बात उन दिनों की है जब मैं मंच संचालक के रूप में अपनी नई-नई पहचान बना रहा था । हर वक्त बरसाती मेंढक की तरह संचालन करने के लिये तैयार। जेब के अंदर पैसे भले ना हो,लेकिन हर तरह के कार्यक्रम के लिये संचालन की सामग्री अवस्य रहती थी । पंचिंग शेर,सूक्ति वाक्य और छोटी-छोटी बोधगम्य कहानिया ।
एक शाम अचानक शहर के माने -जाने समाजसेवी और मेरे महाविद्यालय के मानद सचिव श्री विजय नारायण पंडित जी का फ़ोन आया । मुझे तुंरत महाजन वाडी हाल में पहुचना था,किसी कार्यक्रम का संचालन करने के लिये । मैं इतना खुश हुआ कि यह भी पूछना जरूरी नहीसमझा कि आख़िर किस तरह के कार्यक्रम में जाना है ।
तुंरत तैयार हो कर मैं यथा स्थान पंहुच गया । वहा देखा तो अजीब ही माहौल था । सब के चेहरे पर मनहूसियत छाई थी । मुझे कुछ आशंका हुई तो मैने विजय भाई से धीरे से पूछा ,"भईया कार्यक्रम क्या है ?" विजय भाई बोले,"मनीष अपने श्यामधर पाण्डेय जी के पिताजी का स्वर्गवास हो गया है,उसी लिये शोक सभा बुलाई गई है । "यह सुनकर मेरे तो कान खड़े हो गये । मैने अभी तक किसी शोक सभा का संचालन नही किया था । संचालन तो दूर मैं किसी शोक सभा मे सहभागी भी नही हुआ था । अब क्या करू ? फ़िर जिनकी यह शोक सभा थी उनसे तो मेरा दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध भी नही था । उनके बारे मे मुझे कुछ भी मालूम नही था । पर मरता क्या न करता ,मैने भी भगवान् का नाम ले माइक थामा ।
मेरा पहला वाक्य था -आप सभी आमंत्रित अतिथियों का मैं इस शोक सभा मे हार्दिक स्वागत करता हूँ । मैने इतना बोला ही था कि विजय भाई ने पीछे से आवाज दी । जब मैं उनके पास पहुँचा तो वे मेरे कान मे बोले -क्या कर रहे हो ? शोक सभा मे स्वागत नही किया जाता ,वो भी हार्दिक ------------------।
मैं बहुत शर्मिंदा हुआ ,डरते-डरते फ़िर माइक के सामने गया । उसके बाद क्या-क्या बोल गया था ,अब याद नही है । लेकिन शोक सभा ख़त्म होने के बाद कई लोगो ने मुझे कुशल संचालन के लिये बधाई दी । शोक संतप्त परिवार के लोगो ने मेरे प्रति हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित की ।
इस तरह मेरे जीवन की पहली शोक सभा पूरी हुई .जो मैं कभी भूल नही सकता ।
Wednesday, 15 April 2009
Tuesday, 14 April 2009
सुहानी शाम दिलकश रात हो -----------------------

सुहानी शाम दिलकश रात हो
ऐसे में मिलो तो क्या बात हो ।
जो गजलो में अच्छा लगता है
तुम बिल्कुल वही जज्बात हो ।
तुम्हारी अदावो का कहना क्या
मैं डाल-डाल तुम पात-पात हो ।
कह दूंगा दिल की हर एक बात मैं
अब जब भी तुमसे मुलाक़ात हो ।
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हिन्दी कविता hindi poetry
अमरकांत की आर्थिक सहायता और हिन्दी समाज
यंहा उन खबरों का हवाला है जिनके माध्यम से यह साबित होगा की हिन्दी के लेखको की आर्थिक स्थिति कितनी गड़बड़ रही है । साथ ही साथ यह भी समझना होगा की परिवार के लोगो द्वारा बीमारी के नाम पर पैसा बटोरना कहा तक सही है । आप जो खबर नीचे अंग्रजी में पढ़ रहे हैं ,उसका सम्बन्ध हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार अमरकांत से है ।
http://news.oneindia.in/2008/05/03/aid-for-ailing-hindi-writer-1209801777.html
Saturday, May 03 2008 13:08(IST)
Bhopal, May 3: Noted Hindi writer Amarkant, who was ailing for a long time, has been provided financial assistance of Rs one lakh by Madhya Pradesh Chief Minister Shivraj Singh Chouhan.The 83-year-old prolific writer is a recipient of Madhya Pradesh Government's National Maithili Sharan Samman.
