हिन्दी मे आज की तारीख़ मे कई पत्रिकायें निकल रही हैं । ऐसी ही एक महत्त्व पूर्ण पत्रिका है -बया । गौरीनाथ जी के संपादन मे निकलने वाली यह पत्रिका पहले छमाही प्रकाशित होती थी ,लेकिन अब यह त्रैमासिक हो गयी है । जुलाई-सितम्बर अंक २००९ "बंगाल:पलासी से नंदीग्राम " पर केन्द्रित है । अब यह पत्रिका "अंतिका प्रकाशन " से जुड़ गई है ।
पत्रिका के लिये ०१२०-६४७५२१२ \०९८६८३८०७९७ पे संपर्क किया जा सकता है । इसकी वार्षिक सदस्यता १२० रुपये है । आजीवन ५००० रुपये है । आप को यह पत्रिका जरूर पसंद आयगी । इसे आप जरूर पढ़े ।
Wednesday, 1 April 2009
हिन्दी की नई पत्रिका -बया
Labels:
हिन्दी की पत्रिका बया,
हिन्दी मैगजीन
रात अकेले सागर तट पर हम दोनों ----------------------------
रात अकले सागर तट पर ,लहरों मे हम खोय थे
एक-दूजे के कन्धों पर ,प्यार से कितने सोय थे ।
इधर-उधर के जाने कितने ,किस्से तुमने सुनाये थे
वही बात ना कर पाये,करने जो तुम आये थे ।
एक साँस मे कह डाले ,सपने जो भी संजोये थे
फ़िर आँखों मे मेरी देखकर,कितना तुम मुस्काये थे ।
नर्म रेत पर पास बैठकर ,कितना तुम इतराये थे
प्रथम प्यार के चुम्बन पे,बच्चों जैसे शरमाये थे ।
एक-दूजे के कन्धों पर ,प्यार से कितने सोय थे ।
इधर-उधर के जाने कितने ,किस्से तुमने सुनाये थे
वही बात ना कर पाये,करने जो तुम आये थे ।
एक साँस मे कह डाले ,सपने जो भी संजोये थे
फ़िर आँखों मे मेरी देखकर,कितना तुम मुस्काये थे ।
नर्म रेत पर पास बैठकर ,कितना तुम इतराये थे
प्रथम प्यार के चुम्बन पे,बच्चों जैसे शरमाये थे ।
Labels:
ग़ज़ल्स,
हिन्दी कविता hindi poetry
गहर के अंदर मेरी भी --------------------
घर के अंदर मेरी भी ,इज्जत थी अच्छी-खासी
प्यार किया है जब से मैने,कहते हैं सब सत्यानासी ।
बडे नमाजी उसके अब्बा,पिताजी मरे चंदनधारी
लगता है गरमायेगा ,मुद्दा फ़िर से मथुरा-काशी ।
अच्छा है की लोकतंत्र है ,नही चलेगी तानाशाही
बस इनका यदि चलता तो ,मिलकर देते हमको फाँसी ।
प्यार किया है जब से मैने,कहते हैं सब सत्यानासी ।
बडे नमाजी उसके अब्बा,पिताजी मरे चंदनधारी
लगता है गरमायेगा ,मुद्दा फ़िर से मथुरा-काशी ।
अच्छा है की लोकतंत्र है ,नही चलेगी तानाशाही
बस इनका यदि चलता तो ,मिलकर देते हमको फाँसी ।
Labels:
ग़ज़ल्स,
हिन्दी कविता hindi poetry
Tuesday, 31 March 2009
पकिस्तान के हालात --------
- कल ही पकिस्तान मे एक और आतंकवादी हमला हुआ जिसने पूरे पकिस्तान को हिला के रेख दिया। भारत का पड़ोसी होने के कारण पकिस्तान की आतंरिक स्थितियां हमारे लिये भी चिंता विषय हैं । अफगानिस्तान के बाद तालिबान की पकड़ पकिस्तान पे मजबूत होती जा रही है .तालिबान को अलकायदा का समर्थन मिलता ही रहता है । भारत कट लिये समय आ गया है की वह अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को साथ लेकर आतंकवाद के ख़िलाफ़ एक नई पहल करे ।
पकिस्तान को भी अब यह समझना हो गा की जी आतंकवाद के दम पे वह भारत को आँख दिखता था ,वाही अब भास्मा सुर की तरह उसे ही तबाह कर डालने की कोसिस कर रहा है ।
आज से जी २० के सिखर सम्मलेन मे प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह जा रहे हैं । उन्हे जो दो मुद्दे पुरी ताकत से उठाना चाहिये वो निम्नलिखित हैं ।
१.भारत का जो पैसा काले धन के रूप मे बाहरी बैंकों मे है ,उसे वापस लाना
