हंसती कली
महकती फली
बरसती बुँदे
सुलगती यादें
गरजती लिप्सा
दहकती आशा
बदलती सीमायें
बहकती निष्ठाएं
प्यार या पिपासा
रिश्ते औ निराशा
अधीर कामनाएं
लरजती वासनाएँ
उलझा भाव
अधुरा लगाव
चंचल मन
प्यासा तन
सामाजिक सरोकार
रोकता संस्कार
मंजिल व गंतव्य
झूलता मंतव्य
बड़ती चेष्टाए
ढहती मान्यताएं
लगन दीवानी
मोहब्बत जवानी
काम प्रबल
भावों में बल
टूटता बंधन
आल्हादित आलिंगन
Thursday, 15 July 2010
मोहब्बत जवानी
Labels:
hindi kavita,
mohabbat

Wednesday, 14 July 2010
अपनो की नाप तोल में दिल को ना तोड़ना
सच्चाई की राह को अच्छाई से तराशना
हो सके तो झूठ की अच्छाई तलाशना
भविष्य की राह में भूत न भूलना कभी
दूर दृष्टि ठीक है पर आज भी संभालना
रिश्तों की खीचतान में अपनो को सहेजना
मुश्किलों के खौफ में मोहब्बत ना छोड़ना
कोई कहे कुछ भी प्यार एक खुदायी है
जिंदगी की नाप तोल में दिल को ना तोड़ना
हो सके तो झूठ की अच्छाई तलाशना
भविष्य की राह में भूत न भूलना कभी
दूर दृष्टि ठीक है पर आज भी संभालना
रिश्तों की खीचतान में अपनो को सहेजना
मुश्किलों के खौफ में मोहब्बत ना छोड़ना
कोई कहे कुछ भी प्यार एक खुदायी है
जिंदगी की नाप तोल में दिल को ना तोड़ना
Labels:
hindi kavita. riste

होली न खेला दिवाली न मनायी ,बस ढूढता रहा अधेरों में परछाई
होली न खेला दिवाली न मनायी
बस ढूढता रहा अधेरों में परछाई
बारिश हुई जम के ठंडी का भी जोर
तू नहीं तो हर मंजर कठोर
चाँद ताकता अमावास कि रात में
तारे गिनता मै बरसात में
दोस्तों कि महफिलों में न लगी कोई जान
तू ही मेरी धड़कन तू ही मेरी जान
चूल्हा नहीं जला न इस घर को कोई चैन
सन्नाटा है पसरा हर कमरा एकदम मौन
अलमारी के तेरे कपडे रखता हूँ घर में साथ
रहती है तेरी खुसबू तू लगती है मेरे पास
घर का आइना रहता बड़ा उदास
तेरी खुबसूरत आखों का वो भी है दास
घर कि टी. वी. भी तबसे ना चली
उसको लगती है तेरी संगत भली
अब इस घर में मिलती नहीं राहत
इस दरो दीवार को तेरी छाया कि है चाहत
तेरे लबों कि चाह में मै हो रहा पागल
इस नशेमन का शौक तू तू ही मेरी आदत
त्राहि त्राहि कर रहा रोम रोम प्यास से
व्याकुल तड़पता मन मेरा तेरे इक आभास को
जल्द आ अब तू कटते नहीं ये पल
तड़प रही है जिंदगी वक़्त करने लगा है छल
बस ढूढता रहा अधेरों में परछाई
बारिश हुई जम के ठंडी का भी जोर
तू नहीं तो हर मंजर कठोर
चाँद ताकता अमावास कि रात में
तारे गिनता मै बरसात में
दोस्तों कि महफिलों में न लगी कोई जान
तू ही मेरी धड़कन तू ही मेरी जान
चूल्हा नहीं जला न इस घर को कोई चैन
सन्नाटा है पसरा हर कमरा एकदम मौन
अलमारी के तेरे कपडे रखता हूँ घर में साथ
रहती है तेरी खुसबू तू लगती है मेरे पास
घर का आइना रहता बड़ा उदास
तेरी खुबसूरत आखों का वो भी है दास
घर कि टी. वी. भी तबसे ना चली
उसको लगती है तेरी संगत भली
अब इस घर में मिलती नहीं राहत
इस दरो दीवार को तेरी छाया कि है चाहत
तेरे लबों कि चाह में मै हो रहा पागल
इस नशेमन का शौक तू तू ही मेरी आदत
त्राहि त्राहि कर रहा रोम रोम प्यास से
व्याकुल तड़पता मन मेरा तेरे इक आभास को
जल्द आ अब तू कटते नहीं ये पल
तड़प रही है जिंदगी वक़्त करने लगा है छल
Labels:
hindi shayari,
viyog

