पूर्वग्रह त्रैमासिक पत्रिका की पहचान एक गंभीर सृजनात्मक विमर्श की पत्रिका के रूप मे रही है । भाषा-शिल्प के आभिजात्य पर पत्रिका का आग्रह नही है । यह पत्रिका हर तरह के प्रवाद से बचती रही है । इधर काफ़ी दिनों तक इसका प्रकाशन बंद हो गया था । लेकिन आप लोगो को बताते हुए खुशी हो रही है की इसका १२४ अंक आ गया है ।
प्रभाकर शोत्रिय जी के सम्पादन मे यह भारतीय भवन ,भोपाल से निकल रही है ।
Sunday, 10 May 2009
Saturday, 9 May 2009
हमसफ़र कौन है ,कैसे कहे आज हम ?
हमसफ़र कौन है, कैसे कहें आज हम ?
hamsafar kaun है, kaise kahen aaj hum ;
रास्तों में भटके हुए हैं, मंजिल की तलाश है /
raston me bahatke huye hain; manjil ki talsh hai /
साथ तेरा सुखमय है , बात तेरी प्रियकर है ;
sath tera sukhmay hai ,bat teri priykar hai ;
कैसे कहें तू है वो हमसफ़र ,जिसकी मुझे तलाश है;
kaise kahen tu hai wo हमसफ़र, jisaki muje talash hai /
मेरी अनिभिज्ञता पे नाराज न हो ;
meri anibhigyta pe naraj na ho ;
पर रास्ते में ही मंजिल का हिसाब ना हो ;
par पर raste रास्ते me hi manjil ka hisab na ho ;
वाकये कितने अभी टकराने हैं ;
wakaye kitane anjane abhi takarane hai;
राहों में अभी फैसलों के वक्त आने हैं ;
rahon me abhi faisalon ke waqt aane hai;
दुविधाएं अभी कहाँ आई ?
duvidhayen abhi kahan aayi ?
जिंदगी की भूलभुलैया कहाँ छाई ?
jindagi ki bhulbuliya kahan chayi?
रिश्तों में गहराईयाँ अभी आनी है;
riston में गहराईयाँ aani hai ?
वो इक समुंदर है ,या बारिश का फैला हुआ पानी है ?
wo ek samunder hai ya barish ka faila huwa पानी hai है ?
कैसे कहें हमसफ़र मिल गया ?
रास्ते में उलझे हैं ;
rasten me ulaje hai ,
मंजिल की तलाश जारी है /
manjil ki talash jari hai /
hamsafar kaun है, kaise kahen aaj hum ;
रास्तों में भटके हुए हैं, मंजिल की तलाश है /
raston me bahatke huye hain; manjil ki talsh hai /
साथ तेरा सुखमय है , बात तेरी प्रियकर है ;
sath tera sukhmay hai ,bat teri priykar hai ;
कैसे कहें तू है वो हमसफ़र ,जिसकी मुझे तलाश है;
kaise kahen tu hai wo हमसफ़र, jisaki muje talash hai /
मेरी अनिभिज्ञता पे नाराज न हो ;
meri anibhigyta pe naraj na ho ;
पर रास्ते में ही मंजिल का हिसाब ना हो ;
par पर raste रास्ते me hi manjil ka hisab na ho ;
वाकये कितने अभी टकराने हैं ;
wakaye kitane anjane abhi takarane hai;
राहों में अभी फैसलों के वक्त आने हैं ;
rahon me abhi faisalon ke waqt aane hai;
दुविधाएं अभी कहाँ आई ?
duvidhayen abhi kahan aayi ?
जिंदगी की भूलभुलैया कहाँ छाई ?
jindagi ki bhulbuliya kahan chayi?
रिश्तों में गहराईयाँ अभी आनी है;
riston में गहराईयाँ aani hai ?
वो इक समुंदर है ,या बारिश का फैला हुआ पानी है ?
wo ek samunder hai ya barish ka faila huwa पानी hai है ?
कैसे कहें हमसफ़र मिल गया ?