Wishing him fast recovery, Mr Chouhan stresed on the ned to take care of the health and problems of the writers, official sources said.Mr Amarkant has a number of novels to his credit including the famous book entitled 'Sukhjeevi'. His story collection 'Zindagi Aur Jaunk' is very popular. He has also penned many stories for children.He is recipient of various prestigious awards, including the Soviet Land Nehru Award, Yashpal award, Jan Sanskriti Samman and has also been honoured by Uttar Pradesh Hindi Sansthan।
यह समाचार पढ़ कर आप यह तो समझ गये होंगे की अमरकांत जिन बातो से पूरी उम्र बचते रहे ,अब अपने अन्तिम समय में उन्ही बातो को झेलने के लिये लाचार हैं।
अमरकांत जी से मेरी पहली मुलाकात २००६ में उनके इलाहबाद स्थित मकान में हुई । उन दिनों अमरकांत गोविंदपुर के एल.आई.जी.मकान में रहा करते थे.साथ ही उनके बेटे (अरविन्द)और बहु भी रहा करते थे । अरविन्द अमर कृत प्रकाशन चला रहे थे और बहाव नामक पत्रिका का सम्पादन भी कर रहे थे । कुल मिलाकर आमदनी का कोई ठोस आधार नही था। उपर से अमरकांत जी बीमार रहते थे । आज की तारीख में उनकी दवाओं पर हर दिन ५००० खर्च हो रहा है । ऐसे में मजबूर हो कर अमरकांत ने अपनी आर्थिक सहायता के लिये अपील जारी की।
इस अपील को ले कर साहित्य जगत में हंगामा मच गया। मदद तो दूर की बात लोगो ने इसे पैसे कमाने का हथकंडा मानकर इसके विरुद्ध लिखना शुरू किया । दो तरह की बाते सामने आई । कुछ सरकारी संस्थानों से मद्दद भी मिली तो कईयों की आलोचना भी सहनी पड़ी ।
मैं ने अपना शोध कार्य हाल ही मे अमरकांत पर ही पूरा किया है । मैं अमरकांत की हालत से अच्छी तरह परिचित हूँ । उन्हे सच में आर्थिक सहायता की जरूरत है । ऐसे में मैं बस इतना कहना चाहता हूँ की अगर हम उनकी कोई मदद नही कर सकते तो हमे उनका निरर्थक विरोध भी नही करना चाहिये .
http://news.oneindia.in/2008/05/03/aid-for-ailing-hindi-writer-1209801777.html
Saturday, May 03 2008 13:08(IST)
Bhopal, May 3: Noted Hindi writer Amarkant, who was ailing for a long time, has been provided financial assistance of Rs one lakh by Madhya Pradesh Chief Minister Shivraj Singh Chouhan.The 83-year-old prolific writer is a recipient of Madhya Pradesh Government's National Maithili Sharan Samman.
Wishing him fast recovery, Mr Chouhan stresed on the ned to take care of the health and problems of the writers, official sources said.Mr Amarkant has a number of novels to his credit including the famous book entitled 'Sukhjeevi'. His story collection 'Zindagi Aur Jaunk' is very popular. He has also penned many stories for children.He is recipient of various prestigious awards, including the Soviet Land Nehru Award, Yashpal award, Jan Sanskriti Samman and has also been honoured by Uttar Pradesh Hindi Sansthan।
यह समाचार पढ़ कर आप यह तो समझ गये होंगे की अमरकांत जिन बातो से पूरी उम्र बचते रहे ,अब अपने अन्तिम समय में उन्ही बातो को झेलने के लिये लाचार हैं।
अमरकांत जी से मेरी पहली मुलाकात २००६ में उनके इलाहबाद स्थित मकान में हुई । उन दिनों अमरकांत गोविंदपुर के एल.आई.जी.मकान में रहा करते थे.साथ ही उनके बेटे (अरविन्द)और बहु भी रहा करते थे । अरविन्द अमर कृत प्रकाशन चला रहे थे और बहाव नामक पत्रिका का सम्पादन भी कर रहे थे । कुल मिलाकर आमदनी का कोई ठोस आधार नही था। उपर से अमरकांत जी बीमार रहते थे । आज की तारीख में उनकी दवाओं पर हर दिन ५००० खर्च हो रहा है । ऐसे में मजबूर हो कर अमरकांत ने अपनी आर्थिक सहायता के लिये अपील जारी की।
इस अपील को ले कर साहित्य जगत में हंगामा मच गया। मदद तो दूर की बात लोगो ने इसे पैसे कमाने का हथकंडा मानकर इसके विरुद्ध लिखना शुरू किया । दो तरह की बाते सामने आई । कुछ सरकारी संस्थानों से मद्दद भी मिली तो कईयों की आलोचना भी सहनी पड़ी ।
मैं ने अपना शोध कार्य हाल ही मे अमरकांत पर ही पूरा किया है । मैं अमरकांत की हालत से अच्छी तरह परिचित हूँ । उन्हे सच में आर्थिक सहायता की जरूरत है । ऐसे में मैं बस इतना कहना चाहता हूँ की अगर हम उनकी कोई मदद नही कर सकते तो हमे उनका निरर्थक विरोध भी नही करना चाहिये .
