यवहार पर गंभीर प्रभाव पड़ा है । अधिकांश इतिहासकारों ने इस विषय को लेकर चुप्पी साधे रक्खी, सामान्य तौर पे इस विषय पे कम पढ़ने को मिलता है। इसका एक कारण हमारी वो मनोवृत्ति भी है जिसमें हम वेश्यावृत्ति या शारीरिक सम्बन्धों को लेकर आपस में हंसी – मज़ाक तो कर लेते हैं पर ऐसे विषयों पर गंभीर चिंतन की जरूरत नहीं समझते । समाज और वेश्यावृत्ति की जिस तरह की गंभीर विवेचना इतिहास में होनी चाहिए थी , वो दिखाई नहीं पड़ती । वेश्यावृत्ति को दुनियाँ की अधिकांश सरकारें अपराध की श्रेणी में रखती हैं । लेकिन हमें यह ध्यान रखना होगा कि हमारा सामाजिक ढाँचा, रीति-रिवाज, आर्थिक विकास , धार्मिक पद्धतियाँ और मान्यताएं तथा समाज का पूरा ताना-बाना इस व्यवस्था के लिए जिम्मेदार होता है ।
मानवीय सामाजिक व्यवस्था में वेश्यावृत्ति की शुरुआत कब से हुई ? इस प्रश्न का उत्तर तलाशने से कही अधिक महत्वपूर्ण यह है कि हम यह समझने की कोशिश करें कि आख़िर वेश्यावृत्ति है क्या ? और यह समाज पे पनपती कैसे है ? वेश्यावृत्ति को लेकर कुछ परिभाषाओं पे ध्यान देना जरूरी है । जैसे कि
·         ‘‘ The offering of the body to indiscriminate lewdness for hire. ’’
                                          Oxford English Dictionary
·         ‘‘ Prostitution means the offering for reward by a female of her body commonly for purpose of general lewdness.’’
( stone’s justices manual , note- rexv.de munck1918, IKB 635,82  j.p.i 60 )
Prostitution and society/ volume one/prof. Fernando Henriques .

·         ‘‘ A women or girl who for purpose of financial gain, without emotional sanction or selection , supplies the male them and for physiological sex gratification .’’

( Biological aspects of prostitution in c.p. blacker, ed. A social problem group ? oxford 1937, p. 96)/by- Prostitution and society/ volume one/prof. Fernando Henriques, p. 16


एक बात जो इन परिभाषाओं से स्पष्ट हो रही है वह यह कि आर्थिक लाभ/ फ़ायदे के लिए स्थापित यौनसंबंध वेश्यावृत्ति कहलाता है। इसमें भावनात्मक तत्व का अभाव होता है । इस तरह कई परिभाषाएँ वेश्यावृत्ति को लेकर दी जा सकती है लेकिन मोटे तौर पे शारीरिक सम्बन्धों के लिए पैसों का आदान- प्रदान वेश्यावृत्ति की मुख्य पहचान मानी जा सकती है । अपने शरीर का संभोग के लिए सौदा वेश्यावृत्ति है ।
वेश्यावृत्ति को सामान्य रूप से शहरी जीवन का हिस्सा माना जाता रहा है लेकिन इसे पूरे सच के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता । हम इस बात को भारत के संदर्भ में देखें तो सदियों से जो सामाजिक और धार्मिक मान्यताएं हमारे यहाँ रही हैं, वे किसी न किसी रूप में इस व्यवसाय को प्रोत्साहित करती रही हैं । पूरी दुनियाँ में धर्म के समानांतर इस व्यवसाय को किसी न किसी रूप में प्रोत्साहित किया गया है । हमारे यहाँ की देवदासी प्रथा इसका एक मुख्य प्रमाण है ।  
                वेश्यावृत्ति के संबंध मे कुछ प्रमुख बातें निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझी जा सकती हैं । जैसे कि -
1. यह दुनियाँ के प्राचीनतम व्यवसायों में माना जाता है ।
2. विश्व के हर कोने में यह व्यवसाय फल-फूल रहा है ।  
3. हर धर्म, भाषा, संप्रदाय,जाति और राष्ट्र में इसका अस्तित्व है ।  
4. इस व्यवसाय में स्त्री  और पुरुष दोनों सहभागी हैं ।  
5. समलैंगिक वेश्यावृत्ति भी तेजी से बढ़ रही है ।
6. अधिकांश बार आर्थिक कारणों से यह व्यवसाय चुना जाता है ।
7. इस व्यवसाय में लड़कियों को धोखे और तस्करी के माध्यम से बड़े पैमाने पे ढकेला जा रहा है ।
8. समाज के धनी और सम्पन्न लोगों द्वारा छुपे तौर पे इस व्यवसाय को संरक्षण प्रदान किया जाता रहा है .
9. बाल वेश्यावृत्ति पूरी दुनियाँ के लिए एक गंभीर चूनौती है ।  
10. किशोर लड़कियों की तस्करी इस व्यवसाय में बड़े पैमाने में की जा रही है ।
                 आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने आर्थिक और सामाजिक ढांचे को इस तरह खड़ा करें कि क़ीमत कभी भी हमारे मूल्यों पर हावी न होने पाये । नैतिकता को जीवन का आधार होना चाहिए ।