Tuesday, 13 July 2010
फ़ैली है आग हार तरफ धधक रहा शहर
फ़ैली है आग हार तरफ धधक रहा शहर
गलती है ये किसकी चल रही बहस
नेता पत्रकार टी.वी वालों का हुजूम है
जानो कि परवा किसे दोषारोपण का दौर है
चीख रहे हैं लोग अरफा तरफी है हर तरफ
कहीं तड़प रहा बुडापा कहीं कहरता हुआ बचपन
चित्कारती आवाजें झुलसते हुए बदन
किसपे लादे दोष ये चल रहा मंथन
बह रही हवा अपने पूरे शान से
अग्नि देवता हैं अपनी आन पे
लोंगों कि तू तू मै मै है या मधुमख्खिओं का शोर है
हो रहा न फैसला ये किसका दोष है
कलेजे से चिपकाये अपने लाल को
चीख रही है माँ उसकी जान को
जलते हुए मकाँ में कितने ही लोग हैं
कोशिशे अथाह पर दावानल तेज है
धूँये से भरा पूरा आकाश है
पूरा प्रशासन व्यस्त कि इसमे किसका हाथ है
आया किसी को होश कि लोग जल रहे
तब जुटे सभी ये आग तो बुझे
आग तो बुझी हर तरफ लाशों का ढेर है
पर अभी तक हो सका है ना फैसला इसमे किसका दोष है
हाय इन्सान कि फितरत या हमारा कसूर है
हर कुर्सी पे है वो जों कामचोर हैं
बिठाया वहां हमने जिन्हें बड़े धूम धाम से
वो लूट रहे हैं जान बड़े आन बान से
गलती है ये किसकी चल रही बहस
नेता पत्रकार टी.वी वालों का हुजूम है
जानो कि परवा किसे दोषारोपण का दौर है
चीख रहे हैं लोग अरफा तरफी है हर तरफ
कहीं तड़प रहा बुडापा कहीं कहरता हुआ बचपन
चित्कारती आवाजें झुलसते हुए बदन
किसपे लादे दोष ये चल रहा मंथन
बह रही हवा अपने पूरे शान से
अग्नि देवता हैं अपनी आन पे
लोंगों कि तू तू मै मै है या मधुमख्खिओं का शोर है
हो रहा न फैसला ये किसका दोष है
कलेजे से चिपकाये अपने लाल को
चीख रही है माँ उसकी जान को
जलते हुए मकाँ में कितने ही लोग हैं
कोशिशे अथाह पर दावानल तेज है
धूँये से भरा पूरा आकाश है
पूरा प्रशासन व्यस्त कि इसमे किसका हाथ है
आया किसी को होश कि लोग जल रहे
तब जुटे सभी ये आग तो बुझे
आग तो बुझी हर तरफ लाशों का ढेर है
पर अभी तक हो सका है ना फैसला इसमे किसका दोष है
हाय इन्सान कि फितरत या हमारा कसूर है
हर कुर्सी पे है वो जों कामचोर हैं
बिठाया वहां हमने जिन्हें बड़े धूम धाम से
वो लूट रहे हैं जान बड़े आन बान से
Labels:
aag,
hindi kavita

Monday, 12 July 2010
इनायत खुदा की कि प्यार का जज्बा दिया
न खुशियों की तलाश
न बदन की कोई प्यास
मोहब्बत की पूरे दिल से
ये जज्बा खुदा का खास
मेरी आखों के पानी को न देखो
मेरी बरबादिओं की रवानी को न देखो
देखो इश्क का जूनून जों दौड़े है रग रग में
मेरे हंसी यार की बेवफाई को न देखो
गम का नहीं है गम मुझे
ये मोहब्बत की तासीर हो
तेरा सच तो कह देता
भले ये मेरी आखिरी तारीख हो
इनायत खुदा की कि प्यार का जज्बा दिया
मेहरबानी तेरी तुने प्यार को रुसवा किया
सच ये है कि तू है मेरी जिंदगी
क़त्ल कर या कर हलाल ये दिल तुझे सजदा किया
न बदन की कोई प्यास
मोहब्बत की पूरे दिल से
ये जज्बा खुदा का खास
मेरी आखों के पानी को न देखो
मेरी बरबादिओं की रवानी को न देखो
देखो इश्क का जूनून जों दौड़े है रग रग में
मेरे हंसी यार की बेवफाई को न देखो
गम का नहीं है गम मुझे
ये मोहब्बत की तासीर हो
तेरा सच तो कह देता
भले ये मेरी आखिरी तारीख हो
इनायत खुदा की कि प्यार का जज्बा दिया
मेहरबानी तेरी तुने प्यार को रुसवा किया
सच ये है कि तू है मेरी जिंदगी
क़त्ल कर या कर हलाल ये दिल तुझे सजदा किया
Labels:
hindi shayari,
pyar