रास्ते में उलझे हैं ;
rasten me ulaje hai ,
मंजिल की तलाश जारी है /
manjil ki talash jari hai /
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हिन्दी कविता hindi poetry

Friday, 8 May 2009
गुजरा ज़माना , आज का फ़साना /
गुजरा जमाना ,
आज का फ़साना ;
अनकही बातें ,
अधूरे जजबात ,
और वो रात /
अरमानो का मौसम ,
बाहों की जकडन ,
जलता तन ;
बहकता मन ,
सतत प्यास ,
वो भावों का कयास ;
महकी सांसों का बंधन ,
तन से खिलता तन ;
क्या सच क्या सपना ;
रास्ता देखती आखें ,
आखों से आखों की बातें ;
सुबह का इंतजार करती रातें ;
स्पर्श से आल्हादित दिन ,
सामने पाके हर्षित मन ;
प्यार बरसते नयन ,
भावनावों की मदहोशी ;
उसपे तेरी हंसी ,
क्या सच , क्या सपना ;
क्या भाग्य क्या विडम्बना ,
क्या तू है मेरा अपना /
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Thursday, 7 May 2009
उस रात का गिला क्या करे जब हम तुम साथ न थे
उस रात का गिला क्या करे जब हम तुम साथ न थे ,
उस पल की याद क्या जब हाथों में हाथ न थे ;
चाँद की चांदनी में भी कहाँ अब वो बात है ,
सूरज की रोशनी में भी अँधेरे की छाप है ;
क्या कहे दिल की हालत ए मेरी जिंदगी ,
जब से तुम बिचडे हो बहकता सावन भी उदास है ;
उस पल की याद क्या जब हाथों में हाथ न थे ;
चाँद की चांदनी में भी कहाँ अब वो बात है ,
सूरज की रोशनी में भी अँधेरे की छाप है ;
क्या कहे दिल की हालत ए मेरी जिंदगी ,
जब से तुम बिचडे हो बहकता सावन भी उदास है ;
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Wednesday, 6 May 2009
कुछ तो कहो, कुछ तो लिखो ;
कुछ तो कहो, कुछ तो लिखो ;
सजाई है जब एक महफ़िल ,
महफ़िल में कभी तो खिलो ;
क्यूँ चुप हो ,क्या बात है,
क्यूँ मुद्दे नहीं मिलते ;
जीवन का हर पल एक बात है ,
क्यूँ बात नहीं करते ;
चुप रहने से कुछ हासिल नहीं होता ,
बिना अपनी बात कहे,
समाज के बदलाव में शामिल नहीं होता ;
गर चीजें बदलनी है बेहतरी के लिए ,
खुल के कहो बात अपनी ,
देश की तरक्की के लिए /
सजाई है जब एक महफ़िल ,
महफ़िल में कभी तो खिलो ;
क्यूँ चुप हो ,क्या बात है,
क्यूँ मुद्दे नहीं मिलते ;
जीवन का हर पल एक बात है ,
क्यूँ बात नहीं करते ;
चुप रहने से कुछ हासिल नहीं होता ,
बिना अपनी बात कहे,
समाज के बदलाव में शामिल नहीं होता ;
गर चीजें बदलनी है बेहतरी के लिए ,
खुल के कहो बात अपनी ,
देश की तरक्की के लिए /
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The caste system
In the Jatakas Brahmins are mentioned as traders, hunters and trappers. R P Masani quotes the case of a Kshatriya prince, Kusa, mentioned in one of the Jataka tales, who became an apprentice in turn to a potter, a basket maker, a florist and a cook. Conversely, from even the Vedic days there have been innumerable instances of men born in the lowest rank of caste-society taking to professions which in theory were the monopoly of the other castes. Even the Mauryas royal family came from among the Sudras.” Swami Chidanand Saraswatiji ( ? ) of the India Heritage Research Foundation defines: "The Caste system as you see it today is not was originally simply a division of labor based on personal, talents tendencies and abilities. It was never supposed to divide people. Rather, it was supposed to unite people so that everyone was simultaneously working to the best of his/her ability for the greater service of all. In the scriptures, when the system of dividing society into four groups was explained, the word used is “Varna.” Varna means “class” not “caste.” Caste is actually “Jati” and it is an incorrect translation of the word “varna.” When the Portuguese colonized parts of India, they mistakenly translated “varna vyavasthaa” as “caste system” and the mistake has stayed since then.
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Monday, 4 May 2009
लौटा है आज वो घर बरसों बाद
लौटा है आज वो घर बरसों बाद ,
हर साल दो साल बाद ,
वो घर आता जरूर था ;
पर लौटा है घर आज वो बरसों बाद /
ख़त या इ मेल तो अपनो को करता था ;
पर वो बस खोखले शब्दों का मायाजाल है मात्र /
उसने अपने फ्लैट में गमले सजाएँ हैं ;
कई छुट्टियाँ शहर के आस पास के पहाडों ,औ पर्यटन स्थल पे बिताएं हैं/
कहाँ पाया उसने गाँव की मिट्टी का अपनापन !
शहर की पार्टियों पर ,नेटवर्क की साइटों पर ,सैकडों मित्र, मैत्रिणी है उसकी ,
कहाँ पाया उसने ;बचपन के दोस्तों की निश्छलता ,अपनापन ;
कैसे पाए अपने वो मचले दिन ?