shimla ki ek tasveer


Saturday, 1 September 2012

इन पहाड़ों मेँ आकर, तुम्हें बहुत याद कर रहा हूँ





इन पहाड़ों मेँ आकर, तुम्हें बहुत याद कर रहा हूँ
ये फूल, ये झरने और ये सारी वादियाँ
तुम्हारी याद दिला रही हैं ।
   यहाँ हर तरफ खूबसूरती है ,
   पवित्रता, निर्मलता और शीतलता है ।
   फिर तुम्हें तो यहीं होना चाहिए था ,
   सब कुछ तुमसा है तो,
   तुम्हें यहीं होना चाहिए था ।
मेरे साथ – साथ यहाँ सभी को शिकायत है ,
तुम्हारे यहाँ न होने की शिकायत ।
अजीब सा सूनापन है ,
तुम्हारे बिना मेरे अंदर ही ,
एक अधूरापन है ।
जिसे कोई पूरा नहीं कर सकता ,
सिवाय तुम्हारे । 

shimla



25 अगस्त 2012 को महाविद्यालय का काम खत्म कर लगभग 03 बजे घर आया । सामान पैक किया और दोपहर का भोजन लेकर करीब 04 बजे रेल्वे स्टेशन के लिए निकल पड़ा । शाम 05 बजे कानपुर के लिए लखनऊ सुपरफास्ट ट्रेन पकड़ी । 24 की पूरी रात जाग कर परीक्षा के प्रश्न पत्र बना रहा था , इसकारण नीद झट से आ गयी ।
26 को करीब 1.30 बजे दोपहर को कानपुर पहुंचा । बड़े भाई मानव रेल्वे स्टेशन पे खड़े थे । कानपुर में एक दिन रुककर 27 की सुबह लखनऊ के लिए निकल पड़ा । मैं , मानव भाई और चाचा जी एक साथ अपनी गाड़ी से निकले । लखनऊ में मानव भाई श्री राम टावर स्थित अपने आफिस गए, चाचा जी क़ैसर बाग आफिस गए और ड्राइवर ने मुझे उमानाथ बली प्रेक्षागृह छोड़ा , जहाँ ब्लागिंग पर अंतर्राष्ट्रीय संगोस्ठी थी । इसी संगोष्ठी में मेरे द्वारा संपादित पुस्तक हिन्दी ब्लागिंग : स्वरूप, व्याप्ति और संभावनाएं का लोकार्पण हुआ । साथ ही साथ वर्ष 2010 – 2011 में हमारे के. एम . अग्रवाल महाविद्यालय द्वारा आयोजित ब्लागिंग सेमिनार को सर्व श्रेस्ठ ब्लागिंग सेमिनार का पुरस्कार मिला । यह सम्मान लेने के लिए हमारे महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. अनिता मन्ना जी उपस्थित थी । कार्यक्रम शाम 6 बजे खत्म हुआ । प्राचार्या मैडम को पुष्पक ट्रेन से कल्याण वापस जाना था , उन्हें स्टेशन छोडकर मैं मानव भाई के साथ छोटे चाचा जी के घर गया , वंहा से हम लोग गोमती नगर स्थित मानव भाई के फ्लैट पे गए ।  रात वंहा बिताने के बाद अगले दिन लखनऊ में कई लोगों से मिलते हुवे शाम को त्रिवेणी ट्रेन पकड़ के रात 10 बजे तक इलाहाबाद आ गया । बड़े भाई राजेश प्रयाग स्टेशन पे आ गए थे । हम लोग तेलियरगंज स्थित उनके कमरे पे आए । संजय चाचा ने पनीर की शानदार सब्जी, रोटी और चावल बनाया था । रात का खाना खाकर छत पे ही खुले में सो गया , गर्मी काफी थी ।
