Saturday, 18 July 2009

तुम मेरा प्यार हो ;मेरा आधार हो

तुम मेरा प्यार हो ;मेरा आधार हो

--------------------------------

बड़ी खुबसूरत हो ;घटाओं की मुरत हो ;

नदी की गरमी हो , पर्वतों की नरमी हो ;

गुलाब की काया हो , चाँद की माया हो ;

सूरज की शीतलता हो , मन की निर्मलता हो ;

बच्चों का स्वभाव हो , दिल का कयास हो ;

तन की प्यास हो ; मन का अहसास हो ;

बड़ी बेमिशाल हो ,वाकई लाजवाब हो /

Monday, 13 July 2009

उनकी नाराजगी का सबब ढूंढ़ता हूँ ;

उनकी नाराजगी का सबब ढूंढ़ता हूँ ;
अपनी मजबूरी की गरज ढूंढ़ता हूँ ;
हर तरफ़ से जकडा हूँ ,
आज़ादी की डगर ढूंढ़ता हूँ /
मेरी तकलीफें न बड़ा तेरी बेवफाई का असर ढूंढ़ता हूँ ;
जो ना किए तुने उन अहसानों का कर्ज ढूंढ़ता हूँ ;
तेरी उलझी बातों का अर्थ ढूंढ़ता हूँ ;
तू यार है मेरा ;
मेरे दुसमन और तुझमे फर्क ढूंढ़ता हूँ ;
आखों को दिए आंसू दिल को दर्द ,
यकीं है उसपे ;
तुने दी जो खुशियाँ ; उसका तर्क ढूंढ़ता हूँ /

Thursday, 9 July 2009

वर्जनाओं से थम गया ;आशाओं से थम गया ;

वर्जनाओं से थम गया ;आशाओं से थम गया ;
कठनायियाँ ना रोक सकी ;
दृढ़ता के अभावों से थम गया ;
दौड़ सका न चंद कदम ; भावनाओं से थम गया /
दोष नही सपनों का ,द्वेष नही अपनो का ;
परिश्थीतियाँ जीत गई ,अपने कर्मों से थम गया ;
दौड़ सका न चंद कदम ;अपनी धारनावोंसे थम गया /

बच्चों के मुख पे प्रश्न छिपे ;बीबी के मन में मर्म छिपे ;

माँ के ह्रदय में अविश्वास छिपे ;लोंगों के चेहरे पे हास्य छिपे ;

इस हालत में कैसे आया ;क्यूँ राहों में मन ललचाया ?

क्यूँ पग फिसले कठिनाई में ,क्यूँ मन बहका तन्हाई में ?

लड़ न सका जज्बातों से अपने ;

जीत सका न मन को अपने ;

जीती बाजी हार रहा मै ;

क्यूँ हिम्मत हार रहा मै ?

अपने विकारों से थम गया ,अपने अहंकारों से थम गया ;

अपनो के बंधन से थम गया, अपने विचारों से थम गया ;

दौड़ सका ना चंद कदम ,अधूरे धर्मों से थम गया /

दिल के दर्पों से थम गया ;

दौड़ सका ना चंद कदम ,

औरों की खुशियों पे थम गया /

Tuesday, 7 July 2009

आदमी हूँ आदमी से प्यार करना -----------------------------

एक अनुमान के मुताबिक पूरे विश्व मे इस समय ४०००००० से जादा gay और २५००००० से जादा lesbian हैं । ऐसे मे दिल्ली हाई कोर्ट का एक निर्णय आता है जो समलैंगिकता को अपराध ना मानने की वकालत करता है ।
यह खबर क्या आई पूरी की पूरी मीडिया जैसे पागल सी हो गई । आप कोई भी समाचार चैनल खोल कर देख लीजिये ,हर जगह एक ही चर्चा -क्या भारत जैसे देश मे समलैंगिकता को सामजिक मान्यता दी जा सकती है ?
सवाल यह है की इसे अभी स्वीकार ही किसने किया ? कानून का अपना एक अलग नजरिया होता है । वह अपनी जगह सही भी है । अगर दो वयस्क आपस मे समलैंगिक रिश्ता आपसी सहमती से बनाते हैं तो उसे कोई भी लोकतांत्रिक कानून आपराधिक गतिविधि नही मान सकता । इस लिए कोर्ट का निर्णय स्वागत योग्य है ।