२.आतंकवाद की समस्या पर पकिस्तान और अफगानिस्तान के हालत पे विश्व व्यापी कारगर उपाय खोजना ।
Labels:
पकिस्तान.अफानिस्तान.आतंकवाद
Monday, 30 March 2009
क्या -क्या किया जवानी मे -----------------------------
पूछो ना क्या क्या किया जवानी मे
नदी थे ,सो बह गये थे रवानी मे
हम तो शांत झील की तरह थे
आग तुम्ही ने लगा दी पानी मे
मेहमान से आये थे ,चले गये
करके इजाफा हमारे खर्चे मे
वो तो खुशबू थे ,बिखर गये
पड़ गये हम तो परेशानी मे
इश्क करना कब था हमे
हो गया यह काम नादानी मे
नदी थे ,सो बह गये थे रवानी मे
हम तो शांत झील की तरह थे
आग तुम्ही ने लगा दी पानी मे
मेहमान से आये थे ,चले गये
करके इजाफा हमारे खर्चे मे
वो तो खुशबू थे ,बिखर गये
पड़ गये हम तो परेशानी मे
इश्क करना कब था हमे
हो गया यह काम नादानी मे
Labels:
इशक,
प्यार,
प्रेम की हिन्दी कवितायें
Sunday, 29 March 2009
JUST TO SAY HI
DEAR FRIENDS,
I AM JAI PANDEY WORKING AS A MECHANICAL ENGINEER IN MUMBAI. FROM TODAY ONWARDS YOU CAN READ MY ARTICLES RELATED TO MINERAL PROCCESING,TEHNOLOGY AND INDUSTRIAL ETP.
WITH HOPE THAT YOU WILL LIKE IT.
I AM JAI PANDEY WORKING AS A MECHANICAL ENGINEER IN MUMBAI. FROM TODAY ONWARDS YOU CAN READ MY ARTICLES RELATED TO MINERAL PROCCESING,TEHNOLOGY AND INDUSTRIAL ETP.
WITH HOPE THAT YOU WILL LIKE IT.
Saturday, 28 March 2009
दिन करीब चुनाव के आने लगे हैं ------------
जोड़ कर हाँथ वे लुभाने लगे हैं
दिन चुनाव के करीब आने लगे हैं
गली के गुंडों को टिकट मिल गया है
तहजीब मे अब वे बतियाने लगे हैं
पार्टी का जो भी रूठा था अपना
उसको नेता बडे सब मनाने लगे हैं
अनुबंधों मे गठबंधन का
नेता लुफ्त उठाने लगे हैं
सियासत है यंहा कुछ पक्का नही
एक-दूजे के घर मे लोग झाकने लगे हैं
इसके पीछे भी साजिस है गहरी
जो मुफ्त मे वो पीने-पिलाने लगे हैं
Labels:
hindi kavita. hasya vyang poet
Subscribe to:
Posts (Atom)
ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन
✦ शोध आलेख “ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन लेखक : डॉ. मनीष कुमार मिश्र समीक्षक : डॉ शमा ...
.jpg)
-
***औरत का नंगा जिस्म ********************* शायद ही कोई इस दुनिया में हो , जिसे औरत का जिस्म आकर्षित न करता हो . अगर सारे आवरण हटा क...
-
जी हाँ ! मैं वृक्ष हूँ। वही वृक्ष , जिसके विषय में पद््मपुराण यह कहता है कि - जो मनुष्य सड़क के किनारे तथा...
-
Factbook on Global Sexual Exploitation India Trafficking As of February 1998, there were 200 Bangladeshi children and women a...
-
अमरकांत की कहानी -जिन्दगी और जोक : 'जिंदगी और जोक` रजुआ नाम एक भिखमंगे व्यक्ति की कहानी है। जिसे लेखक ने मुहल्ले में आते-ज...
-
अनेकता मे एकता : भारत के विशेष सन्दर्भ मे हमारा भारत देश धर्म और दर्शन के देश के रूप मे जाना जाता है । यहाँ अनेको धर...
-
अर्गला मासिक पत्रिका Aha Zindagi, Hindi Masik Patrika अहा जिंदगी , मासिक संपादकीय कार्यालय ( Editorial Add.): 210, झेलम हॉस्टल , जवा...
-
Statement showing the Orientation Programme, Refresher Courses and Short Term Courses allotted by the UGC for the year 2011-2012 1...
-
अमरकांत की कहानी -डिप्टी कलक्टरी :- 'डिप्टी कलक्टरी` अमरकांत की प्रमुख कहानियों में से एक है। अमरकांत स्वयं इस कहानी के बार...