बचपन की लड़ाई ,वो कसक , उतावलापन ;
लौटा है आज वो घर बरसों बाद /
कभी फ़ोन ,कभी मोबाइल पे बात कर लिया करता था अपनो से ,
पर कहाँ पाए वो उष्मा दादी की गोद का ,
मामा की सोच का ,
चाचा की डांट का ,
पडोसी के दुलार का ;
माँ की ममता का ,
पिता की कडाई का ,
दादा की रजाई का /
बड़ा आदमी बन गया है अब वो ,
प्यार को कितना तरस गया है वो ;
लौटा है आज वो घर बरसों बाद /
बिस्तर माँ को जकडे पड़ा है ;
पिता की आखों में खालीपन सा छुपा है ;
बचपन का दोस्ताना ,अपनो का याराना कहीं खो सा गया है /
भाई भाभी विस्मित है ,किस ढंग से पेश आयें ;
सब चाहते तो है अपनापन और हक दिखलायें ;
झूठा दिखावा और भावों का ओथालापन ;
उसका खुद का और अपनो का ;
दोनों को व्यथित किये है ;
इतने सालों को कैसे जोड़े ,
ये प्रश्न भ्रमित किये है /
सालों की अपनी सफलता में ,
बीबी के चाह में ;
बच्चों को पालने में ,
शहर की चमक में ,
भविष्य को निखारने में ;
अपने सुख ,झूठे दिखावे और विलासों के साये में ;
बिता डाले ;कितने ही सावन , होली दिवाली ;
शहरों की दीवालों में ;
पर लौटा है आज वो घर बरसों बाद /
आज बीबी का तन शिथिल , मन का वो नही जानता ;
बच्चे अपनी जिंदगी में मस्त ;
समाज और दोस्तों में वाह वाही है ;
ह्रदय खाली सिर्फ खाली है/
ये उसकी अपनी जिंदगी का खोखलापन,
डरावने सपने सा सामने खडा है ;
और आज उसके सामने practical बनने का attitude ;
यछ प्रश्न सा सिने में जड़ा है /
लौटा है आज वो घर बरसों बाद /
हर साल दो साल बाद ,
वो घर आता जरूर था ;
पर लौटा है घर आज वो बरसों बाद /
ख़त या इ मेल तो अपनो को करता था ;
पर वो बस खोखले शब्दों का मायाजाल है मात्र /
उसने अपने फ्लैट में गमले सजाएँ हैं ;
कई छुट्टियाँ शहर के आस पास के पहाडों ,औ पर्यटन स्थल पे बिताएं हैं/
कहाँ पाया उसने गाँव की मिट्टी का अपनापन !
शहर की पार्टियों पर ,नेटवर्क की साइटों पर ,सैकडों मित्र, मैत्रिणी है उसकी ,
कहाँ पाया उसने ;बचपन के दोस्तों की निश्छलता ,अपनापन ;
कैसे पाए अपने वो मचले दिन ?
बचपन की लड़ाई ,वो कसक , उतावलापन ;
लौटा है आज वो घर बरसों बाद /
कभी फ़ोन ,कभी मोबाइल पे बात कर लिया करता था अपनो से ,
पर कहाँ पाए वो उष्मा दादी की गोद का ,
मामा की सोच का ,
चाचा की डांट का ,
पडोसी के दुलार का ;
माँ की ममता का ,
पिता की कडाई का ,
दादा की रजाई का /
बड़ा आदमी बन गया है अब वो ,
प्यार को कितना तरस गया है वो ;
लौटा है आज वो घर बरसों बाद /
बिस्तर माँ को जकडे पड़ा है ;
पिता की आखों में खालीपन सा छुपा है ;
बचपन का दोस्ताना ,अपनो का याराना कहीं खो सा गया है /
भाई भाभी विस्मित है ,किस ढंग से पेश आयें ;
सब चाहते तो है अपनापन और हक दिखलायें ;
झूठा दिखावा और भावों का ओथालापन ;
उसका खुद का और अपनो का ;
दोनों को व्यथित किये है ;
इतने सालों को कैसे जोड़े ,
ये प्रश्न भ्रमित किये है /
सालों की अपनी सफलता में ,
बीबी के चाह में ;
बच्चों को पालने में ,
शहर की चमक में ,
भविष्य को निखारने में ;
अपने सुख ,झूठे दिखावे और विलासों के साये में ;
बिता डाले ;कितने ही सावन , होली दिवाली ;
शहरों की दीवालों में ;
पर लौटा है आज वो घर बरसों बाद /
आज बीबी का तन शिथिल , मन का वो नही जानता ;
बच्चे अपनी जिंदगी में मस्त ;
समाज और दोस्तों में वाह वाही है ;
ह्रदय खाली सिर्फ खाली है/
ये उसकी अपनी जिंदगी का खोखलापन,
डरावने सपने सा सामने खडा है ;
और आज उसके सामने practical बनने का attitude ;
यछ प्रश्न सा सिने में जड़ा है /
लौटा है आज वो घर बरसों बाद /
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