दूसरे दिन सुबह रसुलाबाद घाट पे महादेवी वर्मा जी का साहित्यकार संसद देखने गया । गंगा जी के दर्शन किया फिर प्रधान डाक कार्यालय भाई कृष्ण कुमार यादव जी से मिलने गया । आप डायरेक्टर पोस्टल सर्विस के रूप में कार्यरत हैं । यादव भाई साहब से मिल के हम लोग दोपहर का भोजन करने जयशंकर भोजनालय आए । खाने के बाद बड़ी माँ से मिलने उनके घर गया। वंहा बड़े भाई विपिन से भी मुलाक़ात हुई । काफी देर तक पारिवारिक बातें होती रहीं । वंहा से हम लोग इलाहाबाद मे ही  ए. डी. जे . के रूप मे पोस्टेड मामाजी के पास जाने के लिए निकले । वंहा रात 9.30 तक हम लोग रहे । रात का खाना खाने के बाद हम वापस तेलियरगंज आ गए ।
अगले दिन 30 अगस्त की सुबह महानंदा ट्रेन से मैं दिल्ली के लिए निकल पड़ा । रात 8.30 बजे मैं दिल्ली आया । फिर रात 9.20 को यंही से कालका मेल पकड़ी और 31 अगस्त की सुबह 04 बजे काल्का आ गया। फिर 5.30 बजे कालका से शिवालिक ट्वाय ट्रेन से शिमला के लिए निकला । सुबह 10 तक शिमला आ गया । शिमला तक की यात्रा अविस्मरणीय रही । शिमला स्टेशन पे इंडियन इंस्टीट्यूट आफ अड्वान्स स्टडी की गाड़ी आ गयी थी, उसी गाड़ी से गेस्ट हाऊस पहुंचा । यंहा की व्यवस्था और मौसम बहुत ही अच्छा है ।
कल से अपने अध्ययन के काम में लग जाऊंगा ।  



Tuesday, 28 August 2012

इतिहास बना गया ब्लॉगर सम्मेलन।


http://ts.samwaad.com/2012/08/International-Hindi-Bloggers-Conference-2012.html


(अन्‍तर्राष्‍ट्रीय हिन्‍दी ब्‍लॉग सम्‍मेलन का उद्घाटन करते हुए उद्भ्रांत जी, साथ में हैं शिखा वार्ष्‍णेय, रणधीर सिंह सुमन एवं रवीन्‍द्र प्रताप)
यह बड़े गर्व की बात है कि आज से 75 साल पहले सन 1936 में लखनऊ शहर प्रेमचंद् की अध्‍यक्षता में प्रगतिशील लेखक संघ के प्रथम अधिवेशन का गवाह बना था, जिसकी गूंज आज तक सुनाई पड़ रही है। उसी प्रकार आज जो लखनऊ में ब्लॉग लेखकों का अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित हो रहा है, इसकी गूंज भी आने वाले 75 सालों तक सुनाई पड़ेगी।