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हिन्दी कथाकार अमरकांत
हिन्दी कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
(१९२७-१९८३)
जन्म : १५ सितम्बर १९२७ बस्ती उत्तर प्रदेश में।शिक्षा : वाराणसी तथा प्रयाग विश्वविद्यालय में।कार्यक्षेत्र : अध्यापन, आकाशवाणी में सहायक प्रोड्यूसर, दिनमान के उपसंपादक और पराग में संपादक रहे। साहित्यिक जीवन का प्रारंभ कविता से। दिनमान के 'चरचे और चरखे' स्तम्भ में वर्षो मर्मभेदी लेखन-कार्य। कला, साहित्य, संस्कृति और राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय हिस्सेदारी। कविता के अतिरिक्त कहानी नाटक और बालोपयोगी साहित्य में महत्वपूर्ण लेखन। अनेक भाषाओं में रचनाओं का अनुवाद। १९७२ में सोवियत संघ के निमंत्रण पर पुश्किन काव्य समारोह में सम्मिलित।
२४ सितंबर १९८३ को आकस्मिक निधन।
प्रमुख रचनाएँ :काव्य-संग्रह : काठ की घाटियाँ, बांस का पुल, एक सूनी नाव, गर्म हवाएँ, कुआनो नदी, कविताएँ १, कविताएँ २, जंगल का दर्द, खूँटियों पर टँगे लोग।उपन्यास : उड़े हुए रंगलघु उपन्यास : सोया हुआ जल, पागल कुत्तों का मसीहाकहानी संग्रह : अंधेरे पर अंधेरानाटक : बकरी बाल साहित्य : भों भों खों खों, लाख की नाक, बतूता का जूता, महंगू की टाई।यात्रा वृत्तांत : कुछ रंग कुछ गंधसंपादन : शमशेर, नेपाली कविताएँ ।
यह तो वह जानकारी है जो गूगल के माध्यम से हमारे लिये उपलब्ध है । लिंक के अंतर्गत इसके बारे में विस्तार से पढ़ा जा सकता है । साथ ही साथ हमे यह भी समझना होगा की सर्वेश्वर जैसे कवियों पर हमे आलोचना के नवीन मापदंड अपनाने होंगे । नई कविता और नई कहानी की चार दिवारी के बीच अमरकांत और सर्वेश्वर जैसे साहित्यकारों को बाँधा नही जा सकता ।
आजादी के बाद के मोहभंग ,निराशा ,कुंठा ,अवसरवादिता ,भाई -भतीजावाद और शोषण की स्थितियों के बीच ही सर्वेश्वर ने ऐसी कविताये भी रची जो उन्हे उनके समकालीनों से अलग एक नया मकाम देती हैं । अपनी कविताओ के माध्यम से सर्वेश्वर ने समकालीन समाज का चित्र ही नही खीचा अपितु सामान्य जन मानस के अंदर नई शक्ति संजोने का भी काम किया ।
आप की कविता सिर्फ़ निराशा और हताशा को नही दिखाती ,बल्कि समाज को अपने यथार्थ से परिचित करा कर उन्हे आने वाली परिस्थितयों के प्रति सजग भी बनाती हैं ।
तेरे बाद तो अबतक -----------------------
किनारों पे टूट जाती है हर लहर तनहा
जाने किसको तलाशती हर पहर तनहा ।
बिन सीता,राम भोग रहे हैं वनवास
कितना मुश्किल है यह सफ़र तनहा ।
अपनी छोड़ हमने सब की सोची
उधर वो,रहे इधर हम भी तनहा ।
ख्वाब कैसे सजे कोई आँखों में
तेरे बाद अब तक रही नजर तनहा ।
कोई मिले तो उसका हाँथ थाम लेना
जिंदगी न होगी इसकदर बसर तनहा ।
जाने किसको तलाशती हर पहर तनहा ।
बिन सीता,राम भोग रहे हैं वनवास