मंदिरों की घंटियाँ चीत्कार सी लगी /
सुबह में बोझिलता थी
मौसम में आकुलता
दिल में तड़प थी
दिखती न मंजिल न सड़क थी
सोया था मै हार के
जागा था मन मार के
उगता सूरज मौसम साफ़
दिल था पर उदास
कोकिला की कूक भी काक सी लगी
मंदिरों की घंटियाँ चीत्कार सी लगी
मृत जवानों का ढेर था
नक्सालियों का ये खेल था
खूं से जमीं लाल थी
दरिंदगी खूंखार थी
गृहमंत्री को खेद था
उनका खूं सफ़ेद था
भोपाल का फैसला न्याय की हार थी
दोष थे खूब बंट रहे इन्साफ की न राह थी
कश्मीर सुलग रहा
अलगाववाद फिर पनप रहा
लोग यहाँ मर रहे
नेता बहस कर रहे
चैनल सेक रहे T.R.P. नेता अपना स्वार्थ
लोग मरे या मरे शहर पैसा यहाँ यथार्थ
वोट की नीति ही सबसे बड़ी है नीति
वोट ही प्रीती है वोट की ही है रीती
वोट है धंधा कुर्सी पैसे की खान
देश से क्या लेना देना सबको चाहिए बड़ा मकान

Sunday, 11 July 2010
तुझमे दुविधाओं का मंजर पाया
थमा हुआ समंदर पाया
आखों में खुशिओं का रेला
दिल में मचा बवंडर पाया
अनेक भाव विधाएं तेरी
हँसता कोई रोता कोई
दिल थामे बैठा है कोई
तू एक पर कितनी ही कथाएं तेरी
क्या क्या है अदाएं तेरी
कहीं कोमलताएं बेचीं
कही सरलताएं बेचीं
किया कहीं भावों का सौदा
कहीं तुने अदाएं बेचीं
तेरा इतिहास बदलता पाया
तेरा खास बदलता पाया
कब कौनसा रूप नजर आ जाये
हरदम खुद को डरता पाया
Labels:
hindi kavita. जिंदगी

Subscribe to:
Posts (Atom)
ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन
✦ शोध आलेख “ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन लेखक : डॉ. मनीष कुमार मिश्र समीक्षक : डॉ शमा ...
.jpg)
-
***औरत का नंगा जिस्म ********************* शायद ही कोई इस दुनिया में हो , जिसे औरत का जिस्म आकर्षित न करता हो . अगर सारे आवरण हटा क...
-
जी हाँ ! मैं वृक्ष हूँ। वही वृक्ष , जिसके विषय में पद््मपुराण यह कहता है कि - जो मनुष्य सड़क के किनारे तथा...
-
Factbook on Global Sexual Exploitation India Trafficking As of February 1998, there were 200 Bangladeshi children and women a...
-
अमरकांत की कहानी -जिन्दगी और जोक : 'जिंदगी और जोक` रजुआ नाम एक भिखमंगे व्यक्ति की कहानी है। जिसे लेखक ने मुहल्ले में आते-ज...
-
अनेकता मे एकता : भारत के विशेष सन्दर्भ मे हमारा भारत देश धर्म और दर्शन के देश के रूप मे जाना जाता है । यहाँ अनेको धर...
-
अर्गला मासिक पत्रिका Aha Zindagi, Hindi Masik Patrika अहा जिंदगी , मासिक संपादकीय कार्यालय ( Editorial Add.): 210, झेलम हॉस्टल , जवा...
-
Statement showing the Orientation Programme, Refresher Courses and Short Term Courses allotted by the UGC for the year 2011-2012 1...
-
अमरकांत की कहानी -डिप्टी कलक्टरी :- 'डिप्टी कलक्टरी` अमरकांत की प्रमुख कहानियों में से एक है। अमरकांत स्वयं इस कहानी के बार...