उपरोक्त विचार बली प्रेक्षागृह, कैसरबाग, लखनऊ में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉगर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए प्रतिष्ठित कवि उद्भ्रांत ने व्यक्त किये। सकारात्मक लेखन को बढ़ावा देने के उद्देष्य से यह सम्मेलन तस्लीम एवं परिकल्पना समूह द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में पूर्णिमा वर्मन (शारजाह) रवि रतलामी (भोपाल), शिखा वार्ष्णेय (लंदन), डॉ0 अरविंद मिश्र (वाराणसी), अविनाश वाचस्पति (दिल्ली), मनीष मिश्र (पुणे), इस्मत जैदी (गोवा), आदि ब्लॉगरों ने अपने उद्गार व्यक्त किये। कार्यक्रम को मुद्राराक्षस, शैलेन्द्र सागर, वीरेन्द्र यादव, राकेश, शकील सिद्दीकी, शहंशाह आलम, डॉ. सुभाष राय, डॉ. सुधाकर अदीब, विनय दास आदि वरिष्ठ साहित्यकारों ने भी सम्बोधित किया।

वक्ताओं ने अपनी बात रखते हुए कहा कि इंटरनेट एक ऐसी तकनीक है, जो व्यक्ति को अभिव्यक्ति का जबरदस्त साधन उपलब्ध कराती है, लोगों में सकारात्मक भावना का विकास करती है, दुनिया के कोने-कोने में बैठे लोगों को एक दूसरे से जोड़ने का अवसर उपलब्ध कराती है और सामाजिक समस्याओं और कुरीतियों के विरूद्ध जागरूक करने का जरिया भी बनती है। इसकी पहुँच और प्रभाव इतना जबरदस्त है कि यह दूरियों को पाट देता है, संवाद को सरल बना देता है और संचार के उत्कृष्ट साधन के रूप में उभर कर सामने आता है। 
मंचासीन विद्वतजन 'वटवृक्ष' 'ब्‍लॉग दशक विशेषांक एवं 'भारत के महान वैज्ञानिक'(जाकिर अली रजनीश) पुस्‍तक का विमोचन, बाएं से रवीन्‍द्र प्रभात, डॉ0 सुभाष राय, शिक्षा वार्ष्‍णेय, डॉ0 अरविंद मिश्र, शैलेन्‍द्र सागर, उद्भ्रान्‍त, गिरीश पंकज एवं जाकिर अली रजनीश

लेकिन इसके साथ ही साथ जब यह अभिव्यक्ति के विस्फोट के रूप में सामने आती है, तो उसके कुछ नकारात्मक परिणाम भी देखने को मिलते हैं। ये परिणाम हमें दंगों और पलायन के रूप में झेलने पड़ते हैं। यही कारण है कि जब तक यह सकारात्मक रूप में उपयोग में लाया जाता है, तो समाज के लिए अलादीन के चिराग की तरह काम करता है, लेकिन जब यही अवसर नकारात्मक स्वरूप अख्तियार कर लेता है, तो समाज में विद्वेष और घृणा की भावना पनपने लगती है और नतजीतन सरकारें बंदिश का हंटर सामने लेकर सामने आ जाती हैं। लेकिन यदि रचनाकार अथवा लेखक सामाजिक सरोकारों को ध्यान में रखते हुए इस इंटरनेट का उपयोग करे, तो कोई कारण नहीं कि उसके सामने किसी तरह का खतरा मंडराए। इससे समाज में प्रेम और सौहार्द्र का विकास भी होगा और देष तरक्की की सढ़ियाँ भी चढ़ सकेगा। 

इस अवसर पर देश के कोने-कोने से आए 200 से अधिक ब्लॉगर, लेखक, संस्कृतिकर्मी और विज्ञान संचारक भी उपस्थित रहे। कार्यक्रम में तीन चर्चा सत्रों (न्यू मीडिया की भाषाई चुनौतियाँ, न्यू मीडिया के सामाजिक सरोकार, हिन्दी ब्लॉगिंगः दशा, दिशा एवं दृष्टि) में रचनाकारों ने अपने विचार रखे। कार्यक्रम के संयोजक रवीन्द्र प्रभात ने ब्लॉगरों की सर्वसम्मति से सरकार से ब्लॉग अकादमी के गठन की मांग की, जिससे ब्लॉगरों को संरक्षण प्राप्त हो सके और वे समाज के विकास में सकारात्मक योगदान दे सकें।

इस अवसर पर ‘वटवृक्ष‘ पत्रिका के ब्लॉगर दशक विशेषांक का लोकार्पण किया गया, जिसमें हिन्दी के सभी महत्वपूर्ण ब्लॉगरों के योगदान को रेखांकित किया गया है। इसके साथ ही साथ कार्यक्रम के संयोजक डॉ0 जाकिर अली रजनीश की पुस्तक ‘भारत के महान वैज्ञानिक‘ एवं अल्का सैनी के कहानी संग्रह ‘लाक्षागृह‘ तथा मनीष मिश्र द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘हिन्दी ब्लॉगिंगः स्वरूप व्याप्ति और संभावनाएं‘ का भी लोकार्पण इस अवसर पर किया गया।
ब्‍लॉग दशक सम्‍मान से विभूषित ब्‍लॉगर, मंचस्‍त विद्वतजनों के साथ, बाएं से के0के0 यादव, आकांक्षा यादव, पूर्णिमा वर्मन, रवीन्‍द्र प्रभात, बी0एस0 पाबला, अविनाश वाचस्‍पति एवं रवि रतलामी

कार्यक्रम के दौरान ब्लॉग जगत में उल्लेखनीय योगदान के लिए पूर्णिमा वर्मनरवि रतलामीबी एस पावलारचनाडॉ अरविंद मिश्रसमीर लाल समीरकृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव को ‘परिकल्पना ब्लॉग दशक सम्मान‘ से विभूषित किया गया। इस अवसर पर साहित्‍य जगत में विशिष्‍ट योगदान देने वाले साहित्‍यकारों को कार्यक्रम के विशिष्‍ट सहयोगी लोक संघर्ष पत्रिका एवं प्रगतिशील ब्‍लॉग लेखक संघ ने विशिष्‍ट सम्‍मानों से विभूषित किया। इस कड़ी में अविनाश वाचस्पति को प्रब्लेस चिट्ठाकारिता शिखर सम्मान, रश्मि प्रभा को शमशेर जन्मशती काव्य सम्मान, डॉ सुभाष राय को अज्ञेय जन्मशती पत्रकारिता सम्मान, अरविंद श्रीवास्तव को केदारनाथ अग्रवाल जन्मशती साहित्य सम्मान, शहंशाह आलम को गोपाल सिंह नेपाली जन्मशती काव्य सम्मान, शिखा वार्ष्णेय को जानकी बल्लभ शास्त्री स्मृति साहित्य सम्मान, गिरीश पंकज को श्रीलाल शुक्ल व्यंग्य सम्मान, डॉ. जाकिर अली रजनीश को फैज अहमद फैज जन्मशती सम्मान तथा 51 अन्य ब्लॉगरों को ‘तस्लीम-परिकल्पना सम्मान‘ तथा 'तस्‍लीम नुक्‍कड़ सम्‍मान' प्रदान किये गये

Monday, 27 August 2012

चंद पसंदीदा शेर


अपनी तबाहियों का मुझे कोई गम नहीं,
तुमने किसी के साथ मुहब्बत निभा तो दी।
-साहिर लुधियानवी

 हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन,
दिल को खुश रखने को 'गालिब' ये ख्यालअच्छा है।
-मिर्जा गालिब

 ऐसा लगता है, हर इम्तिहाँ के लिए,
किसी ने जिन्दगी को हमारा पता दे दिया है।

अपना तो आशिकी का किस्सा-ए-मुख्तसर है,
हम जा मिले खुदा से दिलबर बदल-बदल कर।

 आशिकी से मिलेगा खुदा,
बंदगी से खुदा नहीं मिलता।
-दाग

 कुछ लोगों से जब तक मुलाकात न हुई थी
मैं भी यह समझा था, खुदा सबसे बड़ा है।


 दूसरों पैं जब तबसिरा कीजिए,
सामने आइना रख लिया कीजिए।


 बेचैनियाँ समेटकर सारे जहान की,
जब कुछ न बन सका तो मेरा दिल बना दिया।


इलाही उनके हिस्से का भी गम मुझको अता कर दे,
कि उन मासूम आंखों में नमी देखी नहीं जाती।


 कितने हसीन लोग थे जो मिलकर एक बार,
आंखों में जज्ब हो गये, दिल में समा गये।
-अब्दुल हमीद 'अदम'






ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन

✦ शोध आलेख “ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन लेखक : डॉ. मनीष कुमार मिश्र समीक्षक : डॉ शमा ...