कितना मुश्किल है यह सफ़र तनहा ।
अपनी छोड़ हमने सब की सोची
उधर वो,रहे इधर हम भी तनहा ।
ख्वाब कैसे सजे कोई आँखों में
तेरे बाद अब तक रही नजर तनहा ।
कोई मिले तो उसका हाँथ थाम लेना
जिंदगी न होगी इसकदर बसर तनहा ।
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हिन्दी कविता hindi poetry
Sunday, 12 April 2009
आप जो मेरे घर मेहमान हैं ------------------------
मेरे घरआज आप बने मेहमान हैं
खुशकिस्मत कितना ये मेजबान है ।
तुम्हारे घर उर्दू,मेरे घर में हिन्दी,
फ़िर भी मोहब्बत का अरमान है ।
मुहमांगी कीमत चुकाने के बाद,
लड़की का बाप करता कन्यादान है ।
हर ग़लत बात पे आवाज उठाओ ,
कदम हर कदम तुम्हारा ही नुक्सान है । ।
खुशकिस्मत कितना ये मेजबान है ।
तुम्हारे घर उर्दू,मेरे घर में हिन्दी,
फ़िर भी मोहब्बत का अरमान है ।
मुहमांगी कीमत चुकाने के बाद,
लड़की का बाप करता कन्यादान है ।
हर ग़लत बात पे आवाज उठाओ ,
कदम हर कदम तुम्हारा ही नुक्सान है । ।
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Saturday, 11 April 2009
नही रहे हिन्दी के साहित्यकार विष्णु प्रभाकर --------------------------

सन १९१२ में जन्मे विष्णु प्रभाकर जी नाटककार,कहानीकार,उपन्यासकार और जीवनीकार के रूप मे जाने जाते थे । आप के प्रमुख उपन्यास इस प्रकार हैं
१.निशिकांत -१९५५
२.तट के बंधन -१९५५
३.दर्पण का व्यक्ति -१९६८
४.कोई तो - १९८०
५.अर्धनारीश्वर-१९९२
आप की कहानिया भी काफी लोकप्रिय रही हैं । आप के कुछ प्रमुख कहानी संग्रह इस प्रकार हैं
१.धरती अब घूम रही है
२.सांचे और कला -१९६२
३.पुल टूटने से पहले -१९७७
४.मेरा वतन -१९८०
५.खिलौने
६.एक और कुंती
७। जिंदगी का रिहर्सल
आप ने हिन्दी नाटको के विकास में भी अहम् भूमिका निभाई । सन १९५८ में डॉक्टर नामक आप के नाटक से आप को हिन्दी नाटक के परिदृश्य मे जाना गया । आप के प्रमुख नाटक इस प्रकार हैं
१.युगे-युगे क्रांति-१९६९
२.टूटते परिवेश-१९७४
३.कुहासा और किरण -१९७५
४.डरे हुवे लोग -१९७८
५.वन्दिनी-१९७९
६.अब और नही -१९८१
७.सत्ता के आर-पार -१९८१
८.श्वेत कमल -१९८४
इनके अतिरिक्त आपको जिन पुस्तकों की वजह से जाना गया ,उनमे आवारा मसीहा ,हत्या के बाद और मैं नारी हूँ शामिल है । आप मूल रूप से मानवतावादी रचनाकार के रूप में जाने गये । मानवीय मूल्यों के प्रति आप अपने साहित्य के माध्यम से हमेशा सचेत रहे । आप का यह मत था की ,"व्यक्ति की संवेदना जब मानव की संवेदना में रूपाईट होती है तभी कोई रचना साहित्य की संज्ञा पाती है । "
आज विष्णु प्रभाकर जीवित नही हैं ,लेकिन उनका साहित्य अमर है। यह साहित्य ही हमे हमेशा विष्णु जी की याद दिलाता रहे गा । ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे ।
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