लेकिन इस बात को पकड़कर मीडिया ने जो निष्कर्ष निकाला वो एक दम हास्यास्पद है । कोर्ट ने समलैंगिकता को आपराधिक कृत्य नही माना है ,पर इसका यह कत्तई अर्थ नही निकालना चाहिये की कोर्ट समलैंगिकता के पक्ष मे खड़ा है ।
जन्हा तक भारतीय समाज का प्रश्न है तो मुझे नही लगता की इस विश्विक सत्य को स्वीकार करने मे भारतीय जनमानस को कोई कष्ट होगा। भारत देश पूरे विश्व मे एक ऐसी बीच की जमीन के रूप मे जाना जाता है जन्हा सभी के लिए स्थान है । विविधता मे एकता यंहा की विशेषता है ।
अब अगर व्यवहारिक रूप मे समलैंगिकता को स्वीकार या अस्वीकार करने की बात करे तो मेरा मानना यह है की इस तेरह के सम्बन्ध भावनात्मक और कुछ हद तक कामुक स्थितियों को ले केर बन तो जरूर सकते हैं,लेकिन ये पारिवारिक इकाई का विकल्प नही बन सकते । और एक स्वस्थ समृद्ध नई पीढी परिवार नामक परम्परागत ढांचे मे ही विकसित हो सकती है ।

Sunday, 5 July 2009

आ गया मानसून

काफी इंतजार के बाद आख़िर मुंबई में मानसून आ ही गया । मुंबई वासियों को इसका बहुत इंतजार था , मुंबई पुणे में महानगर पालिका ने पानी की कमी को देखते हुए १० से २० % water supply deduction , की घोषणा की थी ।
लकिन लगता है अब इसकी जरुरत नही पड़ेगी । उत्तर भारत को अब भी मानसून का इंतजार है ।
आशा है पुरे भारत में भी मानसून जल्द ही आएगा ।

Saturday, 4 July 2009

वक्त का शिकवा कैसा

वक्त का शिकवा कैसा ,हवा को बांधना क्या ;
पानी ले बुलबुलों को थामना क्या ;
ये सब गुजर जाते है,सब बदल जाते हैं ;
कैसे कहोगे की साथ किसका था ;
क्या कहोगे की भाग्य ऐसा था ;
जो गुजर गया उसे बांधना क्या ,
कैसे कहोगे कौन अपना था ?
जिंदगी की हकीकते और सपने सुहाने ;
अपनो की प्रीती और प्यार के अफसाने ;
ये बिखर जाते हैं ;सब बदल जाते हैं /
कैसे कहोगे कौन सपना था ;
क्या कहोगे कौन अपना था ?

Friday, 3 July 2009

भले आखों में आंसू हो पर वो मुस्कराती रहे ;

भले आखों में आंसू हो पर वो मुस्कराती रहे ;
सिमटा हो दर्द दिल में पर वो खिलखिलाती रहे /
रक्तिम हो चेहरा बड़े हुए कष्ट से ;
पर हास्य हो मुख पे उस असह्य दर्द पे /
न हो मंजिल का पता , न राहे सुझे,
अँधेरा छाए अपनो के भावों पे ;
ह्रदय मुस्काओं ,ख़ुद को जलावो;
और करो अट्टाहस अपने अभावों पे /
-----------------------------------

Setting up Google AdSense on your blog

Setting up Google AdSense on your blog involves a few steps to ensure that your blog is ready to display ads. Here’s a step-by-step guide: #...