Wednesday, 10 August 2011

श्रावणी उपाक्रम एवं स्नेह मिलन समारोह


तुम्हारा हाथ हांथों से छूट जाने के बाद

जिन्दगी की दौड़ में 
तुम्हारा हाथ हांथों से  छूट जाने के बाद 
मैं हांफता रहा
अपनी आँखों से
 तुम्हे दूर जाता हुआ देखता रहा.

तुम्हारे बाद भी 
 तुम्हारे लिए ही 
 पूरी ताकत से दौड़ता रहा
 पर तुम कंही ना मिली .

वीरान रास्तों पर
अब भी चलता जा रहा हूँ 
तुझे सोचते हुवे 
 तुझे चाहते हुवे
 तुम्हारी उम्मीद में
तुम्हारी ही तलाश में

एक ऐसी तलाश जिसमे 
 जुस्तजू के अलावां
 और कुछ भी नहीं 
खुद को छलने के सिवा 
 और कुछ भी नहीं.
त्रिषिता की तृष्णा के सिवा
 कुछ भी नहीं

डॉ. विद्या बिंदु सिंह नार्वे यात्रा पर

डॉ. विद्या बिंदु  सिंह अपने २ हप्तों की  नार्वे यात्रा पर कल दिल्ली से रवाना होंगी.
 वंहा वे कई साहित्यिक गोष्ठियों और सम्मान समारोह में शामिल होंगी. आप

 इसके पहले भी कई विदेश यात्राएँ कर चुकी हैं. 

Tuesday, 9 August 2011

मेरी हर बात अब निरर्थक है

न जाने क्यों 
 अब जब भी तुमसे   बात करता हूँ 
बहुत उदास हो जाता हूँ.
तुम वही हो
वैसी ही हो

पर शायद वो वक्त कंही पीछे छूट गया है 
 जिसमे हम साथ जीते थे .
सपने देखते थे.
 लड़ते -झगड़ते थे.
पर एक रहते थे.

 कितना मासूम हूँ
 जो यह सोचता हूँ कि
तुम आज भी वंही खड़ी होगी 
 मेरे इन्तजार में 
.
 फिर अचानक तुमसे बात करते हुवे 
एहसास होने लगता है कि
 तुम जा चुकी हो
वंहा जन्हा
  मेरी हर बात अब निरर्थक है.


मैं शायद समय के साथ 
बदल नहीं पा रहा हूँ खुद को 
 वरना तुम्हारी तमाम बेवफाइयों के बाद  भी
 तुम्हे चाहने का सबब क्या है ?


    

तुमसे बात करना

तुमसे   बात करना 

 कभी-कभी मुश्किल होता है-

 कविता लिखने  से भी जादा .

उस दिन मैंने यूं ही कहा कि- 

काश ! तुमसी कोई दूसरी

 मेरी जिन्दगी में फिर आ जाती तो ,

जिंदगी का लुफ्त बदल जाता . 

इसपर तुमने गुस्साते हुवे कहा-

तुम्हारी जिन्दगी में ऐसा कुछ नहीं होनेवाला ,

 क्योंकि मेरी जैसी कोई मिल भी गयी तो,

 तुम तो वही रहोगे . 




ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन

✦ शोध आलेख “ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन लेखक : डॉ. मनीष कुमार मिश्र समीक्षक : डॉ